Wednesday 22 July 2015

Trip to Andaman:Courtesy Spicejet 499 sale

              अप्रैल २०१४ में अमेरिका से वापस बंगलौर आने के बाद थोड़ा समय दुबारा से सब कुछ पहले की तरह व्यवस्थित करने में लग गया,जब तक सब हुआ तब तक बरसात प्रारम्भ हो गयी और हमें उत्तराँखण्ड जाये हुए भी एक जमाना सा हो गया था.तो एक ठीक ठाक सी डील देख कर के दीपावली में घर जाने के लिए टिकट बुक करवा लिए, सोचा त्यौहार परिवार के साथ ही मनायेंगे। अभी एक बुकिंग करवाये हुए ज्यादा टाइम नहीं हुआ था कि स्पाइस जेट ने फटाफट सस्ते टिकट वाली सेल निकालनी शुरू कर दी।कुछ सेल तो इसी साल के लिये थी जिनमे जाना हमारे लिए संभव नहीं था, क्यूंकि दीपावली में घर जाने का मतलब लम्बी छुट्टी का जुगाड़ होना चाहिए इसलिए हमारे पास सिर्फ दिसम्बर  में क्रिसमस के अवकाश में ही कहीं घूमने का विकल्प था,और ये समय मौसम के लिहाज से उत्तर भारत की जगह दक्षिण भारत घूमने के लिए ही उपयुक्त था, सो इसमें हम पहले ही हैदराबाद जाने का प्लान बना चुके थे। इसलिए हमने कोई टिकट बुक नहीं  करवायी। अचानक एक दिन फिर से सेल आ गई और पता लगा कि गोवा के टिकट पांच सौ में है, पर जब तक मैंने देखना शुरू किया तब तक गोवा वाली सारी टिकट निकल गयी जो मिल रही थी उनका रेट प्रति व्यक्ति हजार रुपया था, मतलब तीन लोगों के आने जाने में छह  हजार रुपया तो लगना ही था, हम मन बना ही रहे थे तभी ख्याल आया गोवा तो पास में ही है,कभी भी कार या ट्रैन से चले जायेंगे और पिछले साल ही गए हैं,अब जब जाने का मन बना ही लिया है तो कहीं और के टिकट देखते हैं।एक बार फिर सर्च इंजन लग गया पूरे जोर-शोर से अपने काम पर। हम जिन महीनो में बुकिंग कराने के इच्छुक थे वो थे फरवरी,मार्च,अप्रैल या मई, सबसे पहले सोचा सिक्किम चले जाते हैं बगडोरा की फ्लाइट सर्च करी तो पता लगा महँगी है।फिर हिमाचल जाने के लिए चंडीगढ़ का सोचा वो भी तीन हजार की थी,फिर सर्च कर के देखा तो चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर जाने वाली फ्लाइट की कीमत ने आंखों मे एक चमक ला दी, हमने कभी सपने में भी ये नहीं सोचा था कि अंडमान जैसी सुन्दर जगह जाने के लिए इतना सस्ता टिकट भी मिल सकता है,क्यूंकि स्पाइस जेट प्रति व्यक्ति मात्र दो हजार रूपये में चेन्नई से अपार जलनिधि के ऊपर उड़ा कर पोर्ट ब्लेयर पहुचाने के मात्र दो हजार रूपये ले रहा था और चेन्नई से बंगलौर दूर ही कितना है केवल तीन सौ पचास किलोमीटर। हालाँकि ये हमारा आखिरी विकल्प था क्यूंकि हमलोगों ने ये सोचा था कि छोटे बच्चे का साथ होने के कारण यहाँ किसी और परिवार के साथ ही जायेंगे,जिससे पानी में होने वाली गतिविधियों का आन्नद आराम से ले सकें। जिनके साथ जाने का सोचा था तो वो लोग अभी अपने कामों में व्यस्त थे। इतना सस्ता टिकट और अंडमान की सुंदरता को देखते हुए हमने शनिवार और रविवार के साथ कुछ दिन मिला कर टिकट करा ही लिया। इस तरह से स्पाइस जेट की मेहरबानी से बारह हजार में हम तीनो का आने जाने का टिकट हो गया।कुछ इस तरह के विज्ञापन आ रहे थे उन दिनों -
स्पाइस जेट की मेहरबानी 
                       टिकट कराने के बाद हमने अपने रिश्तेदारों को बताया कि सस्ता टिकट आया था और हम अंडमान जा रहे हैं , तो उन लोगों ने भी जाने की मंशा जाहिर कर दी और ये बात हुई कि अगर दुबारा से सेल आई और वो ही फ्लाइट उन लोगों को भी मिल जाती है तो उनका टिकट भी करा दिया जायेगा। कमाल की बात ये रही कि उनसे बात करी ही थी और अगले दिन रात वो ही सेल फिर से आ गयी। इस तरह से स्पाइस जेट ने एक बार फिर मेहरबानी कर के हमको साथ दिला दिया और उन लोगों को अंडमान घूमने के मौका।अब अगस्त महीने के अंतिम दिनों  में टिकट कराया था और जाना था अट्ठाइस फ़रवरी का तो हमारे पास प्लानिंग के लिए छह महीने का समय था हालाँकि इस बीच में हमें एक ट्रिप उत्तराखंड का और हैदराबाद का लगाना था।यहां की सैर आपको कभी और करवाते हैं,उससे पहले अंडमान के दर्शन हो जाएँ।