Friday 8 November 2013

गोवा(Goa):गोवा का अलौकिक सौंदर्य..........१

          इस बार छुट्टियां इस कदर बरस रही थी हर बार ये मन कर रहा था कि कुछ न सोचो बस चल पडो,इनमे से कुछ का उपयोग हम कर पाये और कुछ पर बैठे ही रह गएकब बार बने गोवा भ्रमण के असफल प्रयासों के बाद दशहरे की छुट्टियों में हम लोगों को पर गोवा जाने का शुभ अवसर मिल ही गया, और जाने के बाद ऐसा लगा की वंहा रम ही जाओ इस कदर वहाँ के  समुद्र तटों ने तो बस मन ही मोह लिया
मजोरदा बीच 
               अबकी बार ऐसा लग रहा है कि पुराने यात्रा क्रमों से भटक कर तुरंत आपको भी गोवा  के दर्शन करा दे,और अपने सुनहरे अनुभवो को भी जल्द से जल्द संजो ले।तो अब देर किस बात की है आगे पढ़ने के लिए क्लिक करिये और हमारे साथ गोवा घूमिये

              अब गोवा जैसी चर्चित जगह की बात है, तो मन में ख़याल आ रहा है कि पहले गोवा के बारे में और बैंगलोर से वहाँ किस तरह से जा जा सकते हैं इस बारे में बात कर लेते हैं।यहाँ से जाने के लिए चार आप्शन बनते हैं,सबसे पहला कार से,दूसरा ट्रैन, तीसरा बस और चौथा विमान यात्रा।पहले तरीके से जाने  में हम  लोगों को अधिक समय की आवश्यकता पड़नी थी क्यूंकि गाड़ी तो बस दिन में ही चलनी थी और हमारे पास थे मात्र तीन दिन वो भी गोवा जैसे जगह घूमने के लिए, तो ये आप्शन तो सिरे से फ्लॉप हो गया, अब दूसरा बचा बस से पर इतना लम्बा सफ़र बस से वो भी बच्चों के साथ, तो ये भी गया, तीसरा विमान यात्रा ,जिससे पहुँच तो बड़ी जल्दी जाना था पर जेब अनुमति नहीं दे रही थी तो अंतिम विकल्प रहा ट्रैन से और हमारे लिए ये सर्वोत्तम था एक तो पैसा बचना था, दूसरा आराम का सफ़र और तीसरा ट्रैन से दिखने वाली टनल और दूधसागर फॉल।इन सब परिस्थतियों के मद्देनजर हम  लोगों ने ट्रैन से जाने का निर्णय लिया और पहले से ही टिकट बुक करवा लिए।ये तो था कि किस तरह से ट्रैन से जाने के विकल्प का चयन हुआ।अब आपको गोवा  के बारे में भी कुछ जानकारी दे देते हैं।गोवा  में अनगिनत समुद्र तट है या कहिये कि समुद्र तटों से घिरा हुआ हुआ है,मजे की बात ये है कि समुद्र तटों के अतिरिक्त भी यहाँ बहुत कुछ है प्राकृतिक हरीतिमा,सुन्दर सी नदियों के मुहाने,ऎतिहासिक किले,झरने एवं और भी बहुत कुछ।कुल मिलाकर अगर ये सोचकर जाएँ कि एक बार में ही पूरा गोवा घूम लेंगे तो ये असम्भव सा ही है।गोवा राज्य को दो हिस्सो में विभक्त सा किया गया है नॉर्थ गोवा एवं साउथ गोवा।ये बात  सच  है कि साउथ गोवा  के समुद्र तट बहुत ही सुन्दर और शांत हैं,पर ये भी सच है कि नॉर्थ गोआ के समुद्र तटों पर ही पानी पर होने वाली साहसिक गतिविधियां करी जा सकती हैं।हम सबने भी ये निश्चित किया कि इस बार नॉर्थ गोवा  के समुद्र तटों की  भीड़भाड़ का आन्नद उठाते हैं और साउथ के समुद्र तटों की शांति में खो जेन के लिए दुबारा आयेंगे।तो ये रही गोवा के बारे में छोटी सी जानकारी,अगली पोस्ट में आप लोगों को ट्रैन से दिखने वाले दूधसागर के बारे में, और प्रथम दिन के गोवा के अनुभव के साथ मिलते हैं

गोवा के सफर की सभी कड़िया एक साथ निम्नवत हैं-



Monday 7 October 2013

मैसूर(Mysore)

                 इस वर्ष नार्थ के साथ-साथ साउथ में भी पिछले दो वर्षों के मुकाबले वर्षा की अधिकता थी, या कहें की अभी भी बनी हुयी है।मुझे पिछले वर्ष की याद है कि हम लोग जून में मैसूर जाने का सोच रहे थे पर गर्मी इतनी ज्यादा थी कि इतने नजदीक होने के बाद भी नहीं जा पाए,और इस वर्ष काली घटायें इस कदर छाई है कि लगता है कभी भी चल पड़ो। इसी तरह के मौसम में मई के शनिवार ,तारीख तो अब याद नहीं है,अचानक से मन बना कि मैसूर चलते हैं,तभी हमने सान्वी के चाचा को भी फ़ोन करके बुला लिया।इस तरह से एक बार फिर बिना किसी तैयारी के हम चार लोग चल पड़े मैसूर की ओरफटाफट से सान्वी का खाना-पानी तैयार करके हम लोग लगभग साढ़े दस बजे ही निकल पाए, कोई पूर्व निर्मित प्लान नहीं था तो गाड़ी में बैठे-बैठे ही सोचा सबसे पहले मैसूर पैलेस,फिर चामुंडी हिल्स और अंत में वृन्दावन गार्डन का म्यूजिक शो देखते हुए घर वापस आ जायेंगेइस तरह से रुकते-रुकाते हम लोग दो बजे मैसूर पहुंचे,आप यहाँ पर  मैसूर पैलेस की भव्यता तो देखिये
 मैसूर पैलेस 
                बिना किसी मेहनत के आप लोग हमारे साथ सारा मैसूर घूम लें ऐसा तो संभव ही नहीं है, तो समय की महत्ता समझते हुए जल्दी से क्लिक करिए और चलिए मैसूर की सैर पर - 

