Thursday 25 July 2013

निसर्गधाम,कुर्ग (Nisargdham,Coorg)

              जैसा कि मैंगलोर से दुबारे की दूरी एक सौ चौसठ किलोमीटर है,तो आराम से नाश्ता करने के बाद ही निकलने का प्लान बनाया।ब्रेकफास्ट के बाद लगभग नौ बजे होटल से चेक-आउट कर के फिर से रास्ते पर आ गये।अबकी बार रोड की हालत पहले के मुकाबले बेहतर थी,फिर भी दुबारे पहुंचते-पहुँचते शाम सी ही हो गयी, और फिर वहां से अपने होम स्टे रेंज-फील्ड(Range field Home Stay) पहुंचे।वहां चाय पीने के बाद नानईया जी से बात करने पे पता चला कि वहां पर जाने के लिए दो आकर्षक जगहे है पहली दुबारे एलीफैंट कैंप और दूसरी कावेरी नदी की तलहटी पर स्थित आइसलैंड निसर्गधाम।पूछने पर पता लगा कि एलीफैंट कैंप के लिए देर हो गयी है तो निसर्गधाम जाने का रास्ता पता कर के निकल पड़े। निसर्गधाम का मुख्य द्वार बना तो बहुत सुन्दर है,पर उसमे क्या लिखा  है ये समझ नहीं आता क्यूंकि बहुत ही सुन्दर-सुन्दर जलेबियाँ बनी हुयी है , बस फर्क इतना है की इन जलेबियों में स्वाद नहीं होता केवल सुन्दरता होती है
 निसर्गधाम प्रवेश द्वार 
            यहाँ की सुन्दरता का आन्नद उठाने के लिए क्लिक करिए-
       ये जगह कुशालनगर-बैंगलोर हाईवे से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है,सन उनीस सौ नवासी में स्थापित,चौसठ एकर में फैला निसर्गधाम हरियाली,पानी और बांस के पेड़ों  से भरपूर है एवं यहाँ का मुख्य द्वार बच्चों को बहुत ही आकर्षक करने वाला है।
                 मुख्य सड़क से इस आइसलैंड को जोड़ने के लिए एक झुला पुल बना हुआ है,जिसमे जितना आगे जाओ वो उतना ज्यादा हिलता है। इसे देखकर लक्षमण झुला की याद जरुर आ जाती है। वैसे अगर सच कहूँ तो थोडा दर भी लगता है क्यूंकि इस झुलते हुए पूल से कावेरी नदी का विहंगम द्रश्य दिखता है।पर ये पूल आइसलैंड में जाने का एक मात्र रास्ता है तो जाना तो बनता ही है,इस तरफ बोटिंग करने वालों के लिए बोटिंग का प्राविधान भी है,हम लोगों ने सोचा कि बोटिंग लौटते हुए करेंगे पहले आगे और क्या क्या है ये देख ले।
झुला पूल 
              यहाँ पर जगह जगह पर बैठने के लिए झूले बने हुए हैं ,जिन्हें देखकर लगता है कि वो कह रहे हैं आओ अब तुम बहुत घूम लिए थोड़ी देर बैठकर आराम भी कर लो।बांस के जंगलों के मध्य से गुजरते हुए रास्ते में पड़ते हैं बहुत सरे मचान ट्री।हम लोग बहुत ही पशोपाश में थे कि बच्चे के साथ चढ़ सकते हैं या नहीं?
ऊपर जाऊ या नहीं,करूँ तो क्या करूँ?अंततः नहीं 
             यहाँ पर बहुत सरे बांस के कॉटेज बने हुए है,शायद जिनमे रहने का प्राविधान भी है,इस तरह से घूमते-घूमते हम आइसलैंड की दूसरी तरफ नदी के मुहाने पर आ गए।अब क्या था दिमाग ने कहा इस तरफ तो और भी आकर्षण छुपा था,ये जगह पानी के साथ खेलने वालों के स्वर्ग सरीखी ही है,शान्त रूप से बहता हुआ पानी,सामने दिखती हुयी हरियाली  और साथ में पड़े हुए आकर्षक से पत्थर जिन पर चढ़-चढ़ कर लोग फोटो खिंचा रहे थे,जब लोग खिचा ही रहे थे तो हम भी क्यूँ पीछे रहे सोच कर एक फैमिली फोटो हमने भी खिचवा ली
निसर्गधाम
                       यहाँ पर एलीफैंट की सवारी भी होती है,हमारे पहुँचाने तक तो वो बंद हो गयी थी पर इस बात का कोई अफ़सोस भी नहीं था क्यूंकि अगले दिन दुबारे एलीफैंट कैंप तो जाना ही था वहां पर ये मौके बहुतायत में मिलने ही थे।      
बांस के जंगलों से बाहर आता हुआ हाथी  

