Monday 13 November 2017

Dhauli Shanti Stupa and Pipli

             यूँ तो सूरज की किरणें हर रोज एक नये सवेरे की चमक दमक से इस धरा को सराबोर करती हैं लेकिन ये सुबह तो कुछ अलग ही लग रही हैं। सारा का सारा शहर आध्यात्म के रंग में रंगा हुआ और सब लोग आध्यात्मिक रस से ओतप्रोत लग रहे हैं!! ऐसा होना स्वाभाविक ही है , अब उड़ीसा की राजधानी भुबनेश्वर आ कर ये अनुभूति ना हो तो और कहाँ होगी!! हमारे होटल में सुबह सात बजे से कॉम्प्लिमेंट्री ब्रेकफास्ट मिलना शुरू हो रहा है तो जल्दी जल्दी तैयार हो कर रेस्तरां ही पहुँच जाते हैं !! आज जल्दी जल्दी करना थोड़ा जरुरी भी है क्यूंकि आज के दिन में बहुत कुछ देखना है और बहुत कुछ जानना भी है अगर यहीं से देर कर दी तो अपनी देखने वाली जगहें छूट जाएँगी !! ये शायद घुमक्क्ड़ी का कीड़ा ही है जो एक बार किसी को काट ले तो फिर फिर वो बेचारा कहीं चैन से नहीं रह सकता !! बेचारे का दिन का चैन और रात की नींद तो गायब  होनी तय है !! ये ही लाइलाज बीमारी अपने को भी लग गयी है तो बस अब तो जिंदगी इसके साथ निकलनी है !!

Monday 6 November 2017

Nandan Kanan Zoo,Odisha

          बड़ी गरम जगह है यार ये उड़ीसा!! जनवरी के महीने में ये चिलचिलाती धूप और चिपचिपी वाला पसीना होता है तो ना जाने गर्मियों में क्या हाल होता होगा!! उस पर उदयगिरि की सीढ़ियों में चढ़ाना ये तो वो ही हाल हुआ करेला उस पर नीम चढ़ा हुआ!! अरे अब मैं ये सब क्यों सोच रही हूं अब तो हम लगभग इन सीढ़ियों से उतर कर सड़क पर ही आ पहुंचे हैं!! नारियल पानी वाले दिख रहे हैं पास में ही, एक एक नारियल ले कर थोड़ा गला तर कर लेते हैं और धूप से बचने को गाड़ी में ही जा के बैठ जाते हैं!! अब तो मन कर रहा किसी छांव वाली जगह बैठकर आराम मिल जाये तो अब चलते हैं वृक्षों से आच्छादित और वन्य जीवों के आवास नंदन कानन!! नारियल पानी पीते पीते अब हम सड़क पर चलते जा रहे हैं और वाइट टाइगर से साक्षात्कार की उम्मीद लिए नंदन कानन जो कि यहां से अट्ठारह किलोमीटर दूर है उसकी तरफ आगे बढ़ते जा रहे हैं!! बहुत नाम सुना है इसका जहाँ ये दिखता है वो दिखता ना जाने क्या क्या!! मुझे तो नाम भी याद नही रहते अब क्या कहूँ!! खैर बाते तो होती ही रहेगी अब एक छोटा सा परिचय दे देते हैं!!

Tuesday 26 September 2017

Syahi Devi Shitlakhet, Almora

              नवरात्रि के पांच दिन गुजर गये और मैं आज तक आपको किसी भी माता रानी के दर्शन कराने नहीं ले गयी। अब तो मुझे खुद भी लग रहा है ,बेटा बहुत अलसा लिये !! डांडिया गरबा में इतना रमना भी ठीक नहीं !! कम से कम इन नौ दिनों में से एक दिन तो किसी मंदिर को याद कर ले!! जा नही सके तो फोटो ही देख लो और बाकियों को भी दिखा तो !! तो चलिये आज अपना आलस छोड़ कर आपको ले चलते हैं माता के दरबार में !!देवी माँ के नौ रूप हैं और अलग अलग जगह वो अलग अलग रूप में विराजती हैं कहीं देवी भगवती  के रूप में तो कहीं माँ कालिका के रूप में!! देवों की नगरी यानिकि देवभूमि उत्तराखंड में बसने वाली स्याही देवी के सानिध्य में।