                 बैंगलोर से करीब एक सौ पैतालीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित मैसूर बैंगलोर के बाद कर्नाटक का दूसरा बड़ा शहर है। चामुंडी पहाड़ी के पश्चिम में सात सौ सत्तर मीटर की ऊंचाई पर दक्षिण के पठार पर बसा मैसूर कावेरी और कबिनी नदी के बीच स्थित है,यह पुरातन सभ्यता और आधुनिकता दोनों को अपनेआप में एक साथ समेटे हुए है।मैसूर चन्दन,सिल्क और अपने बगीचों के लिए जाना जाता है।एवं पर्यटन के लिए अपने में बहुत से आकर्षणों को समेटे हुए है।देश- विदेश से यहाँ लोग घुमने के लिए आते हैं तथा यहाँ के दशहरे का तो कहना ही क्या है। अब जब हम मैसूर के इतने पास रहते हैं तो जाना तो बनता ही है,पर ऐसी जल्दीबाजी भी क्या सब जगहों को देखने की की,क्यूंकि पास की जगह है कभी भी जा सकते हैं तो यूँ ही आराम फरमाते हुए हम लोगों ने सब से पहले देखा मैसूर  पैलेस। चलिये अब आपको अवगत कर देते हैं  मैसूर  पैलेस के इतिहास से। ये महल राजा कृष्णराज वाडीयार का है,पहले ये महल चन्दन की लकड़ियों का बना हुआ था,पर एक दुर्घटना की वजह से यहाँ काफी छाती हुयी और फिर अब जिस मैसूर पैलेस को हम देखते  हैं वो दुबारा बनवाया गया है। यहाँ के पुरातत्व और भव्यता को को देखने में ही काफी समय लग गया, फिर बहुत कुछ देखने के बाद बाहर निकले तो काफी लोग ऊंट की सवारी कर रहे थे,मन तो हमारा भी बहुत मचला पर साथ में छोटी के होने के कारण नहीं हो पायी,पर मन को कुछ इस तरह से मनाया कि इस इच्छा को भविष्य में होने वाले राजस्थान भ्रमण में पूरा करेंगे
               अब हमारा अगला लक्ष्य था चामुंडी हिल्स,जो कि मैसूर से तेरह किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है,इस पहाड़ी कि चोटी पर माँ चामुंडा का मंदिर है।बारहवीं शताब्दी में बना ये दुर्गा मदिर महिसासुर राक्षस पर देवी माँ कि विजय का प्रतीक है।इस सात मंजिला मंदिर की ऊंचाई चालीस मीटर है एवं यहाँ पर महिसासुर  कि भी एक बहुत बड़ी प्रतिमा रखी हुयी है।यहाँ से मैसूर के बहुत ही मनोरम द्रश्य दिखाई पड़ते हैं।फोटो आप भी आन्नद लीजिये-
रास्ते से दिखता मैसूर का द्रश्य 



एक अन्य नजारा  
महिसासुर की विशालकाय प्रतिमा 


 माँ चामुंडा का मंदिर 

                यहाँ से उतरते हुए रस्ते में नंदी बैल के दर्शन हुए।उसकी विशालता के बारे में बताने के लिए तो मेरे शब्द ही कम पड़ रहे है,बा यही लग रहा था कि बनाने वाले ने कैसे बनाया होगा इसे,तो वहां पर रखे कुछ और बड़ी शिलाओं को देखकर अनुमान लगाया कि शायद ऐसी ही कोई शिला होगी जिस पर नंदी की आक्रति को उतरा गया होगा।
       
नंदी बैल 

            यहाँ पर दर्शन के बाद हम मैसूर की तरफ रवाना हुए,और वृन्दावन गार्डन जाने का प्लान तो था ही।पर उतरते-उतरते समय काफी लग गया और भूख भी लग आई थी तो पहले खाना खाया और उसके बाद जीपीएस महाशय से सहायता मांग ही रहे थे कि सड़क में किसी से जानकारी लेने से पता चला कि हम लेट ही पहुंचेंगे और अब जाने का कोई फायदा नहीं है ।पर वृन्दावन गार्डन एक बार फिर छोड़ते हुए हम लोग रात को ग्यारह बजे हमलोग बैंगलोर वापस पहुँच गए। जल्द ही मिलते है किसी अन्य जगह पर, तब तक के लिए आप लोग मैसूर यात्रा का आनन्द उठाइए और हमें अनुमति दीजिये।

