Tuesday 18 November 2014

Air and Space Museum,Washington DC

                  पिछले पोस्ट में आपने पढ़ा कि किस तरह टूरिस्ट वीसा के साथ  चौबीस घंटे की थकाने वाली यात्रा के बाद हम अमेरिका की राजधानी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका पहुंचे,यहाँ हमारा स्वागत बर्फ की सफ़ेद चादर के साथ हुआ कुछ इस तरह से हुआ-


      अगले दिन आँख खुलने पर खिड़की से बाहर देखा, फिर से बर्फवारी  होती दिखाई दी। ये माना  जा रहा था की पूरे अमेरिका में  अबकि बार पिछले दशक की सबसे ज्यादा ठण्ड पड रही थी, तो ये था संयुक्त राष्ट्र अमेरिका  में पहले दिन का अनुभव।संयुक्त राष्ट्र अमेरिका उत्तरी ध्रुव पर स्थित पचास राज्यों और एक संघीय जिले से मिलकर बना है,जिसकी राजधानी वाशिंगटन में हमें तीन महीने के लिए रहने का अवसर मिला था।इस पोस्ट के जरिये आपको बताते हैं कि किस तरह  बर्फीले तूफानों  के बीच हम लोगों ने म्यूज़ियम और मेमोरियलस के लिए विश्व विख्यात इस राजधानी,वाशिंगटन के टूरिस्ट स्पॉट्स को देखा और कैसे रहे  हमारे यहाँ के अनुभव रहे,इस बारे में ज्यादा जानकारी के  लिए क्लिक करिये 

               कहने तो तो हमारे पास यहाँ घूमने के लिए तीन महीने थे,पर अगर वीकेंड गिने जाएँ तो कुल बारह,मतलब चौबीस दिन। अब इसमें से शुरू के दो वीकेंड तो बर्फवारी और ये निश्चित करने में निकल गए कि कहाँ जाना है और कैसे जाना है,आने जाने का साधन क्या होगा ? यहाँ पर  कार चलाना भारत के मुकाबले थोड़ा अलग है क्यूंकि ड्राइविंग सीट और  गाड़ी चलाने के कायदे कानून भारत के नियमों से अलग होते हैं ,हालाँकि यहाँ गाडी चलाना आसान माना जाता है,पर हमने इस विकल्प को छोड़ दिया। अब दूसरा विकल्प बचता  था टेक्सी द्वारा घूमने का, एक दिन लगभग दो  किलोमीटर की दूरी तक कुछ सामान लेने गए तो बारह डॉलर का बिल बन गया,इसलिए टेक्सी से  घूमने के लिए तो  बहुत बड़े बजट की आवश्यकता थी,इसके बाद बचते थे पैकेज टूर या फिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट। इन सब बातों को देखते हुए डीसी घूमने के लिए हमने पैकेज टूर लेने का मन बना ही लिया था कि वहां का मैप स्टडी करने बैठ कर के इतना  अंन्दाजा तो आ ही गया  कि सारे आकर्षण लगभग एक गोले की परिधि पर इस तरह से बने हुए हैं कि अगर वास्तविकता में  उन्हें देखने का आनन्द उठाना है तो दो पैरों की गाडी की सवारी के बिना काम नहीं चलेगा। इस बात को ध्यान में रखकर सोचा तो लगा कि पैकेज टूर ले कर के प्रति  व्यक्ति पचास डॉलर देना तो एक तरह की महा बेवकूफी ही साबित होगी ।अब तो केवल पब्लिक ट्रांसपोर्ट के ही मजे लूटने का ही विकल्प हमारे लिए बचा था ।अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घूमने के भी दो तरीके थे,या तो  हर यात्रा के लिए  बार बार निकाल के डॉलर  दो या फिर एक स्मार्ट कार्ड खरीद लो।हम लोगों ने सी वी स (CVS),फार्मेसी से दो स्मार्ट ट्रिप कार्ड ले लिए, जिन्हे ऑनलाइन के साथ साथ बस में भी रिचार्ज कराया जा सकता है।ये कार्ड मेट्रो बस ,डैश बस और मेट्रो ट्रैन सबके लिए वैलिड होते हैं, एवं सबसे मजे की बात ये कि अगर एक बार कार्ड स्वाइप कर के पैसा कट गया तो अगले दो घंटे तक बस बदलने पर भी कोई टिकट नहीं लगता  बस कार्ड स्वाइप करना होता है।यहाँ बसों के अंदर यात्रीगणों के लिए साइकिल रखने की जगह भी बनी होती है, और छोटे बच्चों के स्ट्रॉलर के लिए भी। बस की संरचना कुछ इस प्रकार होती है कि स्ट्रॉलर को आराम से बस में चढ़ाया जा सकता है और बड़ों की साइकिल राख्ने के लिए बस के आगे जगह बनी होती है । इस वेबसाइट  में अपनी करंट लोकेशन डाल कर हम ये पता लगा सकते हैं कि अगली बस किस समय आएगी,आने के समय में कोई हेर फेर नहीं होता :) ,खैर ये सब तो थी इस बात कि तैयारी की जाना कैसे है? इसके बाद अगला काम था कि ये चुनाव करना कि किस दिन कहाँ जाना है ?
             गूगल मैप और पैकेज टूर वालों की वजह से जगह का चुनाव करना तो बहुत ही आसान काम था,हमारे देखने वाले लगभग सभी आकर्षण नेशनल माल(National Mall) के आस पास ही थे। हम लोग डीसी में अलेक्जेंड्रिया (Alexandria ) में रहते थे, सो कहीं भी जाने के लिए पहले डीसी आना होता था, हमारा पहले दिन का टारगेट था एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम। यहाँ तक आने के लिए होटल के बाहर बस स्टॉप पर जा कर के बस लेनी होती थी, जो की पेंटागन सिटी पर छोड़ती थी,उसके बाद या तो अगली बस से मेट्रो से एल-इन्फेंट प्लाजा (L-infant plaza) मेट्रो स्टेशन पर उतर कर चार पांच मिनट की पदयात्रा करनी थी। गूगल मैप में ये बहुत अच्छी से बताया जाता है कि किस बस से जाना है, कहाँ पर बदलनी है किस प्रकार जाना है और कौन सी बस से जाना है बड़े अच्छे से बताया।आप लोग भी देखिये अभी एक बार फिर गूगल मैप पर देखा तो सब सामने आ गया  -

