Tuesday 30 September 2014

USA trip-first international trip

                अमेरिकी वीसा प्राप्ति के सुखद अनुभव के बाद अब बारी है लगभग चौबीस घंटे की सफल हवाई यात्रा द्वारा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की  राजधानी वाशिंगटन डीसी की ,जो की पूर्ण रूप से बर्फ की सफ़ेद चादर से ढकी हुयी थी।

                 
              
           बैंगलोर से वाशिंटन डीसी की लगभग चौबीस घंटे की यात्रा की शुरुवात एतिहाद एयरवेज द्वारा प्रातः चार पैतालीस पर हो गयी थी, और जब हम डीसी पहुंचे तो घड़ी में टाइम हो रहा था शाम के पांच बजे का। हमारी डायरेक्ट फ्लाइट नहीं थी, सो बीच में पूरे चार घंटे का स्टॉप था अबु धाबी में। ये तो थी विमान के बैंगलोर से जाने और डीसी पहुँचने के समय की बात। अब भारत के अंदर तो हम विमान यात्रा करे हुए थे, अंतर्राष्ट्रीय विमान यात्रा होने के कारण सीटिंग अरेंजमेंट थोड़ा अलग सा लगा, इन विमानों को दो कि तीन हिस्सों में विभाजित किया होता है, दोनों खिड़कियो की तरफ दो-दो एवं मध्य में पांच लोगों के बैठने की जगह होती है , इतना ही नहीं हर यात्री के पास अपना अलग टीवी होता है,जिसमे पहले से डाली गयी फिल्मे,गाने और गेम खेल सकते हैं एवं भाषा की भी कोई समस्या नहीं होती,आप जिस भाषा में देखना चाहें उसका विकल्प चुन सकते हैं , बड़े तो बड़े छोटे बच्चों के लिए कार्टून की सुविधा भी रहती है :) , और अगर मन में जिज्ञासा हो कि हम कहाँ पर उड़ रहे हैं अभी तो वो भी देख सकते हैं।कुछ चित्र आप लोगों के लिए सलंग कर रहे हैं-
विमान के अंदर का सीटिंग अरेंजमेंट एवं सभी यात्रियो के टीवी (चित्र गूगल द्वारा )
इस तरह विमान की सहायता से करंट लोकेशन दिखायी जाती  है 
          एक अलग तरह के अनुभव के साथ चार घंटे बाद हम लोग अबु धाबी में थे,यहाँ पर एतिहाद एयरवेज बच्चों के लिए एयरपोर्ट के अनदर इस्तेमाल  करने के लिए स्ट्रोलर प्रदान करती है ,जो कि काफी आरामदायक होता है। यहाँ पर तगड़ी सुरक्षा जाँच के बाद हम लोगों को अधिकतम छह महीने के लिए अमेरिका में रहने की अनुमति मिल गयी थी। अबु धाबी का एयरपोर्ट में बोर्ड वगेरह हिंदी में लिखे हुए भी दिख रहे थे पर देखने में ये एयरपोर्ट काफी अच्छा था,यहाँ पर सुरक्षा जाँच में ही काफी समय लग गया था,  इसलिए  चार घंटे तो पलक झपकते ही निकल गए और हम एक बार फिर से पंद्रह घंटे की विमान  लिए निकल पड़े। मैप में अपनी लोकेशन देखते देखते, और पेट पूजा करते हुए धीरे धीरे यात्रा समाप्ति की ओर  अग्रसर हो रही थी और जब विमान के नीचे उतरने का समय नजदीक आया तो हम लोग खिड़की से बाहर दिखती हुयी धूप को देख कर समझ नहीं पा रहे थे कि वाकई में तापमान माइनस में है। इस तरह से पूरे चौबीस घंटे की यात्रा के बाद हम डीसी पहुँच ही गए। अब एयरपोर्ट में कस्टम वगेरह की औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद अपना सामान सही सलामत मिल गया। अब एक परेशानी सामने ये आ गयी कि इस सामान को ले कैसे जाएँ, क्यूंकि अपने देश में तो एयरपोर्ट में ट्रॉली फ्री ऑफ़ कॉस्ट मिलती है, पर यहाँ जब जेब ढीली करी जाय तभी ट्रॉली मिलेगी, दो डॉलर में ट्रॉली मिलनी थी और पास में सबसे छोटा नोट था सौ डॉलर का। अगर उसे मशिन में डालें तो बस सिक्कों की लाइन लग जाती:( 
        इसलिए जो महाशय हमको लेने के लिए आने वाले थे उनका इन्तजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। थोड़ी देर में वो मिल गए और हम लोग उनके साथ एयरपोर्ट से बाहर निकले,ये हमारी ठण्ड से पहली मुलाकात  थी। एयरपोर्ट के गेट से कार तक जाने तक में ही हाथ एक दम ठण्ड से जम गए थे। कार में बैठने के बाद थोड़ा जान में जान आई,करीबन आधे घंटे में हम लोग अपने होटल एक्सटेंड स्टे अमेरिका पहुँच गए थे। इतनी लम्बी यात्रा के कारण थकान ऐसी थी कि बिस्तर पर पड़े और कब आँख लगी पता ही नहीं लगा।  चौबीस घंटे की इस थकाने वाली यात्रा के इस अनुभव को विराम देते हुए, अगली पोस्ट पर जल्द ही मिलने के वादे के साथ आपसे विदा लेते हैं, ये यात्रा वृतांत आप लोगों को कैसा लगा जरूर बताइयेगा। 


तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-

Sunday 7 September 2014

How to get tourist visa for USA

             दो हजार चौदह की शुरुवात हमलोगों को एक यादगार तोहफे के रूप में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका(यूसए) की रोमांचकारी यात्रा दे गयी। जाने के साथ साथ वहाँ की राजधानी वाशिंगटन में तीन महीने के लिये रहने का सुअवसर मिला। जैसे ही ऑफिस में ये बात हुयी कि जाना है हम साथ में छोटी सी बेटी को लेकर झटपट तैयार हो गए। जहाँ एक तरफ जाने की असीम ख़ुशी थी वहीँ दूसरी तरफ डेढ़ साल की छोटी बेटी के साथ जाने का मन में कुछ ऐसा ही भय था जैसा नील आर्मस्ट्रोंग को चन्द्रमा पर जाने में लगा होगा ,ऊपर से इस वर्ष वहां पर ठण्ड भी कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी,पर जब मन बना ही लिया था जाने का तो फिर अपने मन में बैठे हुए डर से जीत पाना तो आसान ही था। इस प्रकार से हम  कई हजारों किलोमीटर दूर जाने के लिए तैयार हो गए। गूगल मैप में एक बार दूरी तो देखिये -


           इस तरह से हजारों किलोमीटर उड़ने के बाद विदेशी धरती,संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में  बिताये हुए इन तीन महीने के अनुभव को आपके साथ साझा करने की शुरुवात वीसा प्राप्ति के अनुभव के साथ करते हैं । 

Wednesday 3 September 2014

Yercaud attractions:यरकोड आकर्षण

        पिछले पोस्ट में आपने पढ़ा बैंगलोर से यरकोड की यात्रा के बारे में,तो इस श्रंखला की दूसरी एवं अंतिम कड़ी में आपको ले चलते हैं यहाँ के दर्शनीय स्थलों के यात्रा वृतांत पर। जैसा कि आप लोगों को विदित ही है हम लोग दोपहर बारह बजे ही पहुँच गए थे और यात्रा की थकान नहीं के बराबर ही थी,तो बस चाय पीने के बाद हम निकल पड़े यहाँ के प्राकृतिक नजारों के दर्शन के लिए। होटल से नीचे उतरते ही सामने दिखाई दी शांत सी झील।
शांत सी यरकोड झील 
                यहाँ के बारे में ज्यादा पढ़ने के लिए क्लिक करिये 
                ज्यादा विकास नहीं होने के कारण यहाँ पर मार्केट और शोपिंग काम्प्लेक्स कहीं दिखाई नहीं दिए ऐवम्  सैलानियों की भीडभाड नहीं होना इसे अन्य  जगहों से अलग कर देता है। यहाँ पर ना ही ऊटी के जैसी यात्रियों की भीड़भाड़ दिखी और ना ही नैनीताल जैसे कंक्रीट के जंगल, दिखी तो सिर्फ एक चीज बस  मनमोहक प्राकतिक नज़ारे। अगर ऊटी की प्राकृतिकता देखनी का मन हो तो इन लिंक पर जायें-
ऊटी
               झील के नज़ारे देखते-देखते ही   बोट हाउस के पास के  पार्किंग स्थल में गाड़ी खड़ी कर दी। इधर आस पास में  तीन आकर्षण हैं पहला झील,दूसरा अन्ना पार्क और तीसरा डियर पार्क। सबसे पहले हम गए बोट हाउस क्यूंकि झील एक ऐसा आकर्षण है जिसे देखकर कोई भी अपनेआप को रोक नहीं सकता।पर एक बात थोडा अजीब सी लगी कि यहाँ पर बोटिंग के तो पैसे लगते ही हैं पर  बोट हाउस में जाने के भी पैसे लगते हैं। बोटिंग के लिए यहाँ पर हर तरह की नावे मौजूद थी,और नावों की सवारी तो कई बार की है तो इस बार मन हुआ की पेडल वाली नाव की सवारी कर ले। मजा तो बहुत आया पर थोड़ी देर में ही हमारे छोटे पार्टनर का मन भर गया और जोर जोर से रोना शुरू हो गया। फिर क्या था वापस जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था, पर भी भी बोट की सवारी का अनुभव तो हो ही गया।
             इसके बाद थोड़े आराम के जरुरत लगी और अन्ना पार्क जा कर वहाँ बैठ गये। ये पार्क दो आमने सामने दो  हिस्सों में बटा हुआ है,एक सड़क की एक ओर तो दूसरा दूसरी ओर। ये जगह बहुत ज्यादा व्यवस्थित तो नहीं है पर फूलों की वजह से मनमोह लेता है। यहाँ पर एक शेर भी रखा है जो बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र है। 
अन्ना पार्क  के रँग बिरंगे फूल 
                  थोड़ी देर यहाँ बैठने के बाद हम दूसरी साइड के पार्क में गए। यहाँ पर टिकट के नाम पर बहुत बड़ी लूट है,इसलिए ये ध्यान देने योग्य बात है कि ये एक ही पार्क है तो केवल एक ही जगह टिकट दे,बस इसका नाम थोडा सा बदल दिया गया है, लेक व्यू पार्क।इन दोनों पार्कों का एक ही टिकट था। ये पार्क पहले पार्क से अच्छा बना हुआ है, और इसके ठीक सामने झील है जिससे यहाँ का आकर्षण बढ़ जाता है।
पार्क से दिखती हुयी झील 


पार्क में खिले फूल 


पार्क से दिखती हुयी झील 
              इसके बाद हम चल पड़े खाने के लिए सर्वणा भवन की ओर, बहुत देर भटकने के बाद मिला तो सही पर खाना खाने के बाद अनुभव हुआ कि नाम बड़े और दर्शन छोटे। चलो कोई नहीं हम तो घूमने के लिए गए थे ना कि खाने के लिए। तब तक हमारा तीसरा पार्टनर थक के सो भी गया था तो होटल वापस जाने का मन बना लिया और कार पार्किंग की ओर पैदल ही चल पड़े। जब तक पार्किंग तक पहुंचे तो मैडम की नींद पूरी हो गयी और फिर से आगे के अट्रैक्शन को देखने का मन बन गया। आज देखने के लिए दो- तीन जगह ही बची थी जिनमे दो तो आसपास ही थी। लेडीज सीट और जेंट्स सीट, लेडीज सीट की बोट हाउस से दूरी मात्र तीन  किलोमीटर की थी, तो ज्यादा समय नहीं लगा।
           लेडीज सीट और जेंट्स सीट शेवारॉय हिल के दक्षिण पश्चिम पर स्थित है। ये सभी जगह बहुत ही दर्शनीय हैं यहाँ से एक ओर हरे भरे पहाड़ दिखते है तो दूसरी ओर सेलम घाटी के नज़ारे-
पहाड़ों के बीच घुमावदार सड़कें 


सेलम घाटी 


हरी भरी पहाड़ियां 
              अगला पड़ाव जेंट्स सीट यहाँ से पैदल रास्ते पर है,यहाँ जा के पता चला कि चिल्ड्रन सीट भी यहाँ मौजूद है,जिसमे बच्चों के खेलने का इंतजाम है।फिर से दिखे आकर्षक नज़ारे-
जेंट्स सीट 


जेंट्स सीट से दिखता नजारा 
          अब अज के लिए सिर्फ एक जगह बची थी वो है पैगोडा पॉइंट,यहाँ के रस्ते में हमारा होटल भी पड़ता था तो वहां खाने का आर्डर देते हुए हम पैगोडा पॉइंट पहुंचे।एक बार फिर यहाँ से प्राकतिक नज़ारे दिखाई दिए और साथ में एक मंदिर भी था। पैगोडा पॉइंट को पकोड़ा पॉइंट के नाम से भी जाना जाता है। हम शायद कुछ देर से पहुंचे और पकोड़ा पॉइंट के पकोड़ों के स्वाद का जायका नहीं ले पाए। कोई नहीं मन को मना लिया कि ये कसर हम अगले ट्रिप में पूरी करने की कोशिश करेंगे।
पैगोडा पॉइंट से दिखता हुआ गाँव  




        यहाँ देखने को मिला आश्चर्यजनक रूप से ध्यानमग्न श्वान,जो कि अपने आस पास से बेखबर जाने किन विचारो में मग्न था।
सोता हुआ कुत्ता 
               इसके बाद होटल जा के खाना खाया,यहाँ की हॉस्पिटैलिटी अच्छी थी,और बोलने पर इन लोगों ने बच्चे के लिए अलग से दाल भी बना दी थी,तो किसी तरह की परेशानी नहीं हुयी।अगले दिन के लिए प्लान ये था कि किल्युर फाल्स होते हुए होगनेक्कल के रस्ते बैंगलोर वापस हो जायेंगे।अगले दिन उठ के देखा तो कमरे के बाहर  खिडकियों पर ऒस की बूंदे बह रही थी।
खिड़की पर ओस की बूंदे 
             किल्युर की ओर रुख किया ही था कि लोगों ने कहा वहां पर पानी ही नहीं है तो देखने के लिए कुछ भी नहीं है,तो फिर मेटटूर डैम होते हुए बैंगलोर वापस हो गए,क्यूंकि लगा की होगनेक्कल जाना का कोई पॉइंट नहीं बच्चे के साथ में, ठीक से एन्जॉय नहीं हो पायेगा।तो उसे अगली बार के लिए छोड़ते हुए बैंगलोर को वापस हो लिए।इस ट्रिप में इतना ही था,अगले के साथ फिर मिलते हैं।