Friday 12 July 2013

बेकाल फोर्ट( Bekal Fort)

               तालाकावेरी से नीचे उतर कर नाश्ता किया और कासरगोड की रोड को पूछना शुरू किया तो पता चला की बेकाल तक रोड की हालत तो बस ठीक ठाक ही है, पर जब इतने चर्चे सुन के घर से देखने का मन बना के निकले थे ,तो आगे बढना तो तय ही था ,तो निकल पड़े कान्हागढ़-कासरगोड(kanhagad-kasargod)रोड पर।अब बात करते हैं सड़क की, कुल जमा बयानाब्बे किलोमीटर में से लगभग साठ किलोमीटर तक तो बस संकरी सी सडक ही थी, जिसके दोनों ओर दिख रहा था घना  जंगल।आगे पीछे गाड़ियों के दर्शन भी नहीं हो रहे थे,  इसलिए मन कर रहा था कि बस जल्दी से पहुँच ही जाएँ,पर गाड़ी पहुँचती तो अपने समय से ही है ।अंततः हमें अच्छी सड़क मिली। सकरी सड़कों के बाद अच्छी सड़क का महत्व बढ़ जाता है और वो कुछ ज्यादा ही अच्छी लगने लगती है। तो मजे से गाने सुनते सुनाते,सडक को एन्जॉय करते हुए आगे बढ़ चले।  इस सड़क पर पढ़ते हुए पता नहीं कैसे माइंड से स्लिप हो गया की हमें तो बेकाल जाना है, और जीपीएस ने साथ देना छोड़ दिया तो हम कासरगोड(Kasargod) का रास्ता पूछने लगे,इस तरह से आठ-दस किलोमीटर और जुड़ गये हमारे सफ़र में।जहाँ से याद आया वहां से फिर वापस हो लिए बेकाल फोर्ट की ओर।यहाँ पर पार्किंग के लिए काफी जगह प्रदान की गयी है,पहले तो गाड़ी एकदम नारियल के पेड़ के नीचे पार्क कर दी थी,उतर के नारियलों को गिरते हुए देखा तो फिर वहां से हटा कर दूसरी जगह लगायी। यहाँ पहुँच कर बहुत तेज गर्मी का अनुभव हो रहा था तो कोल्ड ड्रिंक वगेरह के बाद बच्चे को गर्मी से बचने के लिए हैट लिया, और चल पड़े किले के अन्दर।बेकाल फोर्ट के बारे में जानकारी के लिए पढ़िए -
           तीन सौ साल बेकाल फोर्ट केरल के कासरगोड जिले में स्थित है,जो कि यहाँ का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक महत्व का किला है।समुद्र तल से इसकी उंचाई मात्र एक सौ तीस फीट है।इसका निर्माण शिवाप्पू नायक ने सन पंद्रह सौ दो में सुरक्षा के द्रष्टिकोण से करवाया था।यहाँ पहुच कर लगता है कि नजरे यहीं थम सी जाएँ, एक तरफ दिखता हुआ अरब सागर तो दूसरी तरफ किले के सुन्दर नज़ारे।इसे भारत के सात आश्चर्यों में से एक माना जाता है।यहाँ पर बच्चों के लिए एक पार्क भी है जो कि बेकाल पार्क के नाम से मशहूर है।अब जैसा कि मेरा ये समुद्र दर्शन का यह पहला अनुभव था तो प्रसन्नता का कोई ठिकाना ही नहीं रहा, वहीँ दूसरी ओर मेरी बेटी का भी पहला अनुभव था मात्र चार महीने की उम्र में। क्यूंकि हम लोग नार्थ इंडिया से है, तो आसानी से देखने का मौका नहीं मिल पाता है,तो समुद्र की लहरों को देखकर ऐसा लग रहा था कि ताउम्र इन्हें देखते ही रहो।बहुत तेज धूप और आगे जाने की जल्दी के कारण यहाँ से विदा लेनी पड़ी। कुल मिला कर बेकाल फोर्ट जाने का निर्णय अति उत्तम रहा और केरल जा कर इसे छोड़ना तो अपनेआप में ऐसा है कि बहुत कुछ छुट गया।तो इस तरह से अगली पोस्ट में मिलते है मंगलौर में तब तक के लिए आप भी यहाँ के नज़रों का आन्नद उठाइए-          
बेकाल फोर्ट और साथ में दिखता हुआ समुद्र                     
   

                     यहाँ पर बार बार आती हुयी लहरों को देख के याद आया, बॉम्बे मूवी का गाना "तू ही रे,तू ही रे ,तेरे बिना मैं कैसे जियूं ",जिसकी शूटिंग बेकाल फोर्ट और बेकाल बीच में हुयी थी।



3 comments:

  1. बहुत सुन्दर जगह है ! गाने की शूटिंग का किस्सा और भी फेमस बना देता है इस जगह को !!

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    1. हाँ,गाने को वजह से ये जगह ज्यादा फेमस हो गयी है

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  2. फोर्ट तो दिख नही रहा हर्षा

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