Thursday 6 August 2015

Cellular Jail :Kala Pani Andaman

            किसी भी भारतीय के लिये अंडमान के नाम पर काला पानी की याद आना स्वाभाविक है!! स्वाधीनता का इतिहास पढने वाला बच्चा बच्चा भी अंडमान की सेलुलर जेल को जरूर जानता है इसलिए यहाँ जाने के बाद मन में देशभक्ति का सैलाब नहीं चाहते हुए भी उमड़ ही आता है। जब हम विमान में बैठकर के प्राकृतिक दृश्यों के मजे ले रहे थे तो मन में एक एहसास रह-रह कर आ रहा था कि मुख्य भूमि से इतनी दूर जहाँ हम घूमने के उद्देश्य से आ रहे हैं,जब वहां हमारे स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियो को पानी के जहाजों में भरकर यहां पटक दिया जाता होगा तो इस एकाकी जगह में उन्हें कैसे अनुभव होते होंगे। उनमे से कई सारे  तो इतनी लम्बी समुद्री में होने वाली बैचैनी  के कारण रास्ते में ही दम तोड़ देते होंगे और जो किसी तरह वहाँ पहुँच जाते होंगे तो वहां के एकाकीपन, मौसम की मार एवं अंग्रेज सरकार के अत्याचारों से इस कदर टूट जाते होंगे कि उन्हे जीवन मृत्यु से ज्यादा कष्टकारी लगता होगा।      अंडमान या कहिये पोर्ट ब्लेयर में अपने सफर का प्रारम्भ सेलुलर जेल से करना हमारी तरफ से देश के सपूतों के लिए भावपूर्ण नमन था। थोड़ी देर सफर की थकान मिटाने के बाद पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आज के दिन का प्रारम्भ सेलुलर जेल से करने के साथ-साथ समापन भी यहाँ रात को होने वाले साउंड एंड लाइट शो के साथ किया एवं बचे हुए समय में समुद्रिका और सागरिका म्यूजियम के दर्शन के साथ पोर्ट ब्लेयर के सबसे निकटवर्ती समुद्री तट कोर्बिन्स कोव की समुद्री लहरों के मजे भी लिए।आइये यात्रा की शुरुआत करते हैं सेलुलर जेल में प्रतीकात्मक रूप से सजा पते एक सेनानी के चित्र के साथ -
सेलुलर जेल के प्रांगढ़ में सजा पता एक कैदी 
                       किस तरह से अंडमान जैसी जगह को अंग्रेजों ने काल पानी के नाम में परिवर्तित किया इसके पीछे एक लम्बी कहानी है।उन लोगों ने हमारे देश के सपूतों को यहाँ भेजने का मन ये सोच के  बनाया कि एक तो वो यहाँ के अकेलेपन और मौसम की मार को नहीं झेल पाएंगे और इसके अतिरिक्त सबसे मुख्य कारण ये भी था कि हिन्दू धर्म में समन्दर पार जाने का मतलब आपकी जाति(Caste) का हनन मन जाता था, इसलिए इन लोगों को यहाँ भेजना उन्हें सबसे बेहतर सजा लगी। ये सन अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के बाद की बात थी हालांकि तब यहाँ कोई जेल नहीं थी परन्तु यहाँ का एकाकीपन ही अपनेआप में बहुत बड़ी सजा था। पर जब अंग्रेजों को लगा कि ये क्रान्तिकारी तो यहाँ भी अपना जीवन निर्वाह कर ले रहे हैं और इधर उनकी संख्या भी बढ़ने लगी तो काला पानी की इस सजा को कड़ा बनवाने के लिए एक जेल का निर्माण कराया गया। ये विशालकाय पिंजरा सन उन्नीस सौ छह में पूरे दस साल के बाद बना!! इसके निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री म्यांमार से लायी गयी। स्टार फिश मछली के आकार की इस जेल के बीचों बीच में एक लम्बी सी मीनार थी जिससे क़ैदियों की समस्त गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी और उससे सात दिशाओं की तरफ सात किनारे निकले हुए थे। इसका हर किनारा तीन मंजिला था और एक विंग में तेतीस कोठरियां थी मतलब कुल मिलाकर पूरी जेल में छह सौ तिरानब्बे कमरे थे। हर कोठरी में हवा का आवागमन के लिए एक छोटा सा रोशनदान बनाया गया था। इसे सेलुलर जेल का नाम इसके आकार की वजह से ही दिया गया क्यूंकि इसका निर्माण इस तरह से किया गया था जिससे एक कोठरी से दूसरी कोठरी में बात नहीं हो पाये और हर विंग को इस तरह बनाया गया था कि एक विंग की कोठरी का रोशनदान उस ओर खुले जिस ओर दूसरी विंग की कोठरी का मुख्य द्वार हो!! ओह तो हमारे सपूत बात करना  तो दूर  अपनी मर्जी से एक दूसरे को देख भी नहीं सकते थे। इस बात का अन्दाजा इससे भी लगा सकते हैं कि यहाँ के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक वीर दामोदर सावरकर के बड़े भाई को कई वर्षों के बाद पता चला कि उनका छोटा भाई भी यहीं आ गया है। यहाँ की हर एक कोठरी से देश भक्ति की महक आती है ।सावरकर जी की कोठरी को तो बहुत सहेज कर रखा गया है !! वहां पर उनकी एक तस्वीर लगी हुयी है। इस कोठरी में जा कर ऐसा  लगा जैसे किसी मंदिर में गए हों, अचानक अंतर्मन से आवाज आई  यहाँ पर प्रणाम करो इन्ही लोगों की बदौलत आज हम खुली हवा में साँस ले रहे हैं। सिर्फ अकेलापन ही इन लोगों की सजा नहीं थी!! इनसे दलदली भूमि में पेड़ कटवाए जाते थे औरतो और बैलों की जगह तेल निकलने के लिए  जोता जाता था!! साउंड एंड लाइट शो में बताया था कि एक आदमी को एक दिन में जितना तेल निकलवाना होता था जितना कि हमारे देश में बैलों से भी नहीं निकलवाते। काम समय से पूरा नहीं होने कोड़े लगाये जाते थे। खाना खाना भी एक मजबूरी थी अगर कोई भूख हड़ताल पे बैठे उसे नली डाल कर खाना खिलाया जाता था। एक क्रांतिकारी को तो जबरदस्ती खाना खिलाने की वजह से खाना फेफड़ों में चला गया था और वो उसी समय शहीद हो गया। क्या कुछ नहीं सहा इन लोगों ने हमारे लिए!! वहां पर लिखे नारे और मिलने वाली सजा के बारे में पढ़-पढ़ कर बरबस आंखे भीग रही थी!! अगर किसी को फांसी की सजा मिलनी होती थी तो उसे फांसीघर के नजदीक की कोठरी में रख दिया जाता था!! जिससे वहां से आने वाली दर्दनाक आवाजों को सुन-सुन कर उसका मन व्यथित होता रहे। ये भी पता लगा एक बार सावरकर जी ने अत्याचारों से परेशान हो कर समुद्र में छलांग लगा दी थी पर अफ़सोस उन्हें वहां से भी पकड़ लाया गया। इस जगह को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा भी दिया गया है। इस ऐतिहासिक ईमारत की सात विंग में से अब सिर्फ तीन विग ही सुरक्षित है। 
             करीब  दो घंटा घूमने के बाद हमें बाहर निकलना था और बाकि जगह देखनी थी इस दौरान टेक्सी चालक ने हमारे लिए साढ़े पांच बजे से हिंदी में होने वाले लाइट एंड साउंड शो की टिकट ले रखी थी।जिसकी कीमत प्रति व्यक्ति पचास रुपया पड़ती है।यहाँ पर प्रति दिन  पांच बजे से साढ़े छह बजे तक हिंदी में एवं छह पैतालीस से सात पैतालीस तक अंग्रेजी में ध्वनि एवं प्रकाश शो का आजोयन किया जाता है,जिसमे स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों की अमर गाथा  सुनाई जाती है और सेलुलर  का समय सुबह नौ  बजे से शाम पांच बजे  तक।  इस कारण यहाँ दो बार आना जरुरी हो जाता है!! जब इन लोगों ने हमारे लिए इतना कुछ किया है तो यहाँ दो बार तो क्या दस बार भी आना पड़े तो वो कम ही होगा। इस शो की  शुरुआत बरसों से संरक्षित रखे गए पीपल के पेड़ से आने वाली आवाज के साथ किया जाता है। ये आवाज कुछ ऐसी थी "मैं वही पीपल का पेड़ हूँ ,मैंने देखा उन आजादी धुन में मतवालों को आते हुए जो इंकलाब जिंदाबाद, वन्दे मातरम की आवाज के साथ कभी वापस नहीं जाने के लिए आते थे।"इसके बाद तो जो जुल्मो सितम की दास्ताँ सुनाई उससे अच्छे अच्छों का मन पिघल जाये। बार-बार ये लग रहा था कि किस तरह से हमलोगों को आजादी दिलाई गयी और इतने कम समय में ही देश के महान नेताओं ने देश को किस हालत में ला दिया है!! पर अपने बस में सोचने के अतिरिक्त तो कुछ भी नहीं!! देश के इन शहीदों को नमन करते हुए केवल ये उम्मीद कर सकते हैं कि क्या पता समय फिर से बदल जाये और हमारा देश दुबारा से सोने की चिड़िया बन जाये। देखिये इस तीर्थों के महा तीर्थ काला पानी की कुछ झलकियाँ - 
मुख्य द्वार 

काला पानी या महातीर्थों का तीर्थ 
देखिये किस तरह दोनों विंग में से एक का रोशनदान खुलता है तो दूसरे का मुख्य द्वार
जेल का एक अन्य दृश्य 
साउंड एंड लाइट शो के समय जगमगाती जेल की कोठरियां। 

सावरकर कोठरी जो कि फांसी घर के ठीक सामने थी। 
सेलुलर जेल में बने म्यूजियम में करीब दो सौ से अधिक सेनानियों की तस्वीरें हैं 
कुछ तस्वीरें 
सेलुलर जेल की मॉडलनुमा तस्वीर 
जेल में प्रयुक्त ताले और चाबियाँ 
अखंड ज्योत 

जेल की छत से दिखता हुआ समुद्र शायद यहीं कहीं वीर सावरकर ने छलांग लगाई हो। 

सावरकर जी की तस्वीर 
              महत्वपूर्ण बात बताना रह गयी सेलुलर जेल सोमवार एवं सरकारी छुट्टियों के दिन बंद रहती है।
अंडमान का सफर एक नजर में -