सुबह साढ़े छह बजे की बस पकड़ने के लिए हम होटल से साढ़े पांच बजे टेक्सी लेकर बस के नियत समय से आधा घंटा पहले यूनियन स्टेशन पहुंच गए। यहाँ और भारत के बस बुकिंग में एक अन्तर देखने को मिला जो कि ये था जब हम अपने वहां इंटरनेट द्वारा टिकट बुक कराते हैं तो सीट का चयन भी अपने हिसाब कर सकते हैं किन्तु यहाँ लाइन लगा कर खड़े होना पड़ता है और जो सीट बाकी हो उस पे बैठना आपकी मजबूरी है।अपना नंबर की इंतजारी के बाद एक सहयात्री की कृपा से हम दोनों को भी साथ में सीट मिल ही गयी। बस ड्राइवर ने काफी अच्छा चलाया ,एक जगह चाय/नाश्ते के लिए रुकने के बाद भी साढ़े चार घंटे की यात्रा चार घंटे में पूरी करा दी। यहाँ पहुँच कर बस अथोरिटी टर्मिनल से हमने न्यू यॉर्क पास और बस के पास ले लिए। न्यू यॉर्क पास की कीमत प्रति व्यक्ति एक सौ दस डॉलर थी, पर इसे लेना बहुत फायदे का सौदा था क्यूंकि इसे लेने से एक तो हम कई जगह टिकट लेने के लिए लगने वाली लम्बी लाइन से बच गए और अलग अलग टिकट लेने पर यहाँ के मुख्य आकर्षण एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग, टॉप ऑफ़ दी रॉक एवं मैडम टूसाड्स म्यूज़ियम के टिकट की कीमत ही इससे ज्यादा पड रही थी, तो भलाई इसी मे थी कि न्यू यॉर्क के अस्सी आकर्षणों का पास ले लिया जाय और जितना अच्छे से देख पाएं उतना देख लें,एवं अगर इसे पहले से ऑनलाइन बुक करा के लिया जाये तो थोड़ा सस्ता भी पद जाता है ,वहीँ पर जा के लेने पे महंगा पड़ता है। पास लेने तक काफी टाइम हो गया और पेट में चूहे भी दौड़ने लगे तो सामने दिख कर एक सबवे नामक रेस्तरां में बैठ गए और एक छोटे से फ्लेटिज़ा के दस डॉलर धरा लिए गए वहां और पेट भी नहीं भरा सही से। चलो फिर भी पेट में इतना तो चला ही गया था कि आगे कदम बढ़ाये जा सकें। इतना सब होने तक हम अपने प्लान के मुकाबले लेट हो गए थे, तो सोचा कि ब्रायंट पार्क को रस्ते चलते दूर से देख लेते हैं और सीधे एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग की ओर को ही रुख करते हैं।क्यूंकि सामान्य ज्ञान की पुस्तकों से मिले ज्ञान ने हमारे मस्तिष्क में विश्व की सबसे ऊँची ईमारत की तस्वीर बना रखी थी, इसलिए हमारे लिए न्यू यॉर्क का मुख्य आकर्षण ये एक सौ छह मंजिली ईमारत ही थी,हालाँकि जब हम इसमें चढ़े तब तक इससे और भी ऊँची इमारते बन चुकी थी। दूर से ही ये बहुमंजिली ईमारत दिखने लगी थी। पर जब हम नजदीक पहुंचे तो सभी इमारते एक सी ही लगने लगी और लोगों से पूछना पड़ा कि कहाँ पर और कैसे जाना है।साथ में एक छोटा सा पिट्ठू बैग होने के कारण हमें यहाँ तक पहुँचने में कोई मुश्किल नहीं हुई ,पर असली परीक्षा अब शुरू होनी थी जब जब अत्यधिक लम्बी लाइन में खड़े होना था। ये अब तक की सबसे बड़ी प्रतीक्षा लाइन थी हमारे लिए,इसके आगे तो भारत में राशन के लिए लगने वाली लाइन भी पानी भर जाये,पर आज ऊंचाई से खड़े होकर दृश्य देखने का उत्साह इतना था कि बातों बातों में ही कब लाइन ख़त्म हो गयी ये पता ही नहीं चला।लाइन में लगे हुए ही हमें पता चला कि अगर प्रति व्यक्ति सोलह डॉलर और खर्च किया जाये तो एक सौ तींनवीं मंजिल तक जा सकते हैं। पहले तो सोलह डॉलर देख के ही मन नहीं हो रहा था ऊपर तक जाने का हमारे लिए छियांसीवीं मंजिल ही बहूत थी ,कम से कम ये तो होगा कि एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग में चढ़े हैं,और हमने ये भी सुन रखा था कि दोने से लगभग एक सा ही दृश्य दिखता है। इतनी देर तक हम सुरक्षा जाँच वगेरह करा चुके थे अस्सीवें मंजिल तक ले जाने वाली एक्सप्रेस लिफ्ट के बाहर पहुँच गए