Wednesday 26 June 2013

कुर्ग (Coorg)

            बैंगलोर से लगभग ढाई सौ किलोमीटर की दूरी पर पश्चिमी घाट पर बसे  कुर्ग को कोडागु भी कहा जाता है, जिसका मतलब है पहाड़ियों पर बसा हुआ धुंध का जंगल।पंद्रह सौ पच्चीस मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ कुर्ग साउथ इंडिया का मुख्य हिल स्टेशन है, और यहाँ के जिला मुख्याल मदिकेरी को  स्कॉटलैंड ऑफ़ इंडिया भी कहते हैं, जहाँ की हरी भरी पहाड़ियों और कॉफ़ी बागानों के द्रश्य इसे अविस्मरनीय दर्शनीय स्थल बना देते हैं और इसके आस पास काफी धार्मिक स्थल भी है जिनसे इसका महत्व और भी  जाता है, और दक्षिण की मुख्य नदी कावेरी का उद्गम स्थल भी यहीं है। मदिकेरी के अलावा यहाँ का मुख्यालय विराजपेट और सोमवारपेट भी है। कहते हैं ये जगह कर्नाटक की सबसे सुरक्षित सथानो में से एक है।ट्रिप के बारे में डिटेल के लिए क्लिक करिए-
          सुबह साढ़े पांच बजे हम लोग निकल पड़े बैंगलोर से मैसूर होते हुए चल पड़े, फिर से नाश्ता किया मंड्या पे, बच्चा साथ में था तो रुकते रुकता चल पड़े। रोड की कंडीशन बहुत ही अच्छी थी तो कुशालनगर कब पहुंचे पता ही नहीं चला।वहाँ एक बार फिर चाय के लिए ब्रेक लिया, और मदिकेरी के लिए चल पड़े कुछ देर बाद।यहाँ तक तो सही था, पर मदिकेरी पहुँचने के बाद पता लगा की जी होमस्टे हमने बुक कराया था वो नहीं मिल पायेगा वहां कुछ प्रॉब्लम था तो उन्होंने हमारे लिए एक दूसरा इंतजाम करवाया, नयी जगह मिल तो गयी व्यू भी अच्छा था पर हॉस्पिटैलिटी उतनी अच्छी नहीं थी, और उसका कोई नाम भी नहीं था।बस ये पता था की क्लब महिंद्रा का जो रिसोर्ट है उसके अपोजिट डाउन को जाना है।शायद अब तो कोई नाम भी आ गया हो।दिन में थोडी देर रेस्ट किया कुछ बाहर के फोटोग्राफ्स लिए। क्यूंकि मुझे नींद नहीं आ रही थी और बाकि दो लोग सोये थे।
खिड़की से बाहर का द्रश्य 


सामने दिखती पहाड़ियाँ 

हरी-भरी वादियाँ 
             कुछ देर बाद आराम करने के बाद चल पड़े घुमने के लिए।सबसे पहले जगह सोचा था अब्बी फाल्स ,यहाँ को जाने वाली रोड की कंडीशन तो बहुत ही खराब थी, लग नहीं रहा था की किसी टूरिस्ट स्पॉट को जा रहे हैं, चलो निकल पड़े तो जाना तो था ही,इसलिए चल पड़े।खैर पहुँचने के बाद अच्छा लगा। सबसे ज्यादा मजेदार था वहां पर बना एक बड़ा सा पुल जिसे हमने लक्ष्मण झूला कहा,पहले तो बच्चे के साथ उसमे जाने की हिम्मत नहीं आ रही थी, फिर गए तो रुक ही गए क्यूंकि यहाँ से व्यू बहुत अच्छा था।

अब्बी फाल्स 
              यहाँ के बाद पहुंचे मदिकेरी फोर्ट, यहाँ पर छोटे बड़े मंदिर और बड़े बड़े हाथियों की मूर्तियाँ थी,तो उनके बीच घूमते हुए अगला लक्ष्य ओम्कारेश्वर मंदिर था। यहाँ  से निकल कर राजा सीट जाने का प्लान था यहाँ का लाइट एंड साउंड शो काफी प्रसिद्द है,यहाँ पर सूर्यास्त देखने के लिए भीड़ जमा रहती है। हम पहुंचे ही थे की हमारा छोटा पार्टनर थक गया परेशान हो गया तो वापस आना पड़ा, तो सोचा कभी और देखते हैं लेज़र शो।यहाँ से निकल कर खाना खाया और फिर दुबारा अपने ठिकाने की और चल पड़े,तभी लाइट भी चली गयी तो बिना नाम के होमस्टे को ढूँढना तो टेढ़ी खीर हो गयी।अँधेरे में घूमते रहे चक्कर काट काट के परेशान हो गए पर अंततः सफलता हासिल हुयी और अपना होमस्टे मिल ही गया।यहीं नहीं वहां पहुँचते पहुँचते लाइट भी आ गयी।इससे आगे की कहानी अगले पार्ट में सुनते हैं की कैसे हम मदिकेरी से बेकाल होते हुए मंगलौर पहुंचे। 
इस यात्रा की सभी कड़ियाँ-
कुर्ग (Coorg)
तालाकावेरी:कावेरी का उद्गम स्थल (Talakaveri: Origin of Kaveri River)
बेकाल फोर्ट( Bekal Fort)
मैंगलोर आकर्षण :सोमेश्वर और पेनाम्बूर समुद्र तट (Mangalore attractions: Someshwar and Panamboor beach)
निसर्गधाम(Nisargdham)