Sunday 15 September 2013

Big Banyan Tree,Bangalore

              आज के यात्रा वृतांत में फिर से आप लोग लोकल बैंगलोर को ही एक्सप्लोर करेंगे और आज का विषय है "बरगद का पेड़" एक बार कभी बचपन में हम लोग अहमदनगर(महाराष्ट) गए थे, तो वहां खूब सरे बरगद के पेड़ों से भरी हुयी सड़कें देखने को मिलती थी। तो यहाँ जाने का काफी उत्साह था मन में कि शायद कुछ पुरानी यादें ताजा हो जाएँगी। बैंगलोर में इस जगह को बिग बैनियन ट्री (Big Banyan Tree ) के नाम से जाना जाता है। यहाँ के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए आपको थोडा मेहनत तो करनी ही पड़ेगी, तो देर किस बात की है जल्दी से क्लिक करिए-
            बरगद के पेड़ की हमारे देश में बहुत ही मान्यता है, कहीं धार्मिक रूप में तो कहीं किसी और रूप में,और तो और रहा ये हमारे देश का राष्ट्रिय वृक्ष भी है। यूँ तो बरगद का पेड़ अपनेआप में ही काफी बड़ा होता है,पर हमारे भारत में कुछ बरगद के पेड़ बिग बैनियन ट्री के नाम से जाने जाते हैं, जिनमे से एक हमारे बैंगलोर में भी स्थित है। इन बरगद के पेड़ों की लोकेशन इस प्रकार से है-
१-थिम्माम्मा मार्रिमाणु(Thimmamma Marrimanu)-इस पेड़ का नाम थिम्माम्मा नाम की एक महिला के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने अपने पति की बहुत सेवा की। ये पेड़ आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में है। इस पेड़ की उम्र दो सौ साल है और यह आठ एकड़ एरिया में फैला हुआ हुआ हैइसे विश्व के सबसे बड़े बरगद के पेड़ के नाम से जाना जाता है
२-महान बरगद के पेड़(The Great Banyan Tree)-लगभग दो सौ या ढाई सौ साल पुराना यह बरगद के पेड़ कोलकाता के बोटेनिकल गार्डन में स्थित है। लगभग तीन सौ तीस मीटर लम्बी रोड इस पेड़ की परिधि पर बनी हुयी है
३-डोड्डा अलदा मारा (Dodda Alada Mara)-ये है हमारी आज की डेस्टिनेशन। चार सौ साल पुराना यह पेड़ बंगलौर -मैसूर के रास्ते पर स्थित एक गाँव में है।ये अकेला वृक्ष तीन एकड़ जगह में फैला हुआ है और इसकी परिधि भी लगभग दो सौ पचास मीटर है। ये जगह कई पेड़ों का एक समूह सा लगती है, जी कारण माहौल काफी मनमोहक बन जाता है और यह जगह बैंगलोर का एक आकर्षक पर्यटन स्थल बना हुआ है। यहाँ के आसपास में सावनदुर्गा नामक पर्यटन स्थल भी है,वहां जाने का सौभाग्य तो हम लोगों को अभी तक नहीं हुआ,चलिए कभी ओर चलते हैं,क्यूंकि एक ही दिन में सब कर लेंगे तो अगले वीकेंड्स का क्या होगा? 
              ये जगह बैंगलोर से अठाईस  किलोमीटर की दूरी पर स्थित है,मैसूर रोड में कुम्बलागोड़ तक तो रास्ता सही है,पर उससे राईट लेने के बाद के  सात किलोमीटर थोडा कठिन है, इसलिए  बरसात के दिनों में जाना हितकारी नहीं है। यहाँ पेड़ की शाखाओं के मध्य बैठने के लिए कई सारे बेंच बने हुए है और एक छोटा सा मंदिर भी है,जो कि लोगों के आकर्षण का केंद्र है। यहाँ पर बहुत से बन्दर पाए जाते हैं तो बच के निकलना पड़ता है।खाने का कोई सामान है तो बैग तो अतिआवश्यक है,वर्ना कुछ नहीं बचेगा।अगले यात्रा वृतांत के साथ पुन्ह: आने के वादे के साथ अभी के लिए यहाँ के द्रश्यों का आन्नद उठाते हुए अनुमति दीजिये -
बाहर से दिखता हुआ बरगद का पेड़ 


पेड़ के बारे में पूरी जानकारी 


बरगद की शाखाएं है या अलग अलग पेड़ 


मंदिर 


बड़ी बड़ी शाखाएं और लोगों द्वारा उन पर लिखे गए नाम 


देखिये क्या हुआ अगर खोलना नहीं आता तो,फिर भी माजा पिया जा सकता है 

Wednesday 4 September 2013

पिरामिड वेली (Pyramid Valley)बैंगलोर

              चेन्नई ट्रिप के बाद बहुत दिनों से हम लोग घर पर ही बैठे हुए थे,घुमक्कड़ी कुछ कम सी हो गयी थी। पर जहाँ चाह होती है,वहां राह तो मिल ही जाती है और अचानक से बैंगलोर में ही रहने वाले कुछ रिश्तेदार हमारे घर पर हमारे घर पर आ गए तो बस देर किस बात की थी उन्हें कहीं ना कही ले जाना तो बनता ही था। उन लोगों के पास जितना समय था उसके हिसाब से बैंगलोर में लोकल ही कहीं जाया जा सकता था, इस तरह से पहले नंबर पर चुना गया पिरामिड वेली। यहाँ के बारे में पूरी जानकारी के लिए पढ़िए- 
          हमारे वहां से से ये जगह नाइस रोड जंक्शन से कनकपुरा रोड के रास्ते बत्तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है रोड की हालत तो ठीक थी इसलिए कोई ज्यादा समय नहीं लगा बस एक घंटा। अब आपको बता दे ये जगह एक अंतराष्टीय मैडिटेशन सेण्टर है और यहाँ पर एक बड़ा सा पिरामिड है यहाँ पर बैठकर हजारों लोग मैडिटेशन कर सकते हैं। यहाँ पर पिरामिड के अलावा गोतम बुद्ध की एक प्रतिमा, एक छोटी सी झील जिसे देखने से लग रहा था कि शायद कमल खिलते होंगे, सुन्दर सा हरा-भरा गार्डन और जगह- जगह लगे हुए फूल हैं,जिन्हें देखने से ये नहीं लगता कि हम बैंगलोर में ही हैं। कुल मिला कर के यहाँ बहुत ही अच्छे द्रश्य देखने को मिल जाते हैं और मौसम अगर साथ दे दे तो आध्यात्म के साथ-साथ पिकनिक के लिए भी बहुत ही खुशनूमा जगह है।  एक बात तो यहाँ ये है कि यहाँ पर दिन का खाना भी मिलता है,पर खाने के इरादे से जाना सही नहीं है क्यूंकि खाना उतना फ्री ऑफ़ कास्ट है तो क्वालिटी उतनी ज्यादा नहीं थी, पर वैरायटी काफी थी जिसमे चावल, सांभर, चटनी और बटरमिल्क सम्मिलित था और मैडिटेशन के इच्छुक लोगों को थोड़ी देर का एक प्रेजेंटेशन यहाँ पर देते हैं जिसके बाद ही आगे जा पाना संभव है।तो यहाँ से ज्ञान ले कर हम आगे पिरामिड की ओर को बढ़ते है पर वहां पहुँच के पता  कि ६ साल से छोटे बच्चे अन्दर नहीं जा सकते तो हम छह लोगों का ग्रुप दो भाग में विभाजित हो गया और थोड़ी थोड़ी देर कर के हम पिरामिड में गए। अन्दर बहुत ही शांतिपूर्ण वातावरण था और हजारों लोग ध्यान में मग्न थे और बहुत ही गर्मी भी लग रही थी जो शायद पिरामिड के आकर के कारण  होगी। वहां से आने के बाद थोड़ी देर इधर उधर घुमा और उसके बाद हम लोग बैंगलोर ले विख्यात बरगद के पेड़  जाने के लिए निकल पड़े।इस तरह से अगली पोस्ट में मिलते हैं बरगद के पेड़ पर।तब तक आप पिरामिड वेली के द्रश्यों का आन्नद उठाइए- 
छोटी सी लेक में बैठे हुए गांधीजी 

भव्य पपिरामिड 

नज़ारे ही नज़ारे 

शांति का प्रतिक गौतम बुद्ध 

क्या ये बैंगलोर ही है?

