Tuesday 26 April 2016

Crank Ridge,Almora

             क्रैंक रिज, जी हाँ सही सुना ना ना, सही पढ़ा आपने। आज आपको ले चलते हैं यहाँ की सैर पर। चल तो पड़े लेकिन ये तो पता होना जरुरी है कि ये जगह है कहाँ। इस मुश्किल को हल किये देते हैं ये बता के कि उत्तराखंड में ही है ये क्रैंक रिज। अब आप सोच रहे होंगे कहाँ हो सकती हैं ये जगह, उत्तराखंड जैसे राज्य जिसे देवभूमि कहा जाता है उसके किसी दर्शनीय स्थल के लिए ये नाम कुछ अजीब सा लग रहा है ना। अब सबसे पहले दिमाग में जो नाम आ रहा होगा वो नैनीताल का होगा। थोड़ा अंग्रेजो के समय से बसा हुआ शहर है और वहां इस तरफ के काफी नाम भी है जैसे स्टोन ले, कैन्टन लॉज। पर ये क्रैंक रिज नैनीताल में ना हो कर अल्मोड़ा में हैं। सुन के आश्चर्य हो रहा होगा उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी और मंदिरों के गढ़ के रूप में विख्यात अल्मोड़ा में कोई इस तरह के नाम वाली जगह भी हो सकती है। ये अल्मोड़ा की एक छुपी हुए डेस्टिनेशन है जिसे कम लोग ही जानते हैं और अगर जानते भी हो तो दूसरे रूप में जानते हैं। इस जगह को एक और नाम से भी जाना जाता है और वो नाम है हिप्पी हिल।

Sunday 24 April 2016

Kasar Devi,Almora

       अल्मोड़ा को मंदिरों के साथ-साथ उसकी संकरी सी मालरोड और उनमे फर्राटेदार गति से चलते वाहनों से भी जाना जाता है। कोई बाहर से आने वाला मुसाफिर इस बात का अनुमान भी नहीं लगा सकता कि इतने छोटे से स्टेशन और भीड़ भाग वाली सड़कों के शहर अल्मोड़ा में प्रकृति के कई खजाने भी छुपे हुए हैं। इस श्रृंखला में मैं आपको अल्मोड़ा के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करा रही हूँ। पिछली पोस्ट में आपने गोलू देवता के दर्शन करे  और अब इस पोस्ट में हम लोग अपना रुख करते हैं कसार देवी मंदिर की तरफ। ये जगह धार्मिक महत्व की होने के साथ साथ अल्मोड़ा निवासियों के लिए एक बहुत बड़े पिकनिक स्पॉट के रूप में भी विख्यात है। यहाँ पर आपको हर तरह के लोग दिख जायेंगे। कोई भगवान की आस्था में लीन होंगे तो कोई प्राकृतिक नजारों को देखने में। प्रेमी युगलों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं, यहाँ के शांत वातारण में बैठकर वो एक दूसरे के साथ समय व्यतीत कर सकते हैं और शहर से दूर होने के कारण उन्हें पहचाने जाने का खतरा भी नही रहता है। इसके अतिरिक्त  एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण है इस जगह की प्रसिद्धि का। अब रास्ते पर निकल ही पड़े हैं तो धीरे धीरे कारण भी पता लग ही जायेगा। 
कसार देवी 

Monday 18 April 2016

घंटियों और चिट्ठियों के लिए प्रसिद्ध मंदिर की झलकियाँ

             अल्मोड़ा में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो गोलू देवता  के दरबार चितई ना गया हो। गर्मियों की छुट्टी में दूर दराज से आने वाले लोग भी किसी तरह समय निकाल कर यहाँ अवश्य ही जाते हैं। ऐसे में अगर किसी लोकल बन्दे से पूछा जाये कि यहाँ देखने जैसा क्या है तो उसका जवाब चितई मंदिर ही होगा,बहुत मान्यता है इस मन्दिर की। यहाँ आस पास में चीड़ के घने जंगल भी मिल जाते हैं और मौसम अगर खुशनुमा हो तो हिमालय के दर्शन भी हो जाते हैं।
मंदिर के पास  दिखता हिमालय 

