Sunday 27 September 2015

Kala Patthar Beach,Havelock

                        अब अंडमान में हमारा अगला पड़ाव एशिया के प्रमुख समुद्री तटों के लिए प्रसिद्ध यहाँ की राजधानी ,हैवलॉक थी।ये नाम इसे यहाँ अंग्रेजी हुकूमत के हुक्मरान हैनरी हैवलॉक के नाम पर दिया गया था।  यहाँ सभी जगहों के नाम अंग्रेजी सभ्यता के प्रतीक से लगते हैं शायद लंबे समय तक उनके शासन के कारण ऐसा हुआ हो, हालाँकि कुछ लागों का यह भी माना जाता है कि अंडमान तमिल भाषा के  हन्डुमान शब्द से बना है जिसका अर्थ हनुमान होता है। खैर नाम का अभिप्राय जो भो हो भारत  का सुदूरवर्ती हिस्सा होने के बाद भी यहाँ के लोगों में बहुत अपनापन सा लगा। कर्नाटक में रहने के कारण कान हिंदी भाषा सुनने को तरस जाते हैं  और यहाँ बोलचाल की प्रमुख भाषा हिंदी है ये देखकर बहुत अच्छा लगा। अंडमान की प्रसिद्धि का मुख्य कारण एशिया का प्रसिद्ध राधनगर बीच हैवलॉक में ही है,राधनगर ही क्यों अन्य बीच जैसे काला पत्थर और एलिफैंटा बीच भी किसी तरह से कम नहीं है। यहाँ के बीचों को नंबर के आधार पर भी जाना जाता है। यहाँ का नीला हरा पानी तो बस आँखों में कुछ इस कदर बसा कि अब और कोई समुद्री किनारा देखने की इच्छा नहीं रही। कुछ इस तरह के दृश्य देखने को मिले वहां-
हैवलॉक आइलैंड 
भारत से बाहर थाईलैंड और मालद्वीप का मैं नहीं कह सकती क्योंकि उन्हें देखा नहीं है,जिन्होंने देखा हो वो लोग कम्पेरिजन कर सकते हैं। पोर्ट ब्लेयर से यहाँ की दूरी करीब सत्तावन किलोमीटर की है जिसे या तो फेरी द्वारा या हेलीकाप्टर के द्वारा तय किया जा सकता है। हेलीकाप्टर सेवा वहां के लोकल लोगों के लिए सस्ती है,पर पर्यटकों के लिए थोडा महंगा पड जाती है। इसलिए जाने के लिए एक मात्र विकल्प फेरी ही बचती है। यहाँ दो तरह की फेरी चलती हैं एक  प्राइवेट और दूसरी गवर्मेंट जो कि ओपन डेक होती है। गवर्मेंट फेरी फोनिक्स जेटी से दिन में तीन बार सुबह छह बजे ,ग्यारह बजे और दो बजे चलती है। दिन में ग्यारह बजे वाली नील आइलैंड होते हुए जाती है जिसे हैवलॉक पहुँचने में चार घंटे लगते हैं तथा बाकि फेरी ढाई घंटे में पहुंचा देती हैं। इसके अलावा दो तीन प्रकार की प्राइवेट फेरी हैं वो भी लगभग इतना ही समय लेती है आने जाने में ,सावधानी के तहत वापसी की फ्लाइट इन फेरियों के तय कार्यक्रम के हिसाब से ही करना चाहिए या फिर वापसी की फ्लाइट हैवलॉक से पोर्ट ब्लेयर के अगले दिन की रखनी चाहिए,क्यूंकि कभी कभी मौसम के मद्देनजर फेरियां रद्द भी हो जाती है। प्राइवेट फेरी मैकरूज  डेढ़ घंटे में पहुंचा देती है .मक्रूज़ का टिकट थोडा सा ज्यादा है क्योंकि ये जल्दी पहुंचा देती है लेकिन आनंद तो गोवमेंट फेरी में ही सबसे ज्यादा आता है। टिकट बुकिंग हमने पैराडाइज़ अंडमान  से कराइ थी और ये जाने के पहले दिन रात में हमारी टिकट होटल पहुंचा गया था।जाते समय हम दिन का उपयोग फेरी में लगाने की जगह हेवलॉक दर्शन के लिए करना चाह रहे थे इसलिए जाने के लिए  हमने मक्रूज़ का चयन किया था ये फेरी सुबह आठ बजे पोर्ट ब्लेयर से चलती है बंद शीशे वाली इस फेरी में डेढ़ घंटे का समय बहुत ज्यादा सा प्रतीत हुआ जिसमे से दस पंद्रह मिनट तो नाश्ता करने में भी लगे ही होंगे, पर हैवलॉक की सुंदरता सफर की बोरियत को मात दे गयी और पूरे के पूरे नंबर इसे मिल गए। 
जाने को तैयार खड़ा मैकरूज