Friday 1 September 2017

Udaygiri and Khandgiri Hills,Bhubneshwar

           भारत की पूरब दिशा में बसा से उड़ीसा राज्य हर तरह से समद्ध है चाहें वो धार्मिक दृष्टि से हो या फिर प्राकृतिक दृष्टि से। चार धामों से से एक जगन्नाथ पुरी भी यहीं है और राजधानी भुबनेश्वर में लिंगराज जैसा विख्यात मंदिर भी यहीं है। इसकी धार्मिक समर्द्धता के विषय मे ज्यादा कुछ कहने की आवश्यकता ही नही है वो यहां के प्रतीक चिन्हों से अपने आप झलकने लगती है!! यहाँ ना केवल हिन्दू धर्म स्थल हैं अपितु जैन और बौद्ध धर्म के भी प्रतीक चिन्ह उपस्थित हैं!!  इसी क्रम में यहाँ के कुछ मंदिर दर्शन के तदोपरांत हम लोग उदयगिरि और खंडगिरि से रूबरू होने के लिये आगे चल पड़े। लिंगराज मंदिर से यहाँ की दूरी करीब आठ किलोमीटर की है ओर हम आधे घंटे में इन गुफाओं के प्रवेश द्वार तक पहुंच गये!! यहाँ भी सभी पर्यटक स्थलों की तरह जगह जगह पार्किंग के नाम पर पैसा वसूलने वाले लोग विराजमान है और चालीस रुपये के रूप में हमसे भी वो अपनी फीस झटक ले गये!! खैर अब घूमने निकले ही हैं तो इतना तो करना ही पड़ेगा।
         बहुत देर से उदयगिरि खंडगिरि का जाप लगा रखा है ना!! चलिये अब एक छोटा सा परिचय भी दे डालती हूँ, बिना परिचय के यात्रा वर्त्तान्त में आंनद नही आ पाता है!! उदयगिरि और खंडगिरि दोनों आमने सामने स्थित दो पहाड़ियाँ है जिनमे छोटी बडी गुफाएं बनी हुई हैं। ये गुफाएं प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों का संगम हैं।
      जैसा कि नाम से ही पता लगा रहा है उदयगिरि से तात्पर्य है उगते सूरज की पहाड़ी और खंडगिरि का अभिप्राय अवशेषो से है!! एक ही दिन में दोनों पहाड़ियों में चढ़ना तो जम नही  रहा तो दोनो में से एक का चयन जरूरी है तो हम भी उदयगिरि की गुफायें देखने का तय किया!! उदयगिरि में छोटी बड़ी पंद्रह और खंडगिरि में अट्ठारह गुफाएं है !! चलिये हल्का फुल्का परिचय तो हो गया अब उदयगिरि की गुफाओं के दर्शन भी कर लेते हैं!! नीचे से ऊपर तक गुफायें ही गुफायें बनी हुयी है और इन को देखने के लिये सीढियां चढ़ना जरूरी है!! जो एक बार सीढियां चढ़ना शुरू करे तो सभी गुफायें क्रम से नजर आ ही जाती हैं। कुछ गुफाएं दुमंजिली जैसी भी लग रही है तो कुछ एक मंजिली ही हैं!! लेकिन उनकी ऊंचाई इतनी नही लग रही कि उनके अन्दर आराम से खड़ा हुआ जा सके। अब पुराने समय मे भी आदमी की लंबाई इतना कम तो नही रही होगी कि इतनी सी गुफा में समा जाये, इसका मतलब है कि ये लोग गुफा के अंदर झुककर प्रवेश करते होंगे और इनका उपयोग बैठने  या सोने के लिये ही करते होंगे!! सच मे छोटे छोटे कोठे जैसे बने हुये हैं!! अरे हाँ याद आया अंडमान के काला पानी , अरे यार वो ही सेलुलर जेल की कोठरियों का जैसा आकार है इनका भी। ना कोई खिड़की ना कुछ!! बस अंतर इतना है कि इनमे दरवाजा नही है और यहाँ खुली हवा और प्रकाश बेखटके आ सकता है तो जैन साधक भी एक दूसरे से मिलने जरूर आते ही होंगे!! कुछ लोग बता रहे थे कि इनका निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है जिससे दिन में सूर्य देव अपनी  कृपा बरसाते रहें और रात में चाँद की चांदनी से भरपूर रोशनी होती रही!! पुराने लोग बडा ही दिमाग लगाते थे इन सब चीजों में, इनके सामने तो आज के बड़े बड़े आर्किटेक्ट भी फेल हो जायें!!
       एक समय रहा होगा जब ये जगह जैन साधुओं से गुलजार रहा करती होगी लेकिन अब तो यहाँ बंदरों और आजकल के लव बर्ड्स का डेरा लगा रहता है!! ठीक ही बात है समय बदलते क्या देर लगती है😀😀। गुफाओ के मुख्य द्वार पर कुछ कुछ अलंकरण से बने हुये हैं जो कि समय के साथ साथ धूमिल होते जा रहे हैं!! सामने से खण्डगिरि की पहाड़ियों पर बने मंदिर के दर्शन हो रहे हैं, अब वहाँ जाना तो संभव नही है सो यहीं से हाथ जोड़ लेते हैं!! अब थोड़ा मलाल सा लग रहा है कि काश पहले इन्हीं पहाड़ियों में चले गये होते तो मंदिर भी जाया जा सकता था। यहीं से मंदिर के साथ साथ भुबनेश्वर शहर का भी अवलोकन हो जा रहा है। सीढियाँ चढ़ते चढ़ते थोड़ा थकन तो हो ही जाती है तो इसका भी उपाय यहाँ पर है !! बैठने के लिये भरपूर मात्रा में गोल गोल वाले पत्थर है जो कि लगभग सभी गुफा के समीप वाली जगहों पर मिल जाते हैं !! दायें-बायें जाने के लिए सीधे समतल रास्ते बने हुये हैं जिनमे दोनों तरफ पेड़ों की छावं मिलने से अच्छा लगता है और साथ में गुलाबी रंग के खूब सारे कागजी फूल भी अपनी छटा बिखरते हुये मिल जायेंगे !! यहाँ पर कुछ लड़के हमारे आगे आगे जा रहे थे तो हम भी उनके पीछे हो लिये कि शायद ये कोई व्यू पॉइंट देखने जा रहे होंगे लेकिन थोड़ी ही देर में वो ना जाने क्या सोच क्र जंगल में उतर गए और हम वापस अपने रास्ते पर !! यूँही बिना सोचे किसी के पीछे लगने से कई बार ऐसा हो जाता है !! अब  वाले रास्ते में पहुंचे तो वहाँ बंदरों की फौज जमा थी !! बानर सेना   बंदरों से बचते बचाते किसी तरह अपने कैमरा का प्रयोग करते हुये अब हम नीचे उतर रहे हैं।  हम नीचे उतरते उतरते फ़ोटो लेते गये और आप देखते जाइये !! नीचे उतरने के बाद भूख प्यास सब अपना जोर लगाने लगी है तो एक एक नारियल पानी हम तीनो ने ले  लिया और उसे पीते पीते ही पार्किंग स्थल में जा पहुंचे !! उदयगिरि की पहाड़ियों के बाद हम हमारा अगला पड़ाव नन्दन कानन है तो अगली पोस्ट में मिलते हैं नन्दन कानन की जैव सम्पदा के विस्तार पूर्वक वर्णन के साथ और तब तक आप लोग उदयगिरि की इन पंद्रह गुफाओं के चलचित्र देखिये-

छोटी छोटी गुफायें 
ये सीढियाँ भी गुफानुमा पत्थरों को काट कर बनायीं गयी हैं। 



बलुवे भूरे रंग की गुफाओं के बीच धानी रंग अदभुत लग रहा था !!

इनके प्रवेश द्वार पर कुछ अलंकरण बनाये गये हैं जो कि समय के साथ धूमिल से हो रहे हैं !!

खंडगिरि की पहाड़ियों पर बना सफ़ेद मंदिर , बढ़िया दृश्य था बहुत। 

भुबनेश्वर की कुछ इमारतें   
गुफायें  ही गुफायें 
कुछ हद तक तो ये ऐसे लग रहे हैं जैसे किसी बरामदे में छत को स्पोर्ट देने के लिये स्तम्भ बनाये हों !!
ये ही वो लड़के थे !!


धूप के बाद छाँव बहुत अच्छी लगती है !!

Friday 4 August 2017

Lingaraj temple-Landmark of Bhubaneswar

 Travel Date- 19th January 2017
           विशाखटपटनम से जो ट्रैन में बैठे तो सीधे भुबनेश्वर के पास ही नींद खुली। अभी चाय वाला चाय गरम,चाय गरम करने लगा तो हम भी चाय की चुस्कियों का स्वाद लेने को आतुर हो गए। वैसे हम दोनों से ज्यादा सान्वी का मन हुआ क्यूंकि ट्रैन के सफर में जो कुछ खाने पीने को आता है उसे वो सब मंगाना होता है ☕, बाल हठ हुआ उसके आगे आजतक किसका जोर चला है। अब चाय आ ही गयी है तो चुस्की लगा ही लेते हैं। अब तक सहयात्रियों से हलकी फुलकी बात से उन लोगों को अंदाजा आ गया कि हम बैंगलोर से उड़ीसा घूमने के लिये आये हैं तो उन्होंने हमे जगन्नाथ पूरी का एक वीडियो दिखाया जिसमे वहाँ की विशेषताएं, भोजन बनाने के तरीके और झंडा बदलने का विधान शामिल था।  अब इसे देख कर पूरी जाने की उत्कण्ठा में चार गुना वृद्धि हो गयी। अलग अलग जगह के लोगों की बोली में कितना अंतर आ जाता है बताती हूँ!! हमारे पास वाली बर्थ  में दो लोग बैठकर बात कर रहे थे " आज खेला है ,तुम देखेगा  " दूसरा बोलता है "हम खेला नहीं देखते बस न्यूज़ में पता कर लेते हैं। " यहाँ इन लोगों का खेला से मतलब क्रिकेट मैच से है। यूँही लोगों की बातें सुनते हुए भुबनेश्वर का रेलवे स्टेशन आ गया और सहयात्रियों से विदा ले कर हम उतर गये।
           इस तरह से आज हम धार्मिक पर्यटन के लिए विख्यात उड़ीसा की राजधानी भुबनेश्वर की पावन धरती पर पहुँच गये। हमने पहले से देख कर ही रेलवे स्टेशन के नजदीक का होटल बुक करा रखा था तो पैदल ही वहां पहुँच गए। होटल में जा कर पता लगा कि आज यहाँ IPL का मैच है जिस वजह से सभी होटल बैक टू बैक भरे हुये हैं। पहले से बुकिंग के कारण हमको तो कोई दिक्क्त नहीं होनी थी पर थोड़ा थके होने के कारण अर्ली चेक इन का मन था पर इस मैच ने हमारे मंसूबों पर पानी फेर दिया।  अब समझ में आया ट्रैन वाले लोग इसी मैच को देखने की बात कर रहे थे। होटल देखने से खूब बढ़िया था, रिसेप्शन में बैठकर भी इसकी भव्यता स्पष्ट नजर आ रही थी। अब अपना नंबर भी आ ही गया , अरे ये क्या !! ये तो होटल में कमरा देने से पहले वेब केम ( web cam) में फोटो भी ले रहे हैं शायद सुरक्षा के हिसाब से लेते होंगे। इस तरह का ये अपना पहला अनुभव है तो आश्चर्यजनक लगा।  फोटो खींचते खिंचवाते हम अपने कमरे में दाखिल हो ही गये और कमरे में पहुँचते ही दो चाय, दो पराठे एवं  हैंडविच मतलब सैंडविच का आर्डर दे डाला। ये सब आने तक थोड़ा फ्रेश हो लेते हैं और पेट पूजा के बाद भुबनेश्वर के दर्शन को निकलेंगे।  तब तक आप लोगों को भुबनेश्वर का एक सूक्ष्म परिचय दे देते हैं।
भुबनेश्वर - भारत के पूरब और बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर बसा ये शहर भुबनेश्वर  शिवजी को समर्पित है और उन्ही के नाम पर इसका नाम भुबनेश्वर पड़ा है। इतिहास में जायें तो समझ आता है कि  ये शहर मात्र शहर नहीं अपने में की रहस्य समेटे हुए बैठा है। अरे हाँ इसने तो कलिंग का युद्ध भी देखा है।  ऐसा भयंकर रक्तपात, खून की नदियों और शोक सन्तप्त लोगों का विलाप देख के इसका दिल कितना द्रवित हुआ होगा !! बहुत दर्द छुपा रखा है इसने अपने अंदर अंदर। इस बात की जितनी गहराई में उतरेंगे मन उतना ही द्रवित हो जायेगा इसलिये जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी बाहर निकल जाते हैं। अभी अभी मुझे याद आया पुराने समय में इसे "उत्कल" भी कहा कहा जाता था , जी हाँ वो ही  " पंजाब सिंध गुजरात मराठा द्रविड़ उत्कल बंगा " वाला उत्कल। इसका मतलब पुराने समय से ही बहुत प्रसिद्ध ह है ये जगह। कालांतर  में उड़ीसा के राजधानी बनने के बाद इस शहर का स्वरूप दोहरा हो गया , जहाँ एक तरफ इसके कण कण में ऐतिहासिकता बसी है वहीँ दूसरी तरफ इसकी हवाओं में आधुनिकता भी बहती है। इसके आधुनिक स्वरूप का निर्माण जर्मन वास्तुकार ओटो एच कोनिंग्सबर्गेस (Otto. H. Koeingsberges) ने करवाया था। 
              ऐसा माना जाता है कि पुराने समय में यहाँ पर सात हजार मंदिर थे जिसके कारण इसे मंदिरों का शहर के नाम से भी पहचाना जाता है। आज भी छोटे बड़े सात सौ मंदिर यहाँ पर हैं। इस शर को धार्मिक सद्भावना का शहर भी कह सकते हैं क्यूंकि यहाँ पर ना केवल हिन्दू धर्म अपितु बौद्ध और जैन धर्मावलम्बियों के मंदिर और अवशेष पाये जाते हैं। मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा यहाँ क्या देखा जायेगा इतने कम समय में और कितना  कुछ रह जायेगा। एक बार यहाँ के दर्शनीय स्थलों पर भी एक नजर डाल लेते हैं। मंदिरो की भूमि होने से यहाँ हर दो कदम पर मंदिर दर्शन हो जाते हैं। लिंगराज का मंदिर, मुक्तेश्वर मंदिर, राजा रानी का मंदिर यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। इन सबके अतिरिक्त उदयगिरि-खण्डगिरि की गुफाएँ, धौली स्तूप और नन्दन कानन यहाँ की प्रसिद्धि में चार गुना बढोत्तरी कर देते हैं। यहाँ का मौसम सालभर गर्म ही बना रहता है तो घूमने के लिए दिसम्बर-जनवरी के महीने उम्दा रहते हैं। लो जी परिचय देते देते अपना नाश्ता निपट गया और अपना टेक्सी वाला भी होटल के बाहर प्रतीक्षा में है तो अब आगे आंखों देखा हाल सुनिये।
         सुबह के ग्यारह बजे हैं 😀, सुबह क्या भरी दोपहरी ही हो गयी है और अब हम निकल पड़े भुबनेश्वर दर्शन के लिये। हमारा पहला पड़ाव लिंगराज मंदिर है जो कि हमारे होटल से पांच किलोमीटर की दूरी पर है इसलिए यहाँ पहुँचने में ज्यादा समय नहीं लगा। मन्दिर में फ़ोन, कैमरा और चमड़े का सामान ले जाने की अनुमति नहीं है तो ड्राइवर के कहे हिसाब से हमने ये सामान गाड़ी में ही छोड़ दिया और नंगे पैर ही चल पड़े। गर्मी ज्यादा होने से पैर जल भी रहे थे पर लोग तो कहाँ कहाँ से नंगे पैर चल कर दर्शन के लिये जाते हैं हमें तो बस पांच कदम ही चलना है।  अभी मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचे ही थे कि एक पंडा जी मिल गये और बोलने लगे पचास रूपये में दर्शन करवा देंगे , उनसे ज्यादा किचकिच ना कर के हम उनके पीछे हो लिये। पंडा जी हमको समझाते हुये ले गए की अंदर किसी से ज्यादा बात ना करना सीधे सीधे जाना और वापस आ जाना और सबसे पहले वो हमको ले गये यहाँ की रसोई में  और वहां के खाना बनाने के तोर तरीके बताने लगे। यहाँ भी एक एक ऊपर एक सात मिटटी के बर्तन चूल्हे पर चढ़ाये जाते हैं और सबसे पहले सबसे ऊपर वाले में खाना बनता है। कैमरा तो ले जा नहीं सकते थे तो फोटो नहीं हैं दिखाने को।  इसके बाद अब हम मंदिर दर्शन की बारी आयी और पंडा जी ने हमको लाइन में लगवा दिया। धीरे धीरे कर के हम ठीक प्रतिमा के पास पहुँच गये। अब वहां खड़े एक पंडे ने  एक फूल हाथ में पकड़ा  दिया और अब वो महाराज संकल्प कराने लगे हमारे बिना कुछ कहे !! हम दोनों को इस तरह का कोई खास अनुभव पहले नहीं था तो मूक दर्शक बने खड़े रहे।  लास्ट में बोला अन्नदान की रसीद कटवा लो और पूछने पर जवाब आया कि पांच हजार से शुरू होता है तो हमने इंकार कर दिया कि हम एक पैसा नहीं देंगे और अब वो लगा अनाप सनाप बोलने !! तो हम वहां से वापस हो लिये तो बोला  मेरा फूल भी बर्बाद हो गया तो एक बार फिर पीछे प्लाट कर उसका फूल उसको वापस कर के हमने जान छुड़ाई। ये बात यहाँ बताने का मेरा आशय ये है कि जहाँ भी जाएँ अपनी श्रद्धा के हिसाब से दान पुण्य करें न कि पंडो के डर से ।  भगवान ने कभी ये नहीं कहा कि तुम पैसा नहीं चढ़ाओगे तो मैं ऐसा कर दूंगा या वैसा कर दूंगा!! ये इन पंडों  की अपने पेट पालन हेतु  बनाई हुयी परम्पराएं है जिनका पालन करने की बाध्यता किसी के लिये भी नहीं है। 