घने जंगलों के मध्य हमारी टीम 

Tuesday 13 August 2013

Unplanned trip to Chennai Trip-चेन्नई ट्रिप

           इस ट्रिप के बारे में पढ़कर आपको इस बात का अंदाजा तो हो ही जायेगा कि हम दोनों किस तरह के घुमक्कड़ है।अब बताते हैं किस तरह ये प्लान अचानक से बन  गया। शनिवार को दिन भर घप बैठ कर बोर होने के बाद सोचा अब कुछ ओर तो किया नहीं जा सकता और कहीं घुमने जाने का समय भी निकल सा ही गया था तो यूँ ही गाड़ी में बैठ कर निकल पड़े थे होसूर की ओर को।काफी देर यूँ ही इधर उधर करने के बाद जब घर वापस आने का समय हो गया था तब ही अचानक से प्रस्ताव आया चेन्नई चलती है और बस मन बना लिया कि चलते ही हैं।साथ के साथ चेन्नई में रहने वाले एक दोस्त को कॉल करके पक्का कर लिया कि वो घर पे है या नहीं।फिर अब जैसा की लोकल घुमने के इरादे से निकले थे तो पास में पैसा भी पर्याप्त नहीं था तो एटीएम जा कर के पैसा निकाला और पास की एक दूकान से पीने का पानी और खाने के लिए कुछ सामान पैक करा लिया क्यूंकि रास्ते में बार बार रुकने का समय हम लोगों के पास नहीं था पहले ही साधे छह बज गया था तो बस इसी समय हम निकल पड़े चेन्नई की ओर को।तो चेन्नई ट्रिप के बारे में ज्यादा पढने के लिए क्लिक करिए-

           अब आपको बैंगलोर से चेन्नई की दूरी का अंदाजा करा देते हैं,कुल जमा तीन सौ पैतालीस किलोमीटर।यूँ तो हाईवे अच्छा तो है पर जगह-जगह पर मिलने वाले डायवर्जनस शायद लगभग हर पांच सौ मीटर पर तो होंगे ही तो इस तरह से हम लोग रात को बारह बजे तक ही पंहुच पाए और जा कर के गरमा-गरम पुलाव खा कर के एक बजे के ऊपर ही सो पाए।बैंगलोर में रहने की आदत होने के कारण गर्मी भी कुछ ज्यादा ही लग रही थी इसलिए उठते-उठते भी देर होना तो स्वाभाविक ही था।अब जैसा की अनायास ही निकल पड़े थे तो हम दोनों के पास कुछ सामान भी नहीं था सिवाय बच्चे के सामान के, जो पहले से फ़ोन कर के खरीदवा लिया था,तो जरुरी सामान के लिए बाहर जाना पड़ा।साउथ में हिंदी भाषा वालों के लिए सब जगह ही परेशानी है पर तमिलनाडु में तो कुछ ज्यादा ही है,क्यूंकि किसी माल में तो नहीं गए थे तो छोटी दुकानों से सामान लेना बड़ी ही परेशानी का सबब है क्यूंकि वो लोग अंग्रेजी भी नहीं समझते।किस तरह से छोटा-मोटा जरुरत का सामान लिया होगा आप समझ सकते हैं।बस किस तरह से ले कर वापस पहुंचे और फ्रेश होने के बाद घुमने के लिए निकलने का प्लान बनाया
         अब थोडा चेन्नई के बारे में बात कर लेते हैं,चेन्नई जिसे पूर्व में मद्रास के नाम से जाना जाता था, तमिलनाडु की राजधानी है एवं इसे दक्षिण भारत का गेटवे भी कहा जाता है और यहाँ पर बहुत सारी कम्पनी स्थित होने के कारण  पूरे भारत के लोग ही यहाँ मिल जाते हैं।हिंदी संगीत के सरताज रहमान(A. R. Rahman) जी का नाम तो किसने नहीं सुना है, चेन्नई उनकी जन्मस्थली भी है।चेन्नई को मंदिरों और चर्चों का शहर भी कहा जाता है और यहाँ के बीच(समुद्र तटों) के बारे में तो सभी जानते है।अब जैसा की हम बस एक दिन के लिए ही गए थे तो ज्यादा समय नहीं था घुमने के लिए,इसलिए सिर्फ तीन जगहों का चुनाव किया जिनमे एक्सप्रेस एवेन्यु(Express Avenue) मॉल, मरीना बीच(Marina Beach) और बेसंटनगर बीच (Besant Nagar Beach) शामिल थे।तो इन जगहों की जानकारी इस प्रकार से है,परन्तु अबकी बार अनायास ही जाने के कारण चित्रों का अभाव है क्यूंकि कैमरा तो पास में था ही नहीं,बस एक दो जो मोबाइल से ले पाए वो ही हैं-
-एक्सप्रेस एवेन्यु(Express Avenue)-चेन्नई आ कर के इस माल में जाना तो जरुरी ही है क्यूंकि ये अपने आप में ही एक बहुत बड़ा टूरिस्ट स्पॉट टाइप का है और भारत के बड़े मॉलस में से एक है।करीब दस एकड जगह में फैले इस माल का ३.५ एकड  भाग बिल्डिंग का तथा बचा हुआ भाग पार्किंग और गाड़ियों के आने जाने के रास्तों के लिए है।यहाँ पर होटल,मनोरजन के साधन और कारपोरेट ऑफिस,फ़ूड कोर्ट सभी कुछ है।इसकी भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की यहाँ पर छब्बिस तो लिफ्ट ही हैं।कुल मिलकर के इसे देखकर बैंगलोर के मॉल कुछ भी नहीं लगे,इसलिए चेन्नई जा कर के यहाँ जाना तो बनता ही है
२-मरीना बीच(Marina Beach)-चेन्नई  के बीच सुन्दर और आकर्षक तो बहुत है परन्तु पानी में उतरने के लिए बिलकुल भी  उपयुक्त नहीं है।मरीना बीच बारह किलोमीटर लम्बा है इस वजह से रेत पर एक लम्बी वाक का बहुत अच्छा मौका देता है और यही नहीं ये विश्व का दूसरा बड़ा समुद्री छोर है।यहाँ पर पतंग उड़ाते हुए लोग भी आपको दिख जायेंगे। बस इतना ही है कि ये बीच उतना साफ नहीं है और चेन्नई के लोकल लोगों की भीड़-भाड से भरा हुआ,पर अपने आप में समुद्री किनारा बहुत अच्छा है
३-बेसंटनगर बीच (Besant Nagar Beach)-इस बीच को इलियट बिच के नाम से भी जाना जाता है,जो की बेसंटनगर में स्थित है,इस बीच को नाईट बीच भी कहा जाता है।जो लोग भीड़-भाड़ से बचना चाहते है वो इधर की ओर रुख करते हैं।ये मरीना बीच का दक्षिणी किनारा है,जो की चेन्नई का सबसे साफ बीच है।यहाँ पर भी कोई साहसिक कार्यों की सुविधा नहीं है तो ये भी लम्बी वाक के लिए उपयुक्त है।यहाँ पर एक चर्च और मंदिर भी है।कुल मिलकर यहाँ पर जाना ज्यादा अच्छा रहा और अगले दिन सुबह चेन्नई से रवानगी के साथ-साथ जब दिन के १२ बजे बैंगलोर वापस पहुंचे तो बहुत ही जल्दी में बने इस चेन्नई ट्रिप का सुखद समापन हुआ।ये देखिये इस ट्रिप की एक मात्र फोटो-
बेसंटनगर बीच 