       अब तक कुछ खाने का मन भी होने ही लगा था तो सोचा अब यहाँ से अनुमति लेनी चाहिए और सडक के पास के ही किसी रेस्तौरेंट में पेट पूजा कर ली,और पुन्ह अपने होमस्टे की ओर रवाना हो गए।वहां पहुँचने तक मुझे थोडा जा सर्दी  की शिकायत सी भी महसूस होने लगी थी,पर नानईया जी ने शहद और कालीमिर्च का ऐसा घोल पिलाया की सर्दी तो उसी वक्त गायब हो गयी और कैंप फायर और संगीत के साथ-साथ रात के खाने का मजा दोगुना  तो हो ही गया था,इस तरह से खाना खाने के बाद जल्दी सोने में ही भलाई थी क्यूंकि अगले दिन दुबारे एलीफैंट कैंप के साथ साथ मैसूर वृन्दावन गार्डन होते हुए बैंगलोर के लिए निकलना भी तो था,तो अगली पोस्ट में मिलते हैं दुबारे एलीफैंट कैंप में,यहाँ दुबारा आना तो बनता ही है।
रेंज फील्ड:कैंप फायर

Monday 22 July 2013

मैंगलोर आकर्षण :सोमेश्वर और पेनाम्बूर समुद्र तट (Mangalore attractions: Someshwar and Panamboor beach)

              बेकाल के बाद हमारा लक्ष्य था सोमेश्वर और उल्लाल समुद्र तट होते हुए मैंगलोर पहुँचने का।तो एक बार फिर से शुरू करते हैं,सोमेश्वर पहुँचते पहुंचते सूर्य देवता अपने प्रचंड रूप को अलविदा कह चुके थे तो मौसम कुछ अच्छा हो गया,समुद्र को देखने और आन्नद उठाने के लिए।मैंगलोर के सुन्दर समुद्र तटों के बारे में पढने के लिए क्लिक करें-
             सोमेश्वर बीच मैंगलोर का सबसे सुन्दर बीच के रूप में जाना जाता है,और यहाँ पर सूर्यास्त देखने के लिए बहुत से लोग आते हैं।हमारा प्लान भी ऐसा ही था।ये जगह मैंगलोर से ९ किलोमीटर पहले उल्लाल टाउन के आसपास है।गूगल पर रिसर्च करने के बाद ऐसा लगा था कि सोमेश्वर और उल्लाल दो समुद्र तट है देखने के लिए, पर जाने के बाद एक ही मिला,लोग कह रहे थे कि एक ही जगह है, शायद बायीं तरह उल्लाल बीच है और दायीं तरफ सोमेश्वर। जा कर के बहुत ही सुन्दर लगा पर हम सूर्यास्त से पहले ही पहुँच गए तो सूर्यास्त का आन्नद नहीं ले पाए।समुद्र के मध्य में एक बड़ी सी चट्टान है, जिसे रूद्र शिला के नाम से जाना जाता है।इससे टकरा कर वापस जाने वाली समुद्र की लहरें प्रकृति की ताकत का एहसास कराती है। कम भीडभाड से भरा हुआ बहुत ही आकर्षक बीच है ये,जहाँ की सुनहरी रेत पर चलना भी अपनेआप में एक सुनहरा अनुभव है।यहाँ पर एक बहुत ही पूराना मंदिर भी है, कहा जाता है की उसके अन्दर मीठे पानी का एक स्रोत है।यहाँ की सुन्दरता के कुछ नज़ारे आप भी देखिये-
आकर्षक समुद्र के साथ साथ बादलों की सुन्दरता 
 समुद्र और सुनहरी रेत 
                 यहाँ के बाद मैंगलोर के लिए रवाना हुए और होटल नालपड रेजीडेंसी में चेक-इन कर के कुछ देर आराम करने के बाद सोचना शुरू किया कि सूर्यास्त देखने के लिए जाएँ तो कहाँ जाएँ?माल पे और कापू बीच बहुत दूर थे तो लगा बस सूर्यास्त तक ही पहुँच पाएंगे तो होटल में पता करने से ज्ञात हुआ कि पनाम्बूर जाना ज्यादा उचित रहेगा क्यूंकि वो मैंगलोर से सबसे नजदीक में है मात्र तेरह किलोमीटर की दूरी में।
               इस बीच को पनाम्बूर का नाम इसके पोर्ट के नजदीक होने के कारण दिया गया है,पनाम का मतलब होता है पैसा। शहर से नजदीक होने के कारण ये यहाँ के सभी समुद्र तटों से ज्यादा भीड़-भाड़ से भरा हुआ है।ये समुद्र तट पोर्ट के नजदीक और इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित है।यहाँ पर एक दो कोल् फैक्ट्रीयों के होने के कारण यहाँ की रोड ऐसी लगती है जैसे काली ग्रीस सडक में गिरी हो।पर समुद्र तट सड़क के बहुत ही नजदीक है और बीच लोगों की भीड़ से भरा हुआ।यहाँ पर बच्चों के खेलने के लिए भी बहुत इंतजाम है,और बहुत से वाटर स्कूटर भी थे,हम तो बच्चे के साथ नहीं जा पाए।
 पेनाम्बूर समुद्र तट का सूर्यास्त


