Monday 12 October 2015

देखिये कैसे मनाया जाता है सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में दुर्गा महोत्सव

           सांस्कृतिक नगरी के नाम से विख्यात अल्मोडा  देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में स्थित एक पहाड़ी शहर है ।अपने आसपास के अन्य प्रसिद्ध जगहों नैनीताल शिमला मसूरी की तरह से अंग्रेजों द्वारा नहीं वरन उससे भी पहले कत्यूरी शाशको के द्वारा बसाया गया है।ये शहर किस तरह बसा इस विषय में एक लोककथा प्रचलित है।करीब छ सौ साल पहले कुमाऊं का एक राजा शिकार करने को गया था ।चलते चलते एक घने जंगल में उसे एक खरगोश दिखा और अचानक वो चीते में परिवर्तित हो गया।राजा उसका पीछा करने को आगे बढ़ा और कुछ दूर जा कर के वो चीता गायब हो गया।राजा को कुछ समझ नहीं आया और उसमे वापस आ कर के सभा बुलाई।सभी विद्वानों ने मिलकर ये निष्कर्ष निकाला कि इस जगह पर एक शहर बसाया जाना चाहिये क्योंकि चीते मुख्यतः उस जगह से भागते हैं जहाँ पर बडी संख्या में मनुष्य बसने वाले हों।इस तरह से लगभग छ सौ साल पहले अल्मोड़ा शहर का निर्माण प्रारम्भ हुआ।इसके बाद सन् पंद्रह सौ सड़सठ में चन्द राजाओं ने अपनी राजधानी चम्पावत से हटा कर अल्मोडा कर ली थी।यहाँ पर आज भी दो पुरानी इमारते हैं जो पहले मल्ला महल और तल्ला महल के नाम से जाने जाते थे और अब वहाँ कलेक्ट्रेट और जिला अस्पताल चलते हैं।
           पर्यटको के लिए घोड़े की पीठ के आकार में बसे अल्मोड़ा आने के कई रास्ते हैं,यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जो कि नई दिल्ली और लखनऊ और बरेली से भली भांति जुडी हुई है।काठगोदाम से आगे आने के लिए बस और शेयर्ड टेक्सी दिनभर चलती हैं।ये तो था अल्मोड़ा शहर का एक सूक्ष्म परिचय।जैसे ही हम अल्मोड़ा की सीमा में प्रवेश करते हैं,वैसे ही एक बड़े से प्रवेश द्वार में लिखा हुआ दिखता है सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा आपका स्वागत करती है।आखिर ऐसा क्या है यहाँ जिस कारण इसे सांस्कृतिक नगरी के नाम से जाना जाता है।इस नाम के पीछे कई कारण है,एक तो ये कि इसे मंदिरों के शहर के नाम से जाना जाता है,दूसरा ये कि यहाँ पर समय समय पर लगने वाले मेले,तीसरा ये कि यहाँ है त्यौहार मनाने का ढंग बहुत ही उत्कृष्ट और समृद्ध है। इस वर्ष हमे अक्टूबर के महीने में नवरात्रि के दिनों में अल्मोड़ा आने का सुअवसर प्राप्त हुआ है,इन दिनों यहाँ बहुत रौनक रहती है और मौसम भी कभी सुनहरी धूप वाला तो कभी कुहरे से भरा हुआ।एक आम सड़क से भी कुछ इस तरह के दृश्य इन दिनों आसानी से दिख जाते हैं -