Tuesday 12 April 2016

Almora:An Introduction

            उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में रचा बसा अल्मोड़ा शहर उन गिनी चुनी जगहों में से एक है जो कि अंग्रेज शासकों के द्वारा नहीं बल्कि उनके आगमन के बहुत पहले से बसाया गया है। जितना पुराना इस जगह का इतिहास है, उतनी ही समृद्ध यहाँ की संस्कृति है। इस कारण इस शहर की प्रसिद्धि सांस्कृतिक नगरी के रूप में भी है। यहाँ की संस्कृति यहाँ के त्योहारों, उत्सवों और यहाँ के मंदिरों के स्थापत्य में खूब झलकती है। यहाँ पर स्थित मंदिरों की संख्या को देखते हुए अगर इसे मंदिरों का गढ़ नाम दिया जाये तो कुछ गलत ना होगा।
अल्मोड़ा की एक सुबह 
         मंदिरों के आधिपत्य के साथ साथ यहाँ प्राकृतिक दृश्यों की भी बहुतायत है। अल्मोड़ा आते समय जहाँ से कोसी नदी साथ निभाना प्रारम्भ करती है, वहां से बाहर देखते हुए अल्मोड़ा कब पहुंचे पता ही नहीं लगता। लंबे लंबे सर्पिलाकार मोड़ों को पार करते हुए पता ही नहीं लगता कि अगले पल आपके सामने क्या आने वाला है। थोडी देर पहले तक जहाँ आपका साथ चीड़ के घने पेड़ निभा रहे होते हैं,वहीँ पलक झपकते ही देवदार के जंगल सामने आ जाते हैं।  अल्मोड़ा में ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेज चीड़ के पेड़ों को पहाड़ों की बर्बादी के लिए लगा गए। कुछ हद ये बात सही भी लगती है क्योंकि चीड़ के पेड़ जहाँ पर हो वहां पर दूर दूर तक कोई दूसरा पेड़ या घास नहीं उपजती है। ऐसा इस कारण होता है कि चीड़ जमीन का सारा पानी सोख लेता है और जमीन बंजर होने लगती है, वहीँ दूसरी और देवदार के जंगल बहुत हरे भरे रहते हैं । विभिन्न प्रकार के छोटे पेड़ देवदार की छाया तले पलते हैं।  खैर इस बात की मुझे बहुत पुख्ता जानकारी नहीं है। रास्ते में हरे भरे नज़ारे दिखते रहे तो अच्छा ही लगता अब चाहें चीड़ हो या देवदार। 
कोसी नदी का साथ 
पहुँच गए अल्मोड़ा 
           समुद्र तल से सौलह सौ बयालीस मीटर की ऊंचाई पर होने के कारण यहाँ का मौसम साल भर मनभावन बना रहता है,यानिकी यहाँ साल भर आया जा सकता है। यहाँ के आने के लिए गर्मियों में अप्रैल से जून तक का और अक्टूबर में दशहरा महोत्सव का समय उपयुक्त रहता है। स्नोफॉल के दिवानों के लिए दिसंबर और जनवरी भी बढ़िया रहते हैं किन्तु उस समय पर्याप्त गर्म कपड़ो की आवश्यकता रहती है। मुख्य शहर में अगर बर्फवारी ना भी हो तो ऊंचाई वाली जगहें जैसे कसार देवी या फिर बिनसर पर्यटकों को निराश नहीं करते हैं।
            अल्मोड़ा सड़क मार्ग के द्वारा सभी जगहों से भलीभांति जुड़ा हुआ है। यहाँ का निकटवर्ती रेलवे स्टेशन काठगोदाम और और एअरपोर्ट पंतनगर है। काठगोदाम स्टेशन में दिल्ली, लखनऊ ,बरेली सभी जगहों से ट्रेन आती रहती हैं। दिल्ली से आने वाली ट्रेन संपर्क क्रांति,शताब्दी एक्सप्रेस और रानीखेत एक्सप्रेस हैं । संपर्क क्रांति और शताब्दी में तो टिकट मिल जाता है पर रानीखेत एक्सप्रेस के लिए काफी पहले से तैनाती रखनी होती हैं । अगर ट्रेन विकल्प ना हो तो दिल्ली से अल्मोड़ा, हल्द्वानी के लिए लगातार बस चलती रहती हैं। हल्द्वानी /काठगोदाम पहुँचने के बाद अल्मोड़ा जाने के लिए सरकारी बस या शेयर टेक्सी कर सकते हैं जो कि करीब तीन से चार घंटे का समय लेती हैं। एक बार शेयर टेक्सी में बैठ गए तो भवाली के पास से जो ठंडी हवा के झोंके आते हैं वो सफर की थकान गायब कर देते हैं। इसके बाद रास्ते में पड़ता है कैंची धाम,वहां पर अगर गाडी रुके तो मंदिर जाने के साथ साथ मूंग के पकोड़े और ब्रेड  पकोड़े खाना ना भूले। यहाँ से तो अल्मोड़ा थोडा ही रह जाता है और पलक झपकते ही आप पहुँच जाते हो। पहुँचने से थोडा पहले आपका स्वागत करता है एक बोर्ड जिस पर अंकित रहता है सांस्कृतिक नागरी अल्मोड़ा आपका स्वागत करती है।
             पहुँच तो गए, अब बड़ी समस्या ये है कि क्या देखा जाये,चलिए ये भी हल कर देते हैं। अब आपको ले चलते हैं अल्मोड़ा के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की जानकारी के लिए-
चितई गोलू देवता- अल्मोड़ा का जिक्र हो और यहाँ के न्याय के देवता का जिक्र ना हो ये तो असम्भव ही है। शहर से चौदह किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैली हुयी है ।यहाँ लोग चिट्ठियों के रूप में अर्जी लगाते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर घंटियां लगवाते हैं। अगर मौसम साथ दे तो यहाँ से हिमालय के मनोहारी दृश्य देखने को मिलते हैं। यहाँ पर पास से वन विहार भी स्थित है।