        डेढ़ घंटा मैकरूज में बिताने के बाद नौ पैतालीस में हैवलॉक पहुंचे तो वहां की इमारतों में कुछ इस तरह के वेलकम मेसेज पढ़ने को मिले -

सुस्वागतम 
            यहाँ से बाहर निकल के सोच ही कि पहले से  कराये हुए होटल क्रॉस बिल बीच रिसोर्ट तक कैसे पहुंचा जीप वाला दिखा और बोलने लगा कि दो सौ रूपये में होटल तक छोड़ देगा पता नहीं क्या  हुए उससे आठ सौ  रूपये में पूरे दिन की बात कर ली, वैसे निर्णय बहुत अच्छा रहा क्यूंकि टुकड़ों में अगर ऑटो या कुछ और देखते तो महंगा पड़ता। होटल में पहुँच कर चेक-इन की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद हम निकल पड़े काला पत्थर बीच की तरफ। ये जगह हमारे होटल से तीन किलोमीटर की दूरी पर थी। काला पत्थर नाम के गाँव में स्थित होने  के कारण इस बीच का नाम काला पत्थर पड़ा है। इसके नाम से तो ऐसा लग रहा था जैसे यहाँ समुद्र के सहारे सहारे कई काले पत्थर देखने को मिलेंगे पर यकीं मानिये छोटे छोटे काले पत्थर जरूर देखने को मिले। जाते वक्त जब हम होटल से बीच की तरफ बढ़ रहे थे तो सड़क के समानान्तर समुद्र भी देखने लगा था पर उसे  देख के ये नहीं लग रहा था कि बहुत ही बढ़िया जगह हम पहुँचने वाले हैं ,या यूँ कहिये कहीं टाइम बर्बाद तो  नहीं कर रहे हैं।पर काला पत्थर पहुंचे तो आँखों ने जो दृश्य देखे उन्हें बयान करने के लिये शब्द नहीं हैं मेरे पास। उजली सी सफेद रेत  और उससे लगा हुआ फिरोजी समंदर जो हर पल रंग बदल रहा था। ये निर्धारित करना मुश्किल पड रहा था कि पानी नीला है या हरा या फिर कोई और ही रंग लिए हुए है।यद्धपि हम ये सोच के आये थे कि पानी में नहीं उतरेंगे पर अपने को रोक पाना मुश्किल हो गया था।सोचा थोड़ा थोड़ा जायेंगे पर अगर एक बार चले ही गए तो फिर लहरें कहाँ छोड़ती हैं,बार-बार बुला ही लेती हैं।यहाँ के व्यू देख कर ये अंदाजा तो आ ही गया कि हैवलॉक जितना विख्यात है उससे भी कई गुना ज्यादा विख्यात होने की क्षमता रखता है।  जब काला पत्थर ही ऐसा अदभुद है तो राधानगर कैसा होगा। यहाँ के बीचों की एक खास बात  कि यहाँ समुद्र से लगे हुए जंगल होते हैं जिनकी छाया में बैठकर इस रंग बदलती समुद्री लहरों का आनन्द ले सकते हैं। अधिकांश पर्यटक हैवलॉक के राधानगर को देख के वापस हो लेते हैं। इसलिए ये जगह भीड़भाड़  से रहित है,इसलिए बहुत ही साफ़ सुथरा है। अपने  प्लान के मुताबिक  हमने काला पत्थर के लिए करीब एक  घंटे का समय रखा था जो  यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य के हिसाब  कम प्रतीत हो रहा था,ये भी कह सकते हैं कि यहाँ से वापस  मान ही नहीं रहा था। पर पेट पूजा का समय भी हो रहा था और हम राधानगर जाने से पहले थोड़ी देर होटल जाकर कुछ देर सुस्ताना भी चाह रहे थे ।इसलिए ना चाहते हुए भी हमें काला पत्थर बीच को अलविदा कहना पडा ।यहाँ आ कर के हम सुंदरता निहारने में इतने व्यस्त हो गए कि कैमरा का इस्तेमाल बहुत काम हो गया।फिर भी एक दो फोटो-
शांत सी लहरें 
पल पल रंग बदलता समुद्र। 
                                         