यात्री बस की जानकारियां 


डाइरेक्शंस 
                      जब इतने अच्छे से सब कुछ गूगल मैप ने  बता ही दिया था तो देर क्यों करनी थी, बस जैसे ही सप्ताहांत सामने देखा झटपट निकल पड़े अपने होटल के बाहर। बस दो कदम की दूरी पर ही तो बस स्टॉप था, परन्तु हमलोगों को रोड क्रॉस करनी होती थी,अब अमेरिका है ऐसे ही कैसे रोड क्रॉस करी जाय? यहाँ हर काम तो तरीके से किया जाता है  तो रोड क्रॉस करने का ये नियम था,कि वहां पर बने एक पोल पर  एक बटन लगा रहता है उसको दबाने के बाद चित्र बन के आता है कि पदयात्री का सिग्नल होने में अभी कुछ समय है इन्तजार करें,और जब पदयात्री का सिग्नल खुलता है तभी रोड क्रॉस की जा सकती है।
बस स्टॉप का पोल,ये नहीं जिस पे लिखा ही वो जो दूर दिख रहा है। 
            बस के आने का टाइम देख के ही निकले थे तो ज्यादा इन्तजार भी नहीं करना पड़ा।जैसे ही 7A  बस आती दिखी लग गए लाइन पर।यहाँ भारत की तरह नहीं होता कि एक के बाद एक धक्का मुक्की कर के चढ़ गए। जब एक यात्री आराम से चढ़ गया उसका टिकट कट गया,उसके बाद ही दूसरा चढ़ सकता है। अपनी बारी आने पर हम भी बस में बैठकर पेंटागन बस स्टॉप की ओर चल पड़े।    
यात्रियों का इन्तजार करती हूयी बस 
            पेंटागन यहाँ का एक बड़ा स्टेशन है,क्यूंकि यहाँ बस स्टॉप के साथ मेट्रो स्टेशन भी है। सुरक्षा की द्रष्टि से भी ये जगह महत्वपूर्ण है,यहाँ पर तस्वीर लेने की अनुमति नहीं होती। खिड़की से बाहर  इधर उधर देखते हुए आधा घंटा कट ही गया और पेंटागन सिटी आ गया। अब बस स्टेशन से निकल कर मेट्रो स्टेशन की ओर रुख किया,मेट्रो स्टेशन बेसमेंट में बना हुआ है,इसलिए नीचे उतरने के लिए स्वचालित सीढियाँ बनी हुयी है,पर ये इतनी ऊँची लगी कि ऊपर से नीचे देखने में ही चक्कर आ जाये,अब उतरना तो था ही,सो भगवान का नाम ले कर सवार हो ही गए ,पर नीचे देखने की हिम्मत तभी हुयी जब लगभग एक तिहाई दूरी पार हो गयी। मेट्रो की सवारी तो दिल्ली में भी खूब करी थी,पर यहाँ की मेट्रो शायद पुराने समय से चल रही थी,तो सुविधा  के हिसाब से हमलोगों को दिल्ली मेट्रो की सवारी ज्यादा भाई। हमारे यहाँ के मेट्रो स्टेशन और यहाँ में एक ये अंतर लगा की यहाँ स्टेशन में प्रकाश का इंतजाम ऊपर की जगह नीचे से ,यानि कि रेल के ट्रैक के सामने से किया गया है। 