थे। आज तक इसके बारे कुछ देर इंतजारी के बाद लिफ्ट में नम्बर आ गया। आज तक एक्सप्रेस लिफ्ट के बारे में सिर्फ सुना था ,आज जान भी लिया कि ये है क्या। शुरू में लिफ्ट की स्क्रीन में एक दो तीन कर के दस मंजिल तक दिखा और उसके बाद साठ गिनने तक हम अस्सीवीं मंजिल पर थे। अब यहाँ से जाने के लिए भी या तो पांच मंजिल चढ़ने के लिए लिफ्ट में अपना नंबर आने तक का इन्तजार करने के लिए एक बार फिर से राशन की लाइन में लग्न था या फिर अपनी दो पहिया गाड़ी का इस्तेमाल कर के पांच मंजिल तक की सीढियाँ फटाफट चढ़नी थी।हम अब और इन्तजार के मूड में नहीं थे इसलिए चल पड़े पैदल और पहुँच गए छियासीवीं मंजिल पर पहुँच गए। यहाँ से ऑब्जरवेशन डेक पर पहुंचे तो बाहर देखना तो बाद की बात थी उसके पहले ठंडी हवा ने जो थप्पड़ लगाये उनसे सम्भालना पड़ा। थोड़ा समय वातावरण के साथ सहज होने के बाद ही इधर उधर नजरें डाल पाये।देखिये कैसी दिखती है ये ईमारत और क्या दिखता है यहाँ से -
 |
दूर से दिखती एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग |
 |
घुमावदार लाइन जिसमे बड़ी बड़ी पांच लाइन है |
 |
मॉडल ऑफ़ एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग |
 |
ऑब्जरवेशन डेक से दिखाई देता न्यू यॉर्क |
 |
ये छोटी दिखने वाली इमारतें बहुमंजिली हैं। |
यहाँ से बाहर आने के बाद हमलोग ब्रॉडवे होते हुए टाइम्स स्क्वायर होते हुए होटल पहुंचे। चेक इन की औपचारिकता के बाद कुछ देर आराम किया और एक बार फिर टॉप ऑफ़ द रॉक के लिए निकल पड़े। ये भी एक सत्तर मंजिली ईमारत थी ,जिसके अढ़सठवें मजिल पर बने ऑब्जरवेशन डेक से दो एक दम अलग तरह के द्रश्य दिखाई देते हैं।यहाँ से एक तरफ सेंट्रल पार्क तथा दूसरी तरफ एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग दिखाई देती है। इस जगह को य रॉक फिलर प्लाजा के नाम से जाता ऐ। यहाँ एक रेडियो स्टेशन एवं स्केटिंग रिंग भी है। इस रिंग की सबसे खासियत ये है कि इसके चारों ओर सभी देशों के झंडे लगे हुए हैं।एक नजर डालिये यहाँ पर भी -
 |
टॉप ऑफ़ डी रॉक |
 |
टॉप ऑफ़ डी रॉक से दिखाई देती एम्पायर स्टेट ऑफ़ बिल्डिंग |
 |
सेंट्रल पार्क |
 |
स्केटिंग रिंग |
 |
हवा में लहराते सभी देशों के झंडो के साथ भारत का भी झंडा था,पर ये सिंथेटिक कपडे का बना लग रहा था |
ये तो थी न्यू यॉर्क की मुख्य बहुमंजिली इमारते ,अगली पोस्ट में मिलते हैं यहाँ की चमक दमक के साथ। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये और बहुमूल्य टिप्पणी द्वारा अपने विचारों से अवगत कराएं।
तीन महीने के अमेरिका प्रवास की समस्त कड़िया निम्नवत हैं-
good place . aapki wajah se ham bhi ghoom liye
ReplyDeleteटोक्यो में इस तरह की बहुमंजिली इमारत पर चढ़ने का मौका मिला है। पर एक बार इन गगनचुंबी इमारतों के जाल को देख लेने के बाद इनमें कुछ नयापन नहीं रह जाता है। इसलिए उसके बाद टोरन्टो के सी एन टावर मे चढ़कर हमें कुछ नया नहीं लगा।
ReplyDeleteशायद दुबई के बुर्ज पे जाकर कुछ अलग लगे
Deleteमेरे लिए तो ये ऊँची ऊँची अट्टालिकाएं एक नयी तरह की दुनिया ही है अभी तक ! न्यूयॉर्क के सुन्दर नज़ारे देख के महसूस हो रहा है कि लोग विश्व भर से ऐसे ही नही खिचे चले आते हैं न्यूयॉर्क की तरफ। कुछ तो ख़ास है ! और ये ख़ास आपकी नजरों से आपके कैमरे के लेंस से देखना बहुत अच्छा लग रहा है हर्षिता जी !
ReplyDeleteहिंदी भाषा में विदेश के यात्रा वृतात पढने का अपना ही अलग मजा है | बहुत खूब .... एम्पायर स्टेट के बारे में काफी सुना देखा है आज आपके ब्लॉग के माध्यम से
ReplyDelete