Thursday 21 January 2016

Lal Bag Flower Show, Bangalore, January 2016

              पिछले कुछ वर्षों से लाल बाग में हुए फ्लावर शो की झलकियां तो आप लोग पहले ही देख चुके हैं। इस पोस्ट के माध्यम से आपको ले चलते है गणतंत्र दिवस 2016 के अवसर पर लगे हुए दस दिवसीय फ्लावर शो के दर्शन के लिये । एक कहावत है इंसान अपनी गलतियों से ही शिक्षा प्राप्त करता है तो हम भी इससे अछूते कैसे रह पाते , ये ही हमारे साथ भी हुआ। एक बार की बात है, उस साल शायद फ्लोरल हाउस बोट बनाई गयी थी, ऐसे ही किसी छुट्टी के दिन सोचा कि चलो जा ही आते हैं और घर से निकलने तक ही दोपहर का एक बज गया और पहुँचते पहुँचते दो। पहले तो टिकट काउंटर पर ही बहुत माथा पच्ची हो गयी, उसके बाद अंदर तो आदमियों का मेला सा लगा हुआ था। जिधर देखो उधर भीड़, खैर अब जब घर से गए ही थे तो किसी तरह से भागमभाग में देख के वापस आ गए। इसलिए अबकी बार हमने सोचा सोमवार को सुबह सुबह चले जाते हैं आराम से लाल बाग के फ्लावर शो के दर्शन के साथ साथ बर्ड वाचिंग भी हो जायेगी। हम अपने घर से सुबह आठ बजे रास्ता लग गए और पौने नौ पर हम लाल बाग के अंदर थे। इस समय बहुत ही गिने चुने लोग यहाँ पर थे और अभी ग्लास हाउस के खुलने का समय भी नहीं हुआ था,क्योंकि वो नौ बजे से शाम पांच बजे तक खुलता है,इसलिए अभी गार्डन के दूसरे हिस्से को देखने का सोचा, अभी मौसम भी हल्का ठण्ड वाला हो रहा था तो घूमने में आनंद भी आ रहा था। रास्ते में हलकी हलकी फूलों की सजावट देखते हुए हम सबसे पहले पहुंचे लाल बाग में स्थित लेक तक, यहाँ पर हमारा स्वागत कमल के पुष्पों ने किया।
लेक में खिले कमल के फूल 

   कमल के पुष्पों की अदभुत छटा देखने के बाद चिड़ियों के चहचहाने की प्रतिध्वनि ने अपनी और बरबस ध्यान आकर्षित कर ही लिया। एक दो फ़ोटो इनके लेने के बाद हम एक बार फिर ग्लास हाउस की तरफ आ गए। अब तक टिकट मिलना शुरु हो गया था जिसकी कीमत इस साल से पचास रुपया प्रति व्यक्ति कर दी गयी है। ग्लास हाउस में तो जहाँ तक नजर जा रही थी वहां तक फूल ही फूल थे, लाल, नारंगी, हरा, नीला, पीला, सफ़ेद जी हाँ समझिये इंद्रधनुष के सात रंग अपने अगल अलग रूप में इन पुष्पों में उतर आये हों। हर कौने का अपना अलग आकर्षण था,हर जगह अलग तरह के पुष्पों का एक नए तरह का संयोजन हर जगह इंतजार कर रहा था। इस साल का मुख्य आकर्षण फूलों से बना एक घर था जिसके चारो तरफ विभिन्न रंगों के फ्लोरल कारपेट बिछे थे। हर देखने वाले के मन में शायद ये बात तो आ ही रही होगी काश इतने सुन्दर से घर में कम से कम एक दिन ना सही कुछ घंटे ही मिल जाते बिताने को। अब जब घर इतना सुन्दर होगा तो स्वागत भी कुछ खास तरीके से ही होगा, ये कहिये घर के दूसरी तरफ दिल की आकृति में बड़े बड़े प्रवेश द्वार बने हुए थे।एक कौन पर फ्लोरल बेड भी बना हुआ था।  अबकि बार यहाँ आ कर बच्चे भी निराश नहीं हुए क्योंकि यहाँ पर उनकी पसंदीदा बैगनी रंग के फूलों से बनी एक बार्बी डॉल भी थी। इस बार के लाल बाग़ में पिछली बार से एक अन्तर ये भी था कि अब वहां घूमने के लिए बैटरी चलित स्कूटर भी उपलब्ध थे। अब हमें तो जरुरत थी नहीं तो रेट भी नहीं पूछ पाये। एक नजर डालिये यहाँ के सुन्दर दृश्यों पर-  
लाल और पीले के साथ हरे रंग का संयोजन 
खिले खिले फूलों से हरी भरी वादी 
कौन सा ज्यादा अच्छा है ?
घर के पिछवाड़े बना फ्लोरल बेड़ 
समझ नहीं आ रहा इनकी तारीफ में क्या कहा जाये!!
बड़े बड़े स्वागत गेट,जैसे किसी ने अपना दिल रास्ते में बिछा दिया हो। 
केकटस को कैसे भूल सकते हैं। 
क्या कहने हैं इनके 
बैजंती माला 
सुर्ख लाल,उस पर गिरा एक मोती अदभुत 
बार्बी 
शो का मुख्य आकर्षण फूलों का घर 
रेड कारपेट वेलकम
फूलों की टोकरी 
कमल दल फूले 
लाल बाग लेक 
एक चिड़िया, अनेक चिड़िया 
लाल बाग लेक 
लाल बाग़ के लेख-

Friday 15 January 2016

देखिये ऐसा क्या खास है लाल बाग में, जो उसे बना देता है कभी कभी अति विशिष्ट -Natural Beauty of Lal Bag ,Bangalore

            हाई टेक सिटी बैंगलोर में सब कुछ है बड़े बड़े बाजार हैं, शॉपिंग मॉल है , कई सारे थिएटर और सिनेपोलिस की चकाचौंध है। पर इन सबके के अतिरिक्त एक और विशेषता भी है यहाँ कि वो हैं यहाँ के गार्डन, जिनकी वजह से इसे गार्डन सिटी का ख़िताब मिला हुआ है।  बैंगलोर के दर्शनीय स्थलों में सर्वप्रथम विधान सौदा, इन्दिरा गांधी म्यूजिकल फॉउंटेन, लाल बाग, कब्बन पार्क, बानेरघट्टा नेशनल पार्क (चिड़ियाघर), नंदी हिल्स के अतिरिक्त कई सारी झीलों के नाम भी आते हैं। यहाँ की भाषा में अगर बोलूं तो कई जगहों के नाम झीलों के अनुसार भी हैं । कन्नड़ा में झील को केरे कहा जाता है तो नाम भी ऐसे ही रखे गए हैं जैसे अरेकेरे,कलेना आगरहारा केरे । बात तब उस समय की है जब मैं शुरू शुरू में बैंगलोर आयी थी तो कई बार घर में बोर हुआ करती थी । फिर शुरू होता था इस क्रम में कहाँ जाएँ का सिलसिला। सोचते विचारते एक दिन हम लाल बाग की तरफ गए। इसका निर्माण मैसूर के राजा हैदर अली ने कराना शुरू किया था, पर इसे पूरा बनाने का श्रेय टीपू सुल्तान को जाता है। आज इस यात्रा को चार साल से ज्यादा हो गए होंगे और इसके बाद कई बार लाल बाग दुबारा जाना हुआ। आज अचानक लाल बाग की याद आने का विशेष कारण यहाँ स्वाधीनता दिवस और गणत्रंत दिवस के समय पर दस दिवसीय  फ्लावर शो का आयोजन होता है। जिसे देखने के लिये दूर दूर से लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है।  आज भी एक बार फिर से दस दिन चलने वाले इस फ्लावर शो का शुभारम्भ होने जा रहा है। इसीलिए यहाँ पिछले कुछ वर्षों में आयोजित हुए फ्लावर शो और लाल बाग से आप लोगों को रूबरू करवाना तो तो अति आवश्यक  है।

              विल्सन गार्डन के समीप स्थित चार प्रवेश द्वार वाले  लाल बाग को बोटैनिकल गार्डन के नाम से भी जाना जाता है। दौ सौ चालीस एकड़ में फैले एक गार्डन में कई सारे ट्रॉपिकल पौधों का संकनल होने के साथ साथ यहाँ वनस्पतियों की भी एक हजार से ज्यादा प्रजातियां पायी जाती है। इसके एक बड़े भूभाग में फैली हुयी है यहाँ पर स्थित झील जिसका पूरा एक चक्कर लगाना भी बड़ी हिम्मत का काम है, हालांकि पेड़ों की छाँव और थोड़ी थोड़ी दूरी पर बनी बेंचो की वजह से आसानी हो जाती है। इसके अतिरिक्त एक आकर्षण यहाँ पर स्थित चट्टानें भी हैं, जिन्हें तीन हजार सालों से भी ज्यादा पुराना माना जाता है। इन्हे  देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी पठार की चढ़ाई करनी हो। इसके अतिरिक्त एक ग्लास हाउस है जिसके अंदर ही  फ्लावर शो का आयोजन करा जाता है। हर बार के शो में  एक अलग थीम रखी जाती है और पूरे शो में फूलों से बना हुआ एक मुख्य आकर्षण रहता है। जैसे कभी  फूलों से लाल किला बना देते हैं, तो कभी मैसूर पैलेस या बैंगलोर पैलेस। एक बार तो फूलों की हाउस बोट और उसके बाद पुष्पों से लदी हुयी मेट्रो ट्रेन की आकृति बनाई गयी थी। पिछले वर्ष तक यहाँ का सामान्य टिकट दस रुपया प्रति व्यक्ति था, पर शायद इस बार के फ्लावर शो से बढ़ाया जा रहा है। इस बार का मुख्य आकर्षण क्या है ये तो वहां जाने के बाद ही बता पाऊँगी, पर इससे पहले आप लोग लाल बाग और वहां पिछले कुछ समय में हुए फ्लावर शो की झलकियाँ देखिये-
लाल बाग का प्रवेश द्वार 
ग्लास हाउस जिसमे फ्लावर शो का आयोजन होता है। 
चट्टान पर बना मंदिर 
पेड़ों की छाँव की बीच का रास्ता और लगी बेंच 
लाल बाग झील 
अगस्त २०१३  में बनी हाउस बोट 
२६ जनवरी २०१४ में पुष्पों से बनायीं गयी फलों और सब्जियों की आकृतियां 
अगस्त २०१५ में बनाया गया मैसूर दशहरे का अाकर्षण
२६ जनवरी २०१५ में बना लाल किले का प्रतीक 
बैंगलोर पैलेस 
                इस बार के शो में टिकट बढ़ने के साथ साथ एक और परिवर्तन किया गया है। वो ये हैं कि अब लाल बाग में पार्किंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है। शांतिनगर बस अड्डे या विल्सन गार्डन से करीब एक किलोमीटर पैदल चल कर जाना पड़ेगा। अगली पोस्ट में देखते हैं इस बार के शो में कैसे सजा है लाल बाग,तब तक के लिए आज्ञा दीजिये। 
लाल बाग़ के लेख-