Wednesday 7 August 2013

दुबारे एलीफैंट कैंप (Dubare Elephant Camp:Coorg attraction)

         सुबह उठ कर सोचा बैंगलोर पहुँचने में ज्यादा समय तो लगना नहीं है, तो आराम से पहले रेंज फील्ड (Range Field) के नज़ारे देख कर ब्रेकफास्ट करने के बाद दुबारे के लिए निकलेंगे और वहां से वापस जाते हुए मैसूर का वृन्दावन गार्डन देखते हुए ही घर पहुंचेंगे, तो आप भी देखिये रेंज फील्ड  की सुबह हमारे साथ-

यहाँ तो टेंट भी है 

              दुबारे एलीफैंट कैंप के अनुभव के बारे में पढने के लिए क्लिक करिए-
 इसके बाद निकल पड़े एलीफैंट कैंप की और को, ज्यादा दूर तो यहाँ से नहीं था पर रोड की हालत उतनी ठीक नहीं थी उबड़ खाबड़ सी रोड ,जिस पर गाड़ी से जाने के मुकाबले पैदल चलना ज्यादा आसान था।दुबारे एलीफैंट कैंप कावेरी नदी के किनारे पर स्थित है, यहाँ प्रकृति  प्रेमियों के लिए सबकुछ है, हरे भरे पेड़, कलकल कर के बहती कावेरी नदी, ढेर सारे हाथी और चहचहाती हुयी चिड़ियों की आवाज। यहाँ पर हाथी की सवारी के साथ साथ इन्हें खाना खिलाया और नहलाया भी जा सकता है।तो दुबारे दुबारा आना तो बनता ही है।
             तो अब यहाँ पहुँचने के लिए पहला सवाल की पहुंचा कैसे जाये क्यूंकि गाड़ी पार्क करने के बाद सामने दिखती है कावेरी नदी, ये भी कोई पूछने वाली बात है या तो राफ्टिंग की सुविधा का आन्नद उठाओ या फिर बोटिंग कर के जाओ। हम भी लग गए फिर बोटिंग के लिए लाइन पर,लेकिन गलत चयन के कारण हमारा नंबर एक घंटा देर से आया,चलो कोई नहीं जाना तो था ही, तो पहुंचे किसी तरह से एलीफैंट कैंप तक काफी लम्बे इन्तजार के बाद।अब जब तक वहां पहुंचे तो टिकट  लेने के लाइन में लगे हाथी की सवारी के लिए पर हमारी किस्मत वहां भी लंच टाइम हो गया। अब तो कावेरी नदी के और पानी में नहाते हाथियों के दर्शन करने ही बनते है।


राफ्टिंग का आन्नद उठाते हुए लोग 


ये क्या बच्चे तो नहा भी रहे हैं 
ये गया हाथी अपनी थकान मिटाने 
                 बहुत देर तक प्राकतिक द्रश्यों का आन्नद उठाने के बाद हमारा नंबर हाथी की सवारी के लिए भी आ गया और इस तरह से मचान ट्री जिस पर हमें पहले नहीं चढ़े थे पर भी चढ़ गए क्यूंकि हाथी की सवारी  के लिए ऊपर चढ़ना तो जरुरी था वरना बैठ नहीं पाते,और इस तरह से हमारी गुडिया भी मात्र चार महीने की उम्र में हाथी पर बैठ गयी।
हाथी  मेरे साथी 
        यहाँ मजा तो खूब आया पर यहाँ से निकलते निकलते काफी देर हो प्लान में नहीं चाहते हुए भी परिवर्तन करते हुए  वृन्दावन गार्डन जाने का प्लान कैंसिल करना पड़ा और हम लोग दुबारे दुबारा आने का वायदा करके यहाँ से बैंगलोर के लिए चल पड़े, इस तरह से शाम के आठ बजे हम लोग घर पहुंचे और इस ट्रिप के एक हजार किलोमीटर भी पूरे हो गए।

Thursday 25 July 2013

निसर्गधाम,कुर्ग (Nisargdham,Coorg)