भारत के नक़्शे में चिंदी से दिखने वाले इन द्धीप समूह को देखकर लगता था कि  इतने बड़े महासागरों के मध्य ये छोटे-छोटे दिखने वाले द्धीप कैसे टिके हुए होंगे और अब उन्हें अपनी आँखों से देखने का मौका मिल रहा है ये सोच कर ही मन उत्साह से भरा जा रहा था और साथ में सपने भी सजाने लगा था कि आखिर कैसा होगा अंडमान द्धीप समूह। मन भी आखिर सपने क्यों नहीं सजाता क्यूंकि ये आश्चर्य वाली बात ही थी कि भारत की मुख्य भूमि के सबसे नजदीक सिरे चेन्नई से भी तेरह सौ सत्तर किलोमीटर दूर अंडमान का भारत का हिस्सा होते हुए भी किसी हमारे लिए किसी विदेश से काम नहीं था। कैसा होगा वहां का रहन सहन और कैसी होगी वहां की दुनिया? ये भारत  के मुकाबले म्यांमार और इंडोनेशिया से ज्यादा नजदीक है। यहाँ से अंडमान की दूरी मात्र एक सौ नब्बे और डेढ़ सौ किलोमीटर की है। अंडमान का नाम दुनिया की प्रमुख रिमोट जगहों में से एक है। अंडमान के करीब तीन सौ द्धीप समूहों में से सिर्फ नौ द्धीप समूह पर्यटकों के लिए खुले हुए हैं और मुख्य घूमने वाली जगहें पोर्ट ब्लेयर तथा हैवलॉक द्धीप में ही हैं। यहाँ कई जगह जाने के लिए फारेस्ट डिपार्टमेंट से परमिट लेना पड़ता है ,और हैवलॉक से पोर्ट ब्लेयर जाने का विकल्प या तो पानी का जहाज या फिर हेलीकॉप्टर होता है। भारत की मुख्य भूमि से पोर्ट ब्लेयर सिर्फ चेन्नई और कोलकाता से नियमित विमान सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है,अगर कोई चाहे तो पानी के जहाज से भी जा सकता है पर समय बहुत ज्यादा लगेगा। ये तो था यहाँ कि भौगोलिक स्थिति एवं जाने के साधनो का मोटा अनुमान। अब शुरू करते हैं अपनी पांच दिवसीय अंडमान यात्रा की। 
                  चेन्नई से अट्ठाइस फ़रवरी को सुबह साढ़े नौ बजे की फ्लाइट होने के कारण  बंगलौर से हमारी यात्रा सत्ताईस की रात को ही प्रारम्भ हो गयी। कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था तो पहले से टिकट करा लिए थे,इसलिए बंगलौर सिटी जंक्शन से ट्रैन में बैठे या कहिये मजे से नींद निकलते हुए कब चेन्नई पहुंचे पता ही नहीं लगा। स्टैशन में उतर कर एक एक चाय पीने के बाद ओला कैब में बैठकर सीधे एयरपोर्ट को रवाना हो गए और वहीँ चेन्नई हवाई अड्डे के वातानुकूलित वातावरण  में बैठकर आराम से घर से लाया हुआ खाना निपटाया, भला हो कि हमारे यहाँ आने  के निर्णय का वरना चेन्नई की गमी,तौबा-तौबा, सुबह सुबह ही पसीने में नहा जाते।सामान चेक इन और सुरक्षा जाँच कराते कराते फ्लाइट में बैठने यानिकी बोर्डिंग का समय भी हो गया था। एक मुख्य बात बताना तो रह ही गयी अगर अंडमान जाना हो तो सभी यात्रियों को अपना पुख्ता पहचान पत्र ले जाना अति आवश्यक है। दो घंटे की इस यात्रा में लग रहा था कि समुद्र के साथ ही उड़ना है देखें कैसा दिखेता है पर कुछ दूरी तक चेन्नई के मरीना बीच ने हमारा साथ दिया और फिर वो भी आँखों  से ओझल हो गया। अब बस या तो नीला आसमान था था साथ निभाने को को या फिर बादलों की सफ़ेद चादर। इधर उधर करते हुए डेढ़ घंटा हुआ ही था कि घोषणा हुई विमान उतरने वाला है अपनी कुर्सी की पेटी बांध ले और यहाँ हम अपने मोबाइल का कैमरा खोल के तैनात हो गए क्यूंकि ये सुना था कि सफर में हुयी बोरियत को अंतिम पंद्रह मिनट में दिखने वाले दृश्य पीछे छोड़ देते हैं। सच में कमाल के दृश्य थे,पहले तो आकर्षक नीले-हरे रंग का समुद्र दिखने लगा,फिर थोड़ी देर में नीले सागर के मध्य सुन्दर से हरे-हरे छीटें दिखने लगे,ये छींटे कुछ और नहीं अंडमान के छोटे छोटे द्धीप ही हैं  और उनके चारो ओर जो सफ़ेद रेत की चादर थी उसने तो दृश्यों में चार चाँद ही लगा दिए। उतरते हुए जो नयनाभिराम दश्य हमने देखे उनका शब्दों में वर्णन कर पाना मेरे लिए तो मुश्किल ही नहीं असंभव भी है। यहीं से अंदाजा हो गया था कि क्यों लोग मुख्य भूमि से इतना दूर होने के बाद भी अंडमान  की तरफ खींचे चले आते हैं, इसका कारण कुछ और नहीं वहां का अप्रतिम सौन्दर्य ही है।कभी कभी मेरा मन ये सोचने पर मजबूर हो जाता है कि कैसे भगवान किसी जगह को इतना सुन्दर बना देता है और कैसे उसने यहाँ के समुद्री जल को इतना आकर्षक नीला रंग दिया होगा और कैसे बीच बीच में हरे हरे द्धीप समूहों को छितराया होगा। कुल मिलाकर उतरते हुए जो सुन्दर नीले और हरे रंग का समायोजन दिखा वो छटा आँखों में ऐसी बसी कि उसे यादों से निकाला नहीं जा सकता, हालांकि मैंने फोटो खींचने की बहुत कोशिश की  पर जो नजारा सामने से  दिख रहा था उसका  दस प्रतिशत भी चित्र में नहीं आ पाया। फिर भी एक दो दृश्य आप लोगों के लिए प्रस्तुत है -
नीला सागर,सफ़ेद रेट और काहिया से दिखता द्धीप 

समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ पर कौन सा रंग है। 

एक और झलक,हालाँकि चलते विमान से अच्छे चित्र नहीं आ पाये हैं। 

                   थोड़ी ही देर में विमान स्वन्त्रता सेनानी दामोदर सावरकर जी के नाम पर बने वीर सावरकर हवाई अड्डे की जमीं पर था। अगर आप किसी मेट्रो सिटी से आ रहे हैं तो हवाई अड्डे के आकार की कल्पना भी नहीं कर सकते , क्यूंकि ये इतना छोटा है कि ये समझ लीजिये बस विमान से निकले और बस  दो कदम चल कर के सीधे बाहर पहुँच गए। यानि कि बस से जाने की भी जरुरत नहीं है,हुयी ना मजेदार बात। यहाँ आने से पहले ही हमने ट्रिपएडवाईज़र की रेटिंग देखकर चौखट बेड एंड ब्रेकफास्ट  बुक कराया हुआ था, और यहाँ लोकल घूमने के लिए एक प्राइवेट टेक्सी की बात कर रखी थी।जिसके चालक राजू जी (मोबाइल संपर्क-9933264173 ) हवाई अड्डे के बाहर हमारा इन्तजार कर रहे थे,होटल नजदीक ही था तो   जल्दी से पहुंच गए।एक तस्वीर इनकी भी लगा देते हैं,क्या पता कभी किसी के काम आ जाये  -
राजू जी (मोबाइल संपर्क-9933264173 )
               राजू जी ने ना केवल एक परिवार के सदस्य की तरह हमें पोर्ट ब्लेयर घुमाया,वहीँ कई सारी जगहों के टिकट और जॉली बॉय का परमिट भी आसानी से दिलवा दिया। होटल पहुँचने के बाद वहां एक वेलकम ड्रिंक दिया गया, और यहाँ की हर्ता कर्ता(मालिक) वृंदा जी की जितनी प्रशंसा करी जाये उतनी कम है।उन्होंने बहुत ही दिमाग से आम आदमी की जरुरत  के हिसाब से एक-एक सामग्री को कमरे में उपलब्ध करा रखा  था ,चाहें वो आल आउट की मशीन हो,या एक छोटी सी कैंची या फिर बिजली से चलने वाली केटल। और तो और एक दम घर का जैसा खाना भी यहाँ उपलब्ध हो गया था।  कुल मिलाकर पुरे नंबर थे जी होटल के,अगर कभी जाना हो तो एक बार  तो जरूर सोच ले यहाँ रहने के बारे में। थोड़ा थके हुए थे इसलिए थोड़ी देर सुस्ताने के बाद ही बाहर निकलने का मन बनया।इस पोस्ट में इतना ही,अगली पोस्ट में मिलते हैं पोर्ट ब्लेयर के  दर्शनीय स्थलो की सैर  पर।
अंडमान का सफर एक नजर में -



Tuesday 14 July 2015

Brooklyn bridge,Wall Street,World Trade Center,Air and Space Museum,New York

                 पहले दिन न्यू यॉर्क में आसमान की बुलंदियों को छूने ,फिर सेंट्रल पार्क के शांतिपूर्ण वातावरण में धूप के मजे लेने के बाद,टाइम्स स्क्वायर की चमक दमक देखने के बाद, कई बड़ी हस्तियों से साक्षात्कार के बाद होटल में जा कर के जो नींद आई वो सुबह ही खुली। यहाँ के होटल्स में चाय/कॉफ़ी बनाने के लिए इलेक्ट्रिक कैटल एवं खाना गरम करने के लिए माइक्रोवेव की सुविधा उपलब्ध रहती है,तो फिर रोज की तरह चाय बनाइ और बचे हुए पिज़्ज़ा को गरम कर के हमारा ब्रेकफास्ट हो गया। आज के दिन के लिए  लक्ष्य काफी बड़ा था क्यूंकि शाम के चार बजे वाशिंगटन के लिए बस पकड़नी थी।  हमें न्यू यॉर्क की वाल स्ट्रीट,सेप्टेम्बर नाइन एलेवेन के आतंकी हमले में नष्ट हुए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर,ब्रूकलिन ब्रिज, लिबर्टी ऑफ़ स्टेचू वाली ग्रीन लेडी को देखने   सर्कुलर क्रूज़ एवं उसके पास में ही स्थित एयर एंड स्पेस म्यूजियम को देखना था। होटल से बाहर निकले तो सुबह का समय होने के कारन ठंडी हवा ने थपेड़े लगाने शुरू कर दिए, इतने खतरनाक थे कि सर में दर्द ही होने  लगा। पर घूमने का उत्साह ही इतना था कि सर दर्द अपने आप दरकिनार हो गया।यहाँ होटल से निकल कर सब वे तक पहुंचे तो पता लगा कि संडे होने के कारण टाइम टेबल परिवर्तित है, एक घंटे बाद ही जाने के लिए कुछ मिलेगा,भला हो हमारे बैक अप प्लान का जो दूसरे स्टेशन पे जाकर हमें जाने का साधन मिल गया। बस अंतर इतना हुआ कि पहले वाल स्ट्रीट की जगह ब्रूकलिन  ब्रिज पहुँच गए।अब स्टेशन से बाहर निकल के ब्रिज के काफी नजदीक तक पहुँच गए,पर ये समझ ना आया कि चढ़ना कहाँ से है,तो दो-तीन गोल चक्कर लग गए हमारे। फिर  किसी तरह पता लगा कि जहाँ से शुरू हुवे थे वहीँ से चढ़ना था, इस प्रकार से  बेकार की ही मेहनत हो गयी,पर चलो पहुँच तो गए। ब्रूकलिन ब्रिज पर चढ़ते ही एक ताजगी सी आ गयी थी एक तरफ प्रदुषण से रहित नीला आसमान, तो वहीँ दूसरी और एक सुन्दर  सा  पुल और इसके साथ में चमकीली धुप। नजरें थी कि हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। देखिये एक दृश्य-
ब्रूकलिन ब्रिज पर चल रहे साइकिल सवार 