दुबारे एलीफैंट कैंप (Dubare Elephant Camp:Coorg attraction)

Thursday 20 June 2013

Scenic Connor and nilgiri railway

            सुबह उठने के बाद कमरे से बाहर निकले तो प्राकतिक नजारों को देखने पे लगा की वक्त यहीं थम सा जाये और अनायास ही मन गुनगुनाने लगा , "ये हसीं वादियाँ ये खुला आसमां, आ गए हम कहाँ ए मेरे साजना।"तो उन नज़रों के लिए क्लिक करिए-
होटल से दिखता हुआ नजारा १ 


नजारा २ 


नजारा ३ 
                तत्पश्यात नित्य कर्मो के उपरान्त होटल में चाय-नाश्ता करने के बाद ऊटी रेलवे स्टेशन को चल पड़े,क्यूंकि कुन्नूर देखने को मन अत्यंत ही बेताब था, और टोय ट्रेन से दिखने वाले ऊटी के सौदर्य के बारे में बहुत  कुछ पहले से सुन लिया था।
ऊटी रेलवे स्टेशन 
                टॉय ट्रेन में बैठने वाले लोगों में कुछ पर्यटक थे, तो कुछ लोकल लोग, सभी पर्यटक अपने हाथों में कैमरा  लिए फोटोग्राफी और विडियो रिकॉर्डिंग के लिए तैयार बैठे थे। कभी एक और से द्रश्य दिखाई पड़ते तो कभी दूसरी और से। जब जिस और से नहीं दिख रहे हों, वहां बैठे लोग मायूस हो जाते। कई बार ट्रेन सुरंगों से होते हुए  गुजरती , तो अँधेरा सा छा जाता और उसके बाद मस्ती में चिल्लाते लोग और उनकी उत्साह से भरी हुयी आवाजें। इस तरह से टॉय ट्रेन में अति आन्नद की प्राप्ति हुई और मन अति प्रसन्न हो उठा।
फोटोग्राफी करते पर्यटक 


ऊटी का ट्रेन से दिखने वाला सौन्दर्य १  


पहाड़ों के मध्य दिखने वाली टोय ट्रेन 


ट्रेन से दिखने वाले चाय बागान 


दूसरी और का द्रश्य 
              उतरने के बाद हमने आस पास में कुछ फोटो खीचें और रेलवे स्टेशन से बाहर निकलने के बाद बहुत समय तक सोच में पड़े रहे कि अब घुमा कैसे जाये? काफी देर बाद हमने एक ऑटो चालक से बात की ,तो उसने कहा कि वो हमें चाय बागान, सिम'स पार्क, डोल्फिन नोज दिखाते हुए टी-फैक्ट्री दिखा लायेगा। अब क्या था, बस उसके साथ ही हो लिए और जहाँ पर रुकने का मन हुआ, वहां उतर कर फोटो ले लिए। चाय बागान का आन्नद लेते हुए जा ही रहे थे तो देखा वहां पर परम्परागत वेशभूषा में चाय बागान में फोटो खिचाई जा रही है, फोटो खिचाने वालों को देख के लग रहा था, "एक कली दो पत्तियां, नाजुक नाजुक उँगलियाँ ,तोड़ रहीं हैं कौन ये" और उन फोटो खिचवाने वालों के साथ हम भी शामिल हो लिए थे। 
               इसके बाद पहुंचे डोल्फिन नोज, यहाँ से बहुत ही सुन्दर नज़ारे देखने को मिले, कहीं प्रकति के अद्भुत नज़ारे, तो कहीं सामने दिखता हुआ कोयम्बटूर, और  सामने से दिखता हुआ  कैथरीन झरना (Catherine fall) झरने में कुछ ज्यादा पानी तो नहीं था, पर द्रश्य अति उत्तम था।