                                                      
                    हैवलॉक में शाकाहारी खाना मिलना थोडा मुश्किल काम माना जाता है तो हमने गूगल में देखकर फैट मार्टिन नामक रेस्तरां की तरफ रूख किया ।वहां पहुँचने के बाद पता लगा की सफाई हो रही है इसलिए खाना नहीं मिलेगा ।अब एक बार फिर हम ड्राईवर साहब पर निर्भर हो गए थे और उन्होंने हमें हैवलॉक जेटी के पास में स्थित नालाज किंगडम,नामक शाकाहारी रेस्तरां में ले गया और वहां का खाना तो इतना बढ़िया था कि हमने उससे पूछ ही लिया अगर रात के खाने के लिए होम डिलीवरी दे दे पर जवाब ना में मिला ।

           थोड़ा सोचने के बाद रेस्तरां के मालिक ने कहा कि अगर आप खुद ले जा सकते हो तो पैक कर के दे देंगे ।खैर ये तो रात के खाने की बात थी और अभी तो दिन हो हो रहा था ।इस तरह से पेट पूजा कर के हम होटल पहुँच गए और ड्राईवर को साढ़े तीन बजे आने को बोल दिया।  अगले भाग में देखते हैं कि क्या खास है राधानगर बीच में। 
अंडमान का सफर एक नजर में -



Tuesday 15 September 2015

Sunset at Chidiya Tapu,Port Blair

                      किसी भी समुद्री छोर पे खड़े हो के सूर्यास्त देखने का महत्व ही अलग होता है,ये अंडमान में हमारा दूसरा दिन था और अभी तक हमें सूर्यास्त देखने का सुअवसर नहीं मिल पाया था, इसलिए अगला पड़ाव चिड़िया टापू पर सूर्यास्त देखना तो जरूरी ही हो गया था। चिड़िया टापू नाम से ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र के बीचों बीच कोई टापू हो और उसपे चिड़ियाँओं का चहचहाना सुनाई देता हो हालांकि ये ग़लतफ़हमी कछ एक ब्लॉग्स को पढ़ने के बाद दूर हो गयी थी क्यूंकि ये भी एक समुद्री किनारा ही है,यहाँ पर बैठकर सूर्यास्त के समय पल पल रंग बदलते आसमान और समुद्र दर्शन के मजे ले सकते हैं। मार्च,२०१५ जिन दिनों हम अंडमान में सूर्यास्त का समय लगभग साढ़े पांच बजे का था,और वानडूर से निकलने में ही लगभग चार बज गया था। यहाँ से चिड़िया टापू की दूरी तीस किलोमीटर की थी जिसमे करीब आधे घंटे का समय तो लगना ही था,और रास्ते में कहीं रूक गए तो देर होना सम्भव ही था,मतलब बॉर्डर लाइन पर ही थे और इसके बाद भी हम एक दो जगह रूकने से खुद को रोक नहीं पाए,रूकने का कारण धीरे-धीरे खुदबखुद पता लग ही जायेगा। शुरुआत करते हैं सूर्यास्त-सन सेट के दृश्य के साथ -
चिड़िया टापू के सूर्यास्त की एक झलक 
                       वानडूर से चिड़िया टापू तक के सफर के प्रारम्भ में तो शहर पार कर के जाना था तो कुछ खास नहीं लगा,पर अंडमान की साफ़ सुथरी सड़कें मन मोह रही थी। आगे बढ़ने पर रास्ते में कहीं कहीं इकट्ठे पानी को दिखा के ड्राइवर बोलता था देख लो ये सुनामी का पानी है, कई घर तो ऐसे खड़े थे कि उनमे जाने का रास्ता ही नही था और वो वीरान से पड़े थे।इन जगहों को देखकर समझ आ रहा था कि मनुष्य चाहें कितनी भी प्रगति कर ले हर हाल में वो प्रकृति के आगे बौना ही साबित होता है।
सुनामी का पानी
सुनामी का पानी
सुनामी का पानी
                          इस तरह की कई जगहों को देखके हम आगे बढ़ ही रहे थे कि चिड़िया टापू से कुछ किलोमीटर पहले से एक जंगल वाला इलाका शुरू हो गया और उसके बाद हम समुद्री रेखा के समानान्तर ही आगे बढे तो कई सारे नयनाभिराम दृश्य देखने को मिले और एक तो जगह तो गाड़ी से उतरने के बाद ही मन को शांति मिली। ऐसे ही कुछ दृश्य -
अंडमान की साफ़ सुथरी सड़क ,और साथ में इकट्ठे पानी में होती बोटिंग 