सूर्यास्त का एक दृश्य 
                   आजतक आप सभी ने बंगाल में होने वाली दुर्गा पूजा के बारे में सुना होगा, आज आपको अल्मोड़ा में शारदीय नवरात्रियों के दौरान होने वाले दशहरा महोत्सव के बारे में बताते हैं। दशहरा महोत्सव के दौरान पूरे नौ दिन तक रामलीला मंचन,रावण परिवार के सदस्यों के पुतले निर्माण के साथ साथ दुर्गा पूजन भी होता है।प्रथम नवरात्री के दिन अल्मोड़ा में जगह जगह शक्ति के विभिन्न स्वरूपों की स्थापना की जाती है और वहां पंडाल लगा कर दिनभर भजन और रात में जगराते की व्यवस्था होती है।इन दिनों शहर की सुंदरता देखते ही बनती है।सन् उन्नीस सौ इक्यासी से यहाँ के गंगोला मोहल्ले में देवी की स्थापना से इस महोत्सव की शुरुआत हुई थी,जो इतने सैलून बात तक भी ना केवल  बतस्तूर जारी है वरन इसका स्वरूप बदल गया और प्रतिमा बनाने वाली जगहों में बढ़ोत्तरी हो गयी।मैने अपनी याददश्त में अल्मोड़ा में तीन जगह गंगोला मोहल्ला,नंदा देवी और राजपुर मोहल्ले में मूर्तियों को बनते और स्थापित होते देखा है। पिछले वर्ष से लक्ष्मेश्वर मोहल्ले में भी देवी स्थापित होने लगी है।इसके अतिरिक्त अब तो खत्याड़ी में भी मूर्ति स्थापना होने लगी है मूर्तियों के निर्माण से ले के भजन एवं पंडाल निर्माण तक यहाँ के स्थानीय लोगों का उत्साह देखते ही बनता है,और देवी के अलग अलग स्वरूपों के श्रृंगार को सजीव रूप देने के लिए ये लोग अपना सबकुछ दावं पर लगा देते है और दशहरे के दिन पुतलों के साथ साथ उनका दमन करती हुई सकती स्वरूपा माँ के विभिन्न रूप भी पूरे शहर की परिक्रमा करते हुए नगर वासियो को अपने दर्शन देती है।इसके बाद अगले वर्ष फिर आने के वादे के साथ  कोसी नदी में इनका विसर्जन किया जाता है।इस महोत्सव की भव्यता को देखते हुए लगता है अगर ये कहा जाये कि अल्मोडा को सांस्कृतिक नगरी का पर्याय बनाने में इस महोत्सव का भी भरपूर योगदान है तो कोई अतिश्योकति नहीं होगी।
       पहली नवरात्री के दिन हम अपने घर से नजदीक लक्ष्मेश्वर  में स्थापित देवी के दर्शन के लिए गए,वहां पर सजे पंडाल में दिन भर महिलाएं भजन करने वाली थी और रात को लड़के लोग।देखिये यहाँ पर स्थापित देवी माँ का स्वरूप -
       
देवी माँ लक्ष्मेश्वर 
                     यहाँ पर साम्प्रदायिक सदभाव का बहुत बड़ा उदहारण देखने को मिला जब माँ की धुन में मग्न मतवाले अल्मोड़ा नगर के उभरते हुए कलाकार नाजिम की लय पर झूम रहे थे। 
भजन गाते नाजिम 
भक्ति में मग्न भक्त 

              इतनी देर में हमारा माँ से आज्ञा लेने का समय भी हो गया था।रात के समय के लिए यहाँ  हर जगह बिजली  की मालाओं की व्यवस्था की गयी थी,पर दिन के समय दर्शन के लिए जाने की वजह से रात की जगमगाहट का कोई फ़ोटो नहीं हो पाया।वापस आते समय हम लिंक रोड से नीचे उतर गए और यहाँ के एक पुराने स्कूल के फील्ड चढ़कर वापस आये।यहाँ पर रास्ते में एक आकर्षक एवं  पुरानी ईमारत के दर्शन हुए जो कुछ ऐसी दिखती थी -