डोल्फिन नोज से दिखता कोयम्बटूर
कैथेरिन झरना
एक अन्य द्रश्य
डोल्फिन नोज से दिखता एक और द्रश्य
            जिन लोगों को घुड़सवारी का शौक है, उनके लिए घोड़े की सुविधा भी  थी, हम तो बस घोड़े में बैठ के फोटो खिचाने से ही संतुष्ट हो गए।
            उसके बाद टी-फैक्ट्री गए, यहाँ चाय के बनने की पूरी विधि का ज्ञान हुआ और दुबारा से चाय के घने जंगलों के दर्शन हुए। आप भी देखिये-
चाय बनाने में लगे हुए लोग 
                            

                           
               इसके बाद पहुंचे सिम'स पार्क, ये ऊटी बोटैनिकल गार्डन का सा भव्य है, किन्तु यहाँ पेड़- पौधों के साथ साथ अन्य आकर्षण भी मौजूद है। यहाँ पर घास द्रवारा विश्व का नक्शा बना है, पर ऊटी में बना भारत का नक्शा ज्यादा आकर्षक लगा। यहाँ बच्चों के मनोरंजन के लिए झूलों की वयवस्था भी थी, जिनका आन्नद बच्चों के साथ-साथ बड़े भी उठा रहे थे। एक कृतिम झील भी यहाँ बनी हुयी है, जिसमे बोटिंग की वयवस्था भी है , हमारे प्लान के मुताबिक हमें ऊटी लेक में बोटिंग करनी थी, तो हमने आस पास के फोटो ले लिए-
tree wealth of sim's park 


लेक 


सिम'स पार्क 
             अब पेट पूजा की बारी आ गयी थी, क्यूंकि हम लोग वेजिटेरियन है, इसलिए हमारे लिए रेस्तरां ढूढ़ना भी एक बड़ा काम ही था। अब कुन्नूर भ्रमण करते करते वेंकी रेस्तरां दिखाई दिया। यहाँ पर बहुत ही अच्छा खाना खाने को मिला जिसमे बेबी कार्न मंचूरियन सबसे उत्तम था।आस पास के फोटो देखिये-
स्टेशन में खड़ी ट्रेन 


वेजिटेरियन रेस्तरां 
        इसके बाद दुबारा ट्रेन में बैठ के ऊटी पहुंचे। अब हमारा अगला काम किसी तरह समय से ऊटी लेक पहुँच कर  बोटिंग का आन्नद उठाना था।दौड़ भाग कर के पहुँच तो गए पर तब तक बोटिंग का टिकट काउंटर बंद हो गया था तो एक मायूसी सी छा गयी। यहाँ पर एक मोटर बोट में ८ लोगों के बैठने की व्यस्था है,और एक नाव में ६ लोगों का समूह जा रहा था। नाविक से बात करने पर उसने हम दोनों को भी नाव बैठा लिया। इस तरह से हमारी नाव की सवारी भी हो ही गयी।
ऊटी लेक 
                 अब तक शाम ही हो गयी थी, तो खाने का सामान पैक करा के हम लोग होटल वापस हो लिए और अपने कमरे में बैठ कर भोजन का आन्नद लिया।अगले दिन गुडलुर के रस्ते पयकारा डैम और पयकारा लेक देखते हुए बैंगलोर वापसी का प्रोग्राम था, पर सुबह उठने पर देखा तो बहुत ही कोहरा था, तो निकलने में देर हो गयी, तो सोचा पयकारा डैम के दर्शन कभी ओर किये जाएँ और हम सीधे बैंगलोर को रवाना  हो गए।
ऊटी श्रंखला की समस्त पोस्ट-
Road trip to Ooty बैंगलोर से ऊटी की यात्रा
Ooty ,The Red hills-ऊटी भ्रमण
Scenic Connor-कुन्नूर की चाय बागान