नीचे से आता हुआ हल्का सा प्रकाश (चित्र विकिपीडिया द्वारा )
                      अब यहाँ पहुचने के बाद हमको फोर्ट टोटन की ओर जाने वाली मेट्रो पकड़नी थी,जिसमे एक स्टॉप के बाद,एक बड़ी सी सुरंग पार करने के बाद सुन्दर सी पोटोमैक (Potomac ) नदी के नजारों का आनंद उठाने के बाद एल-इन्फेंट प्लाजा स्टेशन  आता था, एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम के लिए हमें यहीं उतरना था।यहाँ से पैदल घूमते हुए आख़िरकार हम अपनी मंजिल तक पहुँच ही गये। 
                  एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम सन १९ ७ ६ से टूरिस्ट के देखने के लिए खुला होने के बावजूद आज भी डीसी की सर्वाधिक देखने वाली जगहों में से एक माना जाता है। यहाँ पर लगभग डेढ़ लाख स्क्वायर फ़ीट से ज्यादा जगह में कई सारे ऐतिहासिक वायुयान  एवं अंतरिक्षयान  रखे हुए हैं। जिनमे से कुछ असली हैं और कुछ उनके मॉडल। मंगल गृह एवं चाँद पर जाने वाले यानों को देखकर तो असीम आन्नद की प्राप्ति हुयी ,इसके आलावा यहाँ पर वायु यान के विकास के इतिहास के बारे में भी पूरी जानकारी उपलब्ध है, लगभग सभी वायुयान में हमलोगों ने चढ़कर उनके मॉडल्स को अच्छे से देखा और समझने की कोशिश की। अगर कोई वायुयान या अंतरिक्ष यान के विषय में रूचि रखता हो तो उसके लिए तो ये स्थान स्वर्ग सामान ही है ,क्यूंकि यहाँ नजर पड़े वहां अलग अलग प्रकार के विमान ही दिखाई पड़ते हैं। ये जगह आराम से समय ले के पूरा दिन लगा के घूमने वाली है,साथ के साथ इसके खुलने का समय सुबह दस बजे से शाम के साढ़े पांच बजे तक है और इंट्री तो यहाँ की  फ्री ऑफ़ कॉस्ट है ही ,तो कभी भी आया जाया जा सकता है। सो इसलिए हमलोग कुछ देर यहाँ घूमे फिर बाहर निकल कर पेट पूजा करी और दुबारा से यहाँ रखे हुए विमानों का आनन्द उठाया। कुछ विमानों के मॉडल आप लोग भी देखिये- 











                       ये सब देखते दिखाते शाम ही हो गयी थी,सो निकलने का टाइम हो गया और पूर्व निर्धारित तरीके से मेट्रो एवं बस की सवारी द्वारा हम लोग अपने होटल पहुँच गए। अगली पोस्ट पर मिलते हैं अगले वीकेंड की खबर के साथ,तबतक आप लोग इस पोस्ट को पढ़िए और ये जरूर बताईयेगा कि वृतांत कैसा लगा।  


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

Tuesday 30 September 2014

USA trip-first international trip

                अमेरिकी वीसा प्राप्ति के सुखद अनुभव के बाद अब बारी है लगभग चौबीस घंटे की सफल हवाई यात्रा द्वारा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की  राजधानी वाशिंगटन डीसी की ,जो की पूर्ण रूप से बर्फ की सफ़ेद चादर से ढकी हुयी थी।

                 
              
           बैंगलोर से वाशिंटन डीसी की लगभग चौबीस घंटे की यात्रा की शुरुवात एतिहाद एयरवेज द्वारा प्रातः चार पैतालीस पर हो गयी थी, और जब हम डीसी पहुंचे तो घड़ी में टाइम हो रहा था शाम के पांच बजे का। हमारी डायरेक्ट फ्लाइट नहीं थी, सो बीच में पूरे चार घंटे का स्टॉप था अबु धाबी में। ये तो थी विमान के बैंगलोर से जाने और डीसी पहुँचने के समय की बात। अब भारत के अंदर तो हम विमान यात्रा करे हुए थे, अंतर्राष्ट्रीय विमान यात्रा होने के कारण सीटिंग अरेंजमेंट थोड़ा अलग सा लगा, इन विमानों को दो कि तीन हिस्सों में विभाजित किया होता है, दोनों खिड़कियो की तरफ दो-दो एवं मध्य में पांच लोगों के बैठने की जगह होती है , इतना ही नहीं हर यात्री के पास अपना अलग टीवी होता है,जिसमे पहले से डाली गयी फिल्मे,गाने और गेम खेल सकते हैं एवं भाषा की भी कोई समस्या नहीं होती,आप जिस भाषा में देखना चाहें उसका विकल्प चुन सकते हैं , बड़े तो बड़े छोटे बच्चों के लिए कार्टून की सुविधा भी रहती है :) , और अगर मन में जिज्ञासा हो कि हम कहाँ पर उड़ रहे हैं अभी तो वो भी देख सकते हैं।कुछ चित्र आप लोगों के लिए सलंग कर रहे हैं-
विमान के अंदर का सीटिंग अरेंजमेंट एवं सभी यात्रियो के टीवी (चित्र गूगल द्वारा )
इस तरह विमान की सहायता से करंट लोकेशन दिखायी जाती  है 
          एक अलग तरह के अनुभव के साथ चार घंटे बाद हम लोग अबु धाबी में थे,यहाँ पर एतिहाद एयरवेज बच्चों के लिए एयरपोर्ट के अनदर इस्तेमाल  करने के लिए स्ट्रोलर प्रदान करती है ,जो कि काफी आरामदायक होता है। यहाँ पर तगड़ी सुरक्षा जाँच के बाद हम लोगों को अधिकतम छह महीने के लिए अमेरिका में रहने की अनुमति मिल गयी थी। अबु धाबी का एयरपोर्ट में बोर्ड वगेरह हिंदी में लिखे हुए भी दिख रहे थे पर देखने में ये एयरपोर्ट काफी अच्छा था,यहाँ पर सुरक्षा जाँच में ही काफी समय लग गया था,  इसलिए  चार घंटे तो पलक झपकते ही निकल गए और हम एक बार फिर से पंद्रह घंटे की विमान  लिए निकल पड़े। मैप में अपनी लोकेशन देखते देखते, और पेट पूजा करते हुए धीरे धीरे यात्रा समाप्ति की ओर  अग्रसर हो रही थी और जब विमान के नीचे उतरने का समय नजदीक आया तो हम लोग खिड़की से बाहर दिखती हुयी धूप को देख कर समझ नहीं पा रहे थे कि वाकई में तापमान माइनस में है। इस तरह से पूरे चौबीस घंटे की यात्रा के बाद हम डीसी पहुँच ही गए। अब एयरपोर्ट में कस्टम वगेरह की औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद अपना सामान सही सलामत मिल गया। अब एक परेशानी सामने ये आ गयी कि इस सामान को ले कैसे जाएँ, क्यूंकि अपने देश में तो एयरपोर्ट में ट्रॉली फ्री ऑफ़ कॉस्ट मिलती है, पर यहाँ जब जेब ढीली करी जाय तभी ट्रॉली मिलेगी, दो डॉलर में ट्रॉली मिलनी थी और पास में सबसे छोटा नोट था सौ डॉलर का। अगर उसे मशिन में डालें तो बस सिक्कों की लाइन लग जाती:( 
        इसलिए जो महाशय हमको लेने के लिए आने वाले थे उनका इन्तजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। थोड़ी देर में वो मिल गए और हम लोग उनके साथ एयरपोर्ट से बाहर निकले,ये हमारी ठण्ड से पहली मुलाकात  थी। एयरपोर्ट के गेट से कार तक जाने तक में ही हाथ एक दम ठण्ड से जम गए थे। कार में बैठने के बाद थोड़ा जान में जान आई,करीबन आधे घंटे में हम लोग अपने होटल एक्सटेंड स्टे अमेरिका पहुँच गए थे। इतनी लम्बी यात्रा के कारण थकान ऐसी थी कि बिस्तर पर पड़े और कब आँख लगी पता ही नहीं लगा।  चौबीस घंटे की इस थकाने वाली यात्रा के इस अनुभव को विराम देते हुए, अगली पोस्ट पर जल्द ही मिलने के वादे के साथ आपसे विदा लेते हैं, ये यात्रा वृतांत आप लोगों को कैसा लगा जरूर बताइयेगा। 


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

Sunday 7 September 2014

How to get tourist visa for USA

             दो हजार चौदह की शुरुवात हमलोगों को एक यादगार तोहफे के रूप में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका(यूसए) की रोमांचकारी यात्रा दे गयी। जाने के साथ साथ वहाँ की राजधानी वाशिंगटन में तीन महीने के लिये रहने का सुअवसर मिला। जैसे ही ऑफिस में ये बात हुयी कि जाना है हम साथ में छोटी सी बेटी को लेकर झटपट तैयार हो गए। जहाँ एक तरफ जाने की असीम ख़ुशी थी वहीँ दूसरी तरफ डेढ़ साल की छोटी बेटी के साथ जाने का मन में कुछ ऐसा ही भय था जैसा नील आर्मस्ट्रोंग को चन्द्रमा पर जाने में लगा होगा ,ऊपर से इस वर्ष वहां पर ठण्ड भी कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी,पर जब मन बना ही लिया था जाने का तो फिर अपने मन में बैठे हुए डर से जीत पाना तो आसान ही था। इस प्रकार से हम  कई हजारों किलोमीटर दूर जाने के लिए तैयार हो गए। गूगल मैप में एक बार दूरी तो देखिये -


           इस तरह से हजारों किलोमीटर उड़ने के बाद विदेशी धरती,संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में  बिताये हुए इन तीन महीने के अनुभव को आपके साथ साझा करने की शुरुवात वीसा प्राप्ति के अनुभव के साथ करते हैं । 

Wednesday 3 September 2014

Yercaud attractions:यरकोड आकर्षण

        पिछले पोस्ट में आपने पढ़ा बैंगलोर से यरकोड की यात्रा के बारे में,तो इस श्रंखला की दूसरी एवं अंतिम कड़ी में आपको ले चलते हैं यहाँ के दर्शनीय स्थलों के यात्रा वृतांत पर। जैसा कि आप लोगों को विदित ही है हम लोग दोपहर बारह बजे ही पहुँच गए थे और यात्रा की थकान नहीं के बराबर ही थी,तो बस चाय पीने के बाद हम निकल पड़े यहाँ के प्राकृतिक नजारों के दर्शन के लिए। होटल से नीचे उतरते ही सामने दिखाई दी शांत सी झील।
शांत सी यरकोड झील 
                यहाँ के बारे में ज्यादा पढ़ने के लिए क्लिक करिये 
                ज्यादा विकास नहीं होने के कारण यहाँ पर मार्केट और शोपिंग काम्प्लेक्स कहीं दिखाई नहीं दिए ऐवम्  सैलानियों की भीडभाड नहीं होना इसे अन्य  जगहों से अलग कर देता है। यहाँ पर ना ही ऊटी के जैसी यात्रियों की भीड़भाड़ दिखी और ना ही नैनीताल जैसे कंक्रीट के जंगल, दिखी तो सिर्फ एक चीज बस  मनमोहक प्राकतिक नज़ारे। अगर ऊटी की प्राकृतिकता देखनी का मन हो तो इन लिंक पर जायें-
ऊटी
               झील के नज़ारे देखते-देखते ही   बोट हाउस के पास के  पार्किंग स्थल में गाड़ी खड़ी कर दी। इधर आस पास में  तीन आकर्षण हैं पहला झील,दूसरा अन्ना पार्क और तीसरा डियर पार्क। सबसे पहले हम गए बोट हाउस क्यूंकि झील एक ऐसा आकर्षण है जिसे देखकर कोई भी अपनेआप को रोक नहीं सकता।पर एक बात थोडा अजीब सी लगी कि यहाँ पर बोटिंग के तो पैसे लगते ही हैं पर  बोट हाउस में जाने के भी पैसे लगते हैं। बोटिंग के लिए यहाँ पर हर तरह की नावे मौजूद थी,और नावों की सवारी तो कई बार की है तो इस बार मन हुआ की पेडल वाली नाव की सवारी कर ले। मजा तो बहुत आया पर थोड़ी देर में ही हमारे छोटे पार्टनर का मन भर गया और जोर जोर से रोना शुरू हो गया। फिर क्या था वापस जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था, पर भी भी बोट की सवारी का अनुभव तो हो ही गया।
             इसके बाद थोड़े आराम के जरुरत लगी और अन्ना पार्क जा कर वहाँ बैठ गये। ये पार्क दो आमने सामने दो  हिस्सों में बटा हुआ है,एक सड़क की एक ओर तो दूसरा दूसरी ओर। ये जगह बहुत ज्यादा व्यवस्थित तो नहीं है पर फूलों की वजह से मनमोह लेता है। यहाँ पर एक शेर भी रखा है जो बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र है। 
अन्ना पार्क  के रँग बिरंगे फूल 
                  थोड़ी देर यहाँ बैठने के बाद हम दूसरी साइड के पार्क में गए। यहाँ पर टिकट के नाम पर बहुत बड़ी लूट है,इसलिए ये ध्यान देने योग्य बात है कि ये एक ही पार्क है तो केवल एक ही जगह टिकट दे,बस इसका नाम थोडा सा बदल दिया गया है, लेक व्यू पार्क।इन दोनों पार्कों का एक ही टिकट था। ये पार्क पहले पार्क से अच्छा बना हुआ है, और इसके ठीक सामने झील है जिससे यहाँ का आकर्षण बढ़ जाता है।
पार्क से दिखती हुयी झील 


पार्क में खिले फूल 


पार्क से दिखती हुयी झील 
              इसके बाद हम चल पड़े खाने के लिए सर्वणा भवन की ओर, बहुत देर भटकने के बाद मिला तो सही पर खाना खाने के बाद अनुभव हुआ कि नाम बड़े और दर्शन छोटे। चलो कोई नहीं हम तो घूमने के लिए गए थे ना कि खाने के लिए। तब तक हमारा तीसरा पार्टनर थक के सो भी गया था तो होटल वापस जाने का मन बना लिया और कार पार्किंग की ओर पैदल ही चल पड़े। जब तक पार्किंग तक पहुंचे तो मैडम की नींद पूरी हो गयी और फिर से आगे के अट्रैक्शन को देखने का मन बन गया। आज देखने के लिए दो- तीन जगह ही बची थी जिनमे दो तो आसपास ही थी। लेडीज सीट और जेंट्स सीट, लेडीज सीट की बोट हाउस से दूरी मात्र तीन  किलोमीटर की थी, तो ज्यादा समय नहीं लगा।
           लेडीज सीट और जेंट्स सीट शेवारॉय हिल के दक्षिण पश्चिम पर स्थित है। ये सभी जगह बहुत ही दर्शनीय हैं यहाँ से एक ओर हरे भरे पहाड़ दिखते है तो दूसरी ओर सेलम घाटी के नज़ारे-
पहाड़ों के बीच घुमावदार सड़कें 


