एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग एवम टॉप ऑफ़ दी रॉक द्वारा आसमान को छूने के बाद अब बारी थी थोड़ा जमीन पर उतरने की और अपने थके हुए कदमो को थोड़ा विराम देने की। इसलिए प्लान के मुताबिक ही अगला लक्ष्य नजदीक से स्थित सेंट्रल पार्क को रखा गया । हालाँकि टॉप ऑफ़ दी रॉक से सेंट्रल पार्क का जो नजारा दिख रहा था वो उतना आकर्षक नहीं लगा जितना अपने कल्पना लोक में बसा हुआ था , पर फिर भी यूँही कोई जगह इतनी प्रसिद्ध नहीं होती सोच कर चल पड़े। वहां पहुँचने के बाद जरूर सेंट्रल पार्क ने हमें निराश नहीं किया।वैसे थरथराने वाली सर्दियों और कई बर्फ के तूफानों को झेलने के कारण ये अब भी अपने पूर्ण शबाब में नहीं था लेकिन फिर सात मानव निर्मित झील, छत्तीस पुलों से बने इस विशालकाय पार्क ने अपने अन्दर इतना कुछ समेटा हुआ था कि घूमने वाला पूरा एक चक्कर भी नहीं लगा सके। यहाँ की शांति के बाद हमें भीड़भाड़ और कोतूहल भरे टाइम्स स्क्वायर जाना था। न्यू यॉर्क जैसी भीड़भाड़ वाली जगह में सेंट्रल पार्क की शांति के बाद टाइम्स स्क्वायर की चमक दमक एक दम अचम्भे में ही डाल गयी। देखिये दो अलग अलग रंग यहाँ के-
सेंट्रल पार्क के शांत वातावरण में भ्रमण करना बहुत ही आनंदायक लग रहा था।
रात के अँधेरे में चमचमाता न्यूयॉर्क,आज यहाँ आ के पता चला कि ये चौबीस घंटे चलने वाला शहर है,जो ना कभी रुकता है और ना कभी थकता है।
न्यूयॉर्क जैसे भीड़भाड़ वाली जगह में सेंट्रल पार्क जैसे विशाल और शांतिपूर्ण वातावरण को देखना ही हमारे लिए आश्चर्य का विषय था। आठ सौ पचास एकड़ से ज्यादा जगह में फैले इस पार्क के पास क्या था ये बात करने से कहीं अच्छा यहीं लगता है की यहाँ क्या नहीं था। यहाँ पर पच्चीस हजार से ज्यादा पेड़ पौधों की प्रजातियां, एक चिड़ियाघर ,सात मानव निर्मित झीलें एवं छत्तीस विभिन्न प्रकार के पुल और कई सारे हरी घास के मैदान थे। जो क़ि इतने बड़े थे क़ि जहाँ तक नजर डाली जाये वहां तक सुन्दर धनि चुनरिया ओढ़े हुयी धरती के दर्शन हो। कई सारी विश्व प्रसिद्ध पिक्चरों का फिल्मांकन यहाँ किया गया है। पहले तो पूरे न्यूयॉर्क को ही शूटिंग लोकेशन के लिए जाना जाता है, फिर भी सेंट्रल पार्क, टाइम्स स्क्वायर, एवं एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम तो विश्व विख्यात ही हैं। इतने विशालकाय पार्क में से हमने सिर्फ तीन जगह देखने का सोचा और उतने में ही पैर थक गए -
१-बेथेस्डा फाउंन्टेन
२-बो ब्रिज
३-स्ट्रॉबेरी गार्डन
