Friday 13 November 2015

Around Port Blair ...पोर्ट ब्लेयर के आसपास के नज़ारे

                  आज  के दिन  तय  प्रोग्राम के अनुसार रॉस आइलैंड एवं माउंट हैरियट जाना था। पर आज जो घटना हुयी वो इस इस बात का पुख्ता उदाहरण है कि नर सोचे और नारायण करे औरअचानक ही परिवार में किसी की तबियत खराब होने से मेरे हसबैंड को अपनी फ्लाइट मोडिफाई कर के कोलकाता  से होते  दिल्ली जाना पड़ा यात्रा में थोड़ा व्यवधान तो पड़ा,फिर भी भगवान को धन्यवाद देना बनता था कि ये घटना ट्रिप के अंतिम दिनों में ही हुई। इसलिए हम अभी तक लगभग अपने मुख्य इंटरेस्ट की जगहें देख चुके थे।  बस साथ में ले जाया हुआ बीस रूपये का नोट जो धरा का धरा रह गया उसका थोड़ा अफ़सोस था। अब यहाँ हम चार  लोग ही रह गए जिनमे दो बुजुर्ग और एक छोटा बच्चा शामिल थे। अब ये लोग किसी भी हालत में  छोटे बच्चे के  साथ ज्यादा दूर और पानी वाली जगह में जाने को तैयार नहीं थे।इसलिए प्लान में आमूलचूल परिवर्तन करते  हुए लोकल पोर्ट ब्लेयर देखने का मन बनाया गया। वैसे अब तक यहाँ के मुख्य आकर्षण जॉली बॉय आइलैंड,कोर्बिन्स  कोव बीच ,सेलुलर जेल एवं म्यूज़ियम इत्यादि हम पहले ही देख चुके थे। अब यहाँ के दर्शनीय स्थलों में से हमारी देखने वाली जगहों में जॉगर्स पार्क ,गांधी पार्क और राजीव गांधी वाटर पार्क और चाथम सौ(आरा मिल) मिल बचे थे ,जिसमे राजीव गांधी पार्क में वाटर स्पोर्ट्स का आयोजन होता है, तो हमारा वहां जाने का कोई खास मन नहीं था।इसलिए आज के दिन की शुरुआत भले मॉर्निंग वाक के साथ नहीं हुई पर फिर भी  जॉगर्स पार्क से ही हुई। 
जॉगर्स पार्क का एक दृश्य 
 अब देखते हैं क्या खास है जॉगर्स पार्क में

                       जैसा कि नाम से ही  पता लग रहा है वीआईपी रोड पर स्थित जॉगर्स पार्क सुबह और शाम वाक और जोगिंग करने वालों की भीड़ से भरा हुआ रहता है। जब काफी देर समुद्र  की लहरों  के साथ  मस्ती करने  के बाद जब कदम थकान से डगमगाने लगें तो चार पल शांतिपूर्ण वातावरण में बैठने के लिए इससे पार्क से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती है। ये जगह पोर्ट ब्लेयर की ऊँची जगहों में से एक है,जहाँ से शहर के नयनाभिराम दृश्य देखे जा सकते हैं। इस स्थान की सबसे बड़ी विशिष्टता इसका वीर सावरकर हवाई अड्डे से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर होना है। यहाँ आराम से शांतिपूर्ण वातावरण में  बैठकर वायुयानों को उड़ते और लैंड होते हुए देख सकते हैं। ये  पार्क सुबह साढ़े पांच बजे से रात्रि के आठ बजे तक खुला रहता है। सबसे मजेदार बात ये है क़ि यहाँ जाने की कोई फीस नहीं पड़ती। यहाँ पर खड़े हो के रनवे तो रनवे,आने जाने वाले वायुयानों की  हर गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है,हालाँकि हम इतने खुशकिस्मत नहीं थे कि  उड़ता या लैंड होता जहाज देख पायें, क्यूंकि यहाँ गिनी चुनी फ्लाइट्स आती हैं। सुबह आने वाली वाली आ के चली गयी और दूसरी के आने में अभी काफी वक्त था। कड़ी धूप में ज्यादा देर रुका नहीं जा रहा था। इसलिए सामने  दिखने वाले रनवे का ही फोटो लेने का सोचा। इतने में जेब से कैमरा निकला तो पता लगा उसका मेमोरी कार्ड गायब है और एक बार फिर कई  साल पुराने मोबाइल के  कैमरा ने साथ दिया। उसका रिजल्ट आपके सामने है।
                               
