दुर्गा माँ के स्वरूप चंडी देवी के नाम पर बसा चंडीगढ़,उत्तर भारत के मुख्य शहरों में आता है। जहाँ एक तरफ तो ये केंद्रशासित प्रदेश होने के साथ साथ पंजाब एवं हरियाणा की संयुक्त राजधानी के रूप में जाना जाता है, वहीं दूसरी तरफ इसे भारत के सबसे पहले सुनिजोयित शहर के रूप में भी भरपूर प्रसिद्धि मिली है। शिवालिक श्रृंखलाओं की तलहटी में बसे इस शहर में आधुनिकता के साथ साथ पौराणिकता का संगम भी देखने को मिलता है। इसके पहाड़ों के समीप होने के कारण कई बार मन करता है कि यहीं कही रोजी रोटी का ठिकाना मिल जाये तो भागमभाग की जिंदगी छोड़ के आ जाओ । जब मन करे ठंडी हवा खाने को पहाड़ी वादियों में चल दो और पंजाबी खाने के स्वाद से तो सभी परिचित हैं। भारत पाक विभाजन के बाद पंजाब को एक नयी राजधानी की जरूरत आन पड़ी, तब फ्रांसीसी आर्किटेक्ट ली कार्बूजियर ने सन उन्नीस सौ बावन में एक कुशल योजना के साथ सेक्टरों के हिसाब से चंडीगढ़ की नींव रखी।सेक्टर एक से लेकर सेक्टर सैतालिस में पूरा चण्डीग़ढ़ समाया है, जिसमे से तेरह के अनलकी नम्बर को स्थान नहीं दिया गया है। इसके अलावा सड़को में करीने से लगाये हुए छायादार पेड़ हर मौसम में राहगीरों को छावं देते है। क्यूंकि सड़कों के किनारे पेड़ों को दो से तीन पंक्तियों के रूप में लगाया गया है जिससे कोई न कोई वृक्ष हर मौसम में छाया दे सके। इसके अतिरिक्त यहाँ के तापमान के मद्देनजर सुखना लेक नामक आर्टिफिशियल लेक का निर्माण भी ठंडी हवा के साथ साथ कई सारे उद्देश्यों की पूर्ती हेतु करवाया गया था। स्वच्छता के मामले में तो कोई मिसाल ही नहीं है यहाँ की। चंडीगढ़ में स्वयं में तो कई दर्शनीय स्थल हैं ही, पर इसके अलावा ये कई सारे हिल्स स्टेशन के प्रवेश द्वार के रूप में भी जाना जाता है। अगर किसी को हिमाचल जाना है तो क्या मजाल उसकी जो चंडीगढ़ को छोड़ के जा पाये। इसलिए सुनियोजित तरीके से बसाये गए इस शहर को मौका मिलने पर देखना तो जरूरी ही हो जाता है। भारत की राजधानी दिल्ली से चण्डीगढ़ हर तरह से पहुंचा जा सकता है। वायु मार्ग द्वारा करीब पैतालीस मिनट लगते है। ट्रेन और बस द्वारा भी अधिक से अधिक पांच घंटे में पहुँच जाते हैं।कई बार प्लान बनाया यहाँ आने का , हर बार कुछ ना कुछ व्यवधान पड़ा और नहीं आ पाये। किसी तरह से इस वर्ष के मई माह में हिमाचल आते जाते समय कुछ घंटे का समय चंडीगढ़ देखने के लिए हमने निकाल लिया। यहाँ के मुख्य दर्शनीय स्थलों में सुखना लेक, रॉक गार्डन, पिंजौर गार्डन , रोज गार्डन और कुछ संग्रहालय आते हैं।
एक मई को हम बैंगलोर से अपराह्न एक बजे दिल्ली से होते हुए चंडीगढ़ जाने के लिए जेट एयरवेज की फ्लाइट में बैठ गए। जिसने थोड़ा देर दिल्ली में रुकने के बावजूद शाम के पांच चालीस पर चंडीगढ़ की धरती पर उतार दिया। इस दौरान हमें एयरलाइन द्वारा मुफ्त में दिन का लंच और शाम का नाश्ता मिला। उतर कर देखा तो एयरपोर्ट का नजारा बहुत बढ़िया था, क्यूंकि बाहर से देखने पर ये एक ग्लास की ईमारत जैसा लग रहा था पर सुरक्षा को मद्देनजर यहाँ फोटोग्राफी करने की अनुमति नहीं थी। यहाँ भी हम पैदल ही बाहर निकल पड़े। एयरपोर्ट से बाहर निकलते निकलते ही साढ़े छह बज गया और हमारी बस दस बजे की थी। उसे पकड़ने के लिए हमें सेक्टर तैंतालीस पर स्थित बस अड्डे पर रात्रि नौ बजे पहुंचना जरुरी