रेतमें आती हुयी लहरें 

               लहरों का आन्नद उठाते हुए और सूर्यास्त देखने के बाद ख्याल आया कि वापस होटल चलना चाहिए, और रात को कादल में डिनर करने के बाद अगले दिन के लिए प्रोग्राम बनाते हुए सो गए, क्यूंकि हमारे प्लान में दुबारे जाना भी जुड़ गया था,तो अगली पोस्ट में मिलते हैं दुबारे में
इस यात्रा की सभी कड़ियाँ-
कुर्ग (Coorg)
तालाकावेरी:कावेरी का उद्गम स्थल (Talakaveri: Origin of Kaveri River)
बेकाल फोर्ट( Bekal Fort)
मैंगलोर आकर्षण :सोमेश्वर और पेनाम्बूर समुद्र तट (Mangalore attractions: Someshwar and Panamboor beach)
निसर्गधाम(Nisargdham)




Friday 12 July 2013

बेकाल फोर्ट( Bekal Fort)

               तालाकावेरी से नीचे उतर कर नाश्ता किया और कासरगोड की रोड को पूछना शुरू किया तो पता चला की बेकाल तक रोड की हालत तो बस ठीक ठाक ही है, पर जब इतने चर्चे सुन के घर से देखने का मन बना के निकले थे ,तो आगे बढना तो तय ही था ,तो निकल पड़े कान्हागढ़-कासरगोड(kanhagad-kasargod)रोड पर।अब बात करते हैं सड़क की, कुल जमा बयानाब्बे किलोमीटर में से लगभग साठ किलोमीटर तक तो बस संकरी सी सडक ही थी, जिसके दोनों ओर दिख रहा था घना  जंगल।आगे पीछे गाड़ियों के दर्शन भी नहीं हो रहे थे,  इसलिए मन कर रहा था कि बस जल्दी से पहुँच ही जाएँ,पर गाड़ी पहुँचती तो अपने समय से ही है ।अंततः हमें अच्छी सड़क मिली। सकरी सड़कों के बाद अच्छी सड़क का महत्व बढ़ जाता है और वो कुछ ज्यादा ही अच्छी लगने लगती है। तो मजे से गाने सुनते सुनाते,सडक को एन्जॉय करते हुए आगे बढ़ चले।  इस सड़क पर पढ़ते हुए पता नहीं कैसे माइंड से स्लिप हो गया की हमें तो बेकाल जाना है, और जीपीएस ने साथ देना छोड़ दिया तो हम कासरगोड(Kasargod) का रास्ता पूछने लगे,इस तरह से आठ-दस किलोमीटर और जुड़ गये हमारे सफ़र में।जहाँ से याद आया वहां से फिर वापस हो लिए बेकाल फोर्ट की ओर।यहाँ पर पार्किंग के लिए काफी जगह प्रदान की गयी है,पहले तो गाड़ी एकदम नारियल के पेड़ के नीचे पार्क कर दी थी,उतर के नारियलों को गिरते हुए देखा तो फिर वहां से हटा कर दूसरी जगह लगायी। यहाँ पहुँच कर बहुत तेज गर्मी का अनुभव हो रहा था तो कोल्ड ड्रिंक वगेरह के बाद बच्चे को गर्मी से बचने के लिए हैट लिया, और चल पड़े किले के अन्दर।बेकाल फोर्ट के बारे में जानकारी के लिए पढ़िए -
           तीन सौ साल बेकाल फोर्ट केरल के कासरगोड जिले में स्थित है,जो कि यहाँ का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक महत्व का किला है।समुद्र तल से इसकी उंचाई मात्र एक सौ तीस फीट है।इसका निर्माण शिवाप्पू नायक ने सन पंद्रह सौ दो में सुरक्षा के द्रष्टिकोण से करवाया था।यहाँ पहुच कर लगता है कि नजरे यहीं थम सी जाएँ, एक तरफ दिखता हुआ अरब सागर तो दूसरी तरफ किले के सुन्दर नज़ारे।इसे भारत के सात आश्चर्यों में से एक माना जाता है।यहाँ पर बच्चों के लिए एक पार्क भी है जो कि बेकाल पार्क के नाम से मशहूर है।अब जैसा कि मेरा ये समुद्र दर्शन का यह पहला अनुभव था तो प्रसन्नता का कोई ठिकाना ही नहीं रहा, वहीँ दूसरी ओर मेरी बेटी का भी पहला अनुभव था मात्र चार महीने की उम्र में। क्यूंकि हम लोग नार्थ इंडिया से है, तो आसानी से देखने का मौका नहीं मिल पाता है,तो समुद्र की लहरों को देखकर ऐसा लग रहा था कि ताउम्र इन्हें देखते ही रहो।बहुत तेज धूप और आगे जाने की जल्दी के कारण यहाँ से विदा लेनी पड़ी। कुल मिला कर बेकाल फोर्ट जाने का निर्णय अति उत्तम रहा और केरल जा कर इसे छोड़ना तो अपनेआप में ऐसा है कि बहुत कुछ छुट गया।तो इस तरह से अगली पोस्ट में मिलते है मंगलौर में तब तक के लिए आप भी यहाँ के नज़रों का आन्नद उठाइए-          
बेकाल फोर्ट और साथ में दिखता हुआ समुद्र                     
   

