Monday 7 October 2013

मैसूर(Mysore)

                 इस वर्ष नार्थ के साथ-साथ साउथ में भी पिछले दो वर्षों के मुकाबले वर्षा की अधिकता थी, या कहें की अभी भी बनी हुयी है।मुझे पिछले वर्ष की याद है कि हम लोग जून में मैसूर जाने का सोच रहे थे पर गर्मी इतनी ज्यादा थी कि इतने नजदीक होने के बाद भी नहीं जा पाए,और इस वर्ष काली घटायें इस कदर छाई है कि लगता है कभी भी चल पड़ो। इसी तरह के मौसम में मई के शनिवार ,तारीख तो अब याद नहीं है,अचानक से मन बना कि मैसूर चलते हैं,तभी हमने सान्वी के चाचा को भी फ़ोन करके बुला लिया।इस तरह से एक बार फिर बिना किसी तैयारी के हम चार लोग चल पड़े मैसूर की ओरफटाफट से सान्वी का खाना-पानी तैयार करके हम लोग लगभग साढ़े दस बजे ही निकल पाए, कोई पूर्व निर्मित प्लान नहीं था तो गाड़ी में बैठे-बैठे ही सोचा सबसे पहले मैसूर पैलेस,फिर चामुंडी हिल्स और अंत में वृन्दावन गार्डन का म्यूजिक शो देखते हुए घर वापस आ जायेंगेइस तरह से रुकते-रुकाते हम लोग दो बजे मैसूर पहुंचे,आप यहाँ पर  मैसूर पैलेस की भव्यता तो देखिये
 मैसूर पैलेस 
                बिना किसी मेहनत के आप लोग हमारे साथ सारा मैसूर घूम लें ऐसा तो संभव ही नहीं है, तो समय की महत्ता समझते हुए जल्दी से क्लिक करिए और चलिए मैसूर की सैर पर - 

                 बैंगलोर से करीब एक सौ पैतालीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित मैसूर बैंगलोर के बाद कर्नाटक का दूसरा बड़ा शहर है। चामुंडी पहाड़ी के पश्चिम में सात सौ सत्तर मीटर की ऊंचाई पर दक्षिण के पठार पर बसा मैसूर कावेरी और कबिनी नदी के बीच स्थित है,यह पुरातन सभ्यता और आधुनिकता दोनों को अपनेआप में एक साथ समेटे हुए है।मैसूर चन्दन,सिल्क और अपने बगीचों के लिए जाना जाता है।एवं पर्यटन के लिए अपने में बहुत से आकर्षणों को समेटे हुए है।देश- विदेश से यहाँ लोग घुमने के लिए आते हैं तथा यहाँ के दशहरे का तो कहना ही क्या है। अब जब हम मैसूर के इतने पास रहते हैं तो जाना तो बनता ही है,पर ऐसी जल्दीबाजी भी क्या सब जगहों को देखने की की,क्यूंकि पास की जगह है कभी भी जा सकते हैं तो यूँ ही आराम फरमाते हुए हम लोगों ने सब से पहले देखा मैसूर  पैलेस। चलिये अब आपको अवगत कर देते हैं  मैसूर  पैलेस के इतिहास से। ये महल राजा कृष्णराज वाडीयार का है,पहले ये महल चन्दन की लकड़ियों का बना हुआ था,पर एक दुर्घटना की वजह से यहाँ काफी छाती हुयी और फिर अब जिस मैसूर पैलेस को हम देखते  हैं वो दुबारा बनवाया गया है। यहाँ के पुरातत्व और भव्यता को को देखने में ही काफी समय लग गया, फिर बहुत कुछ देखने के बाद बाहर निकले तो काफी लोग ऊंट की सवारी कर रहे थे,मन तो हमारा भी बहुत मचला पर साथ में छोटी के होने के कारण नहीं हो पायी,पर मन को कुछ इस तरह से मनाया कि इस इच्छा को भविष्य में होने वाले राजस्थान भ्रमण में पूरा करेंगे
               अब हमारा अगला लक्ष्य था चामुंडी हिल्स,जो कि मैसूर से तेरह किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है,इस पहाड़ी कि चोटी पर माँ चामुंडा का मंदिर है।बारहवीं शताब्दी में बना ये दुर्गा मदिर महिसासुर राक्षस पर देवी माँ कि विजय का प्रतीक है।इस सात मंजिला मंदिर की ऊंचाई चालीस मीटर है एवं यहाँ पर महिसासुर  कि भी एक बहुत बड़ी प्रतिमा रखी हुयी है।यहाँ से मैसूर के बहुत ही मनोरम द्रश्य दिखाई पड़ते हैं।फोटो आप भी आन्नद लीजिये-
रास्ते से दिखता मैसूर का द्रश्य 



एक अन्य नजारा  
महिसासुर की विशालकाय प्रतिमा 


 माँ चामुंडा का मंदिर 

                यहाँ से उतरते हुए रस्ते में नंदी बैल के दर्शन हुए।उसकी विशालता के बारे में बताने के लिए तो मेरे शब्द ही कम पड़ रहे है,बा यही लग रहा था कि बनाने वाले ने कैसे बनाया होगा इसे,तो वहां पर रखे कुछ और बड़ी शिलाओं को देखकर अनुमान लगाया कि शायद ऐसी ही कोई शिला होगी जिस पर नंदी की आक्रति को उतरा गया होगा।
       
नंदी बैल 

            यहाँ पर दर्शन के बाद हम मैसूर की तरफ रवाना हुए,और वृन्दावन गार्डन जाने का प्लान तो था ही।पर उतरते-उतरते समय काफी लग गया और भूख भी लग आई थी तो पहले खाना खाया और उसके बाद जीपीएस महाशय से सहायता मांग ही रहे थे कि सड़क में किसी से जानकारी लेने से पता चला कि हम लेट ही पहुंचेंगे और अब जाने का कोई फायदा नहीं है ।पर वृन्दावन गार्डन एक बार फिर छोड़ते हुए हम लोग रात को ग्यारह बजे हमलोग बैंगलोर वापस पहुँच गए। जल्द ही मिलते है किसी अन्य जगह पर, तब तक के लिए आप लोग मैसूर यात्रा का आनन्द उठाइए और हमें अनुमति दीजिये।