Monday 27 March 2017

Mahakali Temple,Golconda Fort

       सबसे पहले तो सभी लोगों को नव संवत्सर की बहुत बहुत बधाइयाँ। नये साल के प्रारम्भ के साथ साथ आज से देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों के पूजन वाली नवरात्रि का भी शुभारम्भ हो रहा है। देवी के नवरात्रे साल में दो बार आते है एक बार अप्रैल में और एक बार अक्टूबर में। भक्तगण साल भर ही देवी मंदिरों में डेरा डाले रहते हैं पर इन दिनों तो चलो बूलावा आया है कि तर्ज पर देवी मंदिरो में आस्था और श्रद्धा से भक्तो का जमावड़ा रहता है। अबके बरस किसी देवी मंदिर जा पाने के आसार नहीं लग रहे तो इसलिये सोच रही हूँ पिछले बरसों में देखे हुये देवी मंदिरों की चर्चा के जरिये माता को याद कर लेते हैं। इसी क्रम में छोटी छोटी ब्लॉग पोस्ट के जरिये माता रानी के दरबार में चलते हैं ।
यात्रा दिनांक-25 दिसंबर 2014
             शुरु करते हैं  हैदराबाद से, यूँ तो ये शहर निजामों की विरासत के रूप में जाना जाता है। आंध्र और तेलंगाना की संयुक्त राजधानी होने के साथ ये शहर अपने में बहुत सारे पर्यटक स्थलों के साथ साथ धार्मिक स्थलों को भी समेटे हुये हैं। यहाँ के दर्शनीय स्थलों के विषय में थोड़ा बहुत आप लोगों को इस ब्लॉग में जरूर मिल जायेगा। इन सबके अतिरिक्त यहाँ पर कुछ छोटे छोटे मंदिर भी है जिनको अभी तक कोई विशेष पहचान नहीं मिल पायी है, आज ऐसे ही एक मंदिर में चल कर हाजरी लगाते हैं। जी हाँ मैं बात कर रही हूँ एक ऐसे मंदिर की जिसके बारे में पढ़कर आप लोगों को आश्चर्य लगेगा, बहुत सम्भव है कई लोगों की लगे कि ये जगह इतना शेयर करने जैसी तो नहीं है पर मेरे पॉइंट ऑफ़ व्यू से इसे शेयर करना अति आवश्यक है क्योंकि ये कहीं ना कहीं हमारे देश में रहने वाले नागरिकों के भाईचारे का प्रतीक है।
           हैदराबाद के गोलकोंडा फोर्ट से तो सभी लोग परिचत ही होंगे। बड़ा ही विशाल और सुदृढ़ किला है ये लेकिन इसकी विशालता की चर्चा फिर कभी करेँगे, अभी यहाँ पर किले के ऊपरी हिस्से में  बने जगदम्बा महाकाली मंदिर के दर्शन करते हैं।
        गोलकोंडा का किला हैदराबाद से तेरह किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यहाँ पर रात के समय में ध्वनि और प्रकाश सम्बंधित शो का आयोजन भी किया जाता है। किला एक बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है और इसके हर भाग का अपना एक अलग इतिहास रहा है। किले की चढ़ाई चढ़ने में आराम से दो घंटा तो लग ही जाता है और चढ़ते चढ़ते तारामती के महल को पार कर के ऊपर चढ़ते हैं तो दो चट्टानों के मध्य बने एक मन्दिर के दर्शन होते हैं। इस मंदिर को ही महाकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है। आश्चर्य की बात ये है कि इस मंदिर का नाम हिंदी के साथ साथ उर्दू में भी लिखा गया है।
         इतना तो समझ में आता ही है कि इसका निर्माण तो हिन्दू राजाओं के समय में ही कराया गया होगा लेकिन उसके बाद ओरंगजेब जैसे कट्टर मुस्लिम राजा के हाथ में आने के बाद भी ये मंदिर सही सलामत रहा तो थोडा डाउट तो मन में आ ही जाता है। आखिर क्या ऐसे कारण रहे होंगे जिनकी वजह से ये मंदिर ठीक रहा!! क्योंकी अगर एक बार इसे थोडा भी छेड़ा गया होता तो दुबारा से तो ओरंगजेब इसे बनावता नहीं। अब या तो उसके मन में कोई डर रहा हो या देवी माता ने उसे इस पर हाथ ही नहीं लगाने दिया हो। मुझे तो इसके पीछे एक ही कारण लगता है और वो है साम्प्रदायिक सदभाव की भवना या फिर हो सकता है ओरंगजेब भी उतना कट्टर ना रहा हो जितना उसे दिखाया जाता है। सबसे पहले इस मंदिर की चर्चा करने के पीछे मेरा उद्देश्य रहा है भारत के लोगों में बसी सदभाव की भावना को प्रदर्शित करना। तो बोले महाकाली की जय!! अगले पोस्ट में किसी दूसरे दरबार में हाजरी लगायेंगे।





6 comments:

  1. कुछ अधूरा सा लग रहा है. शयद बनते बनते रह गया.

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  2. क्योंकी अगर एक बार इसे थोडा भी छेड़ा गया होता तो दुबारा से तो ओरंगजेब इसे बनावता नहीं। अब या तो उसके मन में कोई डर रहा हो या देवी माता ने उसे इस पर हाथ ही नहीं लगाने दिया हो। जय महाकाली ! जैसा जोग साब ने कहा कि कहीं कुछ अधूरा सा है , बनते बनते रह गया ! इतिहास खंगालना पड़ेगा इसका क्योंकि मुझे नहीं लगता औरंगजेब ने इसे छोड़ा होगा , हाँ ये संभव है कि उसकी नजर में न आया हो ! बढ़िया प्रस्तुति ! जय माता दी

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  3. बढ़िया जानकारी

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  4. बढ़िया जानकारी

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  5. बहुत सुंदर
    जय माता दी

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीय।

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