Tuesday 14 July 2015

Brooklyn bridge,Wall Street,World Trade Center,Air and Space Museum,New York

                 पहले दिन न्यू यॉर्क में आसमान की बुलंदियों को छूने ,फिर सेंट्रल पार्क के शांतिपूर्ण वातावरण में धूप के मजे लेने के बाद,टाइम्स स्क्वायर की चमक दमक देखने के बाद, कई बड़ी हस्तियों से साक्षात्कार के बाद होटल में जा कर के जो नींद आई वो सुबह ही खुली। यहाँ के होटल्स में चाय/कॉफ़ी बनाने के लिए इलेक्ट्रिक कैटल एवं खाना गरम करने के लिए माइक्रोवेव की सुविधा उपलब्ध रहती है,तो फिर रोज की तरह चाय बनाइ और बचे हुए पिज़्ज़ा को गरम कर के हमारा ब्रेकफास्ट हो गया। आज के दिन के लिए  लक्ष्य काफी बड़ा था क्यूंकि शाम के चार बजे वाशिंगटन के लिए बस पकड़नी थी।  हमें न्यू यॉर्क की वाल स्ट्रीट,सेप्टेम्बर नाइन एलेवेन के आतंकी हमले में नष्ट हुए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर,ब्रूकलिन ब्रिज, लिबर्टी ऑफ़ स्टेचू वाली ग्रीन लेडी को देखने   सर्कुलर क्रूज़ एवं उसके पास में ही स्थित एयर एंड स्पेस म्यूजियम को देखना था। होटल से बाहर निकले तो सुबह का समय होने के कारन ठंडी हवा ने थपेड़े लगाने शुरू कर दिए, इतने खतरनाक थे कि सर में दर्द ही होने  लगा। पर घूमने का उत्साह ही इतना था कि सर दर्द अपने आप दरकिनार हो गया।यहाँ होटल से निकल कर सब वे तक पहुंचे तो पता लगा कि संडे होने के कारण टाइम टेबल परिवर्तित है, एक घंटे बाद ही जाने के लिए कुछ मिलेगा,भला हो हमारे बैक अप प्लान का जो दूसरे स्टेशन पे जाकर हमें जाने का साधन मिल गया। बस अंतर इतना हुआ कि पहले वाल स्ट्रीट की जगह ब्रूकलिन  ब्रिज पहुँच गए।अब स्टेशन से बाहर निकल के ब्रिज के काफी नजदीक तक पहुँच गए,पर ये समझ ना आया कि चढ़ना कहाँ से है,तो दो-तीन गोल चक्कर लग गए हमारे। फिर  किसी तरह पता लगा कि जहाँ से शुरू हुवे थे वहीँ से चढ़ना था, इस प्रकार से  बेकार की ही मेहनत हो गयी,पर चलो पहुँच तो गए। ब्रूकलिन ब्रिज पर चढ़ते ही एक ताजगी सी आ गयी थी एक तरफ प्रदुषण से रहित नीला आसमान, तो वहीँ दूसरी और एक सुन्दर  सा  पुल और इसके साथ में चमकीली धुप। नजरें थी कि हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। देखिये एक दृश्य-
ब्रूकलिन ब्रिज पर चल रहे साइकिल सवार 