एक अन्य दृश्य 
सड़क के समानान्तर शांत सा समुद्र 
बाइक रोक के मजे लेते  सवार
सूर्य देव अभी नारियल के पेड़ों के बीच लुका छिपी खेल रहे हैं। 
                       इन नजारों को देखते-देखते हम समय से चिड़िया टापू पहुँच गए,यहाँ पहुंच के एक अलग ही दृश्य देखने को मिला जिसकी मैंने कल्पना नहीं की थी,समुद्र से लगी हुई रेतीली जमीन पर बड़े बड़े पेड़ों के तने गिरे पड़े थे,जिन पर कलाकारी दिखा के  बैठने के लिए कुर्सी मेजों का स्वरूप दिया गया था,आधुनिक तकनीक को दर्शाने के लिए बड़े से ठूंठ को खोखला कर के एक तरफ से लोग-इन एवं दूसरी तरफ से लोग-आउट का नाम प्रदान किया गया था। झूलने के लिए कई सारे झूले थे जिन में बच्चे तो बच्चे बड़े भी झूल रहे थे। हम इस पार्क को देखने में ही इतने व्यस्त हो गए कि थोड़ी देर के लिए ये भूल ही गए कि हम एक समुद्री छोर पर खड़े हैं और सूर्यास्त देखने आये है,जितनी चीजें थी यहाँ उतनी तस्वीरें नहीं ले पाये फिर भी एक दो -

पेड़ के तनो से बनी बेंच 
एक और सीट आउट, पीछे कुछ लोग झूला भी झूल रहे हैं। 
पेड़ का वो तना जिस पर लोग आउट और लोग इन अंकित है 
लोग इन 
लोग आउट 
यहाँ तक कि  डस्टबिन भी लकड़ी का बना हुआ था।  
                         वुडन सीट आउट से आगे बढे तो शांत सा समुद्र दिखाई दिया,जिसमे लहरें है के बराबर थी,और समुद्र में जब थोड़ा पानी आगे को आ रहा था छोटे छोटे पेड़ों को अपने आगोश में ले रहा था ,जिन्हे देख के ऐसा लग रहा था जैसे इनका उद्गम ही पानी से हुआ हो,बहुत अच्छे दृश्य यहाँ पर देखने को मिले। अंडमान का हर बीच अपने में अलग दृश्यों को समेटे हुए हैं। किसी भी हालत में एक बीच की तुलना दूसरे से नहीं कर सकते। हर एक की अलग खासियत है। कुछ इस तरह के दृश्य देखने को मिले-
शायद ये पेड़ पानी में ही उगे हों ऐसा लगता है मुंडा पहाड़/चिड़िया टापू  बीच 
पानी के आगोश में ये पेड़ मुंडा पहाड़/चिड़िया टापू  बीच 
             इतना देखते देखते कब सूर्यास्त का समय हो गया पता ही नहीं चला,और देखते ही देखते पहले आसमान और समुद्र दोनों ने हल्का नारंगी रंग ले लिया पता ही नहीं चला। हर पल ये लाल नारंगी रंग अपने अलग अलग रूप दिखा रहा था। एक पल को तो आसमान और समुद्र दोनों सिन्दूरी हो गए, ये पल यहाँ बिताये समय में सर्वश्रेष्ठ था। हालाँकि हम लाल गोले के समान सूर्य का दृश्य तो नहीं देख पाये पर जो दिखा उसे भी किसी हालत में काम नहीं आँका जा सकते थे।देखिये कुछ सूर्यास्त के नज़ारे हमारे साथ -
सन सेट @ चिड़िया टापू 
सन सेट @ चिड़िया टापू  देखने वाले पर्यटक 
सन सेट @ चिड़िया टापू
अंडमान का सफर एक नजर में -