था। फ्लाइट में खाना मिला ही था तो अब और खाने का तो सवाल ही नहीं उठता था। मतलब अपने पास दो घंटे का समय था जिसमे हम बिना किसी टेंशन के आराम से घूम सकते थे और बैठने का कोई ना कोई ठिकाना तो होना ही चाहिए। शाम के समय को देखते हुए हमने सेक्टर एक पर स्थित सुखना लेक जाने का मन बनाया जो यहाँ से करीब सौलह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । जाने का साधन फिर से हमारी पुरानी साथी ओला कैब थी। इसका कारण भी एक जबरदस्त डील थी जो हमने पिछले वर्ष घर जाते समय ली थी। उन दिनों ओला कंपनी नयी नयी आई थी और इसमें ऑफर आया था जितना पैसा ओला वॉलेट में कस्टमर डालेगा उतना ही पैसा ओला भी डालेगी। और इसके साथ साथ ये भी था अगर ओला वॉलेट से पेमेंट करो तो ट्रिप का खर्च आधा पड़ेगा। उस समय हमने साढ़े तीन हजार रूपया डाल दिया था जिसने फाइनली दस हजार रूपये के मूल्य का काम किया। तब से आज तक हम इस अवसर का लाभ उठा रहे थे। कमाल की बात ये रही ऐसा ऑफर दुबारा फिर नहीं आया।खैर ये तो बात थी ऑफर की, करीब आधे घंटे में हम सुखना लेक पहुँच गए।
तीन वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली सुखना लेक के निर्माण भी कार्बूजियर की सूझबूझ का एक उत्कृष्ट नमूना है। उन्होंने एक बरसाती नाले पर बांध बना कर इस झील का निर्माण कराया ,जिससे दो तरह से फायदा मिला। पहला ये कि शहर में बरसाती पानी का फैलाव रूक गया और दूसरा ये कि नगरवासियों को एक बढ़िया पिकनिक स्पॉट मिल गया। इससे सुबह शाम जॉगिंग के लिए पर्याप्त जगह मिल गयी और अगर शाम को यहाँ बैठ जाओ तो एक बढ़िया सूर्यास्त के दर्शन तो हो ही जायेंगे। पर्यटकों के लिए भी समय बिताने के लिए ये बहुत अच्छी जगह है जहाँ जाने का कोई पैसा नहीं लगना है। मुख्य जगह से लेक की तरफ जाने को ढलवा सीढ़ीदार रास्ता बना हुआ है जिन पर बैठकर के सैकड़ों पैडल बोट की सवारी करते हुए लोगों के साथ साथ पीछे दिखती पहाड़ियों को भी देख सकते हैं। पैडल बोट में चार लोगों के बैठने की जगह थी। यदि दो लोगों को बैठना हो तो प्रति व्यक्ति सौ रुपया और अगर चार लोगों का समूह हो तो प्रति व्यक्ति पचास रुपया लग रहा था और बोटिंग की ड्यूरेशन आधा घंटा रहती है। टिकट छह बजे से पहले लेना रहता है। इसके अतिरिक्त अगर कोई व्यक्ति चलकदमी में रूचि रखता हो तो लेक के सहारे बने पैदल पथ को भी नाप सकता है। हमारा ऐसा कोई विचार नहीं था ,इसलिए कुछ देर यहां बैठकर लेक को निहारा और कुछ फोटो ले लिए। थोड़ी देर यहाँ बैठने के बाद हम दूसरी तरफ बने पार्क में आराम से बैठकर सुस्ताने के लिए चले गए। बढ़िया सी हरी घास और आसपास लगे छायादार पेड़ किसी यात्री को इससे ज्यादा क्या चाहिए। पर शाम का समय होने के कारण मच्छर जरूर मडरा रहे थे और उसके साथ साथ डेंगू का खतरा भी ,तो बार बार जगह जरूर बदलनी पड़ी। अब तक मारे गर्मी के खाने का तो नहीं परन्तु कुछ कोल्ड ड्रिंक का मन जरूर हो गया था। सुखना लेक के पास बने इस पार्क में तो खाने पीने का कुछ जुगाड़ नहो दिख रहा था तो हम इस पार्क से बाहर निकले और दूसरे गेट से सुखना बोटिंग काम्प्लेक्स के अंदर चले गए।यहाँ पहुँचते ही खाने चुंधियाँ गयी, बहुत चमक दमक वाली जगह थी ये ।इसे देखकर नैनीताल के फ्लैट्स की यादें ताजा हो गयी। यहाँ बच्चों के लिए छोटे मोटे झूले,पेड़ों के आसपास लगी चमकदार बिजली की मालायें, कई सारी खाने की दुकाने और इसके अलावा ढेर सारे लोग। कुल मिलाकर मेले का सा माहौल था इस जगह पर ।एक ठीकठाक सी दुकान में खाने का आर्डर देने गए तो मन डोसे पर जा के अटक गया,क्या करें साउथ इंडिया का असर नार्थ जा के भी पीछा नहीं छोड़ता और इसके साथ के लिए मंगवायी पंजाब की शान लस्सी। जब तक खाना आता तब खुले में लगी कुर्सी मेज में से एक हमने अपने लिए भी छाँट ली और बैठकर चमक दमक निहारने लगे ।इतने में अपना डोसा आ ही गया और इतना करते करते साढ़े आठ बज गया और हम बस अड्डे की तरफ चल पड़े।अगली पोस्ट में देखते हैं वापस आते समय हमने चंडीगढ़ में क्या क्या देखा,तब तक के लिए आज्ञा दीजिये।
यात्रा के दौरान लिए गए चित्र-
एक मई को हम बैंगलोर से अपराह्न एक बजे दिल्ली से होते हुए चंडीगढ़ जाने के लिए जेट एयरवेज की फ्लाइट में बैठ गए। जिसने थोड़ा देर दिल्ली में रुकने के बावजूद शाम के पांच चालीस पर चंडीगढ़ की धरती पर उतार दिया। इस दौरान हमें एयरलाइन द्वारा मुफ्त में दिन का लंच और शाम का नाश्ता मिला। उतर कर देखा तो एयरपोर्ट का नजारा बहुत बढ़िया था, क्यूंकि बाहर से देखने पर ये एक ग्लास की ईमारत जैसा लग रहा था पर सुरक्षा को मद्देनजर यहाँ फोटोग्राफी करने की अनुमति नहीं थी। यहाँ भी हम पैदल ही बाहर निकल पड़े। एयरपोर्ट से बाहर निकलते निकलते ही साढ़े छह बज गया और हमारी बस दस बजे की थी। उसे पकड़ने के लिए हमें सेक्टर तैंतालीस पर स्थित बस अड्डे पर रात्रि नौ बजे पहुंचना जरुरी था। फ्लाइट में खाना मिला ही था तो अब और खाने का तो सवाल ही नहीं उठता था। मतलब अपने पास दो घंटे का समय था जिसमे हम बिना किसी टेंशन के आराम से घूम सकते थे और बैठने का कोई ना कोई ठिकाना तो होना ही चाहिए। शाम के समय को देखते हुए हमने सेक्टर एक पर स्थित सुखना लेक जाने का मन बनाया जो यहाँ से करीब सौलह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । जाने का साधन फिर से हमारी पुरानी साथी ओला कैब थी। इसका कारण भी एक जबरदस्त डील थी जो हमने पिछले वर्ष घर जाते समय ली थी। उन दिनों ओला कंपनी नयी नयी आई थी और इसमें ऑफर आया था जितना पैसा ओला वॉलेट में कस्टमर डालेगा उतना ही पैसा ओला भी डालेगी। और इसके साथ साथ ये भी था अगर ओला वॉलेट से पेमेंट करो तो ट्रिप का खर्च आधा पड़ेगा। उस समय हमने साढ़े तीन हजार रूपया डाल दिया था जिसने फाइनली दस हजार रूपये के मूल्य का काम किया। तब से आज तक हम इस अवसर का लाभ उठा रहे थे। कमाल की बात ये रही ऐसा ऑफर दुबारा फिर नहीं आया।खैर ये तो बात थी ऑफर की, करीब आधे घंटे में हम सुखना लेक पहुँच गए।
तीन वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली सुखना लेक के निर्माण भी कार्बूजियर की सूझबूझ का एक उत्कृष्ट नमूना है। उन्होंने एक बरसाती नाले पर बांध बना कर इस झील का निर्माण कराया ,जिससे दो तरह से फायदा मिला। पहला ये कि शहर में बरसाती पानी का फैलाव रूक गया और दूसरा ये कि नगरवासियों को एक बढ़िया पिकनिक स्पॉट मिल गया। इससे सुबह शाम जॉगिंग के लिए पर्याप्त जगह मिल गयी और अगर शाम को यहाँ बैठ जाओ तो एक बढ़िया सूर्यास्त के दर्शन तो हो ही जायेंगे। पर्यटकों के लिए भी समय बिताने के लिए ये बहुत अच्छी जगह है जहाँ जाने का कोई पैसा नहीं लगना है। मुख्य जगह से लेक की तरफ जाने को ढलवा सीढ़ीदार रास्ता बना हुआ है जिन पर बैठकर के सैकड़ों पैडल बोट की सवारी करते हुए लोगों के साथ साथ पीछे दिखती पहाड़ियों को भी देख सकते हैं। पैडल बोट में चार लोगों के बैठने की जगह थी। यदि दो लोगों को बैठना हो तो प्रति व्यक्ति सौ रुपया और अगर चार लोगों का समूह हो तो प्रति व्यक्ति पचास रुपया लग रहा था और बोटिंग की ड्यूरेशन आधा घंटा रहती है। टिकट छह बजे से पहले लेना रहता है। इसके अतिरिक्त अगर कोई व्यक्ति चलकदमी में रूचि रखता हो तो लेक के सहारे बने पैदल पथ को भी नाप सकता है। हमारा ऐसा कोई विचार नहीं था ,इसलिए कुछ देर यहां बैठकर लेक को निहारा और कुछ फोटो ले लिए। थोड़ी देर यहाँ बैठने के बाद हम दूसरी तरफ बने पार्क में आराम से बैठकर सुस्ताने के लिए चले गए। बढ़िया सी हरी घास और आसपास लगे छायादार पेड़ किसी यात्री को इससे ज्यादा क्या चाहिए। पर शाम का समय होने के कारण मच्छर जरूर मडरा रहे थे और उसके साथ साथ डेंगू का खतरा भी ,तो बार बार जगह जरूर बदलनी पड़ी। अब तक मारे गर्मी के खाने का तो नहीं परन्तु कुछ कोल्ड ड्रिंक का मन जरूर हो गया था। सुखना लेक के पास बने इस पार्क में तो खाने पीने का कुछ जुगाड़ नहो दिख रहा था तो हम इस पार्क से बाहर निकले और दूसरे गेट से सुखना बोटिंग काम्प्लेक्स के अंदर चले गए।यहाँ पहुँचते ही खाने चुंधियाँ गयी, बहुत चमक दमक वाली जगह थी ये ।इसे देखकर नैनीताल के फ्लैट्स की यादें ताजा हो गयी। यहाँ बच्चों के लिए छोटे मोटे झूले,पेड़ों के आसपास लगी चमकदार बिजली की मालायें, कई सारी खाने की दुकाने और इसके अलावा ढेर सारे लोग। कुल मिलाकर मेले का सा माहौल था इस जगह पर ।एक ठीकठाक सी दुकान में खाने का आर्डर देने गए तो मन डोसे पर जा के अटक गया,क्या करें साउथ इंडिया का असर नार्थ जा के भी पीछा नहीं छोड़ता और इसके साथ के लिए मंगवायी पंजाब की शान लस्सी। जब तक खाना आता तब खुले में लगी कुर्सी मेज में से एक हमने अपने लिए भी छाँट ली और बैठकर चमक दमक निहारने लगे ।इतने में अपना डोसा आ ही गया और इतना करते करते साढ़े आठ बज गया और हम बस अड्डे की तरफ चल पड़े।अगली पोस्ट में देखते हैं वापस आते समय हमने चंडीगढ़ में क्या क्या देखा,तब तक के लिए आज्ञा दीजिये।
यात्रा के दौरान लिए गए चित्र-
चंडीगढ़ की साफ़ सुथरी व्यवस्थित और हरी भरी सड़क |
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सुखना लेक में बोटिंग करते लोग और पार्श्व में दिखती पहाड़ियां |
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बोट हाउस की तरफ दिखता फाउंटेन |
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लेक पर जाने के लिए बनी सीढियाँ ,क्या हुआ सूर्यास्त के समय तक नहीं पहुंचे ,चन्द्रमा के दर्शन तो हो ही गए |
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सुखना लेक पार्क |
बहुत सुंदर तरीके से चंडीगढ़ शहर और सुखना लेक से परिचय कराया है आपने इस लेख में। तस्वीरें भी बोलती हैं।
ReplyDeleteबाहय बहुत धन्यवाद आपका
DeleteThanks for refreshing our family trip to chandigarh.
ReplyDeletehttp://maheshndivya.blogspot.in/2014/04/chandigarh-first-planned-city-of-india.html
सुंदर ब्लॉग.
ReplyDeleteचंडीगढ़ सुंदर और व्यवस्थित है. केंद्र शासित होने की वजह से शायद ताबड़तोड़ अतिक्रमण से बचा हुआ है.
२. इससे पहले नई दिल्ली भी सुंदर तरीके से बसाया गया था १९१० के आसपास. कनाट प्लेस और इंडिया गेट सुंदर हैं.
३. और पहले की बात करें तो जयपुर का पिंक सिटी भाग भी सुंदर और वास्तु के अनुसार १७९० में बसाया गया था.
४. केरल का शहर त्रिचुर भी १५० साल पहले बसा योजनाबद्ध सुंदर शहर है.
दिल्ली मुझे कभी व्यवस्थित नहीं लगा,और अभी तक जयपुर और त्रिचूर जाने का अवसर नहीं मिला है।मिलने पर जरूर बताउंगी कि कैसा अनुभव रहा
Deleteचंडीगढ़ की सुन्दरता अब वह नहीं रही जो पहले थी. भीडभाड, बढ़ता हुआ ट्रेफिक आदि ने शहर का रूप बिलकुल बदल दिया है...बहुत रोचक आलेख...
ReplyDeleteसमय के साथ बदलाव आ ही जाता है,शायद पहले और अच्छा रहा हो ,धन्यवाद आपका
DeleteIt is a beautiful city. I had been there long time back.
ReplyDeleteYeah,definatly it is a beautiful city
Deleteचंडीगढ़ शहर की जितनी तारीफ उसकी सफाई की होती है उतनी ही इसके लोगों की होती है ! गुटका , पान , सिगरेट , समाजिक रूप से , सार्वजनिक जगहों पर बिलकुल बंद ! आपने ओला कैब का अच्छा उपयोग किया उस वक्त ! जहाँ तक मैं जानता हूँ आप ऑफर्स का खूब यूज़ करते हैं ! चंडीगढ़ का बहुत शानदार दर्शन कराया आपने ! अलग अलग रंग ! मुझे भी जल्दी ही इस शहर को देखने का अवसर मिला !
ReplyDeleteवास्तव में चंडीगढ़ बहुत ही साफ़ सुथरी जगह है ।ऑफर्स का तो ऐसा है कि मौके देख के चौका लगा देते हैं
DeleteWhat a great experience!
ReplyDeleteThanks Mridula
Deleteधन्यवाद सचिन जी
ReplyDeleteचंडीगढ़ की यात्रा करवाने के लिए धन्यवाद | सुखना लेक फोटो बहुत अच्छे लगे | आपने बोटिंग काम्प्लेक्स के फोटो नहीं लगाये , शायद नहीं खीचे हो...
ReplyDeleteहाँ थोडा मौसम की मार पड रही थी और नयी जगह में बच्चे के पीछे ही भागते रहे गए,फ़ोटो वाला मामला साइड हो गया
DeleteThanks a lot for driving us to Chandigarh.
ReplyDeletehttp://crazytravelerblog.blogspot.in/
चंडीगढ़ शहर है ही ऐसा तारीफ के काबिल अक्सर जाना होता है हर्षिता जी आप चंडीगढ़ आए और बताया ही नहीं हरयन की राजधानी देखने लायक है जी
ReplyDeleteब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद।मुझे पता नहीं था कि आप चंडीगढ़ से हैं।
Deleteफोटो के बारे में कुछ नहीं कहूँगा वो आप माहिर ही है फोटो बहुत अच्छे लगे
ReplyDeleteथैंक्स फॉर योर काइंड वर्ड्स
Deleteचंडीगढ़ देखने की इच्छा प्रबल हो गई । शिमला टूर में एक दिन चंडीगढ़ का भी रखा था हमने पर थकान के कारण वो दिन गवा दिया और किसी और दिन देखेगे बोलकर दिल को सांत्वना दी
ReplyDeleteये ओला केप के बारे में हमको तो पता ही नहीं :)
कभी हिमाचल जाओ तो आते जाते जरूर देखना
Deleteचंडीगढ़ के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी। चंडीगढ़ देश एक मात्र सुनियोजित और सुव्यवस्थित शहर बन कर रह गया। यह देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्णं स्थिति है। भारत के हर शहर का विकास इसी तरह होना ही चाहिए। आखिर हम कब तक यूं ही लकीर पीटते रहेंंगें।
ReplyDeleteमैं आपके कहने से सौ प्रतिशत सहमत हूँ हर शहर का विकास इसी तर्ज पर होना चाहिए
Deleteमैं आपके कहने से सौ प्रतिशत सहमत हूँ हर शहर का विकास इसी तर्ज पर होना चाहिए
Deleteबढ़िया यात्रा ।
ReplyDeleteयात्रा में साथ निभाने के लिए धन्यवाद
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