विशाखा संग्रहालय के दर्शन के बाद एक बार फिर से हम गाड़ी में बैठ गये, बैठ तो हम गये लेकिन ड्राइवर साहब से पूछने जैसा नहीं लगा तो बार बार ये गाना याद आने लगा 'हम किस गली जा रहे हैं, हम किस गली जा रहे हैं।' गाना गुनगुनाते गुनगुनाते शाम हो आयी तो इतना अंदाजा तो मुझे लग ही गया कि अब सिम्हाचलम जा पाना तो हमारे बस का नहीं है और किसी तरह उपस्थिति दर्ज करा भी दें तो वहाँ जाने तक अँधेरा अपने पूरे शबाब पर पहुँच जायेगा। इतने में वो भाई साहब बोले सिम्हाचल और आरके बीच दोनों में से एक ही हो पायेगा। जवाब में आरके बीच जाना तय था, इसलिये अब हम फिर से समंदर किनारे चलने लगे।
जहाँ तक मुझे समझ आया आर के बीच किसी जगह विशेष को ना कह कर एक लंबे स्ट्रेच को कहा गया है। सुनामी,हुडहुड और अन्य समुद्री तूफानो की निशानियाँ यहाँ सड़क पर समंदर के साथ साथ उजागर हो रही हैं। कितनी बढ़िया लगती है ये आती जाती हुयी लहरें जब शांत रूप में होती हैं लेकिन इनका रौद्र रुप उतना ही भयावह होता होगा!! सोच कर भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं।
इस राह पर चलते चलते एक बच्चे का स्टेच्यु के दर्शन हुए , उन महाराज से पूछा तो बोले बच्चो का पार्क है और उससे थोड़ा आगे जा के गाड़ी लगा दी और बोला यहाँ जा आओ। अरे वाह ,ये क्या!! ये तो मजा ही आ गया सबमरीन है यहाँ। सबमरीन में जाने का एक अवसर हम
न्यू यॉर्क के एयर एंड स्पेस म्यूजियम में खो चुके थे, भाग्य से दूसरा अवसर मिला है तो इसे किसी हालत में नहीं छोड़ेंगे। असल में वहाँ पर पनडुब्बी पानी के अंदर ही रखी हुयