Thursday 1 October 2015

Radhnagar Beach,Havelock

                       काला पत्थर से होटल पहुँचने के बाद करीब आधा घंटा ही हुआ होगा कि हमारा छोटा पार्टनर जो रस्ते में ही सो गया था उठ गया ।अब तो आराम के बारे में सोचना भी दिवा स्वपन देखने जैसा था ।दस पंद्रह मिनट में ही वो बाहर निकलने के लिए तैयार होने लगी। हम भी कमरे में बोर ही हो रहे थे इसलिए सोचा हमारा रिसोर्ट जो कि विजयनगर में स्थित था,उसके पिछवाड़े में जो बीच दिख रहा है थोड़ी देर वहीँ चल पड़ते हैं।होटल भी बहुत अच्छे से बना हुआ था,दोनों किनारों पर कमरे बने थे और उनके मध्य पगडण्डी नुमा रास्ता। साथ में लगे हुए पेड़ पोधे और फूल,हालाँकि नारियल के पेड़ों की संख्या बहुतायत में थी ।   
तरीके से बसा हुआ रिसोर्ट 

                              कमरे से निकल कर बीच की तरफ बढ़ ही रहे थे तो एक झोपड़ीनुमा स्थल दिखा बैठने के लिए,कुछ देर वहीँ बैठ गए ।फिर दो नारियल के पेड़ों से बंधे कई सारे नीले रंग के हैमक के के दर्शन हुए ।देख के थोडा अलग सा ही लगा क्योंकि अब तक तो सफ़ेद रंग के हैमक ही देखे थे ,चलिए रंग का क्या काटना थोड़ी देर उसमे भी जोर आजमाइश करने का सोचा । बहुत सारे प्रयासों के बाद फाइनली बैलेंस बन ही गया।इसके बाद घूमते फिरते हम बीच तक पहुँच ही गए।वैसे बीच बहुत ज्यादा आकर्षक नहीं लगा पर यहाँ पर बैठने के लिए बहुत बढ़िया अरेंजमेंट किया गया है यहाँ बैठकर के समुद्री लहरें देखना अच्छा लग रहा था । बिना किसी भीड़भाड़ वाले इस बीच को प्राइवेट बीच भी कह सकते हैं ।
झोपड़ीनुमा सिट आउट 
नीले रंग का हैमक और  पेड़ों के पीछे दिखता नीला समुद्र 
                    इसके  बाद हम अपने सफ़र के दो अन्य साथी जो अबतक विश्राम कर रहे थे उनके कमरे में चले गए। वहां जा के हम लोगों ने चाय और छोटे पार्टनर ने नाश्ता किया। अब तक राधानगर के लिए निकलने का समय यानिकी तीन बजने ही वाला था तो हम अपना जरूरी सामान बैग में रखकर के चलने के लिये तैयार हो गए। हमारी गाड़ी के मालिक निरंजन जी भी समय से आ गए थे। राधानगर बीच हमारे होटल से तेरह किलोमीटर की दूरी पर था और शहर के अंदरूनी किनारे पर होने के कारण यहाँ पर सड़क उतनी अच्छी नहीं थी। वहां पहुँचने के बाद सबसे पहले नजर पड़ी यहाँ के अर्ध्वत्तार आकर में फैले विशालकाय बीच की तरफ। इसी विशालता के कारण ही राधानगर बीच को एशिया के सर्वोच्च बीचों में से एक माना जाता है।शायद काला पत्थर बीच को देखने के और राधानगर के विश्व प्रसिद्ध होने के कारण इस समुद्री छोर  हमारी अपेक्षाएं बहुत बढ़ गयी थी, यहाँ सबकुछ देखने को मिला विशाल सा रेतीला किनारा जो कि बहुत दूर तक फैला हुआ प्रतीत हो रहा था, हरे भरे जंगल और रेत से जुड़े हुए हरे मैंग्रोव के वृक्ष जिन्हे देखने से ऐसा लग रहा था कि वो समुद्र  की भव्यता को देखकर उसे ही आसमान मान कर ,समुद्र की तरफ बढ़ रहे हों। जी हाँ ये पेड़ ऊंचाई में बढ़ना छोड़कर भूमि के समानान्तर ही बढे चले जाते हैं जैसे मानो समुद्र में मिल जाना चाहते हों। लेकिन पानी की जिस जिस निलिमा के लिए अंडमान को जाना जाता है वो नजर नही आई। ये भी सम्भव है कि शाम का समय होने के कारण ऐसा हुआ हो, ऐसे ही तो कोई जगह इतनी प्रसिद्ध नहीं हो जाती।यद्धपि यहाँ की भव्य विशालता के आगे कोई समुद्री किनारा इसके आगे नहीं टिक सकता पर आकार में बहुत छोटा होने के बाद भी अपने आकर्षक रंगों की वजह से काला पत्थर भी किसी से कम नहीं हैं।  