           
         सन उन्नीस सौ तिरासी में बना ये पुल अमेरिका के सबसे पुराने एवं स्टील के तारों से बना हुआ पहला पुल है जो कि ईस्ट रिवर को पार करते हुए मैनहैटन तथा ब्रूकलिन को जोड़ता है। इस पुल को पैदल पार करने में जो आन्नद आता है उसे शब्दों में बयान करना  मुश्किल ही नहीं असंभव ही है। यहाँ पैदल के साथ साथ साइकिल से जाने की अनुमति है बस उसके अलावा कोई भारी वाहन नहीं जा सकते। जिस प्रकार हमारे देश में मंदिरो में या पेड़ों में चुनरी या घंटी बांध के मन्नत मांगते है और प्रेमी प्रेमिका कहीं भी अपने नाम लिखकर अपने प्यार का इजहार करते हैं,ठीक उसी प्रकार यहाँ भी अपने प्रेम की लम्बी उम्र मांगने के लिए एक सांस्कृतिक रिवाज है ,कि एक ताले में दोनों के नाम लिखकर के किसी पुल में लगा दो और चाबी को पानी में फैंक दो। इसलिए इस ब्रिज में भी कई सारे ताले लगे हुए थे,पहले तो समझ ही नहीं आया कि क्या कारण होगा बाद में किसी से पूछने पर ज्ञात हुआ। है न मजेदार बात,हम लोग भी सोच रहे थे कि पहले से पता होता तो एक ताला हम भी मार ही देते। देखिये कुछ दृश्य यहाँ के-
देखिये हुए छोटे छोटे ताले 
एक क्लोज अप 
पुल में लगे हुए स्टील के तार 
                             इस तरह से नीले आसमान को भेदती हुयी प्रतीत होती ऊँची ऊँची इमारतों को देखते हुए पुल कब पार हो गया पता भी न चला। इसके बाद हम लोग वाल स्ट्रीट की इमारतों को जहाँ स्टॉक एक्सचेंज का काम होता है देखने गए। वहां कुछ देर चलकदमी के बाद पेट पूजा का नंबर लगाया, तो एक जगह कॉफ़ी और फ्रेंच फ्राइज खाने के लिए रुक गए। करीबन आधे घंटे का ब्रेक हो गया था यहाँ पर। यहाँ से निकले तो सेप्टेम्बर नाइन एलेवेन में नष्ट हुए टिवंस टावर के पास पहुंचे। उस जगह पर एक स्मारक बनाया गया है, और पास ही में एक उतना बड़ा टावर उसी प्रकार से बन चुका है और दूसरा बन रहा है।हम इसे बाहर से ही देख कर वापस आ गए ,क्यूंकि न ऊपर चढने का हमारा मन था और न ही हमारे पास इतना वक्त था। इसके बाद हमारा लक्ष्य था सर्किल लाइन क्रूज़ के लिये नियत जगह पर पहुंचना,रास्ते में जा ही रहे थे तो एक गाड़ी के नीचे से बहुत सारा कला धुँआ निकलता हुआ देखा तो एक डैम से घबराहट सी होने लगी,तो सोचा किसी को रुका कर के बात करते हैं।अब न्यू यॉर्क के लोगों को रुकना भी टेडी खीर ही है ,क्यूंकि ये एक तेज मतलब भागमभाग वाला जीवन जीने की आदत के होते हैं। इनकी एक खास आदत होती है कि रोड पर जो पैदल चलने वालों के लिए नियम बने हैं,रास्ता सुरक्षित दिखने पर ये उनका पालन नहीं करते। इस तरह से चलने को जे वाकिंग (jaywalking) कहा जाता है। किसी तरह से एक व्यक्ति को थोड़ा हलकी चाल में चलता देख के रोका और बताया कि वहां धुँआ आ रहा है तो वो बोला "डोंट वरी इट्स न्यू यॉर्क,एवरीथिंग इस पॉसिबल हियर" और हम चल पड़े आगे।सर्किल लाइन क्रूज़ में जाने का मुख्य उददेश्य स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी को देखना था। अन्दर जाने के मूड में हम लोग नहीं थे इसलिए दूर से देखने के लिये क्रूज़ ही बेहतर था। ये हमें दूर से स्टेटन आइलैंड,स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी और एक और आइलैंड था जिसका नाम याददाश्त से गायब हो गया है,दूर से दिखा के लाने वाला था। नियत स्थल पर पहुंचे तो वहां काफी भीड़ लगी हुयी थी,शायद से हमारा नंबर लास्ट ही था। आगे वालों ने दुमन्जिले ओपन डेक पर जा कर के अपनी सीट जमा ली ,तो हम थोड़े से मायूस ही हो गए। अब हमारे लिए विकल्प ये बचा था या तो सीट में बैठकर पारदर्शी खिड़कियों से बाहर के दृश्य देखो या फिर या फिर पानी मंजिल में खुली जगह पर खड़े हो कर के बाहर देखो। मजे कि बात ये हुयी कि क्रूज़ चले दस मिनट भी नहीं हुए थे और सारी जनता नीचे आ गयी। जरा सोचिये कि हुआ क्या होगा। दरअसल मामला ये हुआ कि ठंडी हवा ने थप्पड़ लगाने शुरू कर दिए,ठण्ड इस कदर थी कि ऊपर खुले में बैठ पाना असंभव था। इस तरह से हमलोग अपनी मंजिल में ही कभी बाहर और कभी अन्दर करने लगे। देखते ही देखते लिबर्टी स्क्वायर दिखने लगा,और एक बड़ी सी हरे रंग की प्रतिमा दिखने लगी। अब आप कहेंगे की तांबे की बनी प्रतिमा का रंग हरा कैसे हो गया ?जी हाँ ये हुआ तांबे के सालों से हवा से टकराने के कारण। इन सब दृश्यों को देखते हुए और साथ में ठंडी हवा के थप्पड़ खाते हुए कब क्रूज़ से निकलने का समय हो गया पता ही नहीं चला। देखिए कुछ चित्र-
वाल स्ट्रीट 
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर 
क्रूज़ 
गगनचुम्बी इमारते 
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी को देखने के लिए जमा भीड़ 
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी
मैनहैटन ब्रिज 

