Tuesday 18 November 2014

Air and Space Museum,Washington DC

                  पिछले पोस्ट में आपने पढ़ा कि किस तरह टूरिस्ट वीसा के साथ  चौबीस घंटे की थकाने वाली यात्रा के बाद हम अमेरिका की राजधानी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका पहुंचे,यहाँ हमारा स्वागत बर्फ की सफ़ेद चादर के साथ हुआ कुछ इस तरह से हुआ-


      अगले दिन आँख खुलने पर खिड़की से बाहर देखा, फिर से बर्फवारी  होती दिखाई दी। ये माना  जा रहा था की पूरे अमेरिका में  अबकि बार पिछले दशक की सबसे ज्यादा ठण्ड पड रही थी, तो ये था संयुक्त राष्ट्र अमेरिका  में पहले दिन का अनुभव।संयुक्त राष्ट्र अमेरिका उत्तरी ध्रुव पर स्थित पचास राज्यों और एक संघीय जिले से मिलकर बना है,जिसकी राजधानी वाशिंगटन में हमें तीन महीने के लिए रहने का अवसर मिला था।इस पोस्ट के जरिये आपको बताते हैं कि किस तरह  बर्फीले तूफानों  के बीच हम लोगों ने म्यूज़ियम और मेमोरियलस के लिए विश्व विख्यात इस राजधानी,वाशिंगटन के टूरिस्ट स्पॉट्स को देखा और कैसे रहे  हमारे यहाँ के अनुभव रहे,इस बारे में ज्यादा जानकारी के  लिए क्लिक करिये 

               कहने तो तो हमारे पास यहाँ घूमने के लिए तीन महीने थे,पर अगर वीकेंड गिने जाएँ तो कुल बारह,मतलब चौबीस दिन। अब इसमें से शुरू के दो वीकेंड तो बर्फवारी और ये निश्चित करने में निकल गए कि कहाँ जाना है और कैसे जाना है,आने जाने का साधन क्या होगा ? यहाँ पर  कार चलाना भारत के मुकाबले थोड़ा अलग है क्यूंकि ड्राइविंग सीट और  गाड़ी चलाने के कायदे कानून भारत के नियमों से अलग होते हैं ,हालाँकि यहाँ गाडी चलाना आसान माना जाता है,पर हमने इस विकल्प को छोड़ दिया। अब दूसरा विकल्प बचता  था टेक्सी द्वारा घूमने का, एक दिन लगभग दो  किलोमीटर की दूरी तक कुछ सामान लेने गए तो बारह डॉलर का बिल बन गया,इसलिए टेक्सी से  घूमने के लिए तो  बहुत बड़े बजट की आवश्यकता थी,इसके बाद बचते थे पैकेज टूर या फिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट। इन सब बातों को देखते हुए डीसी घूमने के लिए हमने पैकेज टूर लेने का मन बना ही लिया था कि वहां का मैप स्टडी करने बैठ कर के इतना  अंन्दाजा तो आ ही गया  कि सारे आकर्षण लगभग एक गोले की परिधि पर इस तरह से बने हुए हैं कि अगर वास्तविकता में  उन्हें देखने का आनन्द उठाना है तो दो पैरों की गाडी की सवारी के बिना काम नहीं चलेगा। इस बात को ध्यान में रखकर सोचा तो लगा कि पैकेज टूर ले कर के प्रति  व्यक्ति पचास डॉलर देना तो एक तरह की महा बेवकूफी ही साबित होगी ।अब तो केवल पब्लिक ट्रांसपोर्ट के ही मजे लूटने का ही विकल्प हमारे लिए बचा था ।अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घूमने के भी दो तरीके थे,या तो  हर यात्रा के लिए  बार बार निकाल के डॉलर  दो या फिर एक स्मार्ट कार्ड खरीद लो।हम लोगों ने सी वी स (CVS),फार्मेसी से दो स्मार्ट ट्रिप कार्ड ले लिए, जिन्हे ऑनलाइन के साथ साथ बस में भी रिचार्ज कराया जा सकता है।ये कार्ड मेट्रो बस ,डैश बस और मेट्रो ट्रैन सबके लिए वैलिड होते हैं, एवं सबसे मजे की बात ये कि अगर एक बार कार्ड स्वाइप कर के पैसा कट गया तो अगले दो घंटे तक बस बदलने पर भी कोई टिकट नहीं लगता  बस कार्ड स्वाइप करना होता है।यहाँ बसों के अंदर यात्रीगणों के लिए साइकिल रखने की जगह भी बनी होती है, और छोटे बच्चों के स्ट्रॉलर के लिए भी। बस की संरचना कुछ इस प्रकार होती है कि स्ट्रॉलर को आराम से बस में चढ़ाया जा सकता है और बड़ों की साइकिल राख्ने के लिए बस के आगे जगह बनी होती है । इस वेबसाइट  में अपनी करंट लोकेशन डाल कर हम ये पता लगा सकते हैं कि अगली बस किस समय आएगी,आने के समय में कोई हेर फेर नहीं होता :) ,खैर ये सब तो थी इस बात कि तैयारी की जाना कैसे है? इसके बाद अगला काम था कि ये चुनाव करना कि किस दिन कहाँ जाना है ?
             गूगल मैप और पैकेज टूर वालों की वजह से जगह का चुनाव करना तो बहुत ही आसान काम था,हमारे देखने वाले लगभग सभी आकर्षण नेशनल माल(National Mall) के आस पास ही थे। हम लोग डीसी में अलेक्जेंड्रिया (Alexandria ) में रहते थे, सो कहीं भी जाने के लिए पहले डीसी आना होता था, हमारा पहले दिन का टारगेट था एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम। यहाँ तक आने के लिए होटल के बाहर बस स्टॉप पर जा कर के बस लेनी होती थी, जो की पेंटागन सिटी पर छोड़ती थी,उसके बाद या तो अगली बस से मेट्रो से एल-इन्फेंट प्लाजा (L-infant plaza) मेट्रो स्टेशन पर उतर कर चार पांच मिनट की पदयात्रा करनी थी। गूगल मैप में ये बहुत अच्छी से बताया जाता है कि किस बस से जाना है, कहाँ पर बदलनी है किस प्रकार जाना है और कौन सी बस से जाना है बड़े अच्छे से बताया।आप लोग भी देखिये अभी एक बार फिर गूगल मैप पर देखा तो सब सामने आ गया  -