कसार देवी- दूसरी शताब्दी में बना यह मंदिर कसार नाम के गांव में स्थित है। यहाँ से अल्मोड़ा शहर के विहंगम दृश्य दिखाई देने के कारण ये आस्था का प्रतीक होने के साथ साथ एक पिकनिक स्पॉट के रूप में भी जाना जाता है।  
कसार  देवी का पैदल रास्ता। 
डोली डाना मंदिर-  इस मंदिर तक ब्राइट एन्ड कार्नर से जाया जा सकता है। 
स्याही देवी-अल्मोड़ा की पश्चिमी दिशा में शीतलाखेत  गाँव की चोटी पर बसा ये  श्यामा देवी का ये मंदिर  अति पौराणिक है। घने जंगल में होने के कारण यहाँ से शाम होने से पहले वापस आना उचित रहता है। 
बानडी देवी-गहन वनों के बीच बना ये मंदिर लमगड़ा गांव को जाने के रस्ते में पड़ता है। यहाँ जाने के लिए भी पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है। 
          ऐसा माना जाता है कि अल्मोड़ा शहर इस इस प्रकार से बसा की  इसके चारो कौने की चार पहाड़ियों पर चार देवियों का वास है। उत्तर दिशा में कसार देवी ,दक्षिण में बानडी देवी, पश्चिम में स्याही देवी और पूर्व दिशा में डोली डाना विराजती हैं। 
कटारमल सूर्य मंदिर-कोसी के पास में कटारमल नाम के गांव में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है, कहने वाले ऐसा कहते हैं कि यहाँ पर कोणार्क के सूर्य मंदिर की झलक दिखती है। 
कटारमल सूर्य मंदिर 
गणनाथ मंदिर -ताकुला नामक जगह पर स्थित ये शिव मंदिर एक गुफानुमा जगह पर है। यहाँ प्राकृतिक रूप से शिवलिंग पर पानी गिरता है।
गणनाथ मंदिर 
ब्राइट एन्ड कार्नर-  माल रोड पर स्थित  जगह इस जगह से सूर्यास्त के  दृश्य  दिखाई पड़ते हैं। यहाँ पर पास में ही कैंट कैफेटेरिया है जहाँ पर बैठकर हलके फुल्के नाश्ते की साथ मनोहारी दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है। 
ब्राइट एन्ड 
कैफेटेरिया 
जागेश्वर मंदिर समूह-जागेश्वर मंदिर या यूँ कहा जाये एक सौ आठ छोटे बड़े मंदिरों का समूह जिसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है अल्मोड़ा से करीबन चालीस किलोमीटर की दूरी पर है।  यहाँ से एक और मंदिर झाकर सेन भी जाया सा सकता है। 
ऑन दी वे तो जागेश्वर 
बिनसर वाइल्ड लाइफ- अल्मोड़ा से तीस किलोमीटर की दूरी इस जगह से तो लगभग सभी लोग परिचित ही होंगे। गजब की हिमालय श्रृंखला दिखती है यहाँ से। 
बिनसर के जंगल 
खूंट गांव- गोविंद बल्लभ पंत जी की जन्मस्थली है ये सुन्दर का गांव। इस जगह की अल्मोड़ा से दूरी तीस किलोमीटर की है। इस जगह पर स्याही देवी जाते समय जाया जा सकता है।  
             अंग्रेजो द्वारा बसाया गया पर्वतीय शहर रानीखेत भी अल्मोड़ा जिले के अंतर्गत ही आता है। ये अल्मोड़ा से करीब चालीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहाँ भी सुबह जा कर शाम तक वापस आया जा सकता है। थोडा और भ्रमण की इच्छा हो तो अट्ठावन किलोमीटर दूर कौसानी या फिर बासठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित झीलों की नगरी नैनीताल का रुख किया जा सकता है। अरे हाँ अगर मन में इच्छा भारत नेपाल के बॉर्डर तक जाने की हो तो करीब एक सौ पचास किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ भी जाया जा सकता है और रास्ते में प्रसिद्ध गुफा महादेव यानिकी पाताल भुवनेश्वर और गंगोलीहाट में हाट कालिका के दर्शन भी करे जा सकते हैं। ये तो था अल्मोड़ा की भव्यता का एक सूक्ष्म परिचय, अगली पोस्ट से चलते हैं यहाँ के दर्शनीय स्थलों की सैर पर ।
अल्मोड़ा की अन्य पोस्ट-
Almora:An Introduction
घंटियों और चिट्ठियों के लिए प्रसिद्ध मंदिर की झलकियाँ
Kasar Devi,Almora
Crank Ridge,Almora
Jageshwar Temple, Almora
Gananath,Almora