जॉगर्स पार्क से दिखता वीर सावरकर एयरपोर्ट का एक मात्र रनवे 
                             कुछ देर यहाँ बिताने के बाद हम अब गांधी पार्क की और जा रहे थे तभी रास्ते  में भारत के नक़्शे की तरफ नजर पड गयी। जो जगह देश प्रेम के  मतवालों की हो वहां भारत के नक़्शे का होना तो  आवश्यक ही है।
मेरा भारत महान 
                               इसके बाद हम गांधी पार्क के मुख्य द्वार पर पहुँच ही गए।अंडमान के लिहाज से गांधी पार्क एक अच्छी जगह है ,पर भारत के अन्य हिस्सों से आने वालों को उतनी खास नहीं लगेगी। अब जैसे कोई बैंगलोर से जाये जो कि खुद ही गार्डन सिटी के नाम से फेमस है ,तो उसके मन में ये पार्क रच बस नहीं पायेगा। परन्तु  बच्चों के साथ आने वाले पर्यटकों के  लिए ये एक ठीकठाक जगह है ,बच्चों के लिए काफी कुछ है यहाँ पर।नाम के अनुरूप यहाँ गांधी जी की एक प्रतिमा लगी हुयी है।उसके अतिरिक्त एक बच्चों की खिलौना ट्रैन है। खिलौना ट्रैन वाले और मेरे बीच के वार्तालाप की एक झलक -"कितने पैसे लगेंगे भईया ,जी अस्सी रूपये ,अब पता नहीं बच्चा बैठेगा या नहीं ,मैडम बच्चा आपका है आपको पता होगा कि बच्चा बैठेगा या नहीं। "  वैसे मेरा मन ये  था एक बार बैठा के देख लेते ,अगर ठीक लगता तो पैसे दे देते। पर जब उसके गरम अंदाज देखे तो हम वहां से ट्रैन का मोह छोड़ के निकल लिए। यहाँ पर एक छोटी सी क्रतिम झील भी है जो शायद बच्चों को बोटिंग करने के लिए इस्तेमाल होती हो। इसके अलावा एक बड़ी झील है जिसके चारों और ये पार्क बना हुआ है। पहले हमारा विचार पूरे पार्क का एक चक्कर लगाने का था ,पर जब थोड़ा दूर जा के ऐसा लगा कि सब जगह से लगभग एक ही तरह के दृश्य दिखाई दे रहे हैं ,तो हम वहीँ से वापस हो लिए।इस लेक में पैडल बोट की सुविधा भी उपलब्ध है। हमने कई जगह बोटिंग करी है तो इस छोटी सी झील में बोटिंग का कोई इरादा नहीं था। इस पार्क के कुछ दृश्य -
     
खिलौना ट्रैन गूगल द्वारा 
लेक में खड़ी पैडल बोट 
लेक के किनारे किनारे चलने के लिए बना पैदल पथ 
                      अंडमान आइलैंड का बाजार मोती और कोरल के लिए काफी प्रसिद्ध माना जाता है। कहते हैं कि यहाँ पर सच्चा मोती कम दामों  में मिल जाता है। इसलिए हम भी चले गए सच्चा मोती खरीदने ,अब हम तो ठहरे ग्राहक ,क्या जाने कौन सा मोती सच्चा है और कौन सा झूठा। फिर भी इससे पहले मैंने नवाबी नगरी हैदराबाद से मोती खरीदे थे। वहां का अनुभव थोड़ा काम आया,वहां किसी ने कहा था मोती को रगड़ के देखना चाहिए और खरोच आने के बाद पानी लगा के देखो फिर पहले जैसा दिखने लगे तो सच्चा माना जाता है ,सो यही फार्मूला आजमा के कर ली थोड़ा खरीददारी। यहाँ से बाहर निकलने तक रात ही हो गयी थी ,तो सोचा एक बार फिर से भारत के नक़्शे के दर्शन करते हुए ही होटल वापस जाएँ। 

