Saturday 4 March 2017

Vishakha Museum,Visakhapttnam


  •             समंदर किनारे रेत के घरोंदे बना लिये!! रोप वे से   कैलाशगिरी की पहाड़ियों में भी मडरा लिये और तो और वहाँ से ऋषिकोंडा के दर्शन भी कर लिये!! अब क्या बचा,  शायद सिम्हाचलम और आर के बीच!! ना जी ये तो हमारा अनुमान है लेकिन बचा तो वो है, जिस पर टेक्सी वाले की नजरें इनायत हो जायें। देखें महाराज कहाँ हाँक ले जाते हैं हमें। तब तक थोड़ा अपना दिमाग भी खर्च कर लेते हैं कि यहाँ और क्या हो सकता है!! विजाग अंग्रेजी शासन के समय से एक बंदरगाह रहा है मतलब सामरिक महत्व की जगह है ये। अनुमान तो ये लगता है ये जगह सुरक्षा के लिहाज से भी महत्वपूर्ण होगी, पक्का है जी यहाँ कोई ना कोई संग्रहालय तो पक्का होना चाहिये। वैसे अपनी रिसर्च नही है,देखें क्या मिलता है यहाँ !!

           कैलाशगिरि को अलविदा कर के मुसाफिर समुद्र के किनारे से लगती हुयी सड़कों पर बढ़ता गया। देखने से लग रहा है शहर को पार्क सिटी के रूप में बसाया गया है, हर दस कदम में समुद्री छोर के साथ लगे हुये पार्क नजर आ रहे हैं। अभी सात किलोमीटर की दूरी नापी है और ये महाराज बोलते हैं, उतर जाओ!! ऐसे कैसे उतर जाएँ और क्या है यहाँ कुछ तो बताओ !! तो बोला सामने विशाखा म्यूजियम है उसे देख आओ!! ये हुयी पते की बात, इसी को अगर सीधे से बोल देता कि म्यूजियम देख आओ तो हम इतने सारे सवाल ही नही दागते उस पर। वैसे वो भी क्या करे अपनी अपनी आदत रहती है, शायद मितभाषी होगा!!
       खैर हमें क्या करना!! हम तो चल पड़े विशाखा म्यूजियम की तरफ। देखों तो क्या है यहाँ!! पांच रुपया प्रति व्यक्ति के हिसाब से टिकट पड़ा और हम हो लिये अंदर। यहाँ कदम रखते ही समझ आ गया ये सुरक्षा से सम्बंधित या नौ सेना से सम्बंधित जगह है। यहाँ का सबसे पहला आकर्षण तो वो घर है जिसमे म्यूजियम बनाया गया है। जी हाँ ये संग्रहालय एक डच बंगले में बनाया गया था, इसलिये थोड़ा बहुत डच का टच लिये हुये है। भवन के अंदर तो हम तब घुसते जब हम बाहर से भर पाते, तरह तरह के हथियार, छोटी मोटी पनडुब्बी को ही देखने में रह गये।
        चलो चलो, बहुत टाइम हो गया अब आगे बढ़ते हैं। ये जगह तो इतनी सम्रद्ध है जितनी देर रहे उतना अच्छी लगेगी। सुरक्षा से सम्बंधित जगह देखने में थोड़ा देश भक्ति आ ही जाती है और अपने तो इंटरेस्ट की जगह हुयी ये!! सेना को करीब से देखने, उनकी सामग्री ,हथियार देखने और उनसे रूबरू होने का अनुभव बहुत ही रोमांचकारी लगता है मुझे। दूर से देखने में जब इतना रोचक लगता है तो इन्हें इस्तेमाल करने वाले लोगों को कितना अच्छा लगता होगा!! अच्छा लगने के साथ साथ कितनी जिम्मेदारी भी रहती होगी उन जाबांज सैनिकों पर!!  यहाँ पर पनडुब्बी के दर्शन भी हुये और वो ही ऐसी जो कि सिर्फ एक आदमी के जाने जैसी रही होगी!! इतने लंबे लंबे समय तक पानी के अंदर पनडुब्बी में रहना वो भी अकेले, गजब का जज्बा है इन लोगों में!! शत शत नमन हैं उन बहादुरों को जो कि देश की रक्षा के लिये हमारी सुरक्षा के लिये हर हाल में डटकर खड़े रहते हैं। एक नजर डालिये इन पर जिन्हें में अपने कैमरा में कैद कर पायी।
          इस विश्लेषण के मद्देनजर एक जरूरी बात तो रही ही गयी, जी हाँ वो ही जो हर बार लास्ट में ही याद आती है !! बात ये है कि ये संग्रहालय पुरे सप्ताह दर्शकों के स्वागत के लिये तत्पर रहता है। बस थोड़ा टाइमिंग का अंतर आता है। कार्य दिवस में ये सुबह ग्यारह बजे से शाम के सात बजे तक खुला रहता है और छुट्टी वाले दिन मतलब शनिवार और रविवार को दोपहर बारह से शाम के आठ बजे तक खुलता है।
समुद्री जहाज के ऊपर लगने वाली गन।

अंदर की जटिल संरचना।


एक आदमी को ले जाने की क्षमता वाली पनडुब्बी।

किसी टॉरपीडो के वार को डाइवर्ट करने का साधन।

                                 टॉरपीडो


लंगर



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6 comments:

  1. Vishakha Museum,Visakhapttnam के म्यूजियम के बारे में बढ़िया जानकारी

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  2. विशाखा म्यूजियम के विषय में बढ़िया जानकारी ! ये सही कहा कि ऐसी जगहों पर जाकर देशभक्ति और भी बढ़ जाती है ! और ये क्या ? भट्ट साब को वो ही जगह बिठाकर फोटो खींची है जहाँ कभी गन लगती होंगी , इतना अत्याचार !!

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  3. रोचक प्रस्तुति हर्षिता जी।

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  4. बढ़िया जानकारी ...दिल से

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  5. Wonderful display at the museum.

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  6. रोचक जानकारी साझा की है ...

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