Monday, 10 April 2017

Train trip to Araku Valley

            "गाड़ी आयी गाड़ी आयी छुक छुक छुक" इस कविता ने बालपन से ही ट्रेन के प्रति इस कदर मोह जगाया कि ट्रेन के नाम पर ही बांछे खिल जायें पर ऐसी किस्मत कहाँ पायी हमने कि शिमला, दार्जिलिंग या ऊटी जैसी पहाड़ी जगहों में रहकर बचपन से ही ट्रेन से रूबरू हुआ करते!! हम हुये उत्तराखंडी,उस पर भी कुमाउनी ,अब ज्यादा से ज्यादा कहाँ जायेंगे, आस पास रिश्तेदारी में ही तो जायेंगे ना!! कभी नैनीताल चले गये, कभी रानीखेत ओर ज्यादा हुआ तो हल्द्वानी !!  सो ट्रैन हमारी कल्पना में ही आया जाया करती थी। हल्द्वानी  जाने के नाम पर बाल मन मारे खुशी के कुलांचे मारता था इस उम्मीद में शायद कहीं आते जाते ट्रैन नजर आ जाये और उसकी झटके दार सीटी कान में पड़ जाये। जब भी कभी ट्रैन दिखती तो कदम अपने आप ही रुक जाते और विस्मृत से हो कर उसके आंख से ओझल होने तक उसे निहारा जाता।
             सोचो जब देखने का इतना उत्साह था तो बैठने का कितना रहता होगा, उस पर भी खिड़की में बैठने को लड़ाई होना अवश्यम्भावी हुआ!! धीरे धीरे वक्त ने करवट बदली और ट्रैन से आना जाना एक सामान्य सी बात हो गयी लेकिन आज भी ट्रेन का वो बचपन वाला क्रेज नही गया। अब तक तो ना जाने ट्रैन से कितनी बार चले गए होंगे पर उसके बाद एक नयी इच्छा बलवती हुई!! अब क्या, अब हिमालयन रेल के सफर का मन होने लगा। यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित इन तीन पहाड़ी रेल में से दो नीलगिरी रेल और शिमला कालका का सफर अब तक हो चुका है पर इसी क्रम में दार्जिलिंग वाली खिलौना ट्रैन रह गयी है , ना जाने कब सौभाग्य मिलेगा उसकी सवारी करने का!!
            भारत मे दो अन्य ट्रैन भी है माथेरान ओर कांगड़ा वाली, इन पांचों को मिलाकर हिमालयन ट्रैन कहा जाता है वैसे इन दोनों से तो हिमालय दर्शन होते ना होंगे तो इस नाम का औचित्य समझ ना आया!! इन दिनों हम विजाग उड़ीसा यात्रा पर चल रहे हैं तो इसी क्रम में एक पहाड़ी जगह अराकू जाने का अवसर भी मिला। बढ़िया है हिल स्टेशन तो चाहें उत्तराखंड का हो या आंध्रा का, बरबस अपनी ओर आकर्षित कर ही लेता है तो ये कैसे हमसे दूर रह सकता है। दूसरी मजेदार बात ये पता लगी कि इस जगह पर ट्रेन द्वारा जाना भी सम्भव है। अपने तो जी वारे न्यारे हो गये एक तो हिल स्टेशन और उस पर भी विजाग से चार घंटे का सफर वो भी स्लीपर में, मतलब बाहर देखने का फुल स्कोप!! हमने पहले से ही विजाग से किरान्दुल जाने वाली विशाखापत्तनम-किरान्दुल एक्सप्रेस में टिकट करा रखा था। ट्रैन के परिचय के बाद अब इस ट्रेन के अनुभव की भी चर्चा कर लेते हैं,☺☺, वो भी एक जरुरी काम है।
यात्रा दिनांक-18 जनवरी 2017