सेलम घाटी 


हरी भरी पहाड़ियां 
              अगला पड़ाव जेंट्स सीट यहाँ से पैदल रास्ते पर है,यहाँ जा के पता चला कि चिल्ड्रन सीट भी यहाँ मौजूद है,जिसमे बच्चों के खेलने का इंतजाम है।फिर से दिखे आकर्षक नज़ारे-
जेंट्स सीट 


जेंट्स सीट से दिखता नजारा 
          अब अज के लिए सिर्फ एक जगह बची थी वो है पैगोडा पॉइंट,यहाँ के रस्ते में हमारा होटल भी पड़ता था तो वहां खाने का आर्डर देते हुए हम पैगोडा पॉइंट पहुंचे।एक बार फिर यहाँ से प्राकतिक नज़ारे दिखाई दिए और साथ में एक मंदिर भी था। पैगोडा पॉइंट को पकोड़ा पॉइंट के नाम से भी जाना जाता है। हम शायद कुछ देर से पहुंचे और पकोड़ा पॉइंट के पकोड़ों के स्वाद का जायका नहीं ले पाए। कोई नहीं मन को मना लिया कि ये कसर हम अगले ट्रिप में पूरी करने की कोशिश करेंगे।
पैगोडा पॉइंट से दिखता हुआ गाँव  




        यहाँ देखने को मिला आश्चर्यजनक रूप से ध्यानमग्न श्वान,जो कि अपने आस पास से बेखबर जाने किन विचारो में मग्न था।
सोता हुआ कुत्ता 
               इसके बाद होटल जा के खाना खाया,यहाँ की हॉस्पिटैलिटी अच्छी थी,और बोलने पर इन लोगों ने बच्चे के लिए अलग से दाल भी बना दी थी,तो किसी तरह की परेशानी नहीं हुयी।अगले दिन के लिए प्लान ये था कि किल्युर फाल्स होते हुए होगनेक्कल के रस्ते बैंगलोर वापस हो जायेंगे।अगले दिन उठ के देखा तो कमरे के बाहर  खिडकियों पर ऒस की बूंदे बह रही थी।
खिड़की पर ओस की बूंदे 
             किल्युर की ओर रुख किया ही था कि लोगों ने कहा वहां पर पानी ही नहीं है तो देखने के लिए कुछ भी नहीं है,तो फिर मेटटूर डैम होते हुए बैंगलोर वापस हो गए,क्यूंकि लगा की होगनेक्कल जाना का कोई पॉइंट नहीं बच्चे के साथ में, ठीक से एन्जॉय नहीं हो पायेगा।तो उसे अगली बार के लिए छोड़ते हुए बैंगलोर को वापस हो लिए।इस ट्रिप में इतना ही था,अगले के साथ फिर मिलते हैं।

Tuesday 15 July 2014

Drive from Bangalore To Yercaud:बैंगलोर टू यरकोड रोड ट्रिप

               पिछले वर्ष  (जून २०१३ ) बारिश की वजह से उत्तरांचल और हिमाचल प्रदेश में बहुत ही नुकसान हुआ, और उसके साथ साथ भ्रमण के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम स्थगित हो गए। अब कुछ समझ नहीं आ रहा था की करे तो क्या करें और बारिश के मौसम में बच्चे के साथ कहीं दूर निकलने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहे थे तो अचानक से दिमाग में आया की बिना छुट्टी लिए एक वीकेंड ट्रिप ही कर लिया जाये और तमिलनाडू के हिल स्टेशन यरकोड (YERCAUD ) का चयन हो कर लिया। ये जगह बैंगलोर से काफी नजदीक है तो जाने के लिए कोई बहुत प्लानिंग की जरुरत भी नहीं पड़ी। केवल  होटल बुकिंग ही करवानी थी  क्योंकि वहां होटल कम हैं, इसलिए जल्दी में दुर्गा  रेजीडेंसी में बुकिंग करवा ली।अब तो बस निकलने की जरुरत भर थी।