           
         सन उन्नीस सौ तिरासी में बना ये पुल अमेरिका के सबसे पुराने एवं स्टील के तारों से बना हुआ पहला पुल है जो कि ईस्ट रिवर को पार करते हुए मैनहैटन तथा ब्रूकलिन को जोड़ता है। इस पुल को पैदल पार करने में जो आन्नद आता है उसे शब्दों में बयान करना  मुश्किल ही नहीं असंभव ही है। यहाँ पैदल के साथ साथ साइकिल से जाने की अनुमति है बस उसके अलावा कोई भारी वाहन नहीं जा सकते। जिस प्रकार हमारे देश में मंदिरो में या पेड़ों में चुनरी या घंटी बांध के मन्नत मांगते है और प्रेमी प्रेमिका कहीं भी अपने नाम लिखकर अपने प्यार का इजहार करते हैं,ठीक उसी प्रकार यहाँ भी अपने प्रेम की लम्बी उम्र मांगने के लिए एक सांस्कृतिक रिवाज है ,कि एक ताले में दोनों के नाम लिखकर के किसी पुल में लगा दो और चाबी को पानी में फैंक दो। इसलिए इस ब्रिज में भी कई सारे ताले लगे हुए थे,पहले तो समझ ही नहीं आया कि क्या कारण होगा बाद में किसी से पूछने पर ज्ञात हुआ। है न मजेदार बात,हम लोग भी सोच रहे थे कि पहले से पता होता तो एक ताला हम भी मार ही देते। देखिये कुछ दृश्य यहाँ के-
देखिये हुए छोटे छोटे ताले 
एक क्लोज अप 
पुल में लगे हुए स्टील के तार 
                             इस तरह से नीले आसमान को भेदती हुयी प्रतीत होती ऊँची ऊँची इमारतों को देखते हुए पुल कब पार हो गया पता भी न चला। इसके बाद हम लोग वाल स्ट्रीट की इमारतों को जहाँ स्टॉक एक्सचेंज का काम होता है देखने गए। वहां कुछ देर चलकदमी के बाद पेट पूजा का नंबर लगाया, तो एक जगह कॉफ़ी और फ्रेंच फ्राइज खाने के लिए रुक गए। करीबन आधे घंटे का ब्रेक हो गया था यहाँ पर। यहाँ से निकले तो सेप्टेम्बर नाइन एलेवेन में नष्ट हुए टिवंस टावर के पास पहुंचे। उस जगह पर एक स्मारक बनाया गया है, और पास ही में एक उतना बड़ा टावर उसी प्रकार से बन चुका है और दूसरा बन रहा है।हम इसे बाहर से ही देख कर वापस आ गए ,क्यूंकि न ऊपर चढने का हमारा मन था और न ही हमारे पास इतना वक्त था। इसके बाद हमारा लक्ष्य था सर्किल लाइन क्रूज़ के लिये नियत जगह पर पहुंचना,रास्ते में जा ही रहे थे तो एक गाड़ी के नीचे से बहुत सारा कला धुँआ निकलता हुआ देखा तो एक डैम से घबराहट सी होने लगी,तो सोचा किसी को रुका कर के बात करते हैं।अब न्यू यॉर्क के लोगों को रुकना भी टेडी खीर ही है ,क्यूंकि ये एक तेज मतलब भागमभाग वाला जीवन जीने की आदत के होते हैं। इनकी एक खास आदत होती है कि रोड पर जो पैदल चलने वालों के लिए नियम बने हैं,रास्ता सुरक्षित दिखने पर ये उनका पालन नहीं करते। इस तरह से चलने को जे वाकिंग (jaywalking) कहा जाता है। किसी तरह से एक व्यक्ति को थोड़ा हलकी चाल में चलता देख के रोका और बताया कि वहां धुँआ आ रहा है तो वो बोला "डोंट वरी इट्स न्यू यॉर्क,एवरीथिंग इस पॉसिबल हियर" और हम चल पड़े आगे।सर्किल लाइन क्रूज़ में जाने का मुख्य उददेश्य स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी को देखना था। अन्दर जाने के मूड में हम लोग नहीं थे इसलिए दूर से देखने के लिये क्रूज़ ही बेहतर था। ये हमें दूर से स्टेटन आइलैंड,स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी और एक और आइलैंड था जिसका नाम याददाश्त से गायब हो गया है,दूर से दिखा के लाने वाला था। नियत स्थल पर पहुंचे तो वहां काफी भीड़ लगी हुयी थी,शायद से हमारा नंबर लास्ट ही था। आगे वालों ने दुमन्जिले ओपन डेक पर जा कर के अपनी सीट जमा ली ,तो हम थोड़े से मायूस ही हो गए। अब हमारे लिए विकल्प ये बचा था या तो सीट में बैठकर पारदर्शी खिड़कियों से बाहर के दृश्य देखो या फिर या फिर पानी मंजिल में खुली जगह पर खड़े हो कर के बाहर देखो। मजे कि बात ये हुयी कि क्रूज़ चले दस मिनट भी नहीं हुए थे और सारी जनता नीचे आ गयी। जरा सोचिये कि हुआ क्या होगा। दरअसल मामला ये हुआ कि ठंडी हवा ने थप्पड़ लगाने शुरू कर दिए,ठण्ड इस कदर थी कि ऊपर खुले में बैठ पाना असंभव था। इस तरह से हमलोग अपनी मंजिल में ही कभी बाहर और कभी अन्दर करने लगे। देखते ही देखते लिबर्टी स्क्वायर दिखने लगा,और एक बड़ी सी हरे रंग की प्रतिमा दिखने लगी। अब आप कहेंगे की तांबे की बनी प्रतिमा का रंग हरा कैसे हो गया ?जी हाँ ये हुआ तांबे के सालों से हवा से टकराने के कारण। इन सब दृश्यों को देखते हुए और साथ में ठंडी हवा के थप्पड़ खाते हुए कब क्रूज़ से निकलने का समय हो गया पता ही नहीं चला। देखिए कुछ चित्र-
वाल स्ट्रीट 
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर 
क्रूज़ 
गगनचुम्बी इमारते 
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी को देखने के लिए जमा भीड़ 
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी
मैनहैटन ब्रिज 