           अंत में ही सही लिंगराज मंदिर का इतिहास भी बता ही  देती हूँ। ये मंदिर भगवान शिव और विष्णु दोनों को समर्पित है।  यहाँ प्रतिमा का आधा हिस्सा शिवजी का तो ऊपर वाला भाग विष्णु भगवान के रूप में शालिग्राम जी का है।  इस कारण से इस मंदिर को हरीहर का मंदिर भी कहा जाता है।  यहाँ बेलपत्र के साथ साथ तुलसी के पत्ते भी चढ़ाये जाते हैं। विष्णु भगवान् एवं शिव जी दोनों का मंदिर होने के कारण इसके गुम्बद त्रिशूल और सुदर्शन चक्र की जगह में शिव धनुष बना हुआ है। मंदिर परिसर को चार हिस्सों में बांटा गया है - श्री मंदिर, जगमोहन, नाट मंडप एवम भोग मंडप। पहले यहाँ पर छोटे बड़े एक सौ आठ मंदिर थे जिनमे से अब पचास ही बचे  हैं। स्थपत्य की दृष्टि से ये मंदिर काफी समृद्ध है मंदिर के निचले भाग में एक मंच सा बना हुआ है जिसमें बहुत बारीकी से उस समय के समाज की दिनचर्चा को उकेरा गया है। 
        लिंगराज के बाद हम क्रम  से मुक्तेश्वर, सिद्धेस्वर और केदारगौरी इन तीन मदिरों में गये।  मुक्तेश्वर मन्दिर दो मन्दिरों का समूह है: परमेश्‍वर मन्दिर तथा मुक्‍तेश्‍वर मन्दिर। जैसा कि नाम से ही समझ आ रहा ये मंदिर भी शिवजी को समर्पित है। शिव जी के साथ साथ अन्य देवी देवताओं के मंदिर यहाँ पर हैं। मंदिर ना कह के इसे मंदिर समूह कह सकते हैं। इसकी संरचना भी कुछ कुछ लिंगराज मंदिर जैसी ही है। इस मंदिर में फोटो ले सकते हैं। सिद्धेश्वर मंदिर सफ़ेद रंग का बना हुआ है और पास के ही केदार गौरी मंदिर में  पहाड़ी मंदिरों की जैसी झलक नजर आई।  
अब एक नजर कुछ तस्वीरों पर-

मुक्तेश्वर मंदिर। 

मुक्तेश्वर मंदिर 
मुक्तेश्वर मंदिर 



मुक्तेश्वर मंदिर प्रवेश द्वार। 

मंदिर का अलंकरण 
सिद्धेस्वर मंदिर। 



केदार गौरी 

केदार गौरी , लग रहा है न पहाड़ी मंदिर। 

केदार गौरी 

केदार गौरी 

केदार गौरी -प्रवेश द्वार। 

Sunday 16 July 2017

Borra Caves

                   भारत एक ऐसा देश है जिसमे असीमित प्राकृतिक सौंदर्य समाया हुआ है। प्रकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ यहाँ विविधता भी प्रचुर मात्रा में है। ये एक ऐसा देश है जहाँ हर दो कदम पर भाषा,बोली , उठना-बैठना, रहन-सहन सब कुछ बदल जाता है। इन सबके साथ कदम कदम पर बदलता है प्रकृति का स्वरूप। कहीं विशाल हिमालय श्रृंखला अपने जितने भव्य स्वरूप दिखाती है तो कहीं हजारों किलोमीटर में फैली समुद्री रेखा ने अपनी गहराई में ना जाने कितने राज दफ़न कर रखे होंगे। कहीं धीमी गति में अपने बहाव को कायम रखने वाली नदियाँ सयंम का पाठ पढ़ाती है तो कल कल कर के बहने वाले झरने ये समझाते हैं कि जीवन में चंचलता होना भी उतना ही जरुरी है। कहीं भव्य इतिहास से साक्षात्कार कराते हुये किले हैं तो कहीं गुफाओं का मायावी संसार है।

Saturday 22 April 2017

Different landscape of EARTH(India)

             "धरती सुनहरी अम्बर नीला, ऐसा देश है मेरा " सच मे बड़ी ही सुंदर है ये धरा और उससे भी ज्यादा सुंदर है इसके भिन्न- भिन्न रूप। इन सबसे अलग भारत मे तो कुदरत ने प्राकृतिक सौंदर्य भर भर कर दिया है वो भी विविधता के साथ। यहाँ प्रकृति का हर रंग देखने को मिल जाता है कहीं हिमाच्छादित पहाड़ हैं, तो कहीं थार का रेगिस्तान!! कहीं नदियाँ झरने हैं तो कहीं सुंदर छटा बिखराते समंदर के किनारे हैं। इतना कुछ हैं यहाँ अगर भारत भृमण पर निकला जाये तो कई बरस गुजर जाएंगे!! पर अपने स्वार्थ के आगे कितने निष्ठुर हो गये हैं हम सभी, इतने सुंदर उपहार  के लिये प्रकृति का धन्यवाद करने की जगह हम इसका अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं। सोचने वाली बात है अगर हम इसे अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिये रहने और देखने योग्य बनाये रखना चाहते हैं तो इसके लिये अपने रहन सहन और काम करने के तरीके में मूलभूत सुधार करना बहुत जरूरी होगा। इन सबसे अधिक जरूरी होगा प्रकृति से जुड़ना और उसके रख-रखाव, साफ-सफाई के लिये लगे रहना। यदि समय रहते हमे होश ना आया तो ये बेहतरीन नजारे हमारे आने वाली पीढ़ियाँ केवल नेट जगत में ही देख पायेंगी। आज अर्थ डे पर आप सभी से प्रकृति के रख रखाव के प्रति जागरूक होने के निवेदन के साथ इस फोटोलॉग के माध्यम से धरती  विभिन रूप के दर्शन कराने का प्रयास कर रही हूँ।
शिमला-हिमाचल की राजधानी शिमला को पहाड़ो की रानी कद नाम से जाना जाता है। यहाँ के मुख्य पर्यटक स्थलों में जाखू मंदिर, कुफरी, नालधेरा और तारा देवी मंदिर आते हैं। अगर पास में थोड़ा समय हो तो माल रोड ओर रिज में शाम बिताई जा सकती है। सुरंगों और पहाड़ियों के बीच से गुजरने वाली शिमला कालका ट्रैन यहाँ आने वालों के आकर्षण का केंद्र रहती है।
गोल्फ का मैदान (नालढेरा-शिमला)
किस कदर हरा रंग बिखराया गया है यहाँ !! (शिमला अन्ना  डेल संग्रहालय) 

Wednesday 19 April 2017

Araku Valley, Andra Pradesh

              अराकू, जब से उड़ीसा जाने का प्लान बना, तो गूगल देव ने आंध्रा में स्थित इस पर्वतीय क्षेत्र से अच्छा-भला परिचय करा दिया!! वैसे भी मुझे कभी ये आभास न हुआ कि आंन्ध्रा जैसी पथरी जगह में पहाड़ भी हो सकते है !! क्यूंकि अपने लिये पहाड़ का मतलब पहाड़ होता है, वो पहाड़ जो अपने में भव्यता और विशालता को समेटे हुये रहते हैं!! जिनके तले बेहिसाब हरियाली और भिन्न प्रकार की जैव विविधता पनपती है। पर जब गूगल ने बता ही दिया तो यहाँ जाना जरुरी है और उससे पहले जरुरी है अपने साथ- साथ सभी को इस जगह का एक सूक्ष्म परिचय देना।
             पूर्वी घाट की तलहटी में बसा ये क्षेत्र, आंध्रा के मुख्य शहर विज़ाग (विशाखापत्तनम) से एक सौ चौदह किलोमीटर की दूरी पर होने के साथ साथ समीपवर्ती राज्य उड़ीसा की सीमा के काफी निकट है।  इस कारण से यहाँ पर दोनों राज्यों की मिली जुली छाप देखने को मिलती है। ये भारत का एक ऐसा स्थल भी है यहाँ पर आदिवासी जन जीवन के पहलुओं को भी जाना पहचाना जा सकता है। आदिवासी संस्कृति का परिचय तो ये देता ही है उसके साथ साथ प्रकृति इस पर जम कर मेहरबान हुयी है। छोटा सा ये शहर अपने में झरने और बगीचे समेटे हुये हैं। बोर्रा केव्स ,पदमपुरा गार्डन और जनजातीय संग्रहालय यहाँ के प्रमुख आकर्षण है। इन के अतिरिक्त जगह जगह पर कॉफी के बागान होने से हरियाली  प्रचुर मात्रा में है।  पर्यटन के मानचित्र में बहुत ज्यादा उजागर नहीं होने से यहाँ पर  बनावटी पन ने अपने कदम अभी तक नहीं जमाये हैं।  यहाँ के निवासी सरल और विनम्र है। ये जगह सड़क और रेल द्वारा विज़ाग से भली भांति जुडी हुयी है। परिचय के बाद अब चलते है यहाँ की यात्रा पर।  पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा , कैसे हम विज़ाग से ट्रैन द्वारा यहाँ पहुंचे और अब चलते हैं यहाँ के दर्शनीय स्थलों की सैर पर।

Monday 10 April 2017

Train trip to Araku Valley

            "गाड़ी आयी गाड़ी आयी छुक छुक छुक" इस कविता ने बालपन से ही ट्रेन के प्रति इस कदर मोह जगाया कि ट्रेन के नाम पर ही बांछे खिल जायें पर ऐसी किस्मत कहाँ पायी हमने कि शिमला, दार्जिलिंग या ऊटी जैसी पहाड़ी जगहों में रहकर बचपन से ही ट्रेन से रूबरू हुआ करते!! हम हुये उत्तराखंडी,उस पर भी कुमाउनी ,अब ज्यादा से ज्यादा कहाँ जायेंगे, आस पास रिश्तेदारी में ही तो जायेंगे ना!! कभी नैनीताल चले गये, कभी रानीखेत ओर ज्यादा हुआ तो हल्द्वानी !!  सो ट्रैन हमारी कल्पना में ही आया जाया करती थी। हल्द्वानी  जाने के नाम पर बाल मन मारे खुशी के कुलांचे मारता था इस उम्मीद में शायद कहीं आते जाते ट्रैन नजर आ जाये और उसकी झटके दार सीटी कान में पड़ जाये। जब भी कभी ट्रैन दिखती तो कदम अपने आप ही रुक जाते और विस्मृत से हो कर उसके आंख से ओझल होने तक उसे निहारा जाता।

