Sunday 16 July 2017

Borra Caves

                   भारत एक ऐसा देश है जिसमे असीमित प्राकृतिक सौंदर्य समाया हुआ है। प्रकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ यहाँ विविधता भी प्रचुर मात्रा में है। ये एक ऐसा देश है जहाँ हर दो कदम पर भाषा,बोली , उठना-बैठना, रहन-सहन सब कुछ बदल जाता है। इन सबके साथ कदम कदम पर बदलता है प्रकृति का स्वरूप। कहीं विशाल हिमालय श्रृंखला अपने जितने भव्य स्वरूप दिखाती है तो कहीं हजारों किलोमीटर में फैली समुद्री रेखा ने अपनी गहराई में ना जाने कितने राज दफ़न कर रखे होंगे। कहीं धीमी गति में अपने बहाव को कायम रखने वाली नदियाँ सयंम का पाठ पढ़ाती है तो कल कल कर के बहने वाले झरने ये समझाते हैं कि जीवन में चंचलता होना भी उतना ही जरुरी है। कहीं भव्य इतिहास से साक्षात्कार कराते हुये किले हैं तो कहीं गुफाओं का मायावी संसार है।

            अभी विज़ाग यात्रा के सिलसिले में अराकू से होते हुये बोर्रा केव से रूबरू होने का अवसर प्राप्त हुआ तो न जाने क्यों गुफाओं के मायावी संसार में रूचि जाग्रत हो गयी या कहूं  कि  बालमन में छिपी हुयी जिज्ञासा से मौका देख कर सर उठा लिया।  मुझे कुछ कुछ याद आ रहा है जब हम विक्रम बेताल देखा करते थे तो उसमे बेताल बार बार विक्रम को कहीं गुफाओं में चले जाने की धमकी ही दिया करता था।  गुफाओं का रहस्य और आकर्षण शायद उसी समय से मन के किसी कोने में अपनी जगह बनाये बैठा होगा। कुछ भी कहो बड़ा ही मायावी संसार है इन गुफाओं का !!
            बहुत हो गया गुफा- गुफा पहले समझ में तो आये ये है क्या बला😀, आगे की बात उसके बाद करते हैं। कोई भी ऐसी जगह जिसके अंदर जाना सम्भव हो उसे गुफा कहते हैं। इसका मतलब तो गुफा और सुरंग दोनो का एक ही हुए !! शायद सुरंग एक ऐसी संरचना है जिसमे एक सिरे से जा कर उसके अन्तिम सिरे यानिकि एन्ड पॉइंट से बाहर आ सकते हैं अर्थात दोनों सिरे बाहरी दुनिया से जुड़े हुए  होंगे और सिर्फ बीच का रास्ता अंडरग्राउंड होगा। दिमाग के द्वार अब कुछ खुलने लगे हैं !! गुफा का मतलब ये हुआ कि जिस रास्ते से गये हैं उसी रास्ते वापस आना होगा। दूसरा कोई रास्ता ढूँढना केवल और केवल भूलभुलैया में फसने के जैसा होगा। अब तक इतना तो समझ में आ ही गया कि गुफा होती क्या है !! अब प्रश्न उठता है गुफाएं कितने प्रकार की होती हैं और कैसे बन जाती हैं। मुख्यरूप से पहाड़ों के अंदर शरण लेने लायक बनी जगहों को गुफा कहते हैं, लेकिन गुफाएं न सिर्फ पहाड़ों पर हैं वरन ये जमीन के अंदर  भी पायी जाती हैं । ज्वालामुखी और जमीन के नीचे बहने वाली जल धाराओं के कारण गुफाओं का निर्माण होता है। 
             गुफाओं के प्रकार- अगर वर्गीकरण करने ही बैठ जायें तो गुफाओं के कई प्रकार निकल आयेंगे जैसे पहाड़ों में बनी गुफा, जमीन के अंदर छुपी सुरंगनुमा गुफा और भी ना जाने क्या क्या !! पर  अभी मैं बनावट या निर्माण के आधार पर गुफाओं को सिर्फ दो ही रूप में विभाजित कर रही हूँ प्राकृतिक रूप से बनी हुयी गुफायें और मानव निर्मित गुफायें। 
               भारत में अनेक छोटी-बड़ी गुफाएं हैं, जो किसी अजूबे से कम नहीं हैं। पाताल भुवनेश्वर, उदयगिरी की गुफाएं ,अजन्ता एलोरा और बोर्रा केव्स इनमे प्रमुख हैं। ये तो रहा गुफाओं का परिचय, इन पर लिखने बैठे तो कई पुराण बन जायेगें। तो चले अब थोड़ा यात्रा वर्त्तान्त की भी चर्चा कर ली जाये। अराकू घाटी, जी हाँ मैंने जहां भी इसका नाम पढ़ा इसका परिचय एक हिल स्टेशन के नाम से ही मिला। नाम के साथ ही घाटी शब्द जुड़ा होने के कारण और पहले से ली हुयी जानकारी हम भी इसे एक ऊंचाई पर बसा पर्वतीय स्थल समझने लगे, ये भृम तब तक बना रहा जब तक वहाँ से वापस नही आ गये। 