Tuesday 8 September 2015

Jolly Bouy Island, Andman

                      गूगल में जहाँ कहीं भी खोजबीन करी  पोर्ट ब्लेयर के प्रमुख आकर्षण के बारे में,तो यही देखने को मिला कि वहां जॉली बॉय आइलैंड ने धूम मचा रखी थी,मतलब पहले स्थान में था। ठीक है मान लिया पहले स्थान में है और चारों तरफ से पानी से घिरा हुआ भी है,पर आखिर ये है क्या ? इस सवाल का जवाब ये है कि ये आइलैंड पोर्ट ब्लेयर से उन्तीस किलोमीटर दूर वानडूर नामक  जगह में दो सौ एकासी दशमलव पांच वर्ग किलोमीटर में फैले हुए महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क जो कि खुले समुद्र एवं पंद्रह छोटे बड़े द्वीपों से मिलकर बना है ,का एक छोटा सा द्वीप है।ये पार्क को विश्व के श्रेष्ट मरीन पार्कों में से एक माना जाता है। ये जगह ग्लास बोट एवं स्नोर्कलिंग के द्वारा समुद्री धरोहर को देखने के उत्कष्ट मानी जाती है। इन पंद्रह में से सिर्फ दो आइलैंड जॉली बॉय एवं रेड स्किन ही छः-छः महीने के अंतराल में पर्यटकों के लिए खोले जाते हैं। हालाँकि मैंने ये सुना है कि रेड स्किन के मुकाबले जोली बॉय ज्यादा प्राकृतिक धरोहर को अपने में समेटे हुवे हैं और किस्मत से जिस समय पर हमलोग गए थे ये जगह पर्यटकों के लिए खुली हुई थी। यहाँ जाने के लिए वन विभाग से परमिट लेने की आवश्यकता होती है जो कि संडे को छोड़कर बाकि सभी दिन सुबह साढ़े आठ बजे से मिलता है और परमिट सिर्फ जाने के दिन ही मिल सकता है जिसके लिए आपके पास वैलिड पहचान पत्र होना अति आवश्यक है,वरना नहीं मिलेगा। इसकी कीमत पचास रुपया प्रति व्यक्ति है।प्रातः नौ बजे वानडूर जेटी से बोट जाती है और तीन बजे वापस आती हैं, सभी बोट एक साथ प्रस्थान करती है ,इसलिए यहाँ साढ़े आठ बजे पहुंचना अनिवार्य है,एक मुख्य बात और कि यहाँ  किसी भी प्रकार का प्लास्टिक ले जाना निषेध है,अगर कुछ ले जाना आवश्यक ही हो जाये तो प्रति सामान सौ रूपये की सुरक्षा राशि जमा करनी होती है और पीने के पानी के लिए कुछ पैसा ले कर वन विभाग के लोग मिल्टन की बोतल देते हैं जिनमे अपने द्वारा लिया हुआ पानी भरना होता है और वापस आ कर बोतल लौटाने पर पैसे वापस हो जाते हैं,हालाँकि इस सुविधा के कुछ मामूली पैसे कटते है,परन्तु किसी अच्छी जगह को अच्छा बनाये रखने के लिए ये आवशक भी है,वर्ना ये प्राकृतिक धरोहर भी प्रदूषण का शिकार हो जाएगी,और पानी में प्लास्टिक जाने से जलीय जीव जंतुओं के लिए भी हानिकारक साबित होगा।अब ये सब सावधानियां देखकर मन में ये सवाल तो उठता ही है,कि जिस जगह की इतनी सुरक्षा की जा रही है आखिर वो देखने में कैसी होगी। साफ़ स्वच्छ नीला पानी और सफ़ेद रेत एवं उसके साथ साथ हरियाली,कुल मिलाकर बहुत ही आकर्षक जगह है-
             