 कुल यात्री-३
 जगह-यरकोड
 गाड़ी-सेंट्रो  
               इस यात्रा वृतांत के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए क्लिक करिये 
                     बैंगलोर से यरकौड की  दूरी दो सौ अट्ठाईस किलोमीटर की है और दो सौ दो किलोमीटर (सेलम) तक तो बैंगलोर कन्याकुमारी हाईवे है इसलिये रोड कंडीशन बहुत अच्छी है, और सेलम के आगे की पहाड़ी ड्राइव भी मस्त है, हरे भरे पेड़ों से घिरी हुयी सड़क और आसपास के नज़रों के बीच कब पहुँच गए पता ही नहीं चला। इस गरीब आदमी की ऊटी  के रास्ते में पड़ने वाले बीस हेयर-पिन बैंड्स ने ऊटी की याद दिला ही दी।  
टोटल टाल-दो सौ बयालीस 
           पहले से पूरी तैयारी नहीं होने के कारण अबकी बार निकलने में थोडा देर हो गयी, तो यहाँ से निकलते निकलते ६:४५ हो गया था। इलेक्ट्रोनिक सिटी पहुँचते पहुँचते सात बज गया,ज्यादा दूर तक तो जाना नहीं था तो पहले से ही सोचा था की रुकते रुकते रास्ते को एन्जॉय करते हुए ही जायेंगे,और सच में रोड की कंडीशन इतनी अच्छी थी कि हर जगह पर रूकने का मन हो रहा था। उसके बाद लंच के लिए होसुर और कृष्णागिरी के बीच में  पेट्रोल पम्प और मैकडोनाल्ड के पहले के रेस्तौरेंट नाम बहुत ठीक से याद नहीं शायद कृष्ना इन था पर रुके। यहाँ पर मसाला डोसा और इडली के साथ चाय मंगवाई। कुल मिलाकर के खाने का मजा ही आ गया। पूरा खाना वैल्यू फॉर मनी था। सेलम तक तो रास्ता इतना अच्छा था की कुछ पूछना ही नहीं था,और ड्राइव भी बहुत स्मूथ थी।सेलम टाउन में थोडा देर ट्रेफिक लगा, पर इसे क्रॉस करने के बाद फिर से स्मूथ रोड आ गयी, जो की पूरी पहाड़ियों से घिरी हुयी थी,और यहाँ पर बीस हेयरपिन बैंड भी मिले पर ये ऊटी जितने तो नहीं थे पर कुल मिलाकर रास्ता बढ़िया कटा।
सड़क से दिखती हुयी पहाड़ी 


गाड़ी से सड़क का व्यू 


घुमावदार सड़क 


आती जाती गाड़ियाँ 


ऊँची नीची सडक 
             तो इस तरह रास्ते को एन्जॉय करते हुए हम लोग बारह बजे तक यरकोड पहुंचे।तो होटल में चेक इन करने के बाद कुछ देर आराम करके घुमने का निर्णय किया।तो अगली पोस्ट में यहाँ के दर्शनीय स्थलों को देखते हैं।

Thursday 5 June 2014

Dolphin trip and Aguada Fort डॉल्फ़िन ट्रिप और अगोडा फोर्ट:गोवा का अलोकिक सौंदर्य...........६

             आज का दिन इस बार के गोवा भ्रमण का अंतिम दिन था, और देखने के लिए काफी कुछ रह गया था जिसमे सब से मुख्य था डॉल्फ़िन देखना। बागा बीच पर डॉल्फ़िन दिखाने के लिए जो पैसा बताया जा रहा था वो जरुरत से कुछ ज्यादा ही था और उसके लिए जाना भी सुबह सुबह था, इसलिए सोचा था कि एक लास्ट ट्रॉय करके देख लेंगे। परन्तु पहले सुबह उठने में ही देर हो गयी और उसके बाद होटल में लेट चेकआउट स्वीकृत नहीं हुआ तो होटल से निकलने में ही देर हो गयी और डॉल्फ़िन दर्शन का विचार एक तरह से छोड़ ही दिया। प्लान में चेंज कर के हम लोग अगोडा फोर्ट के लिए निकल पड़े। अगोडा फोर्ट हमारे होटल से लगभग सात किलोमीटर की दूरी में था, हम वहां जा ही रहे थे कि तब तक एक नवयुवक बाइक में डॉल्फ़िन डॉल्फ़िन चिल्लाता हुआ जा रहा था तो हम लोगों ने वहीँ उतर  कर उससे बात करी तो वो सज्जन हम चारों को १२०० रुपये (बारह सौ) में डॉल्फ़िन दर्शन कराने को राजी हो गए और हमारे लिए तो ये कुछ इस प्रकार था कि अंधे को दो आँखे मिल गयी।  इसे सिंक्वेरिम जेटी (Sinquerim Jetty)बोट हाउस कहा जाता है। इसके बारे में जानकारी के लिए एक लिंक इस प्रकार है सिंक्वेरिम जेटी बोट एसोसिएशन । ये जेटी गोवा सरकार के द्वारा चलायी जाती है।  तो इस तरह अचानक से मिले डॉल्फ़िन ट्रिप और अगोडा फोर्ट के बारे में ज्यादा पढ़ने के लिए क्लिक करिये  


            शुरुवात करते हैं अपनी बारी के इन्तजार में खड़ी नौकावों के चित्र के साथ -


                  ये जगह काफी भीड़भाड़ वाली थी पर पेड़ों से घिरे होने के कारण गर्मी का उतना अंदाजा नहीं आ रहा था और खाने पीने के लिए आइस क्रीम ,कोल्ड ड्रिंक, नारियल पानी वगेरह सभी चींजे उपलब्ध थी ,तो हमलोगों ने भी कुल्फी का आंनद उठाते हुए अपनी बारी का इन्तजार किया। करीबन दस से पंद्रह मिनट में हमारा नंबर लग ही गया था, सावधानी से बोट में सभी लोगों को बैठाने के बाद बोट का इंजन ऑन हुआ और इस तरह से हम निकल पड़े डॉल्फ़िन देखने के लिए। यहाँ पर एक शर्त ड्राइवर ने खुद ही रखी थी भले ही डॉल्फ़िन का पूंछ ही देखे पर दिखाए बिना वापस न लाएगा। इतने में हम चलते चलते आगे बढ़ गए थे और ड्राइवर साहब हमें नौका में बैठाये हुए ही अगोडा फोर्ट,और कुछ बंगलों के दर्शन करा रहे थे जिनमे से एक में शायद हसीना मान जाएगी (Hasina Maan Jayegi ) हिंदी फिल्म की शूटिंग हुयी थी तथा एक हिंदी फिल्म अभिनेता जैकी श्रॉफ  का बंंगला था। आप भी देखिये -