Tuesday 18 June 2013

Ooty ,The Red hills-ऊटी भ्रमण

              ऊटी पहुँचते-पहुँचते बहुत जोरों की भूख लग आई थी, और पहले से बुकिंग होने के कारण होटल ढुढ्ने का काम भी नहीं था। तो सोचा पहले पेट पूजा फिर काम दूजा। शहर  में कदम रखते ही दिखाई दिया होटल चार्रिंग क्रॉस (Charring Cross),  तो उसके रेस्तरां में भोजन के लिए घुस गए। खाने का अनुभव तो कुछ ऐसा था कि, ज्यादा पैसे में कम स्वाद। अब हमें जाना  था होटल डिलाइट इन टाइगर हिल रिसोर्ट। ये शहर से काफी उंचाई पर स्थित है, तो अति उत्तम नज़ारे देखने को मिले। पर रस्ते का तो कुछ कहना ही न था, बिलकुल हेयर पिन बैंड को मात करते हुए मोड़ जगह जगह पर थे। यहाँ पर रेस्तरां तो नहीं है , पर निवेदन करने पर खाना उपलब्ध हो जाता है। ये होटल पैसे के हिसाब से अति उत्तम है। कुछ देर आराम करने के बाद लगा अब चल पड़ना चाहिए, तो निकल पड़े। प्लान  के मुताबिक टोय-ट्रेन से कुन्नुर जाना था, तो गाड़ी वहीँ छोड़ के दोनों पैदल उतर गए। पर स्टेशन पहुँच के पता चला की ट्रेन जा चुकी है। फिर टूरिस्ट ऑफिस जा के ऊटी के अन्य आकर्षणों पर नजर डाली और बोटैनिकल गार्डन के बारे में पता चला। एक मजेदार बात ये की ऑटो किराये के बारे में एक बोर्ड लगा है,  जिसका अनुसरण कोई भी ऑटो चालक नहीं करता।
ऑटो किराया 
              बोटेनिकल गार्डन के बारे में विस्तार से पढ़िए-

      ये २२ हेक्टो-एकर जगह में फैला हुआ है जिसमे ६५० जातियों के पेड़-पोधे लगे हुए है। ये जगह अत्यंत आकर्षक है, जिसमे भिन्न-भिन्न प्रकार के पौधे तो है ही और उन से बना हुआ भारत का नक्शा भी है। प्रवेश करते ही नजर पड़ती है तो रखी हुई आकर्षक तोपों पर। अगर एक बार अन्दर आ गए तो बाहर निकलने का मन ही नहीं करता। प्रवेश करते ही  कुछ चित्र सलंग करे जा रहे हैं।
ऊटी गार्डन में रखी तोप और मनमोहिनी हरियाली 


एक अन्य द्रश्य हरियाली का 


फूलों का अदभुत भण्डार 


सुन्दर सा फूल 


फूलों से बनी कलाकृतियाँ 


कुछ नया सा दिखने वाला पेड़ 


घास से बने हाथी 
               यहाँ से बाहर निकल कर गए वेक्स वर्ल्ड,इतने में ऊटी की माल रोड का लुफ्त भी उठा लिया और साथ के साथ Espresso Coffee House में चाय नाश्ता भी कर लिया। घूमते घूमते पहुँच गए वेक्स वर्ल्ड के गेट पे।
ऊटी मार्केट 


वेक्स वर्ल्ड 
             यहा जाने का अनुभव बस ठीकठाक ही था, कलाकृतियाँ मूल जैसी प्रतीत नहीं होती है। आप स्वयं देख के बताइए-
चाचा नेहरु
मनमोहन सिंग और अब्दुल कलाम
विरप्पन
                   पास में ही रोज गार्डन था, पर ऑफ सीजन होने के कारण जाने का कोई महत्व नहीं था, इतने में शाम हो आई, तो ऊटी के प्राकतिक द्रश्यों का मजा लेते हुए होटल की और प्रस्थान किया ,और नज़ारे देखते हुए ६किमी की खड़ी चढ़ाई, हलकी हलकी बारिश की बूंदों का आन्नद लेते हुए पार हो गयी। होटल पहुँचने तक बारिश जोर से होने लगी बारिश के बीच दुधिया रौशनी से नहाये हुए होटल के द्रश्य कुछ इस प्रकार है-
होटल जाने का रास्ता 


बादल और कोहरे से घिरा ऊटी 


बारिश में नहाया हुआ होटल 


होटल के बाहर कैंप फायर का इंतजाम 

                हमने यहीं होटल में ही खाना देने का अनुरोध किया और अपने कमरे में बैठकर खाने का आन्नद लिया, पर तब तक ठण्ड इतनी बढ़ गयी थी की मुझे लगा रूम हीटर के बिना काम चलना तो  असंभव सा ही है और हमने हीटर भी मांग लिया( ये जुलाई की बात है) अगले दिन कुन्नूर एवम ऊटी लेक जाने का प्लान था, ये वृतांत कुछ ज्यादा ही लम्बा हो गया, तो अब कुन्नूर के बारे में अगले भाग में चर्चा करते है।
ऊटी श्रंखला की समस्त पोस्ट-
       


