Saturday 22 April 2017

Different landscape of EARTH(India)

             "धरती सुनहरी अम्बर नीला, ऐसा देश है मेरा " सच मे बड़ी ही सुंदर है ये धरा और उससे भी ज्यादा सुंदर है इसके भिन्न- भिन्न रूप। इन सबसे अलग भारत मे तो कुदरत ने प्राकृतिक सौंदर्य भर भर कर दिया है वो भी विविधता के साथ। यहाँ प्रकृति का हर रंग देखने को मिल जाता है कहीं हिमाच्छादित पहाड़ हैं, तो कहीं थार का रेगिस्तान!! कहीं नदियाँ झरने हैं तो कहीं सुंदर छटा बिखराते समंदर के किनारे हैं। इतना कुछ हैं यहाँ अगर भारत भृमण पर निकला जाये तो कई बरस गुजर जाएंगे!! पर अपने स्वार्थ के आगे कितने निष्ठुर हो गये हैं हम सभी, इतने सुंदर उपहार  के लिये प्रकृति का धन्यवाद करने की जगह हम इसका अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं। सोचने वाली बात है अगर हम इसे अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिये रहने और देखने योग्य बनाये रखना चाहते हैं तो इसके लिये अपने रहन सहन और काम करने के तरीके में मूलभूत सुधार करना बहुत जरूरी होगा। इन सबसे अधिक जरूरी होगा प्रकृति से जुड़ना और उसके रख-रखाव, साफ-सफाई के लिये लगे रहना। यदि समय रहते हमे होश ना आया तो ये बेहतरीन नजारे हमारे आने वाली पीढ़ियाँ केवल नेट जगत में ही देख पायेंगी। आज अर्थ डे पर आप सभी से प्रकृति के रख रखाव के प्रति जागरूक होने के निवेदन के साथ इस फोटोलॉग के माध्यम से धरती  विभिन रूप के दर्शन कराने का प्रयास कर रही हूँ।
शिमला-हिमाचल की राजधानी शिमला को पहाड़ो की रानी कद नाम से जाना जाता है। यहाँ के मुख्य पर्यटक स्थलों में जाखू मंदिर, कुफरी, नालधेरा और तारा देवी मंदिर आते हैं। अगर पास में थोड़ा समय हो तो माल रोड ओर रिज में शाम बिताई जा सकती है। सुरंगों और पहाड़ियों के बीच से गुजरने वाली शिमला कालका ट्रैन यहाँ आने वालों के आकर्षण का केंद्र रहती है।
गोल्फ का मैदान (नालढेरा-शिमला)
किस कदर हरा रंग बिखराया गया है यहाँ !! (शिमला अन्ना  डेल संग्रहालय) 

Wednesday 19 April 2017

Araku Valley, Andra Pradesh

              अराकू, जब से उड़ीसा जाने का प्लान बना, तो गूगल देव ने आंध्रा में स्थित इस पर्वतीय क्षेत्र से अच्छा-भला परिचय करा दिया!! वैसे भी मुझे कभी ये आभास न हुआ कि आंन्ध्रा जैसी पथरी जगह में पहाड़ भी हो सकते है !! क्यूंकि अपने लिये पहाड़ का मतलब पहाड़ होता है, वो पहाड़ जो अपने में भव्यता और विशालता को समेटे हुये रहते हैं!! जिनके तले बेहिसाब हरियाली और भिन्न प्रकार की जैव विविधता पनपती है। पर जब गूगल ने बता ही दिया तो यहाँ जाना जरुरी है और उससे पहले जरुरी है अपने साथ- साथ सभी को इस जगह का एक सूक्ष्म परिचय देना।
             पूर्वी घाट की तलहटी में बसा ये क्षेत्र, आंध्रा के मुख्य शहर विज़ाग (विशाखापत्तनम) से एक सौ चौदह किलोमीटर की दूरी पर होने के साथ साथ समीपवर्ती राज्य उड़ीसा की सीमा के काफी निकट है।  इस कारण से यहाँ पर दोनों राज्यों की मिली जुली छाप देखने को मिलती है। ये भारत का एक ऐसा स्थल भी है यहाँ पर आदिवासी जन जीवन के पहलुओं को भी जाना पहचाना जा सकता है। आदिवासी संस्कृति का परिचय तो ये देता ही है उसके साथ साथ प्रकृति इस पर जम कर मेहरबान हुयी है। छोटा सा ये शहर अपने में झरने और बगीचे समेटे हुये हैं। बोर्रा केव्स ,पदमपुरा गार्डन और जनजातीय संग्रहालय यहाँ के प्रमुख आकर्षण है। इन के अतिरिक्त जगह जगह पर कॉफी के बागान होने से हरियाली  प्रचुर मात्रा में है।  पर्यटन के मानचित्र में बहुत ज्यादा उजागर नहीं होने से यहाँ पर  बनावटी पन ने अपने कदम अभी तक नहीं जमाये हैं।  यहाँ के निवासी सरल और विनम्र है। ये जगह सड़क और रेल द्वारा विज़ाग से भली भांति जुडी हुयी है। परिचय के बाद अब चलते है यहाँ की यात्रा पर।  पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा , कैसे हम विज़ाग से ट्रैन द्वारा यहाँ पहुंचे और अब चलते हैं यहाँ के दर्शनीय स्थलों की सैर पर।

Monday 10 April 2017

Train trip to Araku Valley

            "गाड़ी आयी गाड़ी आयी छुक छुक छुक" इस कविता ने बालपन से ही ट्रेन के प्रति इस कदर मोह जगाया कि ट्रेन के नाम पर ही बांछे खिल जायें पर ऐसी किस्मत कहाँ पायी हमने कि शिमला, दार्जिलिंग या ऊटी जैसी पहाड़ी जगहों में रहकर बचपन से ही ट्रेन से रूबरू हुआ करते!! हम हुये उत्तराखंडी,उस पर भी कुमाउनी ,अब ज्यादा से ज्यादा कहाँ जायेंगे, आस पास रिश्तेदारी में ही तो जायेंगे ना!! कभी नैनीताल चले गये, कभी रानीखेत ओर ज्यादा हुआ तो हल्द्वानी !!  सो ट्रैन हमारी कल्पना में ही आया जाया करती थी। हल्द्वानी  जाने के नाम पर बाल मन मारे खुशी के कुलांचे मारता था इस उम्मीद में शायद कहीं आते जाते ट्रैन नजर आ जाये और उसकी झटके दार सीटी कान में पड़ जाये। जब भी कभी ट्रैन दिखती तो कदम अपने आप ही रुक जाते और विस्मृत से हो कर उसके आंख से ओझल होने तक उसे निहारा जाता।