जगमगाता हुआ भारत का नक्शा 
                            यहाँ से होटल वापस जा के एक बार फिर चौखट के भोजन का जमकर आनंद उठाया ,और अपना सारा सामान कर जल्दी ही सो गए। अगला दिन अंडमान को अलविदा कह कर वाया चेन्नई शताब्दी एक्सप्रेस से  बैंगलोर पहुँचने के लिए निर्धारित था। इसी के साथ सफेद रेत अंडमान आइलैंड की अविस्मरणीय यात्रा का सुखद समापन हो गया।

अंडमान का सफर एक नजर में -



Tuesday 3 November 2015

Havelock to Port Blair...कितना यादगार था हेवलॉक से पोर्ट ब्लेयर का वो सफर,देखने को कुछ था तो बस हर तरफ बिखरा हुआ नीला रंग

                     पोर्ट ब्लेयर जाने वाली फेरी में बोर्डिंग में थोड़ा समय बचा था ,तो सोचा यहीं इधर उधर टहल कर हैवलॉक की थोड़ी और यादें समेट लें  और साथ के साथ कुछ नाश्ते का बच्चे के लिए कुछ नाश्ते का सामान पारले जी बिस्कुट ,थोड़े बहुत चिप्स और कुछ छोटे छोटे फ्रूटी के डब्बे भी रख ले,जो आगे सफर में काम आएं। इस समय हमारा घूमने का एरिया जेट्टी के आसपास का ही था, तो वहां सब पोर्ट ब्लेयर वापस जाने वाले लोगों की भीड़ दिखाई दे रही थी। वहीँ पास में एक बस स्टेशन था और पास के पार्क में कुछ झोपड़ीनुमा बैठने की जगह बनी हुयी थी जिनमे बैठकर कुछ और नहीं तो कम से कम तपती हुयी धूप से तो बचा ही जा सकता था।यहाँ  घूमते-घूमते एक मंदिर के दर्शन भी हो गए। घूम फिर के हम फिर वापस जेट्टी पर आ गए क्यूंकि अब बोर्डिंग का समय भी हो गया था। जाते जाते जेटी का एक फोटो भी खींच ही लिया,हालांकि जो देख के आ रहे थे उसके आगे ये दृश्य कुछ भी नहीं था -