                     यहाँ पर बार बार आती हुयी लहरों को देख के याद आया, बॉम्बे मूवी का गाना "तू ही रे,तू ही रे ,तेरे बिना मैं कैसे जियूं ",जिसकी शूटिंग बेकाल फोर्ट और बेकाल बीच में हुयी थी।



Tuesday 2 July 2013

तालाकावेरी:कावेरी का उद्गम स्थल (Talakaveri: Origin of Kaveri River)

          रात को इतनी अच्छी नींद आई कि सुबह चार बजे ही आँख खुल गयी, और पांच बजे तक तो हम अपने होमस्टे से चेक-आउट कर के निकल पड़े  भागमंडला होते हुए तालाकावेरी के लिए। मदिकेरी से भागमंडला तक के चालीस  किलोमीटर तो आराम से निकल गए क्यूंकि वहां तक मंगलौर हाईवे था, पर उसके आगे के आठ किलोमीटर तक रोड की हालत सही नहीं थी,पूरे साढ़े तीन घंटा लग ही गया तालाकावेरी तक पहुँचते पहुँचते।यहाँ इतनी तेज हवा बहती है कि मनो गाल पर थप्पड़ ही लगा रही हो।तो कार के अन्दर ही पहले सान्वी को ब्लैंकेट में लपेटा और फिर बाहर निकले।तालाकावेरी एक धार्मिक महत्व की जगह है। 
           भागमंडला दक्षिण की  काशी के नाम से भी विख्यात है। भगंद ऋषि ने  यहाँ शिवलिंग की स्थापना की गयी थी,तब से ये जगह  भागमंडला के नाम से प्रसिद्ध हुयी।यहाँ पर कई छोटे बड़े मंदिर और तीन नदियों कावेरी, कनिका और सुज्योती का संगम होने के कारण ये जगह  धार्मिक महत्व की है, और यहाँ से आगे तालाकावेरी में कावेरी नदी का उद्गम स्थल भी है जो  कि ब्रह्मगिरी पहाड़ के ढलान पर स्थित है।यहाँ की समुद्र तल से ऊंचाई चार हजार पांच सौ फीट है।यहाँ पर कुंड के पीछे ब्रहाम्कुंडिका से कावेरी नदी का उद्गम होता है।कुर्ग के लोग कावेरी नदी की पूजा करते हैं और दूर दूर से इस कुंड में स्नान करने आते हैं।
तालाकावेरी का कुंड 
              कुंड से थोडा ऊपर मंदिर है,जिसके सामने से सीढियाँ जाती है,जोतालकावेरी की चोटी पर ले जाती हैं। एक बार चढ़ना शुरू कर दो तो ये ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती। मन करता है की अब तो रूक ही जाओ, पर हम लोग चार महीने के बच्चे के साथ जैसे तैसे चढ़ ही गए।
सीढियाँ जो की अंतहीन सी लग रही थी 
           ऊपर पहुँचने के बाद हवा का वेग इतना महसूस हो रहा था कि मानो उडा ही ले जाएगी।दृश्यों के बारे में तो कहना ही क्या, एक तरह कुर्ग हरियाली ही हरियाली,तो दुसरी तरफ केरल की पहाड़ियां। नजर घुमाओ तो दिखती है ब्रह्मगिरी की पहाड़ियों पर घुमती हुयी पवन चक्कियाँ।कुल मिलकर इतनी सीढियां चढने से जो थकान लगी तो वो पलभर में गायब हो गयी।






         इन सब नजारों को देख ही रहे थे कि याद आया हमें और आगे तक जाना है और फिर तालाकावेरी से विदा ले कर उतर आये। नीचे उतर कर आसपास में नाश्ता किया और कन्हागढ़ कासरगोड रोड में आगे बढ़ गए,क्यूंकि बेकाल फोर्ट तो देखना ही था,तो फिर मिलते हैं बेकाल फोर्ट और मंगलौर मे.