क्रिस्टल क्लियर नीला रंग लिया हुआ समुद्री पानी 
                  जॉली बॉय जाने के लिए हम होटल से तगड़ा ब्रेकफास्ट कर के प्रातः आठ बीस में वानडूर में स्थित जेटी पर पहुँच गए थे,परमिट और टिकट के लिए एक लम्बी लाइन लगी हुई थी पर हमारा काम टेक्सी ड्राइवर ने आसान कर दिया था। प्रति व्यक्ति आठ सौ रूपये के टिकट में एक ग्लास बोट ट्रिप फ्री मिलनी थी,और इसके अतिरिक्त जो कुछ देखना हो उसके लिए वहीँ जा कर के पेमेंट करना था। इतना करते कराते बोर्डिंग का समय भी आ गया और हमें एक बोट में बैठा दिया गया। बैठने के बाद बोट में घोषणा हुई कि सब लोग अपनी अपनी सुरक्षा  बेल्ट बांध ले,और उसमे बोट वालों का नाम एम. एल. रशमीत भी लिखा हुआ था और जिसे हमें याद रखना था क्यूंकि हम वापस भी सिर्फ उसी बोट में आ सकते थे और आइलैंड में जो भी कोई एक्टिविटी करनी थी वो भी इन्ही लोगों से करवानी थी और बाकि कोई भी बोट वाला दूसरी बोट के यात्रियों को अटेण्ड नहीं कर सकता था। करीब एक घंटे तक नीले हरे रंग का आनन्द लेते हुए हम जॉली बॉय आइलैंड पहुँच गए,और सामने से  हमें सफ़ेद सी रेत, हरे भरे पेड़ और सुन्दर साफ़ सुथरा नीला सफ़ेद आकर्षक समुद्र दिखा पर अभी भी हम वहां जा नहीं सकते थे,क्यूंकि इस बोट के बाद हमें लेने एक नयी बोट आ रही थी जो कि ग्लास बॉटम थी,मतलब उसके निचले सिरे पर ग्लास लगा हुआ था और उसके निचे एक मैग्नीफाइड लेन्स लगा होता है जिससे बोट में बैठ कर लोग आराम से मछलियों, सीपियों और जलीय सम्पदा के दर्शन कर सकें। कुछ इस तरह के दृश्य देखने को मिले वानडूर  से जॉली बॉय तक के सफर में-
शायद पानी का रंग आसमान से ज्यादा नीला था।  
रास्ते में एक बोट दिखा तो उसका फोटो ले लिया,ऐसी ही बोट में हम  आये थे। 
जॉली बॉय आइलैंड की रेतीली जमीन दिखने लगी।


आइलैंड की तरफ ले जाती हुई ग्लास बॉटम बोट

जॉली बॉय आइलैंड की सुंदरता
पहुँच गए आइलैंड में,एक दृश्य जॉली बॉय से समुद्र का
                    कुछ देर मन भर कर के सुन्दर दृश्यों को देखने के बाद हमारा साथ के दो लोग एक बार फिर से ग्लास बॉटम बोट के मजे लेने चल दिए,क्यूंकि वो लोग स्नोर्कलिंग करने के मूड में नहीं थे। इसलिए उन लोगों को बोट में बैठकर हम एक बार फिर से समुद्री लहरों के मजे लेने के लिए बैठ गए। यहाँ कई सरे आइलैंड होने के कारण समुद्र में तेज लहरें नहीं उठतीहैं , इसलिए ये जगह तैरने के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित मानी जाती है। यहाँ  पर कपडे वगेरह चेंज करने की पूर्ण सुविधा उपलब्ध है तो किसी प्रकार की कोई दिक्क्त नहीं होती है। एक बार पानी में उतरने को तैयार हो जाओ और फिर समुद्री लहरों के साथ खेलते रहो। लगभग एक घंटे में ग्लास बोट वापस आ गयी और हमारा स्नोर्कलिंग के लिए जाने का नंबर आ गया। स्नोर्कलिंग के अनुभव के बारे में स्कूबा डाइविंग के साथ ही चर्चा करेंगे। एक घंटा लगभग स्नोर्कलिंग में भी लगा ,फिर वापस आने के बाद फिर से हम यहाँ के अदभुत दृश्यों को अपनी आँखों के कैमरे से दखने लगे,क्यूंकि सामने जो दृश्य थे नजरें उनसे हट ही नहीं पा रही थी। करते कराते फिर से घोषणा होने लगी कि तीन बज गया है और बोट वापस लेने आ गयी है।मरता क्या ना करता वाली ही बात थी, भरी मन से अपने कपडे समेटते हुए हमने वापसी की तयारी की और पानी बोट में जा बैठे। अब तक यहाँ की सुंदरता देखने में इतने तल्लीन थे की भूख प्यास कुछ नहीं लगी,पर वापस जाते समय पेट में चूहे कूदने लगे। पर पेट-पूजा के लिए कछ भी  वानडूर पहुँच के ही मिलना संभव था तो बैठे रहे चुपचाप। वापस पहुँचने के बाद यहाँ की पानी की बोतल वापस कर के अपने पैसे लिए और ड्राइवर से तुरंत किसी खाने वाली जगह चलने को कहा,तो वो बोला कि  अब तो कुछ भी  वानडूर बीच पर ही मिलेगा तो वहीँ चल पड़े सोचा खाने के साथ-साथ दर्शन भी हो जायेंगे,हालाँकि ये सब हमें बहुत जल्दी में करना था क्यूंकि हम आज का सूर्यास्त चिड़ियाटापू से देखने वाली थे।  वानडूर बीच पहुँच कर एक खोखेनुमा दकान पर चाय समोसे का आर्डर देकर हम थोड़ा बीच के नजदीक चले गए,ये जगह भी देखने अब तक देखी हुई जगहों से थोड़ा अलग थी -
वानडूर बीच
 वानडूर बीच का एक और दृश्य
                              इसके बाद चाय-पानी कर के हम चिड़ियाटापू की तरफ चल पड़े,यहाँ के बारे अगले भाग में बात करते हैं। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये। 
अंडमान का सफर एक नजर में -