बीच नंबर १ 


राधानगर बीच को जाने वाली बस 


पार्क 
                        जेट्टी से फेरी में बैठने के बाद आधा घंटा लगभग  हमने वहां के माहौल से अभ्यस्त होने में लगाया,उसके बाद थोड़ा बैचेनी सी होने लगई। बात ये थी कि अब जब फेरी ओपन डेक है तो हम नीचे बैठकर क्या कर रहे हैं,इसलिए हम पांच यात्रियों में से दो डेक में किस तरह का माहौल है ये देखने के लिए चले गए। अब एक बार डेक पर पहुंचे तो वहां जा कर जो भीड़ दिखी उसमे अचम्भे में डाल दिया,क्यूंकि लगभग सभी लोग डेक पर मौजूद थे। कोई खड़ा था तो कोई बैठा था और सब लोग नीले रंग की महिमा देख रहे थे,नीचे देखो तो नीला पानी,सर उठाकर के ऊपर देखो तो नीला आसमान। जब तक हैवलॉक नजदीक था तब तक थोड़ा हरा रंग भी दिख रहा था,उसके बाद तो कुछ दिख रहा था तो बस नीला समंदर। अब तक हमारे अन्य साथी भी डेक पर आ गए  थे।पूरे सफर में बहुत खूबसूरत नज़ारे देखे , खूब फोटोग्राफी की,यहाँ के  खूबसूरत दृश्यों की प्रशंसा में कसीदेकढ़े।  इसके साथ साथ जब लहरों के बीच जब जहाज हिचकोले खा रहा था तो अपने समय में आने वाले बच्चों के सीरियल का टाइटल सांग भी याद आ रहा था "अगर मगर डोले नैय्या ,लहर लहर जाये रे पानी ,डूबे न डूबे न मेरा जहाजी " ।
            ओपन डेक वाली फेरी में बच्चों के साथ ट्रेवल करने से बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है,क्योंकि बच्चे इधर उधर ज्यादा करते हैं तो थोडा रिस्की हो जाता है,हम लोगों को इस मामले में ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्योंकि छोटा पार्टनर सो गया था।बहुत देर तक नीले समंदर और नीले आकाश के मध्य हिचकोले खाने के बाद सूर्यास्त का समय हो आया और   यहाँ  पर  अंडमान का दूसरा बेहतरीन सनसेट दिखा गया ,जिससे हमारा राधनगर में सनसेट नहीं देख पाने का अफ़सोस थोडा कम हो गया।यहाँ पर सूर्य देवता ने खुले आसमान के साथ अपना हर रंग दिखाया।कभी आग का गोला जैसा तो कभी सुनहरे आसमान के मध्य एक चमकदार बिंदु जैसा।सूर्य देव तो सूर्य देव आज तो चंद्रमा भी हम पर मुक्त हस्त से कृपा बरसा रहे थे।जी हाँ पुर्णिमा के पूर्ण गोलाकार चंद्रमा ने भी यहाँ हमें दर्शन दे ड़ाले।पर सूरज और चंद्रमा दोनों के एक साथ दिखने के बावजूद भी उन्हें फ़ोटो में एक साथ नहीं ले पाये,क्योंकि दोनों की दिशाएं आशा के अनुरूप अलग अलग थी।
                            पूनम  का चाँद










                          सूर्यास्त के बाद अचानक से अँधेरा हो गया ,और अब   स्याह सा आसमान दिखने लगा।अब  समुद्र की भी  बस आवाजें आ रही थी,वो भी लगभग काला ही दिख रहा था। अब जब कुछ दिख ही नहीं रहां था तो डेक में बैठकर भी क्या करना था तो हम एक बार फिर अपनी सीट परजा के विराजमान हो गए। सात बजे लगभग एक बार फिर डेक पर पधारे ये दिखने के लिए कि अभी पोर्ट ब्लेयर कितना दूर दिख रहा है और रात के अँधेरे में कैसा दिख रहा है। देखते देखते कुछ फोटो भी खिंच लिए - 


जगमगाता हुआ पोर्ट ब्लेयर 
जगमगाता हुआ पोर्ट ब्लेयर 
माउंट हैरियट के लाइट हाउस का प्रकाश 
                               ये फोटो लेने तक हम पोर्ट ब्लेयर  पहुँचने ही वाले थे, तो नीचे जा कर उतरने की तैयारी के साथ-साथ राजू भाई को भी फ़ोन लगा लिया  जो कि पहले से ही जेट्टी पर मौजूद था,यहाँ से निकल रात के अँधेरे में खड़े हुए जहाजों को देखना बहुत अच्छा लग रहा था। इतने में राजू भाई आ गए और हम एक बार फिर उनकी गाड़ी में सवार हो कर, अगले दिन के प्रोग्राम के विषय में  हुए दुबारा से चौखट पहुँच गए। 


अंडमान का सफर एक नजर में -



Around Port Blair ...पोर्ट ब्लेयर के आसपास के नज़ारेफेंटा बीच