         नवरात्रि के दूसरे दिन यानिकि आज हम बाजार की तरफ निकले,आज का हमारा लक्ष्य था नंदा देवी बाजार एवं मल्ली बाजार में स्थापित देवी माँ के स्वरूपों के दर्शन करना।अब हम अल्मोड़ा की खासीयत पाटाल बाजार होते हुए लाला बाजार,नंदा देवी पहुंचे।यहाँ पर शेर पर सवार देवी माँ लाल और हरे रंग का लहंगा चुनरी ओढ़ कर एक गुफानुमा जगह पर विराजमान थी।  
देवी माँ नंदा देवी 
               ऐसा माना जाता है कि मातारानी  को शेर की सवारी बहुत भाती है,देखिये कितना जीवन्त है देवी माँ का वाहन-
मईया शेर की सवारी प्यारी लगती, द्वारे पे ज्योतिर्माला जगती। 
                माता के दर्शन कर के बाहर निकल ही रहे थे तो एक बडे से बैनर में लिखा दिखा लंकाधिपति रावण दरबार लाला बाजार में  आपका  स्वागत है,क्योंकि ये इलाका इन दिनों रावण की नगरी माना जाता है। यहाँ पर लंकेश का पुतला जो बनता है,देखिये स्वागत नोट -

                जैसे ही यहाँ से बाहर निकले के आगे बढ़ ही रहे थे और लाला बाजार भी क्रॉस नहीं कर पाये थे तो देखा बिना अँधेरा हुए ही दुकानों में लगी लाइट जगमगाने लगी है।


      
        अब हम लाला बाजार से  मल्ली  बाजार की तरफ बढे।यहाँ पर माता रानी पीले भूरे रंग के शेर पर नीले रंग की साडी पहन कर विराजमान थी।इन दो दिनों में देवी माँ के बड़े ही भव्य रूपों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया था।अब तक शाम का समय भी हो गया था और बाजार बिजली की मालाओं से जगमगाने लगा।देखिये एक झलक-

माँ मल्ली बाजार 
मल्ली बाजार 
              यहाँ से घर वापस जाते समय एक बार फिर लाला बाजार से हो के जाने की सोची तो लाला बाजार को भी चमक दमक से दमकता हुआ ही पाया और एक बार फिर माता के दर्शन कर के घर को चल पड़े।
सजी धजी लाला बाजार
              पूरी नवरात्रियों भर अल्मोड़ा के बाजार इसी तरह चमक दमक और भक्तिपूर्ण वातावरण से सुसज्जित रहते हैं और फिर दशहरे के दिन पुतलों के साथ साथ पूरे शहर में देवी माँ के दर्शन कराने के बाद उनसे अगले वर्ष फिर आने का वादा लेकर पूरे सम्मान के साथ कोसी नदी में विसर्जन किया जाता है ।कुछ ऐसे मनाया जाता है अल्मोड़ा में दुर्गा महोस्त्सव ।इसके साथ साथ पूरे नौ दिन तक रामायण की पूरी कथा का रामलीला के रूप में मंचन होता है और दशहरे के दिन दहन के लिए रावण परिवार के सभी सदस्यों के पुतले बनाये जाते है।कैसा लगा आपलोगों को सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा का दुर्गा पूजन जरूर बताइयेगा और सभी फोटो मोबाइल से होने के कारण उतनी अच्छी नहीं आ पायी जिसके लिए माफ़ी चाहूंगी। 
अल्मोड़ा दशहरा महोत्सव -
देखिये कैसे मनाया जाता है सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में दुर्गा महोत्सव
 अल्मोड़ा की सांस्कृतिक विरासत है रामलीला मंचन और रावण परिवार के पुतलों का दहन

5 comments:

  1. अति उत्तम..... इस नये स्वरूप में अल्मोड़ा का विवरण जानकर बहुत अच्छा लगा |

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  2. अल्मोड़ा स्वयं में ही इतना सुन्दर है अगर इसे त्यौहार के मौसम में और भी सजा दिया जाये तो सोने पे सुहागा वाली कहावत चरितार्थ होगी ! फोटो एकदम शानदार , दिल को प्रसन्न करने वाले ! माँ नंदा देवी का चित्र बहुत ही खूबसूरत लग रहा है !!

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  3. सुन्दर, अपने पहाड़ों की हर बात ही निराली है।

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    1. सच में पहाड़ों की हर बात निराली है

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  4. सुंदर सारगर्भित प्रस्तुति।

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