Thursday 3 September 2015

Corbyn's Cove Beach, Port Blair

                         दिन में ऐतिहासिक सेलुलर जेल  के दर्शन के बाद हमारा प्लान पास में ही स्थित सागरिका और समुद्रिका म्यूज़ियम होते हुए कोर्बिन्स कोव बीच जाने का था, समुद्री तटों के लिए विख्यात जगह में पहले समुद्री छोर को देखने का उत्साह  बहुत ज्यादा था। इन दोनों संग्रहालयों ने हमें बहुत ज्यादा आकर्षित नहीं किया,पर जब गए ही थे तो एक दो फोटो लेना तो आवश्यक हो ही जाता है,इसलिए कछ फोटो ले तो लिए पर आनन्द नहीं आया,हालाँकि संग्रहालयों के बाहर कुछ अच्छे दृश्य जररू थे जैसे आदिवासी जारवा जनजाति वगेरह के। अब जब इतने सुन्दर द्वीप में आये ही हैं तो सजा कर रखे गए मोती,कोरल को देखने में वो मजा कहाँ होगा जो अपनी आँखों से देखने में रहता है। जल्दी जल्दी यहाँ देखने की खानापूर्ति कर के हम निकल पड़े आकर्षक कोर्बिन्स कोव बीच की तरफ,देखिये कैसा है यहाँ के पानी और रेत का रंग -
कोर्बिन्स कोव का एक नजारा 

                             कोर्बिन्स कोव से पहले देखते हैं सागरिका और समुद्रिका में आखिर क्या था? अंदर तो कोरल मछलियाँ और मोती थे,और बाहर ये सब था जारवा जनजाति के सदस्यों के प्रतीक।इनके साक्षात दर्शन का मन नहीं था हमारा क्यूंकि मेरा विचार ये है क़ि आखिर वो भी तो हमारी तरह इंसान ही हैं इस तरह से देखने जा कर क्यों किसी को परेशान करना ,और कुछ ही दिन पहले ये भी पढ़ा था कि कैसे लोग इन्हे खाने का लालच देकर नृत्य वगैरह करवाते हैं। इस कारण यहाँ पर इनके कुछ प्रतिक चिन्ह दिखे तो उनके फोटो ले कर सन्तोष कर लिया। 
जारवा जनजाति 