Tuesday 28 March 2017

Chamunda temple,Mysore, Karnataka

         गोलकोंडा की महाकाली के दर्शन के बाद अब चलते हैं कर्नाटक राज्य के मैसूर में स्थित चामुंडा देवी का आशीष पाने के लिये। चामुंडी पहाड़ी के पश्चिम में सात सौ सत्तर मीटर की ऊंचाई पर दक्षिण के पठार पर बसा मैसूर कावेरी और कबिनी नदी के बीच स्थित है। यह शहर पुरातन सभ्यता और आधुनिकता दोनों को अपनेआप में एक साथ समेटे हुए है। मैसूर चन्दन,सिल्क और अपने बगीचों के लिए जाना जाता है।एवं पर्यटन के लिए अपने में बहुत से आकर्षणों को समेटे हुए है। देश- विदेश से यहाँ लोग घुमने के लिए आते हैं तथा यहाँ के दशहरे का तो कहना ही क्या है। लेकिन आज हम चलेंगे  चामुंडी हिल्स ।
           चामुंडी हिल्स  मैसूर से तेरह किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है,इस पहाड़ी कि चोटी पर माँ चामुंडा का मंदिर है। बारहवीं शताब्दी में बना ये दुर्गा मंदिर  महिसासुर राक्षस पर देवी माँ की  विजय का प्रतीक है। इस सात मंजिला मंदिर की ऊंचाई चालीस मीटर है एवं यहाँ पर महिसासुर की  एक बहुत बड़ी प्रतिमा रखी हुयी है।यहाँ से मैसूर के बहुत ही मनोरम द्रश्य दिखाई पड़ते हैं। 

              यहाँ से उतरते हुए रस्ते में नंदी बैल के दर्शन हुए। उसकी विशालता के बारे में बताने के लिए तो मेरे शब्द ही कम पड़ रहे है,बार बार  यही लग रहा था कि बनाने वाले ने कैसे बनाया होगा इसे। वहां पर रखे कुछ और बड़ी शिलाओं को देखकर अनुमान लगाया कि शायद ऐसी ही कोई बड़ी सी ग्रेनाइट की  शिला होगी जिस पर नंदी की आकृति को उतरा गया होगा।
रास्ते से दिखता मैसूर का द्रश्य 


एक अन्य नजारा  
महिसासुर की विशालकाय प्रतिमा 


 माँ चामुंडा का मंदिर
नंदी बैल।

Monday 27 March 2017

Mahakali Temple,Golconda Fort

       सबसे पहले तो सभी लोगों को नव संवत्सर की बहुत बहुत बधाइयाँ। नये साल के प्रारम्भ के साथ साथ आज से देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों के पूजन वाली नवरात्रि का भी शुभारम्भ हो रहा है। देवी के नवरात्रे साल में दो बार आते है एक बार अप्रैल में और एक बार अक्टूबर में। भक्तगण साल भर ही देवी मंदिरों में डेरा डाले रहते हैं पर इन दिनों तो चलो बूलावा आया है कि तर्ज पर देवी मंदिरो में आस्था और श्रद्धा से भक्तो का जमावड़ा रहता है। अबके बरस किसी देवी मंदिर जा पाने के आसार नहीं लग रहे तो इसलिये सोच रही हूँ पिछले बरसों में देखे हुये देवी मंदिरों की चर्चा के जरिये माता को याद कर लेते हैं। इसी क्रम में छोटी छोटी ब्लॉग पोस्ट के जरिये माता रानी के दरबार में चलते हैं ।
यात्रा दिनांक-25 दिसंबर 2014
             शुरु करते हैं  हैदराबाद से, यूँ तो ये शहर निजामों की विरासत के रूप में जाना जाता है। आंध्र और तेलंगाना की संयुक्त राजधानी होने के साथ ये शहर अपने में बहुत सारे पर्यटक स्थलों के साथ साथ धार्मिक स्थलों को भी समेटे हुये हैं। यहाँ के दर्शनीय स्थलों के विषय में थोड़ा बहुत आप लोगों को इस ब्लॉग में जरूर मिल जायेगा। इन सबके अतिरिक्त यहाँ पर कुछ छोटे छोटे मंदिर भी है जिनको अभी तक कोई विशेष पहचान नहीं मिल पायी है, आज ऐसे ही एक मंदिर में चल कर हाजरी लगाते हैं। जी हाँ मैं बात कर रही हूँ एक ऐसे मंदिर की जिसके बारे में पढ़कर आप लोगों को आश्चर्य लगेगा, बहुत सम्भव है कई लोगों की लगे कि ये जगह इतना शेयर करने जैसी तो नहीं है पर मेरे पॉइंट ऑफ़ व्यू से इसे शेयर करना अति आवश्यक है क्योंकि ये कहीं ना कहीं हमारे देश में रहने वाले नागरिकों के भाईचारे का प्रतीक है।
           हैदराबाद के गोलकोंडा फोर्ट से तो सभी लोग परिचत ही होंगे। बड़ा ही विशाल और सुदृढ़ किला है ये लेकिन इसकी विशालता की चर्चा फिर कभी करेँगे, अभी यहाँ पर किले के ऊपरी हिस्से में  बने जगदम्बा महाकाली मंदिर के दर्शन करते हैं।
        गोलकोंडा का किला हैदराबाद से तेरह किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यहाँ पर रात के समय में ध्वनि और प्रकाश सम्बंधित शो का आयोजन भी किया जाता है। किला एक बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है और इसके हर भाग का अपना एक अलग इतिहास रहा है। किले की चढ़ाई चढ़ने में आराम से दो घंटा तो लग ही जाता है और चढ़ते चढ़ते तारामती के महल को पार कर के ऊपर चढ़ते हैं तो दो चट्टानों के मध्य बने एक मन्दिर के दर्शन होते हैं। इस मंदिर को ही महाकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है। आश्चर्य की बात ये है कि इस मंदिर का नाम हिंदी के साथ साथ उर्दू में भी लिखा गया है।
         इतना तो समझ में आता ही है कि इसका निर्माण तो हिन्दू राजाओं के समय में ही कराया गया होगा लेकिन उसके बाद ओरंगजेब जैसे कट्टर मुस्लिम राजा के हाथ में आने के बाद भी ये मंदिर सही सलामत रहा तो थोडा डाउट तो मन में आ ही जाता है। आखिर क्या ऐसे कारण रहे होंगे जिनकी वजह से ये मंदिर ठीक रहा!! क्योंकी अगर एक बार इसे थोडा भी छेड़ा गया होता तो दुबारा से तो ओरंगजेब इसे बनावता नहीं। अब या तो उसके मन में कोई डर रहा हो या देवी माता ने उसे इस पर हाथ ही नहीं लगाने दिया हो। मुझे तो इसके पीछे एक ही कारण लगता है और वो है साम्प्रदायिक सदभाव की भवना या फिर हो सकता है ओरंगजेब भी उतना कट्टर ना रहा हो जितना उसे दिखाया जाता है। सबसे पहले इस मंदिर की चर्चा करने के पीछे मेरा उद्देश्य रहा है भारत के लोगों में बसी सदभाव की भावना को प्रदर्शित करना। तो बोले महाकाली की जय!! अगले पोस्ट में किसी दूसरे दरबार में हाजरी लगायेंगे।





