आज के यात्रा वृतांत में फिर से आप लोग लोकल बैंगलोर को ही एक्सप्लोर करेंगे और आज का विषय है "बरगद का पेड़।" एक बार कभी बचपन में हम लोग अहमदनगर(महाराष्ट) गए थे, तो वहां खूब सरे बरगद के पेड़ों से भरी हुयी सड़कें देखने को मिलती थी। तो यहाँ जाने का काफी उत्साह था मन में कि शायद कुछ पुरानी यादें ताजा हो जाएँगी। बैंगलोर में इस जगह को बिग बैनियन ट्री (Big Banyan Tree ) के नाम से जाना जाता है। यहाँ के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए आपको थोडा मेहनत तो करनी ही पड़ेगी, तो देर किस बात की है जल्दी से क्लिक करिए-
बरगद के पेड़ की हमारे देश में बहुत ही मान्यता है, कहीं धार्मिक रूप में तो कहीं किसी और रूप में,और तो और रहा ये हमारे देश का राष्ट्रिय वृक्ष भी है। यूँ तो बरगद का पेड़ अपनेआप में ही काफी बड़ा होता है,पर हमारे भारत में कुछ बरगद के पेड़ बिग बैनियन ट्री के नाम से जाने जाते हैं, जिनमे से एक हमारे बैंगलोर में भी स्थित है। इन बरगद के पेड़ों की लोकेशन इस प्रकार से है-
१-थिम्माम्मा मार्रिमाणु(Thimmamma Marrimanu)-इस पेड़ का नाम थिम्माम्मा नाम की एक महिला के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने अपने पति की बहुत सेवा की। ये पेड़ आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में है। इस पेड़ की उम्र दो सौ साल है और यह आठ एकड़ एरिया में फैला हुआ हुआ है।इसे विश्व के सबसे बड़े बरगद के पेड़ के नाम से जाना जाता है।
२-महान बरगद के पेड़(The Great Banyan Tree)-लगभग दो सौ या ढाई सौ साल पुराना यह बरगद के पेड़ कोलकाता के बोटेनिकल गार्डन में स्थित है। लगभग तीन सौ तीस मीटर लम्बी रोड इस पेड़ की परिधि पर बनी हुयी है।
३-डोड्डा अलदा मारा (Dodda Alada Mara)-ये है हमारी आज की डेस्टिनेशन। चार सौ साल पुराना यह पेड़ बंगलौर -मैसूर के रास्ते पर स्थित एक गाँव में है।ये अकेला वृक्ष तीन एकड़ जगह में फैला हुआ है और इसकी परिधि भी लगभग दो सौ पचास मीटर है। ये जगह कई पेड़ों का एक समूह सा लगती है, जी कारण माहौल काफी मनमोहक बन जाता है और यह जगह बैंगलोर का एक आकर्षक पर्यटन स्थल बना हुआ है। यहाँ के आसपास में सावनदुर्गा नामक पर्यटन स्थल भी है,वहां जाने का सौभाग्य तो हम लोगों को अभी तक नहीं हुआ,चलिए कभी ओर चलते हैं,क्यूंकि एक ही दिन में सब कर लेंगे तो अगले वीकेंड्स का क्या होगा?
ये जगह बैंगलोर से अठाईस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है,मैसूर रोड में कुम्बलागोड़ तक तो रास्ता सही है,पर उससे राईट लेने के बाद के सात किलोमीटर थोडा कठिन है, इसलिए बरसात के दिनों में जाना हितकारी नहीं है। यहाँ पेड़ की शाखाओं के मध्य बैठने के लिए कई सारे बेंच बने हुए है और एक छोटा सा मंदिर भी है,जो कि लोगों के आकर्षण का केंद्र है। यहाँ पर बहुत से बन्दर पाए जाते हैं तो बच के निकलना पड़ता है।खाने का कोई सामान है तो बैग तो अतिआवश्यक है,वर्ना कुछ नहीं बचेगा।अगले यात्रा वृतांत के साथ पुन्ह: आने के वादे के साथ अभी के लिए यहाँ के द्रश्यों का आन्नद उठाते हुए अनुमति दीजिये -
पेड़ के बारे में पूरी जानकारी |
बरगद की शाखाएं है या अलग अलग पेड़ |
मंदिर |
बड़ी बड़ी शाखाएं और लोगों द्वारा उन पर लिखे गए नाम |
देखिये क्या हुआ अगर खोलना नहीं आता तो,फिर भी माजा पिया जा सकता है |