पर जिस रास्ते अंदर प्रवेश किया देखने में अच्छा सा लगा और पास में ही गार्डन मिल गया और हम थके होने के कारण वहीँ विराजमान हो गए। ये बहुत ही अच्छा हरी घास का मैदान है। कुछ देर बैठने के बाद दुबारा चलना शुरू किया प्लान परिवर्तित हो कर के तीन से सिर्फ दो जगह में सिमट गया बेथेस्डा फाउंन्टेन और बो ब्रिज। बेथेस्डा फाउंन्टेन, में एक विशालकाय पीतल की बनी हुयी आठ फ़ीट ऊँची एक प्रतिमा लगी हुयी है। जिसे एंजल ऑफ़ वाटर के नाम से जाना जाता है। शाहरुख खान द्वारा अभिनीत प्रसिद्ध कल हो ना हो फिल्म की शूटिंग इस जगह पर हुयी है। जिस समय हम वहां पर पहुंचे तो वहां पर लड़की या शायद से कोई कलाकार ही हो अपने पंजे पर खड़े हो कर के बहुत ही अच्छा नृत्य कर रही थी।जिसने कुछ देर तक वहां खड़े रहने को विवश ही कर दिया था।
कुछ देर बैठने के बाद जब थके हुए पैरों को विश्राम मिल गया तो हम एक बार फिर उठ खड़े हुए आगे के सफर के लिए जिसके लिए मंजिल थी टाइम्स स्क्वायर,ब्रॉड वे होते हुए मैडम टूसाड्स म्यूज़ियम। यहाँ से टाइम्स स्क्वायर जाने के लिए हमने न्यू यॉर्क के लोकल ट्रांसपोर्ट यानि की सब वे की सेवा का लाभ उठाया। अपने नियत स्टेशन पर उतरने के बाद न्यू यॉर्क पैदल घूमना बिलकुल भी कठिन काम नहीं है,क्यूंकि ये बहुत ही सुव्यवस्थित शहर है जो कि स्ट्रीट्स और ऐवेन्यूस में बंटा हुआ है।अगर एक जगह खड़े हो और अपनी स्ट्रीट का सही नंबर पता है तो आगे चलते हुए नम्बर गिनते जाओ ,हो ही नहीं सकता कि रास्ता भटक जाओ। इस तरह से पैदल घूमते हुए शाम या कहिये रात के समय टाइम्स स्क्वायर की चमक दमक के मजे उठाये
टाइम्स स्क्वायर में चमक दमक तो बहुत थी परन्तु कुछ ठण्ड एवं कुछ थके होने के कारण उसे कैमरे में उतनी अच्छी तरह कैद नहीं कर पाये, क्षमा करियेगा इस बात के लिए। इस तरह से घूमते घूमते कब हम मैडम टुसॉड्स तक पहुँच गए पता ही नहीं लगा अब तक ठण्ड ने भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था ,इसी को मद्देनजर रखते हुए यहाँ का प्रोग्राम सबसे बाद का रखा था,जिससे की बाहर की ठण्ड में न घूमना पड़े और जिन दिनों हम गए थे तब यहाँ के खुलने का समय सुबह दस बजे से रात के दस बजे तक का था तो हम यहाँ जब बाहर ठण्ड हो रही हो तो अंदर थर्मोस्टेट के मजे लेते हुए आराम से देख सकते थे।मदाम टुसॉड्स का चमकदार बोर्ड तो दूर से अपनी छटा बिखेर रहा था -
है न काफी चमकदार बोर्ड,पर एक खास बात है न्यू यॉर्क की,यहाँ पुलिस डिपार्टमेंट के बोर्ड भी काफी चमकदार होते है। छोटा सा बोर्ड है पर शायद आपको दिख तो गया ही होगा। माफ़ कीजियेगा यहां है क्या ये तो आप लोगों को बताया ही नहीं। जी हाँ ये एक वैक्स यानिकि मोम की बनी हुयी प्रतिमाओं का एक म्यूज़ियम है जहाँ विश्व प्रसिद्ध लोगों की प्रतिमाएं बनी हुयी हैं। कई सारे भारतीय भी यहाँ मौजूद हैं,धीरे धीरे मिलवाते हैं आपको उनसभी से। जैसे ही हम म्यूज़ियम के प्रवेश द्वार पर पहुंचे तो हमारी मुलाकात लिओनार्डो डी केप्रिओ,यानिकि प्रसिध्ह टाइटैनिक फिल्म के अभिनेता से हुयी,जो कि इतने जीवंत लग रहे थे की कोई भी देखकर थोड़ी देर तक गच्चा खा जाये कि कहीं सच में ही तो नहीं खड़े हैं।