                        



  


     

      













      क्रूज़ से बाहर निकल कर अगली मंजिल थी एयर एंड स्पेस म्यूजियम,अभी भी एक घंटा था हमारे पास कुछ देखने के लिए,और ये पास में ही था तो फटाफट हो लिए अंदर। यहाँ पर हर तरह के छोटे बड़े प्रमुख प्रकार के विमानों के मॉडल रखे हुए हैं ,कुल मिलाकर इंटरेस्टिंग जगह थी। देखिये एक दो विमान -
ये एक पानी का जहाज दूर से इसे देखकर हमने बैंगलोर में अपने नजदीक की एक ईमारत अजमेर इंफिनिटी का उपनाम दे दिया था। 




विमानों के मॉडल 
              यहाँ से निकलकर हम सीधे अपनी वाशिंगटन ले जाने वाली बस के पास पहुंचे और वहीँ पर कुछ खाने के लिए लिया। वापसी में भी बस ने वो ही चार घंटे का समय लिया और नियत समय पर हमें वाशिंगटन पहुंचा दिया। पर इन चार घंटों में बेटी ने जो कमाल दिखाया कि अगले हफ्ते के लिए दस घटे का सफर कर के जो बोस्टन जाने का प्लान बनाया था वो चौपट हो गया। इस पोस्ट में न्यू यॉर्क के साथ साथ हमारी तीन महीने की अमेरिका यात्रा का भी समापन हो गया। मिलते ही जल्द ही किसी और श्रंखला के साथ। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये।


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

Saturday 11 July 2015

Central Park,Times Square and Madam Tussauds Museum,New York

         एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग एवम टॉप ऑफ़ दी रॉक द्वारा आसमान को छूने के बाद अब बारी थी थोड़ा जमीन पर उतरने की और अपने थके हुए कदमो को थोड़ा विराम देने की। इसलिए प्लान के मुताबिक ही अगला लक्ष्य नजदीक से स्थित सेंट्रल पार्क को रखा गया । हालाँकि टॉप ऑफ़ दी रॉक से सेंट्रल पार्क का जो नजारा दिख रहा था वो उतना आकर्षक नहीं  लगा जितना अपने कल्पना लोक में बसा हुआ था , पर फिर भी  यूँही कोई जगह इतनी प्रसिद्ध नहीं होती सोच कर चल पड़े। वहां पहुँचने के बाद जरूर सेंट्रल पार्क ने हमें निराश नहीं किया।वैसे थरथराने वाली सर्दियों और कई बर्फ के तूफानों को झेलने के कारण ये अब भी अपने पूर्ण शबाब में नहीं था लेकिन फिर सात मानव निर्मित झील, छत्तीस पुलों से बने इस विशालकाय पार्क ने अपने अन्दर इतना कुछ समेटा हुआ था कि घूमने  वाला पूरा एक चक्कर भी नहीं लगा सके। यहाँ की शांति के बाद  हमें भीड़भाड़ और कोतूहल भरे टाइम्स स्क्वायर जाना था। न्यू यॉर्क जैसी भीड़भाड़ वाली जगह में सेंट्रल पार्क की शांति के बाद टाइम्स स्क्वायर की चमक दमक एक दम अचम्भे में ही डाल गयी। देखिये दो अलग अलग रंग यहाँ के-

                      सेंट्रल पार्क के शांत वातावरण में भ्रमण करना बहुत ही आनंदायक लग रहा था।

    रात के अँधेरे में चमचमाता न्यूयॉर्क,आज यहाँ आ के पता चला कि ये चौबीस घंटे चलने वाला शहर है,जो ना कभी रुकता है और ना कभी थकता है। 
                           न्यूयॉर्क जैसे भीड़भाड़ वाली जगह में सेंट्रल पार्क जैसे विशाल और शांतिपूर्ण वातावरण को देखना ही हमारे लिए आश्चर्य का विषय था। आठ सौ पचास एकड़ से ज्यादा जगह में फैले इस पार्क के पास क्या था ये बात करने से कहीं अच्छा यहीं लगता है की यहाँ क्या नहीं था। यहाँ पर पच्चीस  हजार से ज्यादा पेड़ पौधों की प्रजातियां, एक चिड़ियाघर ,सात मानव निर्मित झीलें एवं छत्तीस विभिन्न प्रकार के पुल और कई सारे  हरी घास के मैदान थे। जो क़ि इतने बड़े थे क़ि जहाँ तक नजर डाली जाये वहां तक सुन्दर धनि चुनरिया ओढ़े हुयी धरती के दर्शन हो। कई सारी विश्व प्रसिद्ध पिक्चरों का फिल्मांकन यहाँ किया गया है। पहले तो पूरे न्यूयॉर्क को ही शूटिंग लोकेशन के लिए जाना जाता है, फिर भी सेंट्रल पार्क, टाइम्स स्क्वायर, एवं एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम तो विश्व विख्यात ही हैं। इतने विशालकाय पार्क में से हमने सिर्फ तीन जगह देखने का सोचा और उतने में ही पैर थक गए -
१-बेथेस्डा फाउंन्टेन
२-बो ब्रिज
३-स्ट्रॉबेरी गार्डन
                           पर जिस रास्ते अंदर  प्रवेश किया देखने में अच्छा सा लगा और पास में ही गार्डन मिल  गया और हम थके होने के कारण वहीँ विराजमान हो गए। ये बहुत ही अच्छा हरी घास का मैदान है। कुछ देर बैठने के बाद दुबारा चलना शुरू किया  प्लान परिवर्तित हो कर के तीन से  सिर्फ दो जगह में सिमट गया बेथेस्डा फाउंन्टेन और बो ब्रिज। बेथेस्डा फाउंन्टेन, में एक विशालकाय पीतल की बनी हुयी आठ फ़ीट ऊँची एक प्रतिमा लगी हुयी है। जिसे एंजल ऑफ़ वाटर के नाम से जाना जाता है। शाहरुख खान द्वारा अभिनीत प्रसिद्ध कल हो ना हो  फिल्म की शूटिंग इस जगह पर हुयी है। जिस समय हम वहां पर पहुंचे तो वहां पर लड़की या शायद से कोई कलाकार ही हो अपने पंजे पर खड़े हो कर के बहुत ही अच्छा नृत्य कर रही थी।जिसने कुछ देर तक वहां खड़े रहने को विवश ही कर दिया था।
बेथेस्डा फाउंन्टेन