बंगला 


                   यहाँ पर एक तरफ से नारियल के पेड़ों से बहुत ही मनभावनी हवा आ रही थी वहीँ पास में कोको समुद्र तट  से ठन्डे ठन्डे हवा के झोंके आ रहे थे। कुल मिलाकर गर्मी तो बस गायब ही हो गयी थी ,अब तक हम लगभग समुद्र तट पर ही पहुँच गए थे जहाँ पर नौका हिचकोले खाने लगी तो बचपन में एक नाटक का गाना सा याद आया जो कि ये था "अगर मगर डोले नैया ,लहर लहर जाये रे पानी ,डूबे ना डूबे ना मेरा जहाजी।  " इस तरह से लहरों के बीच हम काफी आगे निकल आगे पर डॉल्फ़िन का तो कोई नाम ही नहीं। काफी देर ड्राइवर जी ने इन्तजार किया और फिर आगे बढ़ चले उन्हें देख बाकि नौका वाले भी बढ़ गए।  ये सिलसिला काफी देर तक चलता ही रहा और एक बार तो सभी नाव वाले शिकारियों की तरह ही बस खड़े हो गए। अंततः काफी इन्तजार के बाद डॉल्फ़िन दिख गयी और हम सभी ख़ुशी वापस आ गए। लगभग डेढ़ घंटे की इस डॉल्फ़िन ट्रिप ने सब का मन प्रसन्न कर दिया था या यूँ कहिये एक तरह से गर्मी में ठन्डे का एहसास करा दिया। इस ट्रिप के कुछ नज़ारे आप लोग भी देखिये -

डॉल्फ़िन दर्शन के लिए आई नौकाएं 

इतना आगे तक बढ़ गए की समुद्री जहाज भी दिखने लगे 



             इसके बाद अब अगला पड़ाव था अगोडा फोर्ट।  गोवा को अगर सूरज और समंदर की जगह कहा जाये तो ये यहाँ के पुरातत्व के साथ एक तरह से अन्याय ही होगा, यहांँ कई सारे किले ,चर्च और मंदिर है जिन्हे देखने के लिए भी बहुत समय की आवश्यकता है, हम तो बस अगोडा फोर्ट के दर्शन कर पाये। अगोडा एक पुर्तगाली शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ होता है पानी का भंडार स्थल। इस किले का निर्माण सुरक्षा तथापानीकेभण्डारण के लिए किया गया था। ये एक तरफ समुद्र तट और लाइट हाउस से घिरा है तो वहीँ दूसरी औरमांडवी नदी बहती है। यहाँ  पर हिंदी फिल्म भूतनाथ(Bhoothnath ) और दिल चाहता है की शूटिंग भी हुयी 


 है,जिससे यहन की प्रसिद्धि ओर भी बढ़ गयी है। यहाँ पर एक सेंट्रल जेल भी है जो की पर्यटकों के लिए खुली नहीं होती। यहाँ आने के लिए सुभह का या फिर शाम का समय उपयुक्त होता है,क्यूंकि ये सुबह १० बजे खुलता है तथा शाम को ५ बजे बंद हो जाता है। इसलिए या तो खुलते समय पहुँच जाना चाहिए या फिर शाम को ,क्यूंकि दिन में गर्मी अपनी प्रचंडता पर रहती है। अगोडा फोर्ट के कुछ नज़ारे-

लाइट हाउस 

दिल चाहता है 

किले की बाहरी दीवार 
        इसके बाद का अगला पड़ाव था डोना -पौला और मीरामार बीच,तो डोना- पौला की खूबसूरती देखने के बाद हमने मीरामार बीच के सूर्यास्त का आनंद उठाने का प्लान बनाया। मीरामार बीच बहुत ही हरियाली से भरा हुआ हुआ है,यहाँ जा कर तो लगता है की बस यहीं थम जाओ, परन्तु समुद्र तट  का एकदम  नजदीकी छोर उतना स्वच्छ नहीं है कि पानी में खेलने के लिए उतरा जा सके. मीरामार बीच की हरियाली का एक नजारा -


                    यहाँ का सौंदर्य तो देखते ही बनता है,एक तरफ नारियल के पेड़, दूसरी और हरी भरी घास और साथ में समुद्री किनारा,एक तरह से कहा जाये तो दर्शकों को सबकुछ एक साथ ही देखने को मिल जाता है।इसके साथ ही गोवा भ्रमण की श्रृंखला समाप्त होती है,इस श्रृंखला की समस्त कड़ियाँ एक साथ इस प्रकार हैं-