              जैसा कि मैंगलोर से दुबारे की दूरी एक सौ चौसठ किलोमीटर है,तो आराम से नाश्ता करने के बाद ही निकलने का प्लान बनाया।ब्रेकफास्ट के बाद लगभग नौ बजे होटल से चेक-आउट कर के फिर से रास्ते पर आ गये।अबकी बार रोड की हालत पहले के मुकाबले बेहतर थी,फिर भी दुबारे पहुंचते-पहुँचते शाम सी ही हो गयी, और फिर वहां से अपने होम स्टे रेंज-फील्ड(Range field Home Stay) पहुंचे।वहां चाय पीने के बाद नानईया जी से बात करने पे पता चला कि वहां पर जाने के लिए दो आकर्षक जगहे है पहली दुबारे एलीफैंट कैंप और दूसरी कावेरी नदी की तलहटी पर स्थित आइसलैंड निसर्गधाम।पूछने पर पता लगा कि एलीफैंट कैंप के लिए देर हो गयी है तो निसर्गधाम जाने का रास्ता पता कर के निकल पड़े। निसर्गधाम का मुख्य द्वार बना तो बहुत सुन्दर है,पर उसमे क्या लिखा  है ये समझ नहीं आता क्यूंकि बहुत ही सुन्दर-सुन्दर जलेबियाँ बनी हुयी है , बस फर्क इतना है की इन जलेबियों में स्वाद नहीं होता केवल सुन्दरता होती है
 निसर्गधाम प्रवेश द्वार 
            यहाँ की सुन्दरता का आन्नद उठाने के लिए क्लिक करिए-
       ये जगह कुशालनगर-बैंगलोर हाईवे से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है,सन उनीस सौ नवासी में स्थापित,चौसठ एकर में फैला निसर्गधाम हरियाली,पानी और बांस के पेड़ों  से भरपूर है एवं यहाँ का मुख्य द्वार बच्चों को बहुत ही आकर्षक करने वाला है।
                 मुख्य सड़क से इस आइसलैंड को जोड़ने के लिए एक झुला पुल बना हुआ है,जिसमे जितना आगे जाओ वो उतना ज्यादा हिलता है। इसे देखकर लक्षमण झुला की याद जरुर आ जाती है। वैसे अगर सच कहूँ तो थोडा दर भी लगता है क्यूंकि इस झुलते हुए पूल से कावेरी नदी का विहंगम द्रश्य दिखता है।पर ये पूल आइसलैंड में जाने का एक मात्र रास्ता है तो जाना तो बनता ही है,इस तरफ बोटिंग करने वालों के लिए बोटिंग का प्राविधान भी है,हम लोगों ने सोचा कि बोटिंग लौटते हुए करेंगे पहले आगे और क्या क्या है ये देख ले।
झुला पूल 
              यहाँ पर जगह जगह पर बैठने के लिए झूले बने हुए हैं ,जिन्हें देखकर लगता है कि वो कह रहे हैं आओ अब तुम बहुत घूम लिए थोड़ी देर बैठकर आराम भी कर लो।बांस के जंगलों के मध्य से गुजरते हुए रास्ते में पड़ते हैं बहुत सरे मचान ट्री।हम लोग बहुत ही पशोपाश में थे कि बच्चे के साथ चढ़ सकते हैं या नहीं?
ऊपर जाऊ या नहीं,करूँ तो क्या करूँ?अंततः नहीं 
             यहाँ पर बहुत सरे बांस के कॉटेज बने हुए है,शायद जिनमे रहने का प्राविधान भी है,इस तरह से घूमते-घूमते हम आइसलैंड की दूसरी तरफ नदी के मुहाने पर आ गए।अब क्या था दिमाग ने कहा इस तरफ तो और भी आकर्षण छुपा था,ये जगह पानी के साथ खेलने वालों के स्वर्ग सरीखी ही है,शान्त रूप से बहता हुआ पानी,सामने दिखती हुयी हरियाली  और साथ में पड़े हुए आकर्षक से पत्थर जिन पर चढ़-चढ़ कर लोग फोटो खिंचा रहे थे,जब लोग खिचा ही रहे थे तो हम भी क्यूँ पीछे रहे सोच कर एक फैमिली फोटो हमने भी खिचवा ली
निसर्गधाम
                       यहाँ पर एलीफैंट की सवारी भी होती है,हमारे पहुँचाने तक तो वो बंद हो गयी थी पर इस बात का कोई अफ़सोस भी नहीं था क्यूंकि अगले दिन दुबारे एलीफैंट कैंप तो जाना ही था वहां पर ये मौके बहुतायत में मिलने ही थे।      
बांस के जंगलों से बाहर आता हुआ हाथी  

       अब तक कुछ खाने का मन भी होने ही लगा था तो सोचा अब यहाँ से अनुमति लेनी चाहिए और सडक के पास के ही किसी रेस्तौरेंट में पेट पूजा कर ली,और पुन्ह अपने होमस्टे की ओर रवाना हो गए।वहां पहुँचने तक मुझे थोडा जा सर्दी  की शिकायत सी भी महसूस होने लगी थी,पर नानईया जी ने शहद और कालीमिर्च का ऐसा घोल पिलाया की सर्दी तो उसी वक्त गायब हो गयी और कैंप फायर और संगीत के साथ-साथ रात के खाने का मजा दोगुना  तो हो ही गया था,इस तरह से खाना खाने के बाद जल्दी सोने में ही भलाई थी क्यूंकि अगले दिन दुबारे एलीफैंट कैंप के साथ साथ मैसूर वृन्दावन गार्डन होते हुए बैंगलोर के लिए निकलना भी तो था,तो अगली पोस्ट में मिलते हैं दुबारे एलीफैंट कैंप में,यहाँ दुबारा आना तो बनता ही है।
रेंज फील्ड:कैंप फायर

Monday 22 July 2013

मैंगलोर आकर्षण :सोमेश्वर और पेनाम्बूर समुद्र तट (Mangalore attractions: Someshwar and Panamboor beach)