Friday 24 March 2017

Kursura Submarine

           विशाखा संग्रहालय के दर्शन के बाद एक बार फिर से हम गाड़ी में बैठ गये,  बैठ तो हम गये  लेकिन ड्राइवर साहब से पूछने जैसा नहीं लगा तो बार बार ये गाना याद आने लगा 'हम किस गली जा रहे हैं, हम किस गली जा रहे हैं।' गाना गुनगुनाते गुनगुनाते शाम हो आयी तो इतना अंदाजा तो मुझे लग ही गया कि अब सिम्हाचलम जा पाना तो हमारे बस का नहीं है और किसी तरह उपस्थिति दर्ज करा भी दें तो वहाँ जाने तक अँधेरा अपने पूरे शबाब पर पहुँच जायेगा। इतने में वो भाई साहब बोले सिम्हाचल और आरके बीच दोनों  में से एक ही हो पायेगा। जवाब में आरके बीच जाना तय था, इसलिये अब हम फिर से समंदर किनारे चलने लगे।
       जहाँ तक मुझे समझ आया आर के बीच किसी जगह विशेष को ना कह कर एक लंबे स्ट्रेच को कहा गया है। सुनामी,हुडहुड  और अन्य समुद्री तूफानो की निशानियाँ यहाँ सड़क पर समंदर के साथ साथ उजागर हो रही हैं। कितनी बढ़िया लगती है ये आती जाती हुयी लहरें जब शांत रूप में होती हैं लेकिन इनका रौद्र रुप उतना ही भयावह होता होगा!! सोच कर भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं।

Saturday 4 March 2017

Vishakha Museum,Visakhapttnam


  •             समंदर किनारे रेत के घरोंदे बना लिये!! रोप वे से   कैलाशगिरी की पहाड़ियों में भी मडरा लिये और तो और वहाँ से ऋषिकोंडा के दर्शन भी कर लिये!! अब क्या बचा,  शायद सिम्हाचलम और आर के बीच!! ना जी ये तो हमारा अनुमान है लेकिन बचा तो वो है, जिस पर टेक्सी वाले की नजरें इनायत हो जायें। देखें महाराज कहाँ हाँक ले जाते हैं हमें। तब तक थोड़ा अपना दिमाग भी खर्च कर लेते हैं कि यहाँ और क्या हो सकता है!! विजाग अंग्रेजी शासन के समय से एक बंदरगाह रहा है मतलब सामरिक महत्व की जगह है ये। अनुमान तो ये लगता है ये जगह सुरक्षा के लिहाज से भी महत्वपूर्ण होगी, पक्का है जी यहाँ कोई ना कोई संग्रहालय तो पक्का होना चाहिये। वैसे अपनी रिसर्च नही है,देखें क्या मिलता है यहाँ !!

           कैलाशगिरि को अलविदा कर के मुसाफिर समुद्र के किनारे से लगती हुयी सड़कों पर बढ़ता गया। देखने से लग रहा है शहर को पार्क सिटी के रूप में बसाया गया है, हर दस कदम में समुद्री छोर के साथ लगे हुये पार्क नजर आ रहे हैं। अभी सात किलोमीटर की दूरी नापी है और ये महाराज बोलते हैं, उतर जाओ!! ऐसे कैसे उतर जाएँ और क्या है यहाँ कुछ तो बताओ !! तो बोला सामने विशाखा म्यूजियम है उसे देख आओ!! ये हुयी पते की बात, इसी को अगर सीधे से बोल देता कि म्यूजियम देख आओ तो हम इतने सारे सवाल ही नही दागते उस पर। वैसे वो भी क्या करे अपनी अपनी आदत रहती है, शायद मितभाषी होगा!!
       खैर हमें क्या करना!! हम तो चल पड़े विशाखा म्यूजियम की तरफ। देखों तो क्या है यहाँ!! पांच रुपया प्रति व्यक्ति के हिसाब से टिकट पड़ा और हम हो लिये अंदर। यहाँ कदम रखते ही समझ आ गया ये सुरक्षा से सम्बंधित या नौ सेना से सम्बंधित जगह है। यहाँ का सबसे पहला आकर्षण तो वो घर है जिसमे म्यूजियम बनाया गया है। जी हाँ ये संग्रहालय एक डच बंगले में बनाया गया था, इसलिये थोड़ा बहुत डच का टच लिये हुये है। भवन के अंदर तो हम तब घुसते जब हम बाहर से भर पाते, तरह तरह के हथियार, छोटी मोटी पनडुब्बी को ही देखने में रह गये।
        चलो चलो, बहुत टाइम हो गया अब आगे बढ़ते हैं। ये जगह तो इतनी सम्रद्ध है जितनी देर रहे उतना अच्छी लगेगी। सुरक्षा से सम्बंधित जगह देखने में थोड़ा देश भक्ति आ ही जाती है और अपने तो इंटरेस्ट की जगह हुयी ये!! सेना को करीब से देखने, उनकी सामग्री ,हथियार देखने और उनसे रूबरू होने का अनुभव बहुत ही रोमांचकारी लगता है मुझे। दूर से देखने में जब इतना रोचक लगता है तो इन्हें इस्तेमाल करने वाले लोगों को कितना अच्छा लगता होगा!! अच्छा लगने के साथ साथ कितनी जिम्मेदारी भी रहती होगी उन जाबांज सैनिकों पर!!  यहाँ पर पनडुब्बी के दर्शन भी हुये और वो ही ऐसी जो कि सिर्फ एक आदमी के जाने जैसी रही होगी!! इतने लंबे लंबे समय तक पानी के अंदर पनडुब्बी में रहना वो भी अकेले, गजब का जज्बा है इन लोगों में!! शत शत नमन हैं उन बहादुरों को जो कि देश की रक्षा के लिये हमारी सुरक्षा के लिये हर हाल में डटकर खड़े रहते हैं। एक नजर डालिये इन पर जिन्हें में अपने कैमरा में कैद कर पायी।
          इस विश्लेषण के मद्देनजर एक जरूरी बात तो रही ही गयी, जी हाँ वो ही जो हर बार लास्ट में ही याद आती है !! बात ये है कि ये संग्रहालय पुरे सप्ताह दर्शकों के स्वागत के लिये तत्पर रहता है। बस थोड़ा टाइमिंग का अंतर आता है। कार्य दिवस में ये सुबह ग्यारह बजे से शाम के सात बजे तक खुला रहता है और छुट्टी वाले दिन मतलब शनिवार और रविवार को दोपहर बारह से शाम के आठ बजे तक खुलता है।
समुद्री जहाज के ऊपर लगने वाली गन।

अंदर की जटिल संरचना।


एक आदमी को ले जाने की क्षमता वाली पनडुब्बी।

किसी टॉरपीडो के वार को डाइवर्ट करने का साधन।

                                 टॉरपीडो


लंगर



         विजाग श्रखला की सभी पोस्ट -
Rishikonda Beach and Kailshgiri Hill,Visakhapatnam
Vishakha Museum,Visakhapttnam
Kursura Submarine,Vizag
Train trip to Araku Valley
Araku Valley, Andra Pradesh
Borra Caves

