Monday 5 January 2015

Memorials In National Mall, Washington Dc

            जब एक बार  बिना किसी परेशानी के एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम जा कर आसानी से वापस आ गए तो अपने आप ही आत्म विश्वास अपने चरम पर पहुँच गया,लगने लगा कि प्रतिदिन कहीं न कहीं घूमने निकल जाना चाहिए। पर ऑफिस के काम की वजह से दिन में बाहर नहीं जा सकते थे, और मौसम को देखते हुए बहुत समय तक शाम को बाहर निकलना तो हर तरह से असंभव ही था,पर दाद देनी पड़ेगी इन विकसित देशों में भवन निर्माण कला एवम थर्मोस्टेट तकनीक की, बाहर भले ही पारा शून्य से कई अंक नीचे हो पर कमरे के अंदर एक पतले कम्बल की जरुरत भी महसूस नहीं होती थी।इसलिए हमारे पास कमरे में बैठकर एक खुशनुमा वीकेंड के इन्तजार करने के सिवा और कोई चारा नहीं था,सो कई दिन आराम फरमाते हुए बर्फवारी के मजे लिए,उत्तर भारत से होने के कारण बर्फ कभी भी हमारे लिए आश्चर्य का विषय नहीं बन पायी,क्यूंकि बचपन से ही बर्फ के मजे लेते हुए बड़े हुए हैं,पर यहाँ अपने देश के मुकाबले कुछ अन्तर देखने को मिले,उन्हें बारीकी से देखते हुए जितनी जल्दी मौका मिला उतनी जल्दी हम एकबार फिर से नैशनल मॉल के टाइडल बैसिन (Taidal Basin) पहुंचे,जिसमे एक तरफ तो पानी की लहरे जलक्रीड़ा कर रही थी,वहीँ दूसरी तरफ पानी इस कदर जमा हुआ था कि उस पर पक्षी आराम से बैठे हुए थे।.
आधी जमी हुए टाइडल बेसिन की एक झलक  
               ये तो बस एक झलक ही है कि किस तरह से अच्छी खांसी धूप के बावजूद रह-रह कर होने वाली बर्फवारी किस तरह सबकुछ जमा रही थी।
                 टाइडल बेसिन जाने से पहले इस बारे में बात करते हैं जो कि अपने देश से कुछ अलग लगी,सबसे पहली तो ये कि यहाँ पर मौसम विभाग का अपना एक अलग टीवी चैनल आता है,जिसे लोग पूरा दिन बैठकर देखते हैं कि कब आ रहा है बर्फ का तूफान और लोगों के साथ-साथ यहाँ के तूफान भी इस कदर वक्त के पाबन्द हैं कि मजाल है जो एक दो मिनट का भी हेर-फेर हो जाये।यदि मौसम विभाग की चेतावनी अधिक बर्फवारी की हो तो पहले से ही सड़कों पर नमक का छिड़काव कर दिया जाता है जिससे बर्फ आसानी से गल जाये और जैसे ही तूफान रुके तो जन-जीवन सामान्य रूप से चलने लगे।यहाँ पर लोग बर्फ के रुकते ही अपने अपने घरों के सामने से तुरंत ही बर्फ साफ़ कर देते हैं ,शुरू में कुछ आश्चर्य सा हुआ पर बाद में किसी ने बताया कि यहाँ का ये नियम है कि अगर आपके घर के बाहर कोई फिसल गया तो उसे पूरा मुआवजा देना पड़ता है,धन्य है ये राष्ट्र और यहाँ के नियम,वैसे एक तरह से अच्छा भी है।वो कहते हैं कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं,सो कई सारे बर्फीले तूफ़ानों के बाद हमें एक धूप वाला वीकेंड मिल ही गया।पिछली पोस्ट के अनुसार ही इस बार भी हम लोग एल-इन्फेंट प्लाजा स्टेशन तक बस और मेट्रो से पहुँच गए।अबकी बार का हमारा लक्ष्य था टाइडल बेसिन के चारों और बने स्मारकों के दर्शन करना या यूँ कहिये कि नेशनल मॉल के चारों और का चक्कर काटना।टाइडल बेसिन के आसपास के इलाके को नेशनल मॉल के नाम से जाना जाता है,म्यूज़ियम और मेमोरियल्स के इस शहर के मुख्य आकर्षण यहीं पर स्थित है
१-वाशिंगटन मोनिमेन्ट
२-जेफरसन मेमोरियल 
३-मार्टिन लूथर मेमोरियल 
४-लिंकन मेमोरियल
५-वर्ल्ड वॉर टू मेमोरियल
भौगोलिक दूरियां
                     
एल-इन्फेंट प्लाजा स्टेशन से पगयात्रा करते हुए,वहां के भवन निर्माण कला एवम शांत सी दिखती हुयी सड़कों के दर्शन के साथ साथ सूर्य देव की कृपा का भी आनन्द करते हुए हमलोग वाशिंगटन मोनिमेन्ट तक पहुँच ही गए, कुछ दृश्य देखिये-r








         
                   वाशिंगटन मोनिमेन्ट,यहाँ के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंटन की याद में बनाया गया मेमोरियल है,लगभग पांच सौ छप्पन फ़ीट ऊँचा ये स्मारक लगभग सभी जगहों से दिखाई पड़ता है,इसके चारों और गोलाई से पचास झंडे ले हुए हैं जोकि यहाँ की पचास स्टेट को दर्शाते हैं। 
मोनिमेंट एवम उसके चारों ओर लगे झंडे
इसके बाद हमलोग फिर से पदयात्रा करते हुए टाइडल बेसिन पहुंचे,यहाँ पहुँच कर ये बताना मुश्किल था लगा कि आसमान और पानी दोनों में कौन ज्यादा नीला है,एक तरफ खिली हुयी धूप के साथ दिखता नीला आसमान,वहीँ दूसरी ओर सुन्दर सी झील,दोनों छाँटना मुश्किल था कि कौन ज्यादा सुन्दर है?
टाइडल बेसिन के एक सिरे से दूर दिखता हुआ जेफरसन मेमोरियल




दूसरी तरफ दिखता हुआ वाशिंगटन मोनिमें
               टाइडल बेसिन वाशिंगटन की एक नहर और पोटमैक नदी के बीच बनी हुयी लेक है,जिसकी परिधि पर सारे मेमोरियल एवम म्यूज़ियम बने हुए हैं,इस तरह से हमारे यहाँ का सफर टाइडल बेसिन के एक सिरे से शुरू होकर उसी पर उसी सिरे पर ख़त्म होना था या यूँ कहिये कि हमें इस आर्टिफिशल लेक का एक पूरा चक्कर लगाना था और वहां बने हुए दर्शनीय जगहों को देखना था।
लिंकन मेमोरियल
                    यहाँ पर कुछ समय व्यतीत करने के बाद आगे बढ़ ही रहे थे, तो कुछ दूरी पर ऐसा आभास हुआ जैसे किसी सफ़ेद वस्तु के पास काफी लोगों की भीड़ लगी हुयी है,हम लोगों ने सोचा शायद बर्फ का ढेर हो पर जो आदमी की आँख नहीं देख पायी वो कैमरा की आँख ने कर दिखाया,बहुत ज़ूम कर के फोटो लिया तो पता लगा सामने भी एक मेमोरियल ही है -
जिसे हम बर्फ का ढेर समझने की भूल कर रहे थे वो ये था
                       इसके बाद हमारी राह का अगला पड़ाव था गुम्बदनुमा आकार में बना हुआ जेफरसन मेमोरियल जो कि चेरी के पेड़ों से घिरा हुआ है।ये यहाँ के तीसरे राष्ट्रपति के सम्मान में बना हुआ है ,जिनका उन्नीस फ़ीट ऊँची मूर्ति यहाँ लगी हुयी  है।





                      ये कुछ द्रश्य ऐसे लग रहे थे जैसे  किसी पोस्टकार्ड को देख रहे हैं,आकर्षक मेमोरियल के साथ साथ पानी में दीखते हुए उनके प्रतिबिम्ब कुछ इस तरह से बाँध लेते हैं कि नजर हटाने का मन ही नहीं होता। यहाँ से आगे बढ़ कर मार्टिन लूथर मेमोरियल के दर्शन करते हुए हम वर्ल्ड वॉर टू मेमोरियल पहुंचे ,जिसे दुसरे विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिको के सम्मान में बनाया हुआ है,अंडे के आकृति का ये मेमोरियल तैंतालीस फ़ीट लम्बे दो आर्च से मिलकर बना है,जो कि अटलांटिक एवं पैसिफिक दोनों और के शहीदों को प्रतिबिंबित करते हैं। इस पर बने छप्पन स्तम्भ यहाँ के स्टेट्स को दर्शाते हैं। दोनों आर्च के बीच कई पानी के फव्वारे बने हैं,जिनके द्वारा ये स्थल पानी से भरा रहता है,जिस पानी में पर्यटक अपने पैर डूबाकर थकान को दूर कर सकते हैं,यहाँ के सभी मेमोरियल्स में हमें ये जगह सबसे अच्छी लगी,पर यहाँ पर अपने कैमरा ने गड़बड़ कर दी,सो कुछ थोड़े से ही चित्र आ पाये-
वर्ल्ड वॉर टू मेमोरियल 
             
वर्ल्ड वॉर टू मेमोरियल तक पहुँचते-पहुँचते काफी थकान होने लगी और साथ के साथ शांम होने की वजह से ठंडा भी बढ़ने लगा था,तो सोचा आज के लिए इतना काफी है, अब बची हुयी जगह अगले दिन देखेंगे और चल पड़े फिर से वापस अपने ठिकाने की और। तब तक के लिए अनुमति दीजिए,फिर मिलते हैं जल्दी ही अगली पोस्ट के साथ। 


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-