              बेकाल के बाद हमारा लक्ष्य था सोमेश्वर और उल्लाल समुद्र तट होते हुए मैंगलोर पहुँचने का।तो एक बार फिर से शुरू करते हैं,सोमेश्वर पहुँचते पहुंचते सूर्य देवता अपने प्रचंड रूप को अलविदा कह चुके थे तो मौसम कुछ अच्छा हो गया,समुद्र को देखने और आन्नद उठाने के लिए।मैंगलोर के सुन्दर समुद्र तटों के बारे में पढने के लिए क्लिक करें-
             सोमेश्वर बीच मैंगलोर का सबसे सुन्दर बीच के रूप में जाना जाता है,और यहाँ पर सूर्यास्त देखने के लिए बहुत से लोग आते हैं।हमारा प्लान भी ऐसा ही था।ये जगह मैंगलोर से ९ किलोमीटर पहले उल्लाल टाउन के आसपास है।गूगल पर रिसर्च करने के बाद ऐसा लगा था कि सोमेश्वर और उल्लाल दो समुद्र तट है देखने के लिए, पर जाने के बाद एक ही मिला,लोग कह रहे थे कि एक ही जगह है, शायद बायीं तरह उल्लाल बीच है और दायीं तरफ सोमेश्वर। जा कर के बहुत ही सुन्दर लगा पर हम सूर्यास्त से पहले ही पहुँच गए तो सूर्यास्त का आन्नद नहीं ले पाए।समुद्र के मध्य में एक बड़ी सी चट्टान है, जिसे रूद्र शिला के नाम से जाना जाता है।इससे टकरा कर वापस जाने वाली समुद्र की लहरें प्रकृति की ताकत का एहसास कराती है। कम भीडभाड से भरा हुआ बहुत ही आकर्षक बीच है ये,जहाँ की सुनहरी रेत पर चलना भी अपनेआप में एक सुनहरा अनुभव है।यहाँ पर एक बहुत ही पूराना मंदिर भी है, कहा जाता है की उसके अन्दर मीठे पानी का एक स्रोत है।यहाँ की सुन्दरता के कुछ नज़ारे आप भी देखिये-
आकर्षक समुद्र के साथ साथ बादलों की सुन्दरता 
 समुद्र और सुनहरी रेत 
                 यहाँ के बाद मैंगलोर के लिए रवाना हुए और होटल नालपड रेजीडेंसी में चेक-इन कर के कुछ देर आराम करने के बाद सोचना शुरू किया कि सूर्यास्त देखने के लिए जाएँ तो कहाँ जाएँ?माल पे और कापू बीच बहुत दूर थे तो लगा बस सूर्यास्त तक ही पहुँच पाएंगे तो होटल में पता करने से ज्ञात हुआ कि पनाम्बूर जाना ज्यादा उचित रहेगा क्यूंकि वो मैंगलोर से सबसे नजदीक में है मात्र तेरह किलोमीटर की दूरी में।
               इस बीच को पनाम्बूर का नाम इसके पोर्ट के नजदीक होने के कारण दिया गया है,पनाम का मतलब होता है पैसा। शहर से नजदीक होने के कारण ये यहाँ के सभी समुद्र तटों से ज्यादा भीड़-भाड़ से भरा हुआ है।ये समुद्र तट पोर्ट के नजदीक और इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित है।यहाँ पर एक दो कोल् फैक्ट्रीयों के होने के कारण यहाँ की रोड ऐसी लगती है जैसे काली ग्रीस सडक में गिरी हो।पर समुद्र तट सड़क के बहुत ही नजदीक है और बीच लोगों की भीड़ से भरा हुआ।यहाँ पर बच्चों के खेलने के लिए भी बहुत इंतजाम है,और बहुत से वाटर स्कूटर भी थे,हम तो बच्चे के साथ नहीं जा पाए।
 पेनाम्बूर समुद्र तट का सूर्यास्त


रेतमें आती हुयी लहरें 

               लहरों का आन्नद उठाते हुए और सूर्यास्त देखने के बाद ख्याल आया कि वापस होटल चलना चाहिए, और रात को कादल में डिनर करने के बाद अगले दिन के लिए प्रोग्राम बनाते हुए सो गए, क्यूंकि हमारे प्लान में दुबारे जाना भी जुड़ गया था,तो अगली पोस्ट में मिलते हैं दुबारे में
इस यात्रा की सभी कड़ियाँ-
कुर्ग (Coorg)
तालाकावेरी:कावेरी का उद्गम स्थल (Talakaveri: Origin of Kaveri River)
बेकाल फोर्ट( Bekal Fort)
मैंगलोर आकर्षण :सोमेश्वर और पेनाम्बूर समुद्र तट (Mangalore attractions: Someshwar and Panamboor beach)
निसर्गधाम(Nisargdham)




Friday 12 July 2013

बेकाल फोर्ट( Bekal Fort)