यात्री बस की जानकारियां 


डाइरेक्शंस 
                      जब इतने अच्छे से सब कुछ गूगल मैप ने  बता ही दिया था तो देर क्यों करनी थी, बस जैसे ही सप्ताहांत सामने देखा झटपट निकल पड़े अपने होटल के बाहर। बस दो कदम की दूरी पर ही तो बस स्टॉप था, परन्तु हमलोगों को रोड क्रॉस करनी होती थी,अब अमेरिका है ऐसे ही कैसे रोड क्रॉस करी जाय? यहाँ हर काम तो तरीके से किया जाता है  तो रोड क्रॉस करने का ये नियम था,कि वहां पर बने एक पोल पर  एक बटन लगा रहता है उसको दबाने के बाद चित्र बन के आता है कि पदयात्री का सिग्नल होने में अभी कुछ समय है इन्तजार करें,और जब पदयात्री का सिग्नल खुलता है तभी रोड क्रॉस की जा सकती है।
बस स्टॉप का पोल,ये नहीं जिस पे लिखा ही वो जो दूर दिख रहा है। 
            बस के आने का टाइम देख के ही निकले थे तो ज्यादा इन्तजार भी नहीं करना पड़ा।जैसे ही 7A  बस आती दिखी लग गए लाइन पर।यहाँ भारत की तरह नहीं होता कि एक के बाद एक धक्का मुक्की कर के चढ़ गए। जब एक यात्री आराम से चढ़ गया उसका टिकट कट गया,उसके बाद ही दूसरा चढ़ सकता है। अपनी बारी आने पर हम भी बस में बैठकर पेंटागन बस स्टॉप की ओर चल पड़े।    
यात्रियों का इन्तजार करती हूयी बस 
            पेंटागन यहाँ का एक बड़ा स्टेशन है,क्यूंकि यहाँ बस स्टॉप के साथ मेट्रो स्टेशन भी है। सुरक्षा की द्रष्टि से भी ये जगह महत्वपूर्ण है,यहाँ पर तस्वीर लेने की अनुमति नहीं होती। खिड़की से बाहर  इधर उधर देखते हुए आधा घंटा कट ही गया और पेंटागन सिटी आ गया। अब बस स्टेशन से निकल कर मेट्रो स्टेशन की ओर रुख किया,मेट्रो स्टेशन बेसमेंट में बना हुआ है,इसलिए नीचे उतरने के लिए स्वचालित सीढियाँ बनी हुयी है,पर ये इतनी ऊँची लगी कि ऊपर से नीचे देखने में ही चक्कर आ जाये,अब उतरना तो था ही,सो भगवान का नाम ले कर सवार हो ही गए ,पर नीचे देखने की हिम्मत तभी हुयी जब लगभग एक तिहाई दूरी पार हो गयी। मेट्रो की सवारी तो दिल्ली में भी खूब करी थी,पर यहाँ की मेट्रो शायद पुराने समय से चल रही थी,तो सुविधा  के हिसाब से हमलोगों को दिल्ली मेट्रो की सवारी ज्यादा भाई। हमारे यहाँ के मेट्रो स्टेशन और यहाँ में एक ये अंतर लगा की यहाँ स्टेशन में प्रकाश का इंतजाम ऊपर की जगह नीचे से ,यानि कि रेल के ट्रैक के सामने से किया गया है। 