उसके बाद अंदर गए तो कई सारे लोगों से मुलाकात हुई जिनमें महात्मा गांधी, अमिताभ बच्चन जी एवं दलाई लामा थे,पर शाहरुख खान जी अपनी जगह पर नहीं थे। देखिये कैसे खड़े हैं ये लोग -
इन प्रतिमाओं की खास बात ये है कि सर का हर एक बाल अलग अलग कर के लगाया जाता है और लगभग एक के सर में ही दस हजार से ज्यादा बाल होते हैं। इस तरह से एक प्रतिमा के सर को पूर्ण रूप से बनने में छह हफ्ते से ज्यादा का समय लग जाता है। देखते ही देखते हमारा यहाँ से अलविदा लेने का समय भी आ गया था। बाहर निकलकर पास के एक पिज़्ज़ा हट से एक लार्ज पिज़्ज़ा ले लिया और उसे पैक करा के होटल पहुंच गए ,क्यूंकि पूरे दिन भर की मेहनत के बाद इतना थक गए कि मन कर रहा था कि किसी तरह होटल पहुँच जाये और कहीं पर थोड़ी देर बैठने को मिल जाये। आज के दिन में लगभग हम आठ किलोमीटर पैदल चले होंगे,बेटी के स्ट्रॉलर की वजह से घूमना थोड़ा आसान हो गया था,वर्ना एक दिन में इतना कुछ देख पाना असंभव ही हो जाता। जल्दी ही मिलते हैं एक नयी पोस्ट के साथ,तब तक के लिए आज्ञा दीजिये।
सेंट्रल पार्क के शांत वातावरण में भ्रमण करना बहुत ही आनंदायक लग रहा था।
रात के अँधेरे में चमचमाता न्यूयॉर्क,आज यहाँ आ के पता चला कि ये चौबीस घंटे चलने वाला शहर है,जो ना कभी रुकता है और ना कभी थकता है।
न्यूयॉर्क जैसे भीड़भाड़ वाली जगह में सेंट्रल पार्क जैसे विशाल और शांतिपूर्ण वातावरण को देखना ही हमारे लिए आश्चर्य का विषय था। आठ सौ पचास एकड़ से ज्यादा जगह में फैले इस पार्क के पास क्या था ये बात करने से कहीं अच्छा यहीं लगता है की यहाँ क्या नहीं था। यहाँ पर पच्चीस हजार से ज्यादा पेड़ पौधों की प्रजातियां, एक चिड़ियाघर ,सात मानव निर्मित झीलें एवं छत्तीस विभिन्न प्रकार के पुल और कई सारे हरी घास के मैदान थे। जो क़ि इतने बड़े थे क़ि जहाँ तक नजर डाली जाये वहां तक सुन्दर धनि चुनरिया ओढ़े हुयी धरती के दर्शन हो। कई सारी विश्व प्रसिद्ध पिक्चरों का फिल्मांकन यहाँ किया गया है। पहले तो पूरे न्यूयॉर्क को ही शूटिंग लोकेशन के लिए जाना जाता है, फिर भी सेंट्रल पार्क, टाइम्स स्क्वायर, एवं एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम तो विश्व विख्यात ही हैं। इतने विशालकाय पार्क में से हमने सिर्फ तीन जगह देखने का सोचा और उतने में ही पैर थक गए -
१-बेथेस्डा फाउंन्टेन
२-बो ब्रिज
३-स्ट्रॉबेरी गार्डन
पर जिस रास्ते अंदर प्रवेश किया देखने में अच्छा सा लगा और पास में ही गार्डन मिल गया और हम थके होने के कारण वहीँ विराजमान हो गए। ये बहुत ही अच्छा हरी घास का मैदान है। कुछ देर बैठने के बाद दुबारा चलना शुरू किया प्लान परिवर्तित हो कर के तीन से सिर्फ दो जगह में सिमट गया बेथेस्डा फाउंन्टेन और बो ब्रिज। बेथेस्डा फाउंन्टेन, में एक विशालकाय पीतल की बनी हुयी आठ फ़ीट ऊँची एक प्रतिमा लगी हुयी है। जिसे एंजल ऑफ़ वाटर के नाम से जाना जाता है। शाहरुख खान द्वारा अभिनीत प्रसिद्ध कल हो ना हो फिल्म की शूटिंग इस जगह पर हुयी है। जिस समय हम वहां पर पहुंचे तो वहां पर लड़की या शायद से कोई कलाकार ही हो अपने पंजे पर खड़े हो कर के बहुत ही अच्छा नृत्य कर रही थी।जिसने कुछ देर तक वहां खड़े रहने को विवश ही कर दिया था।