            जाते समय ट्रैन से जाना था तो शायद उतना अंदाजा नहीं लगा हो कि हम पहाड़ी से डाउन को उतर रहे हैं। आते समय टेक्सी से आना था तो घाटी से जितना चलते गए उतना ऊंचाई पर पहुँचते गये , अब कुछ होश आया कि "आयें पहाड़ी में तो अब आ  रहे हैं तो वो हिल स्टेशन कैसे हो सकता है जहाँ से आ रहे हैं। " अनंतगिरि की पहाड़ियों में  कॉफ़ी बागान के पर्याप्त दर्शन हो रहे हैं पर हम दक्षिण भारत में बसने  वाले तो काफी बागानों के आसपास ही मडराते रहते हैं, चाहें कूर्ग हो, चिकमंगलूर, सकलेशपुर और या फिर वायनाड- सब जगह कॉफी के ही बागान भरे पड़े हैं तो ये हमारे लिये कोई इंटरेस्ट का विषय नहीं बने और हम यहाँ बागानों के बीच ना रुक कर सीधे आगे बढ़ते रहे। अब सामने एक व्यू पॉइंट है जहाँ से घना जंगल दिख रहा है, इधर भी पेड़ों का आकार कुछ कुछ फूलगोभी- ब्रोकोली का जैसा है।  ठीक इसी प्रकार का जंगल हमने ऊटी में देखा वहां इसे शोलाज के नाम से जाना जाता है। यहाँ कोई विशेष नाम नहीं मालूम पड़ा तो ब्रोकोली या फूल गोभी का जंगल ही कह सकते हैं। 
       अब बोर्रा केव ज्यादा दूर नही है, या यूं कहूँ कि बस पहुंच ही गये😎 !! सुबह पांच बजे के उठे हैं आंखों में  नींद भी है पर अभी आगे पूरा दिन पड़ा है क्योंकि रात के बारह बजे ट्रैन पकड़नी है तो तब तक सोने का कोई नाम निशान ही नही है पर क्या करे ये राह हमने खुद ही चुनी है तो आंखों में रह रह कर आने वाली इस नींद के भी मजे ले लेते हैं। अरे ये क्या!! कुछ लोगों ने झुंड बनाकर गाड़ी रुकवा दी। पर क्यों, कुछ नही चंदा मांगने का नया तरीका है!! शायद कोई फेस्टिवल चल रहा है इन लोगों का इसके लिये डंडे और रंग गुलाल का प्रयोग कर के आने जाने वाली गाड़ियों को रोक रहे हैं। दूसरी जगह में हम कर भी क्या सकते हैं तो पैसे दे कर अपनी जान छुड़ाई!! 
              दस पंद्रह मिनट के रास्ते मे ऐसा हमारे साथ तीन जगह हुआ!! मरता क्या ना करता, तीनो जगह चुपचाप पैसे निकाल कर दे दिये। अब तक हम बोर्रा केव के रेलवे स्टेशन पहुंच गये हैं। यहाँ से गुफा सिर्फ सौ मीटर नीचे है, आगे पैदल ही जाना है। रास्ते मे कुछ दुकाने लगी हुई है जिनमे बांस के कप बना रहे हैं और उन्हींको ये लोग चाय देने के प्रयोग में लाते हैं। अब तक आने जाने वाले लोग बताने लगे कि बहुत नीचे तक उतरना है। मैं पहले से ही बहुत थक चुकी थी और अब तो इन लोगों की बात सुनकर मानसिक रूप से भी थकान लगने लगी। अब मैंने सोचा कि सान्वी ओर मैं बाहर ही रुक जाते हैं और विनय नीचे तक जा कर देख आएंगे!! 
         पर इनका कहना था कि जब यहाँ तक साथ आये हैं तो गुफा में भी साथ जायेंगे और हम दोनों का ही टिकट ले आये। यऊपर से देखने से तो गुफा छोटी सी ही लग रही है और सीढ़ियों से उतर ही रहे थे कि सामने बहती हुयी एक नदी नजर आयी। बहुत देर बाद एक अच्छा दृश्य दिखा। चलो अब आगे फिर उतरते हैं अभी तक तो ये जगह गुफा जैसी नही लग रही, खूब विस्तार लिये हुये है और अभी बाहर से आने वाला उजाला भी पर्याप्त है तो अच्छा ही लग रहा है। 
          अब यहाँ से नीचे उतरते उतरते कहीं पर संकरी लग रही है तो कहीं पर चौड़ी!! अब बाहर का उजाला तो नही दिख रहा पर यहाँ रंग बिरंगे प्रकाश की व्यवस्था है जिससे यहाँ दिखने वाली आकृतियाँ बहुत रोचक लग रही हैं। एक जगह पर गुफा में बड़ा सा छेद है जिससे बाहर की लाइट अंदर आ रही है जो कि एक चमत्कार सा लग रहा है। इतनी बड़ी गुफा और उसमें छेद !! एक दो जगह पर शिवलिंग एवं अन्य देवी देवताओं की आकृति भी उभरी हुई हैं और उनके आगे पीछे पांडे पैसा कमाने को बैठे हैं। 
            अब बस थोड़ा सा ओर उतरना है अंधेरा खूब गहरा चुका है लेकिन रंग बिरंगी लाइट से उतना पता लग रहा जिस पल को कभी जगमग कम हो रही तो पता लग रहा!! अरे ये क्या!! इतना चौड़ा विस्तार लग ही नही रहा हम किसी गुफा के नदर हैं। ऐसा लग रहा है जैसे किसी घर के आगे आंगन होता है उसमें पहुंच गये हों। यहाँ पर उतनी लाइट नही थी शायद जान बूझकर नही होगी जिससे वास्तविकता का आभास होता रहे। यहाँ खूब चमकादड मंडरा रहे थे और उनकी आवाज ने एकांत को भंग किया हुआ था। गुफा के अंदर काफी सारे इंस्टैंट फोटोग्राफर भी घूम रहे थे जो कि इतने अंधेरे में भी सुंदर सुंदर तस्वीरें निकालने में सक्षम थे। चमकादडों के इधर उधर टकराने से चुना पत्थर की दीवारों से कुछ कुछ कण इधर उधर गिर रहे थे जो कि फ़्लैश लाइट लगा कर फ़ोटो खिंचे तो उनमें कुछ जगह पर धुंधलापन आ जाता है। किसी भी जगह नीचे उतरना जितना आसान होता है उतना ही कठिन ऊपर चढ़ना भी  होता है। अब वापसी की राह पर चलना है,  करीब पैतालीस मिनट लग गये यहाँ से ऊपर पहुंचने में!! अब थकने के साथ साथ भूख भी लग आयी तो हम बाहर बोर्रा केव की कैंटीन में चल दिये। 
           अरे ये क्या इन सब बातों के बीच मैं ये बताना तो भूल ही गयी कि ये गुफाएं कैसे बनी हैं, किसने इनकी खोज की !!  तो चलिये अंत मे ही सही तो एक छोटा सा परिचय हो जाये। चूना पत्थर की बनी ये गुफायें विशाखापट्नम से नब्बे किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। अक्सर गुफायें नदी किनारे ही बसी होती हैं जैसे पाताल  भुबनेश्वर की गुफा जटा गंगा के समीप बसी है। ठीक इसी प्रकार बोर्रा की गुफा को गोस्थनी  नदी का उद्गम मानते हैं। कालांतर से  नदी के पानी ने रिस रिस कर इसके निर्माण में योगदान दिया होगा। समय समय पर चूना पत्थर पानी में घुलता रहा होगा और उसने गुफा के अंदर विभिन्न प्रकार की आकृतियों का निर्माण कर डाला होगा। बाद में मानव समाज ने अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा कर उन सरचनाओं को अनेकानेक नाम प्रदान किये। किसी आकार में भगवान देखे तो किसी में जीव जंतु और कहीं कुछ अन्य चीजें। 
         गुफा के  इन रहस्यों के बारे में विचार विमर्श करते करते चाय नाश्ता भी निपट गया और आगे बढ़ने का समय हो गया। झटपट टेक्सी में बैठे और विशाखापट्नम की तरफ चल पड़े !! अब तब शाम ही हो गयी है तो सिम्हाचल जाने का तो कोई औचित्य ही नहीं बनता है, इसलिये हम यहाँ से बैठे सीधे वहाँ के रेलवे स्टेशन में ही उतरे। शाम का सात बज चूका है और अब कहीं इधर उधर करने का भी मन नहीं है तो यहाँ की जनता खाना में बैठ कर पेट पूजा कर डाली। अभी भी अपनी ट्रैन के आने का समय बारह का है तो अभी भी चार घंटा यहाँ रेलवे स्टेशन में बैठकर बिताना है।  बड़ा ही लम्बा दिन हो गया आज का  पर हाय री किस्मत, अपनी ट्रैन दो घंटा लेट हो कर रात के दो बजे आयी। ट्रैन में चढ़ते ही बर्थ पर लटके तो बस सुबह ही आँख खुली और अपने को भुबनेश्वर में पाया। अगली पोस्ट में मिलते हैं भुबनेश्वर  के धार्मिक स्मारकों की सैर पर, तब तक के लिये सायोनारा 😎😎 
      तब तक फोटो तो देख लो जी इस रहस्य्मयी संसार के -
बरसात में कितना सुन्दर लगता होगा !!
कुछ बो रखा है ना जाने क्या है !!
कुछ हरियाली नजर आयी।  
व्यू पॉइंट से दिखता जंगल 
इतनी भीड़ !! 

कुछ जानकारी ले लेते हैं!!
गुफाओं के आसपास इस तरह की पथरीली सरंचना जरूर दिखती हैं। 
चलो चल पड़ते हैं !!




गोस्थनी नदी जिसका उदगम इन्ही गुफाओं से हुआ है। 

गुफा में उतरते हुये पहला विश्राम यहीं पर हुआ। इसे पहला तल भी कह सकते हैं। 

भारत में कहीं जाएँ और देवी देवता ना मिले ये तो असम्भव हुआ।  

पहले तल से दूसरे तल के लिये जाने वाली सीढियाँ, चलो देख क्या रहे हो उतर जाओ !!

कुछ इस तरह के रंगों का प्रकाश था वहां !
अलग अलग रंगो के कारण कुछ ऐसा लग रहा था। 
अजीब अजीब सी आकृतियां 



गुफा में एक छेद  भी है जिससे बाहर की रौशनी अंदर आ जाती है। 
क्लोज अप तो कर ही लेते हैं। 

थक गये कुछ देर आराम हो जाये !!
ये शाम मस्तानी !!
  विजाग श्रखला की सभी पोस्ट -

12 comments:

  1. पढ़कर बहुत अच्छा लगा , आपने जिस तरह से गुफा और सुरंग के बारे में बताया वो तो और बढ़िया लगा, चित्र भी एक से बढ़कर एक हैं।

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    1. धन्यवाद बहुत बहुत, गुफा सुरंग ये दोनों मेरे इनटरेस्ट के विषय है।

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  2. बहुत सुंदर जगह है। प्राकृतिक गुफाएं देखकर मन प्रसन्न हो ऊठा। बढिया घुमक्कडी

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  3. एक बात का आपने ध्यान नहीं दिया कि अरकू घाटी जाने वाली रेलवे लाइन इसी गुफा के ठीक ऊपर से निकलती है जिसके बारे में गुफा के अंदर एक बोर्ड भी लगाया हुआ है मैंने अपने लेख में उसका फोटो भी लगाया था अगर आपने भी फोटो लिया हो तो आपको वह फोटो लगाना चाहिए,
    मैं तो वापसी में प्रहलाद मंदिर बाहर से देख लौट आया था, बहुत लम्बी लाईन लगी हुई थी।

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  4. अभी आपके ब्लॉग पर जा कर देखती हूँ, शायद वो जगह देखी है मैने जहाँ से गुफा सिर्फ सौ मीटर दूर है। वापसी में हमारा भी सिम्हाचलम जाने का विचार था पर समय की कमी की वजह से नही हो पाया।

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  5. बहुत अच्छे फोटो और पोस्ट

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    1. धन्यवाद प्रतीक

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  6. बाकी गुफाओं के जिक्र के साथ मुझे अंडमान और शिलांग की गुफाएँ भी याद आती हैं। अच्छा विवरण दिया आपने पर ऐसा लगा कि ये जगह आपको खास पसंद नहीं आई।

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    1. पसंद तो आयी थी पर सुबह जल्दी उठना मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है। शायद वो ही आपको नजर आयी हो। अंडमान की कौन सी गुफाओं की चर्चा कर रहे हैं आप?

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  7. सुरंग, गुफा का अंतर और विश्लेषण शानदार ढंग से समझाया है आपने, मेरे जैसे अनपढ़ आदमी को भी समझ आ गया । गुफा में फोटो ज्यादा अच्छे नहीं आ पाते लेकिन फिर भी आपने बेहतरीन फोटो उतारे हैं ।

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    1. आप अनपढ़ हैं तो पढ़ा कौन है!! धन्यवाद इस ज़र्रानवाज़ी के लिए

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