        यहाँ पर समुद्री लहरे बहुत ऊँची ऊँची उठती है,सो लहरों के साथ तैरने के काफी अच्छी जगह है। पर शाम का समय होने के कारण और समुद्री लहरों के बढ़ते वेग तो देखते हुए कई सारे सुरक्षा गार्ड भी यहाँ घूम रहे थे। भीड़भाड़ से भरा होने के कारण यहाँ हर तरह के लोग दिखे। कुछ ऐसे थे जो पानी से बाहर आने का मोह नहीं छोड़ पा रहे थे तो कुछ अपने नए-नवेले जीवन साथी के साथ बैठकर रेत  के घर बनाते हुए सुखद भविष्य के सपने देख रहे थे। कुछ पेड़ों की छावं में बैठकर लहरों का आना और जाना देख रहे थे। कई ऐसे थे जो बच्चों  के साथ फुटबॉल खेल रहे थे और कुछ बैडमिंटन के मजे ले रहे थे। उम्र के हर पड़ाव के लोग यहाँ दिखे जो अपनी उम्र के हिसाब से ही अपना मनोरंजन कर कर रहे थे। हमारे बुजुर्ग साथियों का मन भी अपनी उम्र  के अनुसार यंहा पर लगे शिव मंदिर के बोर्ड को देखकर वहां जाने को बैचेन हो गया तो हम भी उनके साथ हो लिए। जब तक दर्शन कर के वापस आये तब तक सूर्यास्त का समय हो गया। पर यहाँ शायद सूर्य देव हमसे कुछ रुष्ट थे और बादलों के पीछे जा के छुप गए,उन्होंने हमें अपने लाल नारंगी रंगों के दर्शन से वंचित कर दिया। सूर्यास्त होते ही हल्का हल्का अँधेरा होने लगा और बीच से बाहर निकलने तक पूरा अँधेरा हो ही गया। फ़ोन निकाल के निरंजन जी को बुलाने का सोचा तो पता लगा वोडाफ़ोन,बीएसनल दोनों नेटवर्क से बाहर। अब संपर्क का कोई साधन नहीं था। इधर उधर ,आगे पीछे घूम के खोजना चाहा तो भी कुछ पता नहीं लग पाया। इतना करते करते लगभग सब लोग ही चले गए। उतने में एक दुकान वाला बोला की आप मेरी दुकान के बहार बैठ जाओ, अंडमान बहुत सुरक्षित जगह है,यहाँ किसी का बाल भी बांका नहीं होता। सोचा उसी सज्जन के मोबाइल से फ़ोन कर के बुला लेते हैं तो पता लगा कि उनके पास फ़ोन नहीं है, फिर एक दो और दुकान वालों से बात कर के उन्होंने किसी के मोबाइल से फ़ोन करवाके निरंजन जी को बुला ही दिया और हम ख़ुशी खुशी सही सलामत होटल पहुँच गए। अब बड़ा प्रश्न ये था कि भोजन का क्या होगा,क्यूंकि एक तो हम शाकाहारी और उस पे एक आदमी के लिए सस्वास्थ को देखते हुए रोटी खाना जरूरी ,तो एक बार फिर नालाज किंगडम से हमने निरंजन जी को भेज के खाना मंगवाया। उसके बाद पता लगा की होटल वाले भी आर्डर देने पर रोटी बना देते। चलिए कोई नहीं खाने से मतलब कहीं से भी मिले। 













                             खाना खाने के बाद एक बार अगले दिन के कार्यक्रम में विचार करना था,अगला दिन स्कूबा डाइविंग के लिए जाना था,पहले मैं इसके लिए तैयार नहीं थी, फिर आपस में बात कर के मैं भी तैयार हो गयी। अगले दिन सुबह सात बजे जाना था तो जल्दी जल्दी सो गए। अगले पोस्ट में मिलते हैं इस अनुभव के साथ कि कैसा लगता है पानी के अंदर जा के। तब तक के लिए  आज्ञा दीजिये और इन लहरों के साथ अठखेलियां खेलिये-

अंडमान का सफर एक नजर में -



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