Sunday 26 April 2015

Orlando Magic Kingdom

                     जब बर्फीले तूफानों के कारण वाशिंगटन में होटल से बाहर निकलना ही मुश्किल हो गया, तो किसी अच्छे मौसम वाली जगह जाने की इच्छा जोर पकड़ने लगी। ऑफिस से छुट्टी मिलना तो असंभव ही था,इसलिए जहाँ भी जाना था सप्ताहान्त में  ही जाना था। मेरी जानकारी के अनुसार अगर फ़रवरी के महीने में अच्छे मौसम की तलाश करनी हो तो या तो वेस्ट कोस्ट जाना बनता है,या फ्लोरिडा या फिर टेक्साज। वेस्ट कोस्ट इतना दूर था कि वायुयान से जाने पर भी एक बार में ही सात घंटे तो कम से कम लगने ही थे,इसलिए वेस्ट कोस्ट की तरफ के विकल्प स्वतः ही किनारे हो गए। टेक्साज जाने का बहुत ज्यादा मन नहीं था,तो एक मात्र विकल्प फ्लोरिडा राज्य का ही रहा। अब फ्लोरिडा में ही हिट लिस्ट के तौर पर दो नाम दिमाग में थे या तो मायामी का समुद्र तट या फिर ऑरलैंडो का डिज्नीलवर्ल्ड।मन  तो दोनों में से किसी को भी छोड़ने को तैयार नहीं था, क्यूंकि चुनाव करना अपनेआप में एक कठिन काम था। एक तरफ विदेशी समुद्र रेखा को छूने का मन था तो वहीँ दूसरी तरफ डिज्नी वर्ल्ड  को भी छोड़ना भी मुश्किल हो रहा था ,एवं दोनों को एक साथ देखना संभव नहीं था। काफी सोच विचार के बाद बच्चे का साथ होने के कारण मायामी जाने का विचार छोड़ दिया और इस तरह से ऑरलैंडो के नाम पर मुहर लग गयी। अब अगला काम था टिकट बुकिंग का जिसे हमलोगों ने आसान समझ रखा था पर इस काम में बड़ा लम्बा समय लग गया क्यूंकि हमारे पास एचडीएफसी बैंक का फोरेक्स कार्ड था जो  वेबसाइट पर ऑनलाइन ट्रांजकशन नहीं कर पा रहा था,धन्य है प्रभु एचडीएफसी बैंक की सेवायें। किसी को दुसरे देश भेजने के बाद कुछ खर्च कर पाना भी मुश्किल लगने लगा। परन्तु करीबन दो-तीन मेहनत लगा  कर ये पता लगा कि एक्सपीडीया नाम की वेबसाइट पर शायद कार्ड काम कर जाए,अब देर करने का तो कोई कारण ही नहीं था आनन फानन में अट्ठाइस फरवरी,२०१४ की शाम को जाने की एवं २ मार्च की रात वापसी की टिकट बुक करा दी। इस तरह से यहाँ आ कर के एक टिकट करने में भी अपनी बहुत बड़ी विजय लगने लगी थी। अब इसके साथ ही ये देखकर  मोनिमेन्टल मूवीलैंड (Monumental Movieland Hotel) होटल भी बुक करा लिया कि सभी प्रमुख आकर्षणों के लिए यहाँ से शटल चलती थी एवं एयरपोर्ट से भी ये थोड़ा नजदीक ही था। आते जाते कुछ सुन्दर से प्राकृतिक दृश्य देखने को मिले।आप भी देखिये -  


झील के टापू,जो कि है या नहीं ये पता लगाना मुश्किल था। 

पानी से बाहर निकले पेड़ों की जडे और उन पर बैठे पक्षी। 

                              यहाँ पर इतना कुछ है देखने को ,कि अगर अच्छे से देखने लगो तो पूरा एक महीना भी कम हो जाये। तो दो दिन के लिए आने वाला किस तरह से और क्या क्या देख पाया ये जानने के लिए आगे क्लिक करिये-
                         ऑरलैंडो को थीम पार्क की सुनहरी दुनिया कहा जाता है !!डिज्नी वाल्ट ने ही यहाँ पर चार पार्क बनाये हैं जिन्हे मैजिक किंगडम, एपकोट, एनिमल किंगडम एवं डिज्नी हॉलीवुड स्टुडिओ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा फिल्मो के शौक़ीन लोगों के लिए यूनिवर्सल स्टूडियो एवं पानी में  रूचि रखने वालों के लिए सीवर्ल्ड और वेट एंड वाइल्ड नाम के दो वाटर पार्क हैं। अब देखने को इतना कुछ और समय है दो दिन का,पूरे दो दिन भी नहीं क्यूंकि रविवार की शाम तो वापस ही जाना था डिज्नी वोल्ट द्वारा निर्मित जादुई दुनिया के शहर में आये थे तो चार में से एक पार्क तो देखना बनता ही था और सबसे पहले नंबर पर मैजिक किंगडम को ही बताया जाता था तो वहीँ जाने का मन बना लिया। ऐसा करते करते जाने का दिन भी आ गया। जाते समय की उड़न रोनाल्ड रीगन से तथा वापसी की डलस एयरपोर्ट से भरनी थी।रोनाल्ड रीगन हमारे वहां से ज्यादा दूर नहीं था सो टेक्सी बुक करा ली थी और डलस एयरपोर्ट से वापसी के लिए शेयर्ड कैब करायी परन्तु उसका किराया भी  नहीं था पूरे पैतालीस डॉलर। खैर हमारी टेक्सी समय से आ गयी थी और हम निर्धारित समय पर एयरपोर्ट पहुँच गए। इसके बाद अब सुरक्षा जाँच शुरू हुयी,वो ही सब जूते उतारो, जैकेट उतारो। किसी तरह से थोड़ा का पानी  बच्चे के पीने ले लिए ले जाने की अनमति मिली। फ्लाइट का समय हालांकि दो घंटे का ही था पर हमेशा से डेल्ही बैंगलोर की फ्लाइट की तरह ही बोरियत से भरा हुआ था,पर समय तो कट ही जाता है सो कट ही गया। साथ में केवल केबिन बैग होने के कारण हम लोग जल्दी से बाहर निकल गए और वहां पहले से ही टेक्सी ड्राइवर हमारा इन्तजार कर रहा था। उसने जल्द ही हमें होटल पहुंचा दिया। चेक इन की औपचारिकता के बाद जब कमरे में पहुंचे तो मौसम कुछ जाना पहचाना सा लगा,जी हाँ वहां का मौसम बैंगलोर का जैसा होता है। अब तो प्रसन्नता का कोई ठिकाना ही नहीं था। अमेरिका के होटल की ये बात सबसे अच्छी लगी कि वहां हर कमरे में माइक्रोवेव और चाय/कॉफ़ी बनाने की सुविधा दी जाती है,हमने तुरंत फुरन्त चाय बनाई और वाशिंगटन से लाया खाना गर्म करके खा लिया और सो गये!!एक तो बहुत थके हुए थे और दूसरे दिन के लिए भी ताकत बचा के रखनी थी। अच्छे मौसम की वजह से अमेरिका में पहली खिड़की खोल कर सो रहे थे इसलिए ऐसी नींद आई कि पता ही नहीं चला कब सवेरा हो गया। 
                       सुबह तैयार होने बाद होटल के रिसेप्शन में पहुंचे तो पता लगा शटल में अपने जाने का समय बदल लिया,समय तो बदला माना जा सकता है उसके बाद निर्धारित समय पर भी नहीं आई। करीबन दो ढाई घंटे का समय इससे हमारा बरबाद हुआ। अब तक भूख भी लगने लगी तो सोचा पिज़्ज़ा हट जा कर पिज़्ज़ा ले आते हैं,परन्तु जब तक वापस आये तब तक शटल आ चुकी थी। पिज़्ज़ा साथ में ले के जाने के अलावा अब कोई विकल्प नहीं था। शटल ने पूरे होटलस में घूमने की वजह से यहाँ आधा घंटा लगना था वहां एक घंटा लगाया!! बहुत समय बरबाद किया,इससे ये सबक मिला कि अगले दिन के लिए शटल पर निर्भर रहने की बेवकूफी नहीं करनी है। ये कोई सुविधा नहीं देगी अपितु और परेशानी ही पैदा करेगी। शटल ने हमको एपकोट के बाहर छोड़ दिया। ये भी डिज्नी का थीम पार्क है जो आकर में मैजिक किंगडम का दुगना होगा,यहाँ की थीम मनुष्य के एचीवमेंट एवं नए अविष्कार थे या फिर टूमॉरोलैंड भी कह सकते हैं। अब तक हमलोगों को काफी भूख लग आई थी तो पहले पेट पूजा की सोची। एपकोट की पार्किंग के पास बने एक टिन शेड में बैठकर पेट की भूख मिटाई। यहाँ से पैदल चलकर हम लोगों को मोनोरेल के स्टेशन तक जाना था।यहाँ से जाने के लिए दो तरीके थे या तो बस या मोनोरेल। यहाँ बस की पहचान ये होती है कि इन पर डिज्नी लिखा रहता है। मोनोरेल से हमको टिकट सेंटर तक जाना था और आगे का रास्ता फेरी बोट से आसपास के दृश्य देखते हुए तय करने का मन बनाया था।देखिये डिज्नी की बस-
डिज्नी पार्क की बस 
                     मोनोरेल, ये एक तेज गति से चलने वाली ट्रैन है जो डिज्नी के सभी पार्कों को एक दुसरे से जोड़ती है ,इस्सके द्वारा एपकोट से मैजिक किंगडम का सफर पांच मिनट में तय किया जा सकता है। पदयात्रा करते हुए मोनोरेल के स्टेशन तक जा ही रहे थे कि एपकोट में स्पेस शिप के दर्शन भी हो गये। 
स्पेस शिप अर्थ 
थीम पार्क के ऊपर दौड़ती हुयी मोनोरेल 
                       मोनोरेल  ने हमें फेरी बोट के स्टेशन तक पहुँचाया यहाँ से अब मैजिक किंगडम की दूरी सिर्फ पांच मिनट की रह गयी थी। ये रहा फेरी बोट के स्टेशन का गेट एवं फेरी बोट -
फेरी बोट स्टेशन         
फेरी बोट
                           फेरी बोट से क्लिक करे हुए कुछ दृश्य-
सिंड्रेला का महल 

डिज्नी रिसोर्ट 

पानी के ऊपर उड़ती हुयी मोनोरेल 
                    इस तरह के दृश्यों को देखते हुए हमलगो मैजिक किंगडम के बाहर पहुँच गए।अब यहाँ सुरक्षा जाँच कराने के बाद टिकट लेना था लेकिन जैसे ही  एक बार की जाँच करा के अंदर जा सके  कि मेरी बेटी एग्जिट वाले गेट से बाहर निकल गयी। फिर वो ही सब प्रक्रिया दुबारा दोहरानी पड़ी। इतने सबसे के बाद मैजिक किंगडम का गेट देखने को मिला जो कि ऐसा दिखाई पड़ता है - 
मैजिक किंगडम 
                          ये तो थी मैजिक किंगडम के प्रवेश द्वार तक पहुँचने की बात,अगली पोस्ट में देखते हैं कि आखिर क्या ऐसे जादुई चीज हैं यहाँ जिनकी वजह से इसे मैजिक किंगडम का नाम दिया गया। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये। 


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

Tuesday 21 April 2015

Dora Kelley Nature Park ,Washington Dc

                   चेरी ब्लॉसम के गुलाबी नजारो के बाद अब बारी थी उन सड़कों की जो ठण्ड के दिनों में वीरान सी दिखती थी,जब से वाशिंगटन में बसंत ऋतू आई ऐसा लगने लगा की उन सड़कों ने, उन घरों ने तो रंग ही बदल दिए हो ,चारों तरफ हरे मखमली कालीन एवं सुन्दर रंगीन फूलों से लदे पेड़ दिखाई देते थे .ऐसे खुशगवार मौसम में कहीं न कहीं घूमने निकलना तो बनता ही था .परन्तु इसके लिए सही जगह का चुनाव भी जरूरी था ,जब हम बस से पेंटागन सिटी जाते थे तो रास्ते में एक जगह गेट पर लिखा दिखता था वे तो डोरा कैली नेचर्स पार्क। ये जगह हमारे होटल से काफी नजदीक थी तो यही जाने का मन बना लिया .होटल से एक गेट तक लगभग बीस मिनट की पदयात्रा करनी होती थी और उसके बाद करीबन चार किलोमीटर की यात्रा करनी थी जिसमे प्रकृति के कई रंगों के दर्शन खुदबखुद हो गए,
सड़क के दोनों तरफ इसी तरह के हरे मैदान एवं फूलों से लदे पेड़ दिखने लगे थे 

सफ़ेद फूलों से लदे पेड़
डोरा कैली नेचर्स पार्क का प्रवेश द्वार एवं जाने के लिए बना हुआ लकड़ी का पुल 
                       ऐसे अन्य नजारों एवं यहाँ की सड़कों एवं घरों के दर्शन के लिए क्लिक करिये-


                     डोरा कैली नेचर्स पार्क,शायद ये जगह बहुत ज्यादा विख्यात नहीं है ,लेकिन बस से वाशिंगटन आते-जाते एक दिन बाहर देखने पर यहाँ का गेट नजर आ गया, तब लगा कि  अगर जाने से पहले समय आज्ञा देगा तो इसे भी देख लेंगे।हमारे होटल से इस पार्क की दूरी करीबन दो किलोमीटर से तीन सौ मीटर कम थी,मतलब आराम से चलने पर पौने घंटे पैदल रास्ता था,हम बच्चे के साथ थे तो हमारा एक घंटा लग गया,किन्तु गुनगुनी धुप में सुन्दर से दृश्यों को देखते हुए रास्ता कब निकल गया पता ही नहीं लगा।

           
भौगोलिक दूरी 

               किसी जगह को अगर अच्छे से देखना हो तो दो पहिये की गाड़ी के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता है, पूरे रास्ते हम लोग अलग अलग प्रकार के दृश्यों को देखते हुए सड़क किनारे चलते रहे,कहीं पर हरे भरे सुन्दर पेड़ थे तो कहीं पर सफ़ेद रंग के फूलों ने छटा बिखेर रखी थी तो कहीं पर माहौल गुलाबी हुआ जा रहा था। सड़कों की साफ सफाई का तो कहना ही क्या थे, जब तक वहाँ रहे तो महसूस नहीं हुआ क्यूंकि चहुँ ओर स्वच्छता के ही दर्शन होते थे ,ये बात भारत आने के बाद महसूस हुई कि कितने स्वच्छ वातावरण में रहकर आये है। रास्ते में यहाँ के कई प्रकार के घर दिखे,जिनके आगे हरी घास के खुले मैदान दिखाई पड़ते थे। यहाँ पर घर लेना बहुत ही अधिक जिम्मेदारी का काम होता है,हर घर के मालिक को अपने घर की घास खुद ही काटनी या कटवानी होती है,अन्यथा जुरमाना भरना पड़ता है। 



शायद से इंडिविजुअल हाउस है 
एक उसी प्रकार का घर र परन्तु उसके आगे पेड़ नहीं है,बस घास का मैदान है
                   इस तरह के घरों को देखने से ये मत सोचियेगा कि यहाँ अपार्टमेंटनुमा मल्टीस्टोरी घर नहीं होते, क्यूंकि अगला दृश्य एक बड़े अपार्टमेंट का है। 

एक बड़ा अपार्टमेन्ट 
इन घरों के मुख्य द्वार की सजावट 
इन घरों के मुख्य द्वार की सजावट

                     इस तरह के दृश्यों को देखते हुए जाने कब हमलोग डोरा कैली के प्रवेश द्वार तक पहुँच गए अंदाजा ही नहीं आया,और सामने से अंदर जाने का रास्ता दिखाई देने लगा 
डोरा कैली का प्रवेश द्वार 

आगे जाने के लिए बनी हुई लकड़ी की पुलिया 
                         पुल को  पार करने के थोड़ी देर बाद एक छोटी सी नदी पड़ती है, या  फिर नहर ही कह सकते हैं जिसे पार कर के ही आगे जा सकते थे ,ये अनुभव भी अपनेआप में अलग था। थोड़ी देर छोटी सी पगडण्डीनुमा कच्ची सड़क पर  चलने के बाद पक्की सड़क आती है,जिसके अलग बगल सुन्दर से घर और हरे भरे दृश्य दिखाई पड़े,कुलमिलाकर यहाँ के घरों की बनावट के दर्शन आज हो ही गए। देखिये यहाँ के कुछ दृश्य -

डोरा कैली की स्मृति में राहगीरों के बैठने के लिए बनी बैंच
संकरी सी सड़क पर चलती हुयी गाड़ियां 
पगडण्डीनुमा रास्ते में पड़ने वाली छोटी सी सुरंग जिसे पार करना जरूरी था 
अंदर से ये सुरंग कछ ऐसी दिखती थी 
रास्ते में नदी के दर्शन भी हो गए 

अबकी बार गुलाबी नही सफ़ेद फूलों के दर्शन हुए
                           अरे ये क्या,एक बार फिर गुलाबी फूलों ने अपने दर्शन दिए, परन्तु ये चेरी के नहीं हैं,ये चेरी के फूलों के मुकाबले कुछ ज्यादा पंखुड़ी वाले मतलब ज्यादा गुंधे हुए होते हैं। पर इनका नाम मेरे दिमाग से निकल गया, यहाँ कहा जाता है कि अगर कोई चेरी के फूलों को पीक ब्लूम के समय देखने से वंचित रह गया हो ,तो एक सप्ताह बाद इन्हे देख ले। 

चमकदार हरी घास के साथ दिखते हुए गुलाबी नज़ारे 

थोड़ा पास से कुछ ऐसे दिख रहे थे 
थोड़ा और करीब से ऐसे !!
                        घूमते-घूमते अब भूख भी लगने लगी थी,तो पिज्जा हट की और चले गए जो कि यहाँ हमारे लिए  एक मात्र सहारा था,क्यूंकि शाकाहारी होने के कारण पेटपूजा में काफी परेशानी होती थी।इन तीन महीनो के सफर में वाशिंगटन में काफी कुछ देखा,काफी कुछ सीखा। नयी जगह के नए अनुभव बटोरे,साथ में कई नयी यादें भी जोड़ ली,वो शोपेर्स से खाने पीने का सामान लगा ,या फिर मैसीज जैसे भव्य माल में टहलना,रॉस ड्रेस फॉर लेस जो की होटल से काफी नजदीक था रोजाना वहां जाना ,या फिर बर्लिंगटन कोट फैक्ट्री से जैकेट खरीदना। हर याद अपनेआप में अनोखी और नायब थी। 
                       भारत से हमलोग ये सोचकर आये थे कि इतने समय में वाशिंगटन के साथ साथ ऑरलैंडो (थीम पार्क की दुनिया ),न्यू-यॉर्क एवं नियाग्रा जलप्रपात देख लेंगे,किन्तु ठण्ड की अधिकता के कारण हम  नियाग्रा नहीं जा पाये।
तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

Friday 10 April 2015

Cherry Blossom Festival,Washington

                  जब हम लोग किसी नये स्थान पर भ्रमण के लिए सोचते हैं तो सबसे पहला काम कि गूगल देव की सहायता से वहां के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली जाये, जैसे कि कहाँ कहाँ जाना है, क्या देखना है, जाने का साधन क्या होगा, किस समय जाना उचित रहेगा और कब नहीं,कुल जमा कहने का मतलब ये है कि ऑफ सीजन एवम पीक सीजन के बारे में देखकर जाते हैं और इसके साथ साथ जेब का भी पूरा ध्यान रखते हैं, पर अबकि बार तो अनायास ही मौका मिल गया तो सबकुछ जानते हुये भी ऑफ सीजन ही में चल पड़े। जाते समय ही पता लगाया था कि वाशिंगटन के जाने के लिए दो पीक सीजन होते हैं एक तो स्प्रिंग में चेरी ब्लॉसम फेस्ट और दूसरा अक्टूबर नवम्बर के आसपास का। जब हम जनवरी में गए थे तब अप्रैल का महीना बहुत दूर लग रहा था लेकिन हमारे यहाँ रहते हुये अप्रैल आ गया और स्प्रिंग या कहिए की बसंत ऋतू ने  दस्तक दे ही दी थी,सोने पे सुहागा  चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल की शुरुआत से हो गया,जबकि पूरा वाशिंगटन ही सुन्दर लगता है,परन्तु  नेशनल मॉल  की  तो छटा ही निराली लगती है
फूलों से लदे चेरी के वृक्षों के साथ टाइडल बेसिन एवं पानी में उनके प्रतिबिम्ब 

                 इस प्रकार के अन्य मन को लुभाने वाले दृश्यों के लिए क्लिक करिये



                 चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल,सन  १९१२ में दुसरे विश्व युद्ध की समाप्ति पर जापान ने संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को चेरी के तीन हजार बीस पेड़ दोनो देशों के मध्य मधुर सम्बन्धों की शुरुआत करने के साथ उपहार स्वरूप  दिए थे ,जो तबसे हर वर्ष अप्रैल में अपनी गुलाबी छटा से सबको लुभाते हैं,इस घटना की याद के लिए यहाँ चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल मनाया जाने लगा जो बीस दिन तक चलता है।इन गुलाबी रंग के फूलों को देखकर पूरा माहौल ही गुलाबी सा लगने लगता है, जहाँ देखो वहां ये गुलाबी फूल प्यार और दोस्ती का सन्देश पहुंचा देते हैं ,बीस दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में एकदिन को पीक ब्लूम  का नाम दिया जाता है, जिसदिन लगभग सत्तर प्रतिशत पेड़ों पर फूल खिल जाते हैं, पीक ब्लूम दो दिन तक रहता है और उसके बाद फूलों का झड़ना शुरू हो जाता है,पिछले वर्ष  १० अप्रैल को पीक ब्लूम के रूप में निर्धारित किया गया था, तो पूर्व नियोजित कार्यक्रम अनुसार हमलोग सुबह ही निकल पड़े थे क्यूंकि देर में जाने से बहुत भीड़ का सामना करना पड़ता,खैर हमलोग समय से पहुँच गए तो भीड़भाड़ से रहित कुछ अच्छे दृश्य देखने को मिल गए ,परन्तु वापस जाने के समय तक काफी भीड़ का सामना भी स्वतः ही हो गया था।
गुलाबी फूलों की छाँव और जमीन पर बिछा हरे रंग का मखमली कालीन 

हवा में लहराती हुयी फूलो से लदी एक डाली 

इन हलके गुलाबी फूलों के साथ पूरा शहर भी गुलाबी हो गया था 

इन्हे देखकर तो बस यही दिमाग में आया सुंदरता तूने क्या पायी 

एक दुसरे से जुड़े हुए ये फूल शायद प्यार का सन्देश सुना रहे हैं,आखिरकार प्रीत का रंग भी तो गुलाबी ही है 

जाने रे जाने मन जाने है रंग गुलाबी है प्रीत का ,दूर देखिये किस तरह से लोग पेड़ों  छाँव की समय व्यतीत कर रहे हैं 


कैपिटोल के पास खिले हुए लाल और पीले ट्यूलिप 

फूलों के झुरमुट के मध्य दिखाई पड़ता हुआ वाशिंगटन मोनिमेन्ट 

दूर से ज़ूम करके लिया गया जेफर्सन मेमोरियल,देखिये कितनी भीड़ दिख रही है 
चारों तरफ फूलों से घिरे टाइडल बेसिन 

अब देखिये भीड़ का नजारा 
                            चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल के इन मनोरम दृश्यों के साथ अब अनुमति दीजिये,अगली पोस्ट में वाशिंगटन में स्प्रिंग के एक और नज़ारे के साथ जल्दी ही मिलेंगे।


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

Saturday 4 April 2015

Zoo of Washington

                          वाशिंगटन के कई सारे म्यूज़ियमस के दर्शन के बाद  मन में ये इच्छा होने लगी कि अब थोड़ा प्रकृति से जुड़ा जाये मतलब अब बारी थी यहाँ के चिड़ियाघर के दर्शन की। यहाँ की सड़के कुछ इस तरह बनी हुयी होती हैं कि बच्चों का स्ट्रोलर ले जाना बहुत ही आसान होता है ,एवं अमूमन हर बच्चे के पास स्ट्रोलर अवश्य होता है। एक परिचित की सलाह पर हमने अपनी बेटी के लिए छतरी वाला स्ट्रोलर लेने का मन बनाया क्यूंकि इसमें ये सुविधा रहती है कि अगर इस्तेमाल न हो तो छाता की तरह बंद करके पकड़ सकते हैं ओ नीचे से चलाने के लिए पहिये लगे रहते हैं। हालंकि ये बस एक प्रयोग मात्र ही था क्यूंकि  भारत में और वाशिंगटन में ही जब एक दिन उसके लिए स्ट्रोलर किराये पर लिया तो उसने बैठने से इंकार कर दिया था। तो इस छतरीनुमा स्ट्रॉलर के साथ तीन हजार दो सौ एकड़ में फैले हुए इस चिड़ियाघर के सफर में विस्तार से पढ़ने के क्लिक करिये
दूर से दिखाई पड़ता  हुआ 
                    कमाल की बात ये हुई कि स्ट्रॉलर खरीदने का निर्णय सही साबित हुआ,शायद अब तक वाशिंगटन में रहते रहते वो भी यहाँ के रंग में रंगने लगी थी या फिर सब बच्चों को बैठे देखकर उसका मन भी हो गया हो,चलिए जो भी कारण रहा हो हमारा तो इससे फायदा ही हुआ। अब हम लोग आराम से पैदल घूम सकते थे। चिड़ियाघर इतना बड़ा था कि एक दिन में सब जगह घूमना और सारे जानवरों को देखना संभव नहीं था और वॉलमार्ट जाने के कारण हमलोग तो लगभग लंच के समय तक ही पहुंच पाये थे ,इसलिए सोचा कि आराम से जितना देख सकते हैं उतना देखते हैं और जो नहीं हो पाये उसे छोड़ देते हैं। तो देखिये किस तरह से और कौन से जानवर हम देख पाये-
बाघ 


नील गाय 


पण्डा जिसके दर्शन  के लिए दो घंटे पंक्ति में खड़े रहे 


ऑरैंगअटैन वनमानुस 




 मगरमच्छ 
                
   
कोमोडो ड्रैगन 
  ये तो थी चिड़ियाघर के कुछ जानवरों की झलकियाँ, अब देखिये चिड़ियाघर के परिसर में बनी  हुयी कुछ कृतिम आकृतियां-

पण्डा के निवास स्थल तक जाने के रास्ते में दिखने वाला बांस का घना जँगल 
कृतिम आकृतियाँ 


कृतिम आकृतियाँ 


कृतिम आकृतियाँ  एवं साथ में रखा छतरी वाला स्ट्रोलर 
                           काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुए इस चिड़ियाघर में जाने का कोई टिकट पड़ता,वाशिंगटन के फिटनेस पसंद लोगों को घूमने और अपने स्वास्थ पर ध्यान देने के लिए काफी खुली जगह मिली हुयी है चाहे ये चिड़ियाघर की बात हो या फिर नेशनल माल के चारों ओर की खुली जगह हो, इतनी कड़कड़ाती ठण्ड में भी यहाँ के लोग दौड़कर स्वास्थ लाभ लेते हुए दिख जाते हैं,इन लोगों को देखकर मन में स्वास्थ के प्रति जागरूकता सी जग जाती है। अबतक शाम ही होने लगी थी मतलब कड़कड़ाती ठण्ड शुरू होने का समय आने वाला था,मतलब घर वापसी का समय हो गया था,तो साथियों चलते हैं तबतक के लिए अनुमति दीजिये,अगली पोस्ट में जल्द ही मिलेंगे। 


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-