नेक चंद द्वारा निर्मित रॉक गार्डन चंडीगढ़ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक माना जाता है,ये गैर क़ानूनी निर्माण किस प्रकार पर्यटक स्थल के रूप में अपनी जगह बना पाया इसके पीछे एक रोचक कहानी है। बात उस समय की है जब कार्बूजियर के दिशा निर्देशों के हिसाब से जवाहर लाल नेहरू के सपनो के शहर चंडीगढ़ का निर्माण हो रहा था,पर आश्चर्जनक बात ये थी कि रॉक गार्डन उस योजना का हिस्सा नहीं था। अब सवाल ये उठता है अगर चंडीगढ़ के निर्माता ने इस गार्डन को नहीं बनाया तो आखिर किसने बनाया इस किले को, इस गार्डन को या फिर कहें कबाड़ से बने इस महल को।समझ नहीं आता क्या कहूँ इस जगह के बारे में जिसका हर कौन अपनी जीवंतता और अपने निर्माणकर्ता की कारीगरी का मूक गवाह है। क्या नहीं है यहाँ झरने,पुलिया,पहाड़ और अन्य कलाकृतियां और कैसे हुआ होगा इनका निर्माण -
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रॉक गार्डन की कंदराएँ। |
ये बात सौलह आने खरी है कि जब -जब किसी जगह का विकास होता है तो उसके पुराने समय की सम्पदाओं को विलुप्त होना ही पड़ता है।ठीक यही चंडीगढ़ के साथ भी हुआ था,जहाँ एक तरफ तो एक नये आधुनिक शहर का जन्म हो रहा था,वहीँ इसके विपरीत कई गावों को अकारण खाली कराया गया,कई भवन और कई पुरानी इमारतों को तोडा गया। इस तरह से पुराने भवनों और इमारतों का बहुत सारा कचरा भी जमा होने लगा। फिर समस्या ये आने लगी कि अचानक से इतना कचरा कहाँ डाला जाये। अब ये कचरा को कैपीटोल काम्प्लेक्स में स्थित स्टोर में जमा किया जाने लगा। PWD विभाग में कार्यरत नेक चन्द्र जी के कन्धों पर इस स्टोर की देख रेख का दारोमदार था।जैसे-जैसे कचरे का साम्राज्य बढ़ता गया ये स्टोर की देखभाल करने वाला अपनी कल्पना के लोक में खोने लगा। दिन भर कभी वो टूटी टाइल्स को देखते तो कभी वाशबेसिन के टुकड़ों को तो और कभी अन्य अवशेषों को।इस बात का अन्दाजा किसी को भी नहीं था कि वो किन विचारों में मशगूल रहते थे। धीरे धीरे जब वो अपने कल्पनालोक में बहुत आगे बढ़ गए तो वो दिन में स्टोर की देखभाल करने लगे और रात के अंधकार में गायब रहने लगे। धीरे धीरे दिन ,महीने और साल दर साल गुजरने लगे और नेक चन्द्र की कल्पना की दुनिया इस धरती में अवतरित होने लगी। दस साल के लम्बे अंतराल तक जब वो इस प्रकार रातों को गायब रहने लगे तो लोगों को शक हुआ कि ये कहाँ रहते हैं और क्या करते हैं । तब एक सरकारी अफसर ने आख़िरकार खोजबीन कर के पता लगा ही लिया नेक चंद के इस अदभुत कारनामे का और उसने अवैध निर्माण की शिकायत लगा डाली। पर चंडीगढ़ की जनता ने इस महान व्यक्ति के कार्य को ना केवल सराहा और इसे चंडीगढ़ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सूची में भी ला दिया। इस तरह से रॉक गार्डन दुनिया की नजरों के सामने आया। चोरी छुपे तो यहाँ जीवंत सी लगती काल्पनिक मूर्तियां बनाई गयी थी उसके बाद तो ये निर्माण बढ़ता ही चला गया। गर्मियों के दिनों में सुबह सात बजे से शाम के साथ बजे तक और सर्दियों में शाम के छह बजे तक ये गार्डन प्रयटकों के लिए हफ्ते के सातों दिन पर्यटकों के लिए खुला रहता है बीस रुपया मात्र की एंट्री फीस के साथ।