            ना जाने कैसा रहने वाला है आज का दिन!! शायद बहुत थकाने वाला या फिर बहुत ही खुशनुमा!!  सुबह छह पचास की ट्रेन है तो हर हालत में साढ़े छह बजे रेलवे स्टेशन में होना जरूरी है क्योंकि ये एक ऐसी ट्रैन है जहाँ इस बात की गारंटी नही है कि आपके हाथ मे कन्फर्म टिकट होने के बाद भी आपको सीट मिल ही जाये। साढ़े छह बजे स्टेशन में होने का मतलब छह बजे होटल छोड़ना हुआ और इसके लिये कम से कम साढ़े पांच बजे तो उठना ही होगा!! सुबह जल्दी उठने का काम मेरे जैसे आलसियों के लिये कुछ ज्यादा ही कष्टकारी रहता है!! अपनी बचपन से ही आदत है रात भले कितनी भी देर से करा लो पर सुबह जल्दी उठना टेढ़ी खीर ही रही है। मरता क्या ना करता वाली हालत हो गयी जब ट्रेन से जाना है तो जल्दी तो उठना ही पड़ेगा और ट्रेन का मोह भी हम छोड़ नही पाये, छोड़ते भी कैसे काफी नाम सुना है इस सफर में दिखने वाली पूर्वी घाट के नजारों का।
              पश्चिमी घाट के हिल स्टेशन तो हमने खूब देख रखे हैं, आज पहली बार पूरब दिशा के पहाड़ों से साक्षात्कार का अनुभव होने जा रहा है। जैसे तैसे दौड़ते भागते हम रेलवे स्टेशन पहुंच गये और अपनी सीट पर कब्जा जमा डाला!!  बूकिंग के समय ही साइड अपर साइड लोअर वाली सीट के चयन से काफी फायदा रहा और खिड़की वाली सीट से बाहर देखना शुरू हो गया। वैसे मेरी आँखों में पर्याप्त नींद होने से बिच बिच में छोटी छोटी झपकियाँ भी आने लगी !! थोड़ा आंख लगी और एक जोर का झटका ट्रैन ने दिया तो उठ गये ऐसा क्रम कुछ देर तक चलता रहा। चार घंटे की इस यात्रा में हल्का फुल्का खाना देने वाले आ रहे थे लेकिन उसकी शक्ल देखकर खाना खाने का मन नही हुआ क्यूंकि हम हुये पराठे, पूरी , इडली डोसा की तलाश में और उबले अंडे, केले और अन्य मौसमी फलों में अपना नाश्ता तो नहीं होने का , सो मठरी घर से लाये थे वो ही रस्ते भर चबा कर काम चला लिया। इसलिए इस सफर पर जाने वालों को मेरी सलाह है कि अपने लिये हल्के फुल्के नाश्ते का सामान ले जाये वरना लेने के देने पड़ सकते हैं क्योंकि इसमें जाने का टाइम ऐसा है कि सुबह का ब्रेकफास्ट स्किप हो जाएगा तो ग्यारह बजे तक कुछ पेट पूजा होनी ही चाहिये। 
           बाहर झांकते-झांकते ओर टनल आने पर शोरगुल करते करते हम बोर्रा स्टेशन पर पहुंच गये। यहाँ से बोर्रा केव जाने वाले लोगों ने ट्रेन को बाय-बाय करा और उतर गये!! यहाँ जाना तो हमको भी है पर अभी टैन के साथ साथ हम भी अराकू चलते हैं, वापसी में देखेंगे। कई सारी सुरंग और प्राकृतिक दृश्यों को देखते हुये हम अराकू रेलवे स्टेशन पहुंच गये। बीस तो मैंने गिनी ही थी उसकी ऊपर पता नही कितनी रही होंगी। हालाँकि इस सफर में प्रकृति ने अपने धानी चुनरियाँ वे आकर्षक रूप के दर्शन नहीं कराये पर अपने भूरे- लाल रंग की मिट्टी के कारण थोड़ा नयापन नजर आया। यूँ तो लाल मिट्टी ऊटी की निशानी है ऐसा सुना हाइपर यहाँ भी प्रचुर मात्रा में नजर आयी। शायद बरसात के बाद ये दृश्य बदल जाते होंगे। इस स्टेशन की एक विशेषता है वो ये कि पूरे दिन भर में यहाँ एक ही ट्रेन आती है जो कि किरान्दुल जा कर वापस इसी रास्ते मे चलती है!! मतलब दिन में दो बार इस स्टेशन के ट्रैन का आवागमन होता है। ऐसा नही कि इस ट्रेन के सफर ने अच्छे दृश्य नही दिखाये लेकिन नीलगिरी  और शिमला रेल से जो नजर आता है वो बस बेहतरीन है उसके सामने कुछ ठहर पाना मुश्किल है!!
ट्रैन के कुछ दृश्य-
कहीं दूर जब पहाड़ नजर आये!!
लाल मिट्टी को तो ऊटी की पहचान कहते है, यहाँ भी दिख रही है बढ़िया है।