Saturday 25 February 2017

Gananath,Almora

            जागेश्वर दर्शन के बाद अब चलते हैं भोले भंडारी के दूसरे धाम। जी हाँ अब चल रहे हैं गणनाथ मंदिर में दर्शन के लिये। अल्मोड़ा से पचास किलोमीटर दूर कोतवाल गाँव का ये मंदिर एक गुफा के अंदर बना हुआ है। यहाँ तक जाने के लिये उतनी अधिक सुविधा नहीं होने के कारण ये जगह बहुत हद तक अनछुई है मतलब सामान्य भाषा में बोला जाये तो हिडन है अभी तक। हम लोगों का परिचय भी इस जगह से इसलिये है क्योंकि ये हमारे गाँव का मंदिर है और  कभी कभार पूजा पाठ के लिये हम यहाँ जाया करते हैं। वैसे ये कभी कभार बहुत नगण्य ही है क्योंकि अपनी याद में, मैं यहाँ सिर्फ दो बार गयी हूँ।

Friday 24 February 2017

Jageshwar Temple, Almora

               शिवरात्रि के अवसर पर भोलेनाथ के मंदिरों का ध्यान आना स्वाभाविक है और यही मेरे साथ भी हो रहा है। रह रह कर अपने द्वारा देखे गये कुछ मंदिरो की बरबस याद आ रही है, तो कुछ देर पुराने फोटो देखने में व्यस्त हो गयी। अब जब लैपटॉप खुल ही गया है तो सोच रही हूँ अपने साथ साथ आप सभी को भी इस पावन अवसर पर जागेश्वर के दर्शन करा दूँ। तो चल पड़ते हैं इस छोटी सी पोस्ट के माध्यम से शिव जी के पास। अभी पिछले बरस घर मई में घर जाना हुआ तो जोगेश्वर भी गये। दस मई २०१६ को घर पहुंचे,उसी दिन भाई भी रानीखेत से आ गया। हमारी इस  ट्रिप का मुख्य उद्देश्य जागेश्वर जाना ही था क्योंकि किसी पंडित ने वहाँ पर कालसर्प योग के निवारण की पूजा करवाने को कहा था। इस तरह से ११ मई २०१६ की सुबह हम तैयार हो कर जागेश्वर चल पड़े।
         अल्मोड़ा से चौतीस किलोमीटर दूर इस धाम को भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवदार के घने जंगलों में भोलेनाथ नागेश्वर के रूप में विराजमान है। जागेश्वर जाने के लिये हम अपने घर से लक्ष्मेश्वर की तरफ आगे बढे। यहाँ पर बाई पास में डाइवर्जन मिलता है। नीचे को जाने वाली रोड रानीखेत पहुंचाती है और दूसरी रोड जिसे अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ रोड कहा जाता है हम उस रोड पर आगे बढ़ गये। करीब तीस किलोमीटर तक जाने के बाद हम आरतोला नाम की जगह पहुँच गये। अब बस महादेव हमसे ज्यादा दूर नहीं थे। यहाँ पर फिर से एक डाइवर्जन मिला और हम अपनी मंजिल की और नीचे जाने वाली सड़क पर आगे बढ़ गये। अगर सीधे सीधे आगे बढ़ जाते तो हम पनुवनौला पहुँच जाते। खैर हम तो जागेश्वर जा रहे थे ओर वहीँ जाने वाली सड़क में आगे बढ़ रहे थे। ये रोड पहले जितनी अच्छी तो नहीं थी लेकिन किसी भी एंगल से बुरी भी नहीं थी मतलब सड़क के दोनों तरफ देवदार के जंगल नजर आ रहे थे। सच में बहुत आनन्ददायक द्रश्य था। रुकने का बहुत मन था लेकिन अभी हमारा उद्देश्य पहले कालसर्प योग का निवारण करवाना था तो हम आगे बढ़ गये। अब तक मौसम में ठंडक आ गयी थी, इसका कारण आस पास में देवदार के जंगल का होना था।
               वैसे मई के महीने के महीने में ठंडक कहना उचित नहीं लग रहा, मौसम सुहावना हो रहा था कहूँ तो ज्यादा अच्छा लगेगा। तो इस सुहावने मौसम के मजे लेते हुये हम मंदिर परिसर के पास पहुँच गये। इससे पहले जब भी हम जागेश्वर आये थे तो यहाँ पंडितों की थोड़ा मनमानी सी चलती थी लेकिन अब थोड़ा व्यवस्था में सुधार हो गया है। अब मंदिर के गेट के समीप जिसे जिस प्रकार की पूजा करानी हो उसकी पर्ची कटवा देते हैं और पूजा अर्चना के बाद पंडितों को कुछ देना आवश्यक नहीं है। यदि आप देना चाहें तो कोई हर्ज नहीं हुआ,अपनी अपनी श्रद्धा के हिसाब से दे सकते हैं कोई मना नहीं करेगा। अपनी पर्ची कटवा के हम सर्वप्रथम दर्शन के लिये पंक्ति में लग गये और उसके बाद पूजा अर्चना के लिये मंदिर चल पड़े। मंदिर जाने के कर्म में सबसे पहले महामृत्युंजय के दर्शन करे, वहीँ पर पंडित जी ने पाठ कराया, इसके बाद चाँदी का नाग नागिन का जोड़ा दे कर कहा इसे गंगा में प्रवाहित कर देना। अब मैं सोच में पद गयी कि इतनी जल्दी हम हरिद्वार कैसे जा पायेंगे पर उसी समय उन्होंने शंका का निवारण कर दिया नीचे जटा गंगा में जा कर प्रवाहित कर आओ, जल्दी से पंडित जी ने वहाँ  जा के आने को बोला और इसीके साथ हिदायत दे डाली कि प्रवाहित करने के बाद ना वहाँ रुकना और ना ही पीछे पलट कर देखना। इतने को पूजा पाठ के मामले में हम भी थोड़ा डरपोक ही हुये  झट गये और पट वापस आ गये। महाम्रत्युन्जय मंदिर के बारे में ये माना जाता है कि इसे आजादी गुरु शंकराचार्य ने कीलित कर रखा है, इस वजह से यहाँ यदि कोई किसी के बुरे के लिये कामना करे तो वो फलीफूत नहीं होती। इसके बाद पंडित जी ने कर्म से नागेश्वर के दर्शन कराये फिर मंदिर समूह का चक्कर लगा कर हम चल पड़े वापस घर।
जागेश्वर मन्दिर दर्शन के समय के कुछ  द्रश्य-

देवदार के पेड़ों के मध्य मंदिर समूह। 

ॐ नागेश्वराय नमः। 

महामर्त्युन्ज्य, ये ही सबके तारणहार हैं। 
यही है जटा गँगा। 
पतित पावनी गँगा और पार्श्व में धन के देवता कुबेर का मंदिर। 

देवदार के जंगल। 
पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित दंडेश्वर मंदिर। 

मंदिर के बाहर लगी दुकाने।