बेथेस्डा फाउंन्टेन के बाद इस सुन्दर और शांत रस्ते से चल कर हम सेंट्रल पार्क के एक हरे भरे मैदान तक पहुंचे यहाँ पर लोग जाते समय की गुनगुनी धूप  का आनंद उठा रहे थे तो हम भी उनके साथ कुछ देर बैठ लिए।   
          
हरी घास के मैदान पर बैठकर धूप का आंनद उठाना वाकई में बहुत अच्छा लगता है 
                      कुछ देर बैठने के बाद जब थके हुए पैरों को विश्राम मिल गया तो हम एक बार फिर उठ खड़े हुए आगे के सफर के लिए जिसके लिए मंजिल थी टाइम्स स्क्वायर,ब्रॉड वे होते हुए मैडम टूसाड्स म्यूज़ियम। यहाँ से टाइम्स स्क्वायर जाने के लिए हमने न्यू यॉर्क के लोकल ट्रांसपोर्ट यानि की सब वे की सेवा का लाभ उठाया। अपने नियत स्टेशन पर उतरने के बाद न्यू यॉर्क पैदल घूमना बिलकुल भी कठिन काम नहीं है,क्यूंकि ये बहुत ही सुव्यवस्थित शहर है जो कि स्ट्रीट्स और ऐवेन्यूस में बंटा हुआ है।अगर एक जगह खड़े हो और अपनी  स्ट्रीट का सही नंबर पता है तो आगे चलते हुए नम्बर गिनते जाओ ,हो ही नहीं सकता कि रास्ता भटक जाओ। इस तरह से पैदल घूमते हुए शाम या कहिये रात के समय टाइम्स स्क्वायर की चमक दमक के मजे उठाये






                      टाइम्स स्क्वायर में चमक दमक तो बहुत थी परन्तु कुछ ठण्ड एवं कुछ थके होने के कारण उसे कैमरे में उतनी अच्छी तरह कैद नहीं कर पाये, क्षमा करियेगा इस बात के लिए। इस तरह से घूमते घूमते कब हम मैडम  टुसॉड्स तक पहुँच गए पता ही नहीं लगा अब तक ठण्ड ने भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था ,इसी को मद्देनजर रखते हुए यहाँ का प्रोग्राम सबसे बाद का रखा था,जिससे की बाहर की ठण्ड में न घूमना पड़े और जिन दिनों हम गए थे तब यहाँ के खुलने का समय सुबह दस बजे से रात के दस बजे तक का था तो हम यहाँ जब बाहर ठण्ड हो रही हो तो अंदर थर्मोस्टेट के मजे लेते हुए आराम से देख सकते थे।मदाम टुसॉड्स का चमकदार बोर्ड तो दूर से अपनी छटा बिखेर रहा था -
   
              है न काफी चमकदार बोर्ड,पर एक खास बात है न्यू यॉर्क की,यहाँ पुलिस डिपार्टमेंट के बोर्ड भी काफी चमकदार होते है। छोटा सा बोर्ड है पर शायद आपको दिख तो गया ही होगा। माफ़ कीजियेगा यहां है क्या ये तो आप लोगों को बताया ही नहीं। जी हाँ ये एक वैक्स यानिकि मोम  की बनी हुयी प्रतिमाओं का एक म्यूज़ियम है जहाँ विश्व प्रसिद्ध लोगों की प्रतिमाएं बनी हुयी हैं। कई सारे भारतीय भी यहाँ मौजूद हैं,धीरे धीरे मिलवाते हैं आपको उनसभी से। जैसे ही हम म्यूज़ियम के प्रवेश द्वार पर पहुंचे तो हमारी मुलाकात लिओनार्डो डी केप्रिओ,यानिकि प्रसिध्ह टाइटैनिक फिल्म के अभिनेता से हुयी,जो कि इतने जीवंत लग रहे थे की कोई भी देखकर  थोड़ी देर तक गच्चा खा जाये कि कहीं सच में ही तो नहीं खड़े हैं।
                          उसके बाद अंदर गए तो कई सारे  लोगों से मुलाकात हुई जिनमें महात्मा गांधी, अमिताभ बच्चन जी एवं दलाई लामा थे,पर शाहरुख खान जी अपनी जगह पर नहीं थे। देखिये कैसे खड़े हैं ये लोग -
थोड़ा विचार विमर्श हो जाये। 
गांधी जी 