जारवा धनुष बाण के साथ 
कुछ इस तरह की झोपड़ियां भी थी वहां आराम फरमाने को। 
सीमा प्रहरियों की मूक दास्तान 
                    कोर्बिन्स कोव पोर्ट ब्लेयर के सबसे नजदीकी समुद्र तटों में से एक माना जाता है, इसलिए ये जगह हमेशा ही काफी भीड़भाड़ से भरी रहती है। सागरिका से यहाँ की दूरी सात किलोमीटर की है, यहाँ से अबरदीन बाजार से गुजरते हुए समुद्र के समानान्तर हम लोग कोर्बिन्स कोव की तरफ बढ़ रहे थे ,अचानक हमारे ड्राइवर साहब ने गाड़ी रोक दी और कहा यहाँ पर एक व्यू पॉइंट बना हुआ है सुनामी के बाद से, ऊपर चढ़ कर देख लो और एक दो फोटो ले लो, तो हम चल पड़े। वहां जा कर के देखा तो बैठने के लिए अच्छी सी बैंच का निर्माण किया गया था और हमारे जैसे कुछ पर्यटक खड़े हो कर नीचे देख रहे थे। स्थिति कुछ ऐसी थी कि शायद हम एक चट्टान के ऊपर खड़े थे और नीचे समुद्र की लहरें उस चट्टान से टकरा कर  वापस जा रही थी जैसे मानिये चट्टान को नीचे नीचे खोखला कर रही हों और ऊपर खड़े नारियल के पेड़ भी समुद्र की तरफ झुके जा रहे थे। ड्राइवर के कथनानुसार तो ये जगह सुनामी के बाद ही बनी है, पर जिसने सुनामी के पहले का अंडमान देखा हो वो इस बात को बेहतर जान सकता है। काफी अच्छे दृश्य यहाँ से देखने को मिले थे। समुद्र के नजदीकी जगहों के लिए लगता है  कि वहां सड़के एक दम सीधी होती होंगी ये हमारा गोवा का अनुभव कह रहा था ,पर यहां आने के  बाद ये धारणा बदल गयी क्यूंकि जो ऊँची नीची सड़कें और हरियाली के दर्शन हो रहे थे वो किसी हिल स्टेशन से कम नहीं लग रहे थे। 
व्यू पॉइंट से दिखता विशालकाय समुद्र 
कोर्बिन्स कोव के  रास्ते में सुनामी के बाद बने व्यू पॉइंट से  हुए दृश्य। 
कुछ इस  तरह की बैंच बनी है यहाँ बैठने के लिए, साथ में अंडमान की  साफ़-सुथरी सड़क भी दिख भी नजर आ रही है। 
                              करीबन आधा घंटा यहाँ बिता कर मन नहीं होने के बावजूद भी हम कोर्बिन्स कोव की तरफ बढ़ लिए क्यूंकि बहुत ज्यादा समय नहीं बचा था हमारे पास। अंडमान की एक और बात है जो कि इसे भारत से जुदा करती है वो है यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त का समय। सुबह छह बजे ऐसा लगता है कि जैसे दिन निकल आया हो और शाम होते ही अंधकार छा जाता है। इसलिए यहाँ के वातावरण के अनुसार अपने कार्यक्रम प्रातःकाल से ही प्रारम्भ कर देने चाहिए। इस तरह से घूमते घामते हम कोर्बिन्स कोव बीच पहुंच ही गए। हालाँकि इस जगह ने मुझे उतना आकर्षित नहीं करा,क्यूंकि यहाँ के पानी में वो नीलीमा नहीं दिखी जिसकी कल्पना करी थी,शायद इससे बेहतर दृश्य उस व्यू पॉइंट ने दिखा दिए थे। पर कुछ भी कहो समुद्री तट तो समुद्री तट ही होता है देख कर के अच्छा ही लगता है। पानी की लहरों भले अपनी और को आकर्षित कर रही थी पर ड्राइवर की दी हुयी चेतावनी याद थी कि पानी में मत उतरना यहाँ पोर्ट ब्लेयर का गन्दा पानी डाला जाता है तो कदम बार-बार अपने आप पीछे हो गए।वैसे पता नहीं उसकी इस बात मे कितनी सच्चाई हो,यह भी संभव है कि वो जाने की जल्दी में हो।
कोर्बिन्स कोव
समुद्री तट पर लगी हुयी बैंच,जिन्हे पैसा देकर ही इस्तेमाल किया जा सकता था 
                       यहाँ से भी हमें समय पर निकलना था क्यूंकि सेलुलर जेल के साउंड एंड लाइट शो  को किसी भी हालत में नहीं छोड़ सकते थे। जिसका विवरण पिछली पोस्ट में आप लोग पढ़ चुके हैं।अगले सफर में चलेंगे अंडमान के किसी सुन्दर से आइलैंड की तरफ। 
अंडमान का सफर एक नजर में -