Tuesday 30 June 2015

Sea World,Orlando

                 मैजिक किंगडम की जादुई दुनिया के बाद अगले दिन बारी थी सी वर्ल्ड के महासागर  में गोते लगाने का ,यहाँ के बारे में कल्पना नहीं हो पा रही थी कि आखिर पहुँचने के बाद क्या देखने को मिलेगा।आज के दिन है होटल से चेक आउट भी करना था मतलब सामान ले करके ही घूमना था,पर कम सामान ले जाने का फायदा था कि सिर्फ दो पिट्ठू के साथ टहलना था। पहले दिन शटल की इंतजारी के बाद इतना सबक तो मिल ही गया था कि अब आने जाने का इंतजाम खुद ही करना होगा,बस से एक ट्रिप जाने का पैसा दो डॉलर तथा दिन भर के पास की कीमत चार डॉलर थी ,इसलिए हमलोगों ने यहाँ भी दिन भर का बस पास ले लिया,जिससे कि जब जहाँ जाना हो अपने समय के हिसाब से जा सके। आज के दिन सबसे पहले वालमार्ट से स्ट्रॉलर लेते हुए लेक इओला के दर्शन करते हुए सी वर्ल्ड जायेंगे। खैर वॉलमार्ट तो हम नहीं जा पाये लेक  इओला जरूर पहुंच गए। लेक ऐओला ऑरलैंडो के बिना थीम पार्क वाले आकर्षणो में प्रथम स्थान रखता है एवं एक भारतीय नागरिक के लिए वहां जाना अति आवश्यक है क्यूंकि झील के चारों और बने पार्क में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की प्रतिमा जो लगी हुयी है। यहाँ घूमने आने वाले लोगों को सुन्दर सी झील में विभिन्न प्रकार की चिड़ियाओं के दर्शन भी हो जाते हैं और नीले रंग के साथ हरियाली तो अपनेआप में अनूठी ही लगती है।

पेड़ों के मध्य लेक ओला
पार्क में लगी गांधी जी की प्रतिमा के साथ फोटो खिंचवाते भारतीय 

लेक का एक और दृश्य 
                    लेक इओला के हरे और नीले रंग को अपनी आँखों में बसाने के बाद हमलोगों को अपने लक्ष्य सीवर्ल्ड के लिए चल पड़ना था,वहां पहुंचकर हमने क्या क्या देखा ये जानने के लिए क्लिक करिये-

                         सीवर्ल्ड के सामने बस से उतरे ही थे कि सामने एक पारदर्शी कांच की बनी हुयी बहुमंजिली इमारत दिखाई पड़ी ,जिसे देखकर फोटो नहीं लेना बिलकुल असंभव ही था ,परन्तु जो फोटो खिंचकर आई उसने तो आश्चर्यचकित कर दिया, सफ़ेद बादलों से भरे नीले आसमान का रिफ्लेक्शन उस इमारत में उतर आया था,जो दृश्य कैमरे के लेंस ने दिखाया वो खुली आँखों से देखना तो असम्भव ही था।
इमारत में दिखता आसमान का रिफ्लेक्शन 
                             इस इमारत के पास में ही सी वर्ल्ड का टिकट बिक्री घर था,यहाँ से टिकट ले कर के हम सी वर्ल्ड में घूमने  की योग्यता प्राप्त कर चुके थे,मुख्य द्वार से प्रवेश के पहले ही सी वर्ल्ड के अन्दर के नजारों का अंदाजा हो गया था,क्यूंकि सी वर्ल्ड के नाम के साथ साथ पानी में रहने वाले जीवो के दर्शन जो हो गए थे-
सी वर्ल्ड
                        सी वर्ल्ड भी मैजिक किंगडम की तरह एक थीम पार्क है,जिसकी थीम पानी में रहने वाले जीव जंतुओं पर आधारित है,यहाँ पर आकर के कोई भी व्यक्ति भूगोल में पढ़े हुए अंटार्कटिका,अटलांटिक एवं आर्कटिक महासागर के वातावरण का अनुभव कर सकता है, या कहिये इसतरह  तरह की जलवायु में रहने वाले जीवों के साक्षात दर्शन कर सकता है,जिन्हे देखने की कभी स्वप्न  में भी कल्पना नहीं की हो,इसलिए  सी वर्ल्ड को सभी महासागरों का गेटवे यानिकि मुख्य द्वार कहा जाता है।मैजिक किंगडम की तरह ही ये भी इतना बड़ा है कि इसे समझने और देखने के लिए यहाँ की पूरी जानकारी होना आवश्यक है जैसे क्या प्रमुख आकर्षण है और पार्क को कितने भागों में विभक्त किया गया है। तो इस कहानी की शुरुवात पार्क की रूपरेखा के साथ करते हैं जो कि  इस प्रकार से है -
१ शैलो सी, उथला समुद्र -यहाँ पर विभिन्न प्रकार के जानवरों के मॉडल एवं प्रसिद्ध मंता नामका झूला है ,हम तो झूले का आंनद नहीं ले सक क्यूंकि मेरे जैसे डरपोक के लिए बच्चों वाले झूले ही काफी होते है ,पर ये सी वर्ल्ड आने वालों के मध्य काफी फेमस है। अब झूले में बैठना तो संभव नहीं लेकिन उसका फोटो तो लिया ही जा सकता था, सो फोटो ले लिया।
मंता
                    बचपन में दीपावली के समय घर में लगाने के लिए सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों वाले कलैंडर लाया करते थे,किन्तु तब मुझे लगता था कि शायद ऐसे दृश्य वास्तविकता में नहीं होते ये बस एक पेंटिंग है पर यहाँ आ कर के एहसास हुआ कि वो  वास्तविक ही रहे होंगे। उनमे से एक आप भी देखिये -
ऐसे दृश्य वास्तविकता में भी होते हैं। 
                         इस प्रकार के दृश्यों के बाद  अब बारी थी फ्लेमिंगो और डॉल्फ़िन  की ,जिन्हे आराम से विचरण करते हुए देखा जा सकता था।एक तरफ तो हमने गोवा में कड़ी मेहनत कर के डॉल्फ़िन के दर्शन   किये थे वहीँ यहाँ आराम से डॉल्फ़िन को खाना भी खिला सकते थे। देखिये लोग किस तरह से खाना खिला रहे थे-
खाना मांगती डॉल्फ़िन 
फ्लेमिंगो 
                             इसी जगह पर सी वर्ल्ड के मुख्य आकर्षण शामू के डॉल्फ़िन शो का आयोजन भी होता है ,किन्तु जिस समय हम गए थे किन्ही कारणों से ये शो बंद था,इसके स्थान पर डॉल्फ़िन का डांस शो दिखाया गया था कि  कैसे आवाज के हिसाब से वो मूवमेन्ट कर के नृत्य का सा दृश्य प्रस्तुत करती हैं-


                          डॉल्फ़िन शो के बाद बारी थी सी लायन के करतबों की, इन्हे देखकर हर कोई ये सोचने पर मजबूर हो जाये कि एक बच्चे को तक तो कुछ सीखना कितना मुश्किल काम होता है तो कैसे ये लोग पानी में रहने वाले जीव को इतना कुछ सीखा देते हैं। काश इनके कुछ गुण हममें भी आ जाएँ -
कितने प्यार से जानवर साथ बैठा है। 

सी लायन शो 
                                             
            




      














            इसके बाद अब बारी थी वाइल्ड आर्कटिक महासागर में गोते लगाने की,क्यूंकि अब हमें ऐसी सिमुलेशन पर आधारित राइड पर जाने वाले थे जहाँ हमें अत्यधिक ठन्डे वातावरण के साथ साथ पोलर बियर,वॉलरस एवं शार्क और सील मछली के दर्शन हुए,हम इन्हे देखने में ही इतने तल्लीन हो गए कि फोटो लेने का तक समय  नहीं हो पाया। बस एक मछली एवं बाहर के मुख्य द्वार का फोटो लिया था तो आप लोगों के लिए वही लगा देते हैं-
वाइल्ड आर्कटिक


वाइल्ड आर्कटिक की एक मछली परन्तु इसका नाम याद नहीं 
            यहाँ से बाहर निकलने के बाद कुछ पेटपूजा का सा मन होने लगा,तो पास के ही एक रेस्तरां में चले गए किन्तु शाकाहारी होने कारण  हमारा एकमात्र विकल्प पिज़्ज़ा का था सो वो ही  लिया। खाने बैठे ही थे कि वहां घूम रहे कई सारे बतख खाना मांगने के लिए आसपास मंडराने लगे। वहां पर बैठे कुछ लोग बता रहे थे कि  खाना नहीं मिलने पर वो चोंच भी मार देते हैं। हमने तो अब तक केवल बंदरों का आतंक सुना था यहां आ कर पता लगा बतख जैसा सुन्दर जीव भी आतंक मचा सकता है। देखिये कितने मजे से विचरण करती हुयी बतख -

बैठने की जगह 
                    पेट-पूजा के बाद हम लोग कुछ बच्चों के मनपसंद जगह पर गए जहाँ कई प्रकार के झूले,रेन डांस वगेरह थे वहां मन बहलाने के बाद हमारा अगला लक्ष्य था सी ऑफ़ आइस ,यानिकि अंटार्कटिका में रहने वाले पेंग्विन का एम्पायर ।यहाँ पर भी कम से कम डेढ़ घंटे की लाइन में खड़े होना था और  हमारी एयरपोर्ट तक जाने वाली बस का समय भी हो रहा था,एक तरफ काम पैसे में एयरपोर्ट पहुँचने का लालच  था वहीँ दूसरी ओर  इतने दुर्लभ जीवों को देखने का अवसर। अंततः ये मन बनाया कि पैसा तो दुबारा मिल सकता है पर पता  नहीं  इतना अच्छा अवसर दुबारा मिले या नहीं। इसलिए हमलोगों ने अपने लिए टेक्सी बुक करा ली निर्धारित  और एक बार फिर खड़े हो गए एक लम्बी क़तार में। देखिये जब बाहर का  वातावरण ही  इतनी  ठण्ड का एहसास  करा रहा था तो अंदर कितना ठंडा होगा-
मानव निर्मित बर्फीले पहाड़ 
                            करीब एक घंटे के इन्तजार  के बाद हमें अन्दर प्रवेश का मौका मिला तो वहां के अँधेरे को देख कर ही ठण्ड लगने लगी। फिर छोटे छोटे खुली हुयी कार के जैसे डब्बों में हम लोगों को बैठा दिया। और हम हवा में उड़ना शुरू हो गए।नीचे देखने पर दिखते थे बर्फ के पहाड़ और ऊपर घना अँधेरा। पांच मिनट उड़ने के बाद हमें पेंग्विन के दर्शन हो गए। सफ़ेद बर्फ और  पत्थरों के बीच काले सफ़ेद पेंग्विन भी खुद उस माहौल का हिस्सा सा लग रहे थे,जब वो इधर उधर चल रहे थे तभी पता लग रहा था कि ये बर्फ से चिपके हुए नहीं ,बर्फ में बैठे हुए हैं।
दुर्लभ पेंग्विन 
                       पेंग्विन देखते देखते ही हमारी एयरपोर्ट जाने वाली  टेक्सी का समय  गया था और हम समुद्री दुनिया के  की दुर्लभ जीवों को अलविदा करने के साथ साथ ऑरलैंडो की सुनहरी यादों को समेटते  हुए एयरपोर्ट चल पड़े। पूर्ण सुरक्षा जाँच के बाद फ्लाइट की यात्रा के बाद वाशिंगटन की धरती में उतरे तो पता लगा कि  बर्फीले तूफ़ान ने हमारा स्वागत किया है। यहाँ के एयरपोर्ट से होटल तक जाने के लिए हमने पहले से शेयर टेक्सी करायी थी परन्तु काउंटर पर गए तो वहां बैठे महाशय ने हमें बच्चे की कार सीट के बिना हमें टिकट देने से मना कर दिया एवं साथ में ये भी बोल दिया कि ये पैसा रिफंड नहीं होगा और वॉइड(Void) लिखी हुयी एक पर्ची पकड़ा दी। एक तो पैतालीस डॉलर वैसे ही बर्बाद हो गए थे और दुबारा टेक्सी बुक करने के पैसठ डॉलर लगने थे,पर इसके अतिरिक्त बस से जाने का विकल्प हमारे पास नहीं था क्यूंकि एक तो रात का समय और बाहर बर्फीला तूफ़ान,इसलिए आनन फानन में टेक्सी बुक करवा ली। बाद में घर जा के इंटरनेट में चेक किया तो  पता लगा अगर किसी रसीद में वॉइड  लिखा हो तो पैसा वापस मिल सकता है और वापस मिल गया। इस तरह से हमारी दो दिन की ऑरलैंडो यात्रा का सुखद समापन हुआ। तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-