               तालाकावेरी से नीचे उतर कर नाश्ता किया और कासरगोड की रोड को पूछना शुरू किया तो पता चला की बेकाल तक रोड की हालत तो बस ठीक ठाक ही है, पर जब इतने चर्चे सुन के घर से देखने का मन बना के निकले थे ,तो आगे बढना तो तय ही था ,तो निकल पड़े कान्हागढ़-कासरगोड(kanhagad-kasargod)रोड पर।अब बात करते हैं सड़क की, कुल जमा बयानाब्बे किलोमीटर में से लगभग साठ किलोमीटर तक तो बस संकरी सी सडक ही थी, जिसके दोनों ओर दिख रहा था घना  जंगल।आगे पीछे गाड़ियों के दर्शन भी नहीं हो रहे थे,  इसलिए मन कर रहा था कि बस जल्दी से पहुँच ही जाएँ,पर गाड़ी पहुँचती तो अपने समय से ही है ।अंततः हमें अच्छी सड़क मिली। सकरी सड़कों के बाद अच्छी सड़क का महत्व बढ़ जाता है और वो कुछ ज्यादा ही अच्छी लगने लगती है। तो मजे से गाने सुनते सुनाते,सडक को एन्जॉय करते हुए आगे बढ़ चले।  इस सड़क पर पढ़ते हुए पता नहीं कैसे माइंड से स्लिप हो गया की हमें तो बेकाल जाना है, और जीपीएस ने साथ देना छोड़ दिया तो हम कासरगोड(Kasargod) का रास्ता पूछने लगे,इस तरह से आठ-दस किलोमीटर और जुड़ गये हमारे सफ़र में।जहाँ से याद आया वहां से फिर वापस हो लिए बेकाल फोर्ट की ओर।यहाँ पर पार्किंग के लिए काफी जगह प्रदान की गयी है,पहले तो गाड़ी एकदम नारियल के पेड़ के नीचे पार्क कर दी थी,उतर के नारियलों को गिरते हुए देखा तो फिर वहां से हटा कर दूसरी जगह लगायी। यहाँ पहुँच कर बहुत तेज गर्मी का अनुभव हो रहा था तो कोल्ड ड्रिंक वगेरह के बाद बच्चे को गर्मी से बचने के लिए हैट लिया, और चल पड़े किले के अन्दर।बेकाल फोर्ट के बारे में जानकारी के लिए पढ़िए -
           तीन सौ साल बेकाल फोर्ट केरल के कासरगोड जिले में स्थित है,जो कि यहाँ का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक महत्व का किला है।समुद्र तल से इसकी उंचाई मात्र एक सौ तीस फीट है।इसका निर्माण शिवाप्पू नायक ने सन पंद्रह सौ दो में सुरक्षा के द्रष्टिकोण से करवाया था।यहाँ पहुच कर लगता है कि नजरे यहीं थम सी जाएँ, एक तरफ दिखता हुआ अरब सागर तो दूसरी तरफ किले के सुन्दर नज़ारे।इसे भारत के सात आश्चर्यों में से एक माना जाता है।यहाँ पर बच्चों के लिए एक पार्क भी है जो कि बेकाल पार्क के नाम से मशहूर है।अब जैसा कि मेरा ये समुद्र दर्शन का यह पहला अनुभव था तो प्रसन्नता का कोई ठिकाना ही नहीं रहा, वहीँ दूसरी ओर मेरी बेटी का भी पहला अनुभव था मात्र चार महीने की उम्र में। क्यूंकि हम लोग नार्थ इंडिया से है, तो आसानी से देखने का मौका नहीं मिल पाता है,तो समुद्र की लहरों को देखकर ऐसा लग रहा था कि ताउम्र इन्हें देखते ही रहो।बहुत तेज धूप और आगे जाने की जल्दी के कारण यहाँ से विदा लेनी पड़ी। कुल मिला कर बेकाल फोर्ट जाने का निर्णय अति उत्तम रहा और केरल जा कर इसे छोड़ना तो अपनेआप में ऐसा है कि बहुत कुछ छुट गया।तो इस तरह से अगली पोस्ट में मिलते है मंगलौर में तब तक के लिए आप भी यहाँ के नज़रों का आन्नद उठाइए-          
बेकाल फोर्ट और साथ में दिखता हुआ समुद्र                     
   

                     यहाँ पर बार बार आती हुयी लहरों को देख के याद आया, बॉम्बे मूवी का गाना "तू ही रे,तू ही रे ,तेरे बिना मैं कैसे जियूं ",जिसकी शूटिंग बेकाल फोर्ट और बेकाल बीच में हुयी थी।



Tuesday 2 July 2013

तालाकावेरी:कावेरी का उद्गम स्थल (Talakaveri: Origin of Kaveri River)

          रात को इतनी अच्छी नींद आई कि सुबह चार बजे ही आँख खुल गयी, और पांच बजे तक तो हम अपने होमस्टे से चेक-आउट कर के निकल पड़े  भागमंडला होते हुए तालाकावेरी के लिए। मदिकेरी से भागमंडला तक के चालीस  किलोमीटर तो आराम से निकल गए क्यूंकि वहां तक मंगलौर हाईवे था, पर उसके आगे के आठ किलोमीटर तक रोड की हालत सही नहीं थी,पूरे साढ़े तीन घंटा लग ही गया तालाकावेरी तक पहुँचते पहुँचते।यहाँ इतनी तेज हवा बहती है कि मनो गाल पर थप्पड़ ही लगा रही हो।तो कार के अन्दर ही पहले सान्वी को ब्लैंकेट में लपेटा और फिर बाहर निकले।तालाकावेरी एक धार्मिक महत्व की जगह है। 
           भागमंडला दक्षिण की  काशी के नाम से भी विख्यात है। भगंद ऋषि ने  यहाँ शिवलिंग की स्थापना की गयी थी,तब से ये जगह  भागमंडला के नाम से प्रसिद्ध हुयी।यहाँ पर कई छोटे बड़े मंदिर और तीन नदियों कावेरी, कनिका और सुज्योती का संगम होने के कारण ये जगह  धार्मिक महत्व की है, और यहाँ से आगे तालाकावेरी में कावेरी नदी का उद्गम स्थल भी है जो  कि ब्रह्मगिरी पहाड़ के ढलान पर स्थित है।यहाँ की समुद्र तल से ऊंचाई चार हजार पांच सौ फीट है।यहाँ पर कुंड के पीछे ब्रहाम्कुंडिका से कावेरी नदी का उद्गम होता है।कुर्ग के लोग कावेरी नदी की पूजा करते हैं और दूर दूर से इस कुंड में स्नान करने आते हैं।
तालाकावेरी का कुंड 
              कुंड से थोडा ऊपर मंदिर है,जिसके सामने से सीढियाँ जाती है,जोतालकावेरी की चोटी पर ले जाती हैं। एक बार चढ़ना शुरू कर दो तो ये ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती। मन करता है की अब तो रूक ही जाओ, पर हम लोग चार महीने के बच्चे के साथ जैसे तैसे चढ़ ही गए।
सीढियाँ जो की अंतहीन सी लग रही थी 
           ऊपर पहुँचने के बाद हवा का वेग इतना महसूस हो रहा था कि मानो उडा ही ले जाएगी।दृश्यों के बारे में तो कहना ही क्या, एक तरह कुर्ग हरियाली ही हरियाली,तो दुसरी तरफ केरल की पहाड़ियां। नजर घुमाओ तो दिखती है ब्रह्मगिरी की पहाड़ियों पर घुमती हुयी पवन चक्कियाँ।कुल मिलकर इतनी सीढियां चढने से जो थकान लगी तो वो पलभर में गायब हो गयी।






         इन सब नजारों को देख ही रहे थे कि याद आया हमें और आगे तक जाना है और फिर तालाकावेरी से विदा ले कर उतर आये। नीचे उतर कर आसपास में नाश्ता किया और कन्हागढ़ कासरगोड रोड में आगे बढ़ गए,क्यूंकि बेकाल फोर्ट तो देखना ही था,तो फिर मिलते हैं बेकाल फोर्ट और मंगलौर मे.