दलाई लामा 
                                  इन प्रतिमाओं की खास बात ये है कि सर का हर एक बाल अलग अलग कर के लगाया जाता है और लगभग एक के सर में ही दस हजार से ज्यादा बाल होते हैं। इस तरह से एक प्रतिमा के सर को पूर्ण रूप से बनने में छह हफ्ते से ज्यादा का समय लग जाता है। देखते ही देखते हमारा यहाँ से अलविदा लेने का समय भी आ गया था। बाहर निकलकर पास के एक पिज़्ज़ा हट से एक लार्ज पिज़्ज़ा ले लिया और उसे पैक करा के होटल पहुंच गए ,क्यूंकि पूरे दिन भर की मेहनत के बाद इतना थक गए कि मन कर रहा था कि किसी तरह होटल पहुँच जाये और कहीं पर थोड़ी देर बैठने को मिल जाये। आज के दिन में लगभग हम आठ किलोमीटर पैदल चले होंगे,बेटी के स्ट्रॉलर की वजह से घूमना थोड़ा आसान हो गया था,वर्ना एक दिन में इतना कुछ देख पाना असंभव ही हो जाता। जल्दी ही मिलते हैं एक नयी पोस्ट के साथ,तब तक के लिए आज्ञा दीजिये।

तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

Friday 3 July 2015

Height Of Sky,Empire State of building and Top of The Rock

                      सबसे पहले स्मारकों और संग्रहालयों के शहर वाशिंगटन, उसके बाद थीम पार्क की दुनिया ऑरलैंडो के बाद अब बारी थी आधुनिकता के रंग में रंगे चमक दमक वाले लेकिन पुराने शहर न्यू यॉर्क की। हम भारत से आते समय ये सोच के आये थे कि तीन महीने के अंतराल में सबसे अधिक ठण्ड के समय पर किसी  जायेंगे जहाँ थोड़ा सूर्य देवता के दर्शन हो सके और इन्ही दिनों में जब कभी भी धूप के दर्शन हो तो वाशिंगटन घूम लेंगे।ऐसा करते करते अप्रैल का महीना प्रारम्भ हो गया था जिसे अमेरिका में स्प्रिंग की शुरुवात माना जाता था ,हालाँकि ठण्ड तब भी बरकरार थी पर बर्फीले तूफानो का आना बंद हो गया था। हमारे पास उपलब्ध समय में से ये न्यू यॉर्क जाने के लिए हर तरह से उपयुक्त था।अब सबसे बड़ी जद्दोजहद एक बार फिर से टिकट एवं होटल बुक करने की थी।अबकी बार हमने बोल्ट बस द्वारा ५ अप्रैल २०१४ की सुबह को जाने की एवं ६ अप्रैल २०१४ की शाम को वापसी की टिकट  बुक करा ली,लेकिन होटल के लिए  बहुत सोचना था,अगर न्यू यॉर्क सही से घूमना हो और वहां की लाइफ का अनुभव करना हो तो टाइम्स स्क्वायर रात को घूमना अति आवश्यक है।उसके लिए होटल भी टाइम्स स्क्वायर के आस पास होना जरुरी है, और न्यू यॉर्क जैसे महंगे शहर में मुख्य जगह पर रहना और भी मुश्किल।किसी तरह से डील वगेरह लगा के होटवायर नामक वेबसाइट की सहायता से होटल वॉरविक बुक हो गया।बुकिंग के बाद का प्रमुख काम था आइटेनरी बनाने का, क्यूंकि  न्यू यॉर्क घूमने के लिए इतना कुछ है कि एक वीकेंड में कवर कर पाना बहुत मश्किल है और हम ज्यादा से ज्यादा देखना चाहते थे। इसलिए कड़ी मेहनत के बाद एक प्लान बनाया जिसमे कम समय में ज्यादा कैसे देखा जाये ये निश्कर्ष निकाला गया। देखिये किस तरह से हमने दो दिन में न्यू यॉर्क   में ज्यादा से ज्यादा जगहों को देखा-

                           सुबह साढ़े छह बजे की बस पकड़ने के लिए हम होटल से साढ़े पांच बजे  टेक्सी लेकर बस के नियत समय से आधा घंटा पहले  यूनियन स्टेशन पहुंच गए। यहाँ और भारत के बस बुकिंग में एक अन्तर देखने को मिला जो कि ये था जब हम अपने वहां इंटरनेट द्वारा टिकट बुक कराते हैं तो सीट का चयन भी अपने हिसाब कर सकते हैं किन्तु यहाँ लाइन लगा कर खड़े होना पड़ता है और जो सीट बाकी हो उस पे बैठना आपकी मजबूरी है।अपना नंबर की इंतजारी के बाद एक सहयात्री की कृपा से हम दोनों को भी साथ में  सीट मिल ही गयी। बस ड्राइवर ने काफी अच्छा चलाया ,एक जगह चाय/नाश्ते के लिए रुकने के बाद भी साढ़े चार घंटे की यात्रा चार घंटे में पूरी करा दी। यहाँ पहुँच कर बस अथोरिटी टर्मिनल से हमने न्यू यॉर्क पास और बस के पास ले लिए। न्यू यॉर्क पास की कीमत प्रति व्यक्ति एक सौ दस डॉलर थी, पर इसे लेना बहुत फायदे का सौदा था क्यूंकि इसे लेने से एक तो हम कई जगह टिकट लेने के लिए लगने वाली लम्बी लाइन से बच गए और अलग अलग टिकट लेने पर यहाँ के मुख्य आकर्षण एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग, टॉप ऑफ़ दी रॉक एवं मैडम टूसाड्स म्यूज़ियम के  टिकट की कीमत ही इससे ज्यादा पड रही थी, तो भलाई इसी मे थी कि न्यू यॉर्क के अस्सी आकर्षणों का पास ले लिया जाय और जितना अच्छे से देख पाएं उतना देख लें,एवं अगर इसे पहले से ऑनलाइन बुक करा के लिया जाये तो थोड़ा सस्ता भी पद जाता है ,वहीँ पर जा के लेने पे महंगा पड़ता है। पास लेने तक काफी टाइम हो गया और पेट में चूहे भी दौड़ने लगे तो सामने दिख कर एक सबवे नामक रेस्तरां में बैठ गए और एक छोटे से फ्लेटिज़ा के दस डॉलर धरा लिए गए वहां और पेट भी नहीं भरा सही से। चलो फिर भी पेट में इतना तो चला ही गया था कि आगे कदम बढ़ाये जा सकें। इतना सब होने तक हम अपने प्लान के मुकाबले लेट हो गए थे, तो सोचा कि ब्रायंट पार्क को रस्ते चलते दूर से देख लेते हैं और सीधे एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग की ओर को ही रुख करते हैं।क्यूंकि सामान्य ज्ञान की पुस्तकों से मिले ज्ञान ने हमारे मस्तिष्क में विश्व की सबसे ऊँची ईमारत की तस्वीर बना रखी थी, इसलिए हमारे लिए न्यू यॉर्क का मुख्य आकर्षण ये एक सौ छह मंजिली ईमारत ही थी,हालाँकि जब हम इसमें चढ़े तब तक इससे और भी ऊँची इमारते बन चुकी थी। दूर से ही ये बहुमंजिली ईमारत दिखने लगी थी। पर जब हम नजदीक पहुंचे तो सभी इमारते एक सी ही लगने लगी और लोगों से पूछना पड़ा कि कहाँ पर और कैसे जाना है।साथ में एक छोटा सा पिट्ठू बैग होने के कारण हमें यहाँ तक पहुँचने में कोई मुश्किल नहीं हुई ,पर असली परीक्षा अब शुरू होनी थी जब जब अत्यधिक लम्बी लाइन में खड़े होना था। ये अब तक की सबसे बड़ी प्रतीक्षा लाइन थी हमारे लिए,इसके आगे तो भारत में राशन के लिए लगने वाली लाइन भी पानी भर जाये,पर आज ऊंचाई से खड़े होकर दृश्य देखने का उत्साह इतना था कि बातों बातों में ही कब लाइन ख़त्म हो गयी ये पता ही नहीं चला।लाइन में लगे हुए ही हमें पता चला कि अगर प्रति व्यक्ति सोलह डॉलर और खर्च किया जाये तो एक सौ तींनवीं मंजिल तक जा सकते हैं। पहले तो सोलह डॉलर देख के ही मन नहीं हो रहा था ऊपर तक जाने का हमारे लिए छियांसीवीं मंजिल ही बहूत थी ,कम से कम ये तो होगा कि एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग में चढ़े हैं,और हमने ये भी सुन रखा था कि दोने से लगभग एक सा ही दृश्य दिखता है। इतनी देर तक हम सुरक्षा जाँच वगेरह करा चुके थे अस्सीवें मंजिल तक ले जाने वाली एक्सप्रेस लिफ्ट के बाहर पहुँच गए थे। आज तक इसके बारे कुछ देर इंतजारी के बाद लिफ्ट में नम्बर आ गया। आज तक एक्सप्रेस लिफ्ट के बारे में सिर्फ सुना था ,आज जान भी लिया कि ये है क्या। शुरू में लिफ्ट की स्क्रीन में एक दो तीन कर के दस मंजिल तक दिखा और उसके बाद साठ गिनने तक हम अस्सीवीं मंजिल पर थे। अब यहाँ से जाने के लिए भी या तो पांच मंजिल चढ़ने के लिए लिफ्ट में अपना नंबर आने तक का इन्तजार करने के लिए एक बार फिर से राशन की लाइन में लग्न था या फिर अपनी दो पहिया गाड़ी का इस्तेमाल कर के पांच मंजिल तक की सीढियाँ फटाफट चढ़नी थी।हम अब और इन्तजार के मूड में नहीं थे इसलिए चल पड़े पैदल और पहुँच गए छियासीवीं मंजिल पर पहुँच गए। यहाँ से ऑब्जरवेशन डेक पर पहुंचे तो बाहर देखना तो बाद की बात थी   उसके पहले ठंडी हवा ने जो थप्पड़ लगाये उनसे सम्भालना पड़ा। थोड़ा समय वातावरण के साथ सहज होने के बाद ही इधर उधर नजरें डाल पाये।देखिये कैसी दिखती है ये ईमारत और क्या दिखता है यहाँ से -
दूर से दिखती एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग
घुमावदार लाइन जिसमे बड़ी बड़ी पांच लाइन है


मॉडल ऑफ़ एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग


ऑब्जरवेशन डेक से दिखाई देता न्यू यॉर्क 


ये छोटी दिखने वाली  इमारतें बहुमंजिली हैं। 
                                  यहाँ से बाहर आने के बाद हमलोग ब्रॉडवे होते हुए टाइम्स स्क्वायर होते हुए होटल पहुंचे। चेक इन की औपचारिकता के बाद कुछ देर आराम किया और एक बार फिर टॉप ऑफ़ द रॉक के लिए निकल पड़े। ये भी एक सत्तर मंजिली ईमारत थी ,जिसके अढ़सठवें मजिल पर बने ऑब्जरवेशन डेक से दो एक दम अलग तरह के द्रश्य दिखाई देते हैं।यहाँ से एक तरफ सेंट्रल पार्क तथा दूसरी तरफ एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग दिखाई देती है। इस जगह को य रॉक फिलर प्लाजा के नाम से  जाता ऐ। यहाँ एक रेडियो स्टेशन एवं स्केटिंग रिंग भी है। इस रिंग की सबसे  खासियत ये है कि इसके चारों ओर सभी देशों के झंडे लगे हुए हैं।एक नजर डालिये यहाँ पर भी -
टॉप ऑफ़ डी रॉक 

टॉप ऑफ़ डी रॉक से दिखाई देती एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग 
सेंट्रल पार्क 
स्केटिंग रिंग 
हवा में लहराते सभी देशों के झंडो के साथ  भारत का भी झंडा था,पर ये सिंथेटिक कपडे का बना लग रहा था 
                           ये तो थी न्यू यॉर्क की मुख्य बहुमंजिली इमारते ,अगली पोस्ट में मिलते हैं यहाँ की चमक दमक के साथ। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये और बहुमूल्य टिप्पणी द्वारा अपने विचारों से अवगत कराएं।    


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-