लाल-लाल मिट्टी चमक रही है!! शायद सूरज की किरणों का कमाल है। 
तपती दुपहरिया में जाने क्या बाँट रहे हैं!!

कुछ कुछ हरा रंग नजर आया, लाल मिट्टी के साथ हरी घास या फसल लुभावनी लगती है। 
ये कहाँ आ गये हम!!
एक अकेला इस दुनिया में, छाया दे तो कितनो को !!
अब बस टनल आने ही वाली है। 
पेड़ों के बीच छोटे छोटे घर दिखने लगे ,पहाड़ी जगहों की पहचान तो यही है। 

हाथ हिलने से फोटो खराब जरूर हो गया, पर पता नहीं क्यों अच्छा लग रहा है थोड़ा थोड़ा भुतहा सा 😀



भारत में कहीं भी चले जाओ समतल मैदान में क्रिकेट खेलने वाले जरूर मिल जायेंगे , लेकिन ये क्या यहाँ तो दो गेम हो रहे हैं एक तरफ क्रिकेट और दूसरी और बैडमिंटन। 
जिस देश के लोगों को ये बताना पड़े मूंगफली खा के छिक्कल कहाँ फैंकने है वो क्या तरक्की करेगा😡
जो भी है लग बहुत सुन्दर रहा है !
जीवन चलने का नाम, चलते ही जाना !!

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9 comments:

  1. अभी कुछ दिनों पहले मैंने भी इस ट्रेन में यात्रा की थी खासकर अरकू वैली देखने के लिए ही, ओर टनल 20 नही बल्कि 100 से ऊपर ही होंगे

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  2. बढिया यात्रा। ट्रेन के फोटो अच्छे है सबसे आखिरी वाला फोटो जिसमे ट्रेन मुड रही है और पूरी दिख रही है वह मुझे बहुत पंसद आया।🙏

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  3. बढ़िया यात्रा. गढ़वाली होने के नाते ट्रेन के प्रति आपके कोतुहल और उत्साह को समझ सकता हूँ. हमे तो मेले में आने वाली खिलौने वाली ट्रेन में बैठकर ही अपनी इच्छा का निवारण करना पड़ता था. पहली वाली और भूतहा वाली तो गज़ब ही हैं.

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  4. बढ़िया यात्रा.फोटो काफी अच्छे आयें है

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  5. ye to broad guage ki hi line lag rahi hai....meter ya narrow guage nahi hai na..

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  6. अरकू वैली बहुत ही शानदार और सुन्दर लग रही ! लैंडस्केप जबरदस्त हैं ! हमने भी कांगड़ा , दार्जिलिंग की खिलौना ट्रैन में यात्रा की है और सच में बहुत रोमांचक होती है !! बहुत ही बढ़िया चित्र लिए हैं आपने और वृतांत भी जानदार , शानदार !!

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  7. यात्रा केसी भी हो बढ़िया ही होती है

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