Saturday 15 June 2013

Road trip to Ooty बैंगलोर से ऊटी की यात्रा

           बैंगलोर से ऊटी जाने के लिए ३ दिन का समय पर्याप्त है। हम लोग समयाभाव के कारण २ दिन और २ रात के लिए गए थे। अपने  प्रोग्राम के मुताबिक हम लोग प्रातः ५:३० पर घर से निकल पड़े। तत्पचात गाड़ी में पेट्रोल भरवाया और अपने गंतव्य की ओर  रवाना हुये। बानेरघत्टा रोड क्रॉस करते हुए मैसूर हाईवे पर गाड़ी चल रही थी। सुबह सुबह कोई ट्रैफिक न होने और सुहावने मौसम के कारण रास्ता और भी लुभावना लग रहा था और गाड़ी की स्पीड १ ० ० किमी /घंटा से ऊपर ही थी। यात्रा के बारे में विस्तार से पढने के लिए क्लिक करिए-
                  करीबन ७ बजे हम मांड्या पे थे। प्रोग्राम के मुताबिक  तो हमें मैसूर के कामत मधुवन पर ब्रेकफास्ट के लिए रुकना था , पर चाय पीने का अत्यधिक मन होने के कारण  हम मंड्या पर ही रुक गये। यहाँ पर इडली -डोसा और चाय पीने के बाद आगे को रवाना  हुए। लगभग  पूरा  रास्ता ही खाली था और आराम से चलते हुए हम लोग प्राकतिक द्रश्यों का लुफ्त उठा रहे थे।

मैसूर से बांदिपुर का रास्ता 


बांदीपुर से पहले का नजारा
          गुन्द्लुपेट (gundlupet)  पहुँचने के बाद शुरुवाती  ७-८ किमी तक सड़क उतनी अच्छी नहीं थी तो बांदीपुर जंगल का आनंद उठाते हुए धीमे धीमे लक्ष्य की और बढ़ रहे थे।साथ में बारिश होने से तो सफ़र का आन्नद और भी बढ़ ही गया था। इस तरह से  बांदीपुर  में जानवरों के दर्शन करते हुए हुए हम  ठेपकाडू  (thepakadu ) पहुंचे जो की तमिलनाडु का बॉर्डर और मदुमलाई वाइल्डलाइफ संक्टुँरी  का गेट है।
बांदीपुर से पहले ही बन्दर दिखने लगे 


बारिश के साथ रास्ते का एक नजारा 


बारिश का आन्नद 



हाथी मेरे साथी  


हरी घास के बीच मोर का दिखना मुश्किल 


बादलों से घिरे हुए ऊटी का नजारा 


ऊटी का द्रश्य रस्ते से
                      ठेपकाडू से मदुमलाली होते हुए सीधा रास्ता ऊटी की और जाता है। सभी बड़ी गाड़ियाँ और बस इसी रास्ते से जाती हैं। हम यहाँ से लेफ्ट लेते हुए ऊटी- मसिनागुडी रोड पर आगे बढे। ये रास्ता पिछले वाले से ३ ० किमी छोटा था। शुरुवात में  ६ किमी घने जंगल से गुजरती हुयी संकरी सी रोड थी पर मसिनागुडी से थोडा पहले रोड की हालत थोडा सुधर गयी। थोड़ी ही देर में हमने मवंल्ला( mavanalla ) क्रॉस कर लिया जो की नीलगिरी पहाड़  की तलहटी है। ये जगह ३ ६ हेयर- पिन बैंड वाले पहाड़ की शुरुवात है। पूरा १४ किमी का   रास्ता इधर उधर देखते और मोडों  को गिनते हुए निकल  गया। यहाँ पर सभी जगह मोडों को मार्क किया गया है, हम तो बस एक बार मोड़ शुरू होने के बाद ख़त्म होने तक बस गिन ही रहे थे की किसी तरह ख़त्म हो जाएँ।। ये एक अति रोमांचक अनुभव था। कुछ रस्ते में लिए गए चित्र सलंग है।
रस्ते के हेयर पिन बैंड 


हेयर पिन बैंड 


चिन्हित हेयर पिन बैंड 


रोड का एक द्रश्य 
                            मसिनागुडी रोड और गुडलूर रोड के आपस में मिलने के बाद ऊटी मात्र ७ किमी रह जाता है। हम तकरीबन १२:३०  बजे ऊटी पहुँच गए थे। अगले भाग में पढ़ेंगे ऊटी के दर्शनीय स्थलों के बारे में। 
 ऊटी श्रंखला की समस्त पोस्ट-
Road trip to Ooty बैंगलोर से ऊटी की यात्रा
Ooty ,The Red hills-ऊटी भ्रमण
Scenic Connor-कुन्नूर की चाय बागान