                        



  


     

      













      क्रूज़ से बाहर निकल कर अगली मंजिल थी एयर एंड स्पेस म्यूजियम,अभी भी एक घंटा था हमारे पास कुछ देखने के लिए,और ये पास में ही था तो फटाफट हो लिए अंदर। यहाँ पर हर तरह के छोटे बड़े प्रमुख प्रकार के विमानों के मॉडल रखे हुए हैं ,कुल मिलाकर इंटरेस्टिंग जगह थी। देखिये एक दो विमान -
ये एक पानी का जहाज दूर से इसे देखकर हमने बैंगलोर में अपने नजदीक की एक ईमारत अजमेर इंफिनिटी का उपनाम दे दिया था। 




विमानों के मॉडल 
              यहाँ से निकलकर हम सीधे अपनी वाशिंगटन ले जाने वाली बस के पास पहुंचे और वहीँ पर कुछ खाने के लिए लिया। वापसी में भी बस ने वो ही चार घंटे का समय लिया और नियत समय पर हमें वाशिंगटन पहुंचा दिया। पर इन चार घंटों में बेटी ने जो कमाल दिखाया कि अगले हफ्ते के लिए दस घटे का सफर कर के जो बोस्टन जाने का प्लान बनाया था वो चौपट हो गया। इस पोस्ट में न्यू यॉर्क के साथ साथ हमारी तीन महीने की अमेरिका यात्रा का भी समापन हो गया। मिलते ही जल्द ही किसी और श्रंखला के साथ। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये।


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

3 comments:

  1. कुछ फोटो शायद बडे साइज के हैं लोड नही हो पा रहे बाकी बढिया यात्रा

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  2. अभी कुछ दिनों पहले ही अख़बार में खबर पढ़ी थी की पूल की सुरक्षा के मद्देनजर प्रशासन ने ब्रूकलिन पूल के बहुत सारे ताले तोड़ कर हटा दिए हैं.......बहुत सुंदर यात्रा का सुखद अंत. अगली ट्रिप पर कहाँ लेकर जा रही हैं आप हमें ?

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  3. एक ताले में दोनों के नाम लिखकर के किसी पुल में लगा दो और चाबी को पानी में फैंक दो। इसलिए इस ब्रिज में भी कई सारे ताले लगे हुए थे,पहले तो समझ ही नहीं आया कि क्या कारण होगा बाद में किसी से पूछने पर ज्ञात हुआ। है न मजेदार बात . ​बिलकुल मजेदार बात है ! इस विषय में पढ़ा था मैंने शायद कहीं ! लेकिन सवाल ये भी उठता है की अमेरिका जैसे देश के लोग भी ऐसा समझते हैं ! हालाँकि रिवाज बहुत मायने रखते हैं चाहे वो कोई भी देश हो !! बहुत ही शानदार तसवीरें ली हैं आपने हर्षिता जी ! लिखने का अंदाज बहुत अच्छा है आपका !

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