बेथेस्डा फाउंन्टेन |
बेथेस्डा फाउंन्टेन के बाद इस सुन्दर और शांत रस्ते से चल कर हम सेंट्रल पार्क के एक हरे भरे मैदान तक पहुंचे यहाँ पर लोग जाते समय की गुनगुनी धूप का आनंद उठा रहे थे तो हम भी उनके साथ कुछ देर बैठ लिए।
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हरी घास के मैदान पर बैठकर धूप का आंनद उठाना वाकई में बहुत अच्छा लगता है |
है न काफी चमकदार बोर्ड,पर एक खास बात है न्यू यॉर्क की,यहाँ पुलिस डिपार्टमेंट के बोर्ड भी काफी चमकदार होते है। छोटा सा बोर्ड है पर शायद आपको दिख तो गया ही होगा। माफ़ कीजियेगा यहां है क्या ये तो आप लोगों को बताया ही नहीं। जी हाँ ये एक वैक्स यानिकि मोम की बनी हुयी प्रतिमाओं का एक म्यूज़ियम है जहाँ विश्व प्रसिद्ध लोगों की प्रतिमाएं बनी हुयी हैं। कई सारे भारतीय भी यहाँ मौजूद हैं,धीरे धीरे मिलवाते हैं आपको उनसभी से। जैसे ही हम म्यूज़ियम के प्रवेश द्वार पर पहुंचे तो हमारी मुलाकात लिओनार्डो डी केप्रिओ,यानिकि प्रसिध्ह टाइटैनिक फिल्म के अभिनेता से हुयी,जो कि इतने जीवंत लग रहे थे की कोई भी देखकर थोड़ी देर तक गच्चा खा जाये कि कहीं सच में ही तो नहीं खड़े हैं।
उसके बाद अंदर गए तो कई सारे लोगों से मुलाकात हुई जिनमें महात्मा गांधी, अमिताभ बच्चन जी एवं दलाई लामा थे,पर शाहरुख खान जी अपनी जगह पर नहीं थे। देखिये कैसे खड़े हैं ये लोग -
थोड़ा विचार विमर्श हो जाये। |
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गांधी जी |
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दलाई लामा |
तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-
बहुत बढिया पोस्ट एवं ब्लाॅग। साथ ही मोबाईल फ्रेंडली भी है।
ReplyDeleteThe Central Park walk is so fabulous. Makes me want to go there right now. I wish we had such peaceful long walks here in Mumbai as well.
ReplyDeleteयूँ ही नही लोग अमेरिका की तरफ खिचे चले आते हैं !! फाउंटेन बहुत ही सुन्दर लग रहा है और वहां साफ़ सुथरा शांत माहौल देखकर मन होता है काश एक बार तो वहा जा सकते !! आपने सुन्दर चित्रों के साथ जो जानकारी लिखी है वो भी बहुत काम की है। मूर्तियों को बनाने , उनके बालों के विषय में अध्भुत जानकारी मिली ! शानदार पोस्ट लिखी है आपने हर्षिता जी !!
ReplyDeleteबढ़िया यात्रा संस्मरण और लाजवाब कमरे का इस्तेमाल ...
ReplyDeleteमजा आया पढ़ कर ...
लाजवाब प्रस्तुतिकरण
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