नीचे से आता हुआ हल्का सा प्रकाश (चित्र विकिपीडिया द्वारा )
                      अब यहाँ पहुचने के बाद हमको फोर्ट टोटन की ओर जाने वाली मेट्रो पकड़नी थी,जिसमे एक स्टॉप के बाद,एक बड़ी सी सुरंग पार करने के बाद सुन्दर सी पोटोमैक (Potomac ) नदी के नजारों का आनंद उठाने के बाद एल-इन्फेंट प्लाजा स्टेशन  आता था, एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम के लिए हमें यहीं उतरना था।यहाँ से पैदल घूमते हुए आख़िरकार हम अपनी मंजिल तक पहुँच ही गये। 
                  एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम सन १९ ७ ६ से टूरिस्ट के देखने के लिए खुला होने के बावजूद आज भी डीसी की सर्वाधिक देखने वाली जगहों में से एक माना जाता है। यहाँ पर लगभग डेढ़ लाख स्क्वायर फ़ीट से ज्यादा जगह में कई सारे ऐतिहासिक वायुयान  एवं अंतरिक्षयान  रखे हुए हैं। जिनमे से कुछ असली हैं और कुछ उनके मॉडल। मंगल गृह एवं चाँद पर जाने वाले यानों को देखकर तो असीम आन्नद की प्राप्ति हुयी ,इसके आलावा यहाँ पर वायु यान के विकास के इतिहास के बारे में भी पूरी जानकारी उपलब्ध है, लगभग सभी वायुयान में हमलोगों ने चढ़कर उनके मॉडल्स को अच्छे से देखा और समझने की कोशिश की। अगर कोई वायुयान या अंतरिक्ष यान के विषय में रूचि रखता हो तो उसके लिए तो ये स्थान स्वर्ग सामान ही है ,क्यूंकि यहाँ नजर पड़े वहां अलग अलग प्रकार के विमान ही दिखाई पड़ते हैं। ये जगह आराम से समय ले के पूरा दिन लगा के घूमने वाली है,साथ के साथ इसके खुलने का समय सुबह दस बजे से शाम के साढ़े पांच बजे तक है और इंट्री तो यहाँ की  फ्री ऑफ़ कॉस्ट है ही ,तो कभी भी आया जाया जा सकता है। सो इसलिए हमलोग कुछ देर यहाँ घूमे फिर बाहर निकल कर पेट पूजा करी और दुबारा से यहाँ रखे हुए विमानों का आनन्द उठाया। कुछ विमानों के मॉडल आप लोग भी देखिये- 











                       ये सब देखते दिखाते शाम ही हो गयी थी,सो निकलने का टाइम हो गया और पूर्व निर्धारित तरीके से मेट्रो एवं बस की सवारी द्वारा हम लोग अपने होटल पहुँच गए। अगली पोस्ट पर मिलते हैं अगले वीकेंड की खबर के साथ,तबतक आप लोग इस पोस्ट को पढ़िए और ये जरूर बताईयेगा कि वृतांत कैसा लगा।  


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

11 comments:

  1. वाह.. मजा आ गया... बहुत ही रोचक.... अब अगली कड़ी का इंतजार है....
    :)

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद प्रशांत जी ,अगली कड़ी में नेशनल मॉल के वृतांत के साथ जल्दी ही मिलते हैं

    ReplyDelete
  3. रोचक यात्रा वृतान्त ... आपके साथ विदेश यात्रा लुफ्त मिल रहा है ...

    मेरे लिए तो सब कुछ नया जैसा ही है....

    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. Wonderful shots of space museum.

    ReplyDelete
  5. आप सभी लोगों का ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद,मुझे भी एक बार फिर से उन पलों को जीने का अवसर मिल रहा है

    ReplyDelete
  6. टोक्यो में भी कई जगह सड़क पार करने के पहले बटन दबा कर सिग्नल बदलने की व्यवस्था थी। गूगल मैप वाकई अमरीका के लिए जानकारियों से भरपूर है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने गूगल मैप में इतनी जानकारी दी हुयी है,कि किसी विदेशी के लिए भी वहां घूमना बहुत ही आसान है

      Delete
  7. ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  8. अच्छा लगा आपके पोस्ट से वाशिंगटन का नज़ारा देखकर. स्थानीय लोग कहते हैं पिछले तीस वर्षों में ऐसी ठंड नहीं आई थी. यात्रियों के पार करने के लिए यहाँ कई शहरों में इस तरह के सिग्नल बहुत कामके है और लोग अनुपालन करते हैं . लेकिन न्यूयॉर्क जैसे शहरों में यहाँ भी इन नियमों का कुछ नहीं चल पाता. बहरहाल, एक सुन्दर यात्रा का वर्णन. यानों की तस्वीर देख कर बैंगलोर के विश्वेश्वरैया संग्रहालय की याद आई.

    ReplyDelete
  9. रोचक और उपयोगी जानकारी के साथ बहुत सुंदर यात्रा वृतांत ....तस्वीरें तो कमाल की हैं...

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर यात्रा विवरण हर्षिता जी। पब्लिक ट्रांसपोर्ट से उस जगह को ज्यादा अच्छे से फील किया जा सकता है। फ़ोटो भी बहुत सुन्दर हैं।

    ReplyDelete