हम म्यूजियम काम्प्लेक्स से निकल कर एक बार फिर अपनी डबल डेकर में सवार हो गए और इसने हमें करीब आधे घंटे में रॉक गार्डन छोड़ दिया। सरदार जी का कहना था कि डेढ़ घंटे में आ जाओ तो वो रुकेंगे हमारे लिए, इसलिए रॉक गार्डन को इत्मीनान से देखने का सोच कर हमने सरदार जी को बाय बाय बोल दिया। बाहर निकले तो सामने से तीन पत्थरों का एक ढेर दिखाई पड़ा,पास जा के देखा इन पर तो गार्डन का नाम अंकित है। इसे देखने के बाद टिकटघर पर लगी विशालकाय पंक्ति में हम भी शामिल हो गए। आगे जा के एक बहुत ही कलात्मक सा गेट दिखा तो हम उसे रॉक गार्डन का गेट समझने की भूल कर बैठे,अंदर जा के ज्ञात हुआ कि ये तो कैफ़ेटेरिया था। फिर अपनी भूल सुधार कर रॉक गार्डन के मुख्य गेट पर गए।क्या करें बनाया ही ऐसा गया है तो कोई भी भूल कर बैठेगा। अंदर गए तो कई संकरे रास्तों,मिट्टी के घड़ों से,पुरानी चुडियों, पुराने टाइल्स आदि से बनई विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों ने हमारा दिलखोल कर स्वागत किया। कई बार यहाँ घूमते हुए ये लग रहा था शायद हम किसी किले में घूम रहें पर दूसरे ही पल किसी और वस्तु को देखकर ये भ्रम टूट जा रहा था।कल कल बहते पानी के झरने कुछ अलग ही अहसास दिला रहे थे। कुल मिलाकर कबाड़ के ढेर से बने नेक चन्द्र के सपनो के इस गार्डन में आधुनिकता के साथ पुरानेपन दोनों का ही समवेश लग रहा था। घूमते घूमते काफी तेज गर्मी लग गयी तो एक गुफा के आकर की जगह में कुछ देर सुस्त लिए। उसके बाद थोड़ा और आकृतियों को देखने के बाद हम यहाँ से बहार निकालकर पुनः उस कैफ़ेटेरिया में चले गए। गजब के आलू के पराठे मिले थे वहां पर वो भी ठीकठाक रेट पर। खाने पीने के बाद अब वापसी का सोचना था तो सरदार जी के बताये मार्ग का अनुसरण कर के हम बस द्वारा सेक्टर सत्रह के बस अड्डे पहुंचे और क्लॉक रूम जा कर अपना सामान निकलवाया। अब इधर से अगली मंजिल थी एयरपोर्ट की तो एक बस और पकडी जिसने एयरपोर्ट के पास में उत्तर दिया। यहाँ से दस मिनट का पैदल रास्ता तय कर के एयरपोर्ट और उसके बाद वापस बैंगलोर। फिर मिलेंगे जल्द ही किसी नयी जगह पर,तब तक आप रॉक गार्डन के दर्शन करिये-
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प्रवेश द्वार के समीप के पत्थर जिन पर रॉक गार्डन का नाम लिखा है। |
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इतिहास एक नजर में |
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एक छोटी सी नहर के ऊपर पुलिया। |
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झरना |
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ये संकरे से रास्ते |
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तुरंत बाद चौड़ा रास्ता आ गया। |
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कुछ दुमंजिले से भवनों की आकृति। |
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एक झरोखा सा। |
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ये कल कल बहता पानी जाने कितने लोगों ने यहाँ फोटो खिंचवायी होंगी। |
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नेक चंद की सेना। |
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सेना का अन्य रूप |
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सेना का अन्य रूप |
एक बार बचपन में यहां पर गया था।, बढ़िया हर्षिता जी।
ReplyDeleteतब से अब तक काफी अंतर आ गया होगा अभी एक हिस्सा और भी बन रहा था। एक बार फिर जाइये
Deleteबहुत अच्छी जानकारी दी है आपने हर्षिता जी।तस्वीरें भी सभी सुंदर हैं। यहाँ दो बार गया हूँ लेकिन काफी समय हो गया है ।अब आपकी पोस्ट पढ़कर परिवार के साथ जाने की इच्छा है।
ReplyDeleteजी जरूर,एक बार फिर जाइये बच्चों के लिए तो बढ़िया जगह है
Deleteहर्षा पहली बार चंडीगढ़ की असली कहानी सुनी है। हमेशा तो मैंने सिर्फ मुर्तिया ही देखी थी और ये जानती थी की नेकचन्द नाम के आदमी ने रॉक गर्दन बनाया।पर तुमने खूब लिखा है अपने सीधेसाधे शब्दों में
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद पढ़ने के लिए
DeleteI have been many times and this is my fev place in chandigarh.very well written n beautiful pics.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर घुमक्कड़ी और यात्रा विवरण। नेक चन्द जी के बारे में अच्छी जानकारी मिली। धन्यवाद हर्षिता जी।
ReplyDeleteThe place looks beautiful and nice details.
ReplyDeleteगज़ब की दुनिया बनाई है नेकचन्द जी ने ! उनकी कल्पनाशीलता को सलाम किया जाना चाहिए ! उनकी सेना के अलग अलग रूप बहुत ही सुन्दर लग रहे हैं ! दो मंजिला झरोखा बहुत ही विशिष्ट है ! इस बार आपने यात्रा वर्णन पूरे मनोयोग से लिखा है और उसी का परिणाम है कि पढ़ने में मन लगा रहता है ! वर्णन बांधे रखता है पूरे समय ! चित्र सच में कबीले तारीफ हैं ! सुन्दर जगह का सुन्दर वर्णन !!
ReplyDeleteजो पिछली पोस्ट को लिखने के लिए मेरे हाथ आगे नहीं बढ़ रहे थे या यूँ कहिये कि मेरा लिखने का मन ही नहीं था उसकी भरपाई इस पोस्ट में करना बहुत आवश्यक था
Deleteहर्षिता जी... किसी व्यकित की मेहनत और सपना कैसा रंग लाता है इसका जीता जागता उदाहरन है नेकचंद का रॉक गार्डन |
ReplyDeleteआपने काफी अच्छे से वर्णन किया और फोटो बहुत अच्छे लगे |
धन्यवाद
नेकचंद जी के नेक काम को सलाम !
ReplyDeleteऔर आपने हमे भी रॉक गॉर्डन घुमा दिया. बढ़िया पोस्ट
मुझे आज पता चला की रॉक गार्डन का मतलब क्या होता है।
ReplyDeleteBeautiful rock garden. Very well created and maintained.
ReplyDeleteअद्भुत....
ReplyDeleteनयी जानकारी के साथ रॉक गार्डन और भी ज्यादा मनमोहक लगा । इससे पहले नेकचंद जी को बस कोई कलाकार ही समझता था । धन्यवाद् नयी जानकारी के लिए...सुन्दर चित्रों के लिए ।
धन्यवाद प्रदीप जी ब्लॉग पर आने के लिए।
ReplyDelete"नेक चन्द्र द्वारा निर्मित" मैडम जी आज तो students गलतियाँ पकड़ रहें हैं लेक्चरर मैडम की, कभी कभी स्टूडेंट्स का भी नम्बर आना चाहिए, "चन्द्र" को "चंद" कीजिये. with due respect ;)
ReplyDeleteसचमुच पहली बार जब मैं गया तो बड़े अनमने से मन से गया था, लेकिन देखने के बाद भावना ही बदल गई रॉक गार्डन और नेकचंद जी के बारे में...
अभी सुधार देते हैं जी
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