Saturday 4 April 2015

Zoo of Washington

                          वाशिंगटन के कई सारे म्यूज़ियमस के दर्शन के बाद  मन में ये इच्छा होने लगी कि अब थोड़ा प्रकृति से जुड़ा जाये मतलब अब बारी थी यहाँ के चिड़ियाघर के दर्शन की। यहाँ की सड़के कुछ इस तरह बनी हुयी होती हैं कि बच्चों का स्ट्रोलर ले जाना बहुत ही आसान होता है ,एवं अमूमन हर बच्चे के पास स्ट्रोलर अवश्य होता है। एक परिचित की सलाह पर हमने अपनी बेटी के लिए छतरी वाला स्ट्रोलर लेने का मन बनाया क्यूंकि इसमें ये सुविधा रहती है कि अगर इस्तेमाल न हो तो छाता की तरह बंद करके पकड़ सकते हैं ओ नीचे से चलाने के लिए पहिये लगे रहते हैं। हालंकि ये बस एक प्रयोग मात्र ही था क्यूंकि  भारत में और वाशिंगटन में ही जब एक दिन उसके लिए स्ट्रोलर किराये पर लिया तो उसने बैठने से इंकार कर दिया था। तो इस छतरीनुमा स्ट्रॉलर के साथ तीन हजार दो सौ एकड़ में फैले हुए इस चिड़ियाघर के सफर में विस्तार से पढ़ने के क्लिक करिये
दूर से दिखाई पड़ता  हुआ 
                    कमाल की बात ये हुई कि स्ट्रॉलर खरीदने का निर्णय सही साबित हुआ,शायद अब तक वाशिंगटन में रहते रहते वो भी यहाँ के रंग में रंगने लगी थी या फिर सब बच्चों को बैठे देखकर उसका मन भी हो गया हो,चलिए जो भी कारण रहा हो हमारा तो इससे फायदा ही हुआ। अब हम लोग आराम से पैदल घूम सकते थे। चिड़ियाघर इतना बड़ा था कि एक दिन में सब जगह घूमना और सारे जानवरों को देखना संभव नहीं था और वॉलमार्ट जाने के कारण हमलोग तो लगभग लंच के समय तक ही पहुंच पाये थे ,इसलिए सोचा कि आराम से जितना देख सकते हैं उतना देखते हैं और जो नहीं हो पाये उसे छोड़ देते हैं। तो देखिये किस तरह से और कौन से जानवर हम देख पाये-
बाघ 


नील गाय 


पण्डा जिसके दर्शन  के लिए दो घंटे पंक्ति में खड़े रहे 


ऑरैंगअटैन वनमानुस 




 मगरमच्छ 
                
   
कोमोडो ड्रैगन 
  ये तो थी चिड़ियाघर के कुछ जानवरों की झलकियाँ, अब देखिये चिड़ियाघर के परिसर में बनी  हुयी कुछ कृतिम आकृतियां-

पण्डा के निवास स्थल तक जाने के रास्ते में दिखने वाला बांस का घना जँगल 
कृतिम आकृतियाँ 


कृतिम आकृतियाँ 


कृतिम आकृतियाँ  एवं साथ में रखा छतरी वाला स्ट्रोलर 
                           काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुए इस चिड़ियाघर में जाने का कोई टिकट पड़ता,वाशिंगटन के फिटनेस पसंद लोगों को घूमने और अपने स्वास्थ पर ध्यान देने के लिए काफी खुली जगह मिली हुयी है चाहे ये चिड़ियाघर की बात हो या फिर नेशनल माल के चारों ओर की खुली जगह हो, इतनी कड़कड़ाती ठण्ड में भी यहाँ के लोग दौड़कर स्वास्थ लाभ लेते हुए दिख जाते हैं,इन लोगों को देखकर मन में स्वास्थ के प्रति जागरूकता सी जग जाती है। अबतक शाम ही होने लगी थी मतलब कड़कड़ाती ठण्ड शुरू होने का समय आने वाला था,मतलब घर वापसी का समय हो गया था,तो साथियों चलते हैं तबतक के लिए अनुमति दीजिये,अगली पोस्ट में जल्द ही मिलेंगे। 


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

10 comments:

  1. Looks a nice trip!! Nice pics!!

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  2. हनुमान जयन्ती की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार (05-04-2015) को "प्रकृति के रंग-मनुहार वाले दिन" { चर्चा - 1938 } पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. मेरे यात्रा वृत्तांत को सम्मिलित करने के लिए सादर धन्यवाद

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  3. शानदार तस्वीरों के साथ शानदार वर्णन....

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  4. सुन्दर चित्र और रोचक वर्णन

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  5. वाशिंगटन के चिडि़याघर के बारे में बहुत अच्‍छी और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली।

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  6. आपके लेख के साथ विदेशी चिड़ियाघर का लुफ्त मिल गया |
    बढ़िया यात्रा वृतांत और फोटो अच्छे लगे....
    मेरी सोच से दूसरी फोटो शेर कीनहीं, बाघ की है और सातवी फोटो कोमोडो ड्रेगन की नहीं है बल्कि मगरमच्छ प्रजाति की है |

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    1. पहली फोटो बाघ की हो सकती है,परन्तु सातवी फोटो मेरी याददाश्त के हिसाब से सही है

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  7. पांडा एक ऐसा जीव है जिसे हम या तो टीवी पर देख सकते हैं या फिर ठन्डे देशों में ! जहां तक मुझे जानकारी है पांडा भारत के किसी चिड़ियाघर में नही है ! शानदार नज़ारे दिखाए हैं आपने अपने कैमरे से हर्षिता जी

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    1. जी हाँ सही कहा आपने, पांडा एक दुर्लभ जीव है इसलिए इसके दर्शन के लिए दो घंटे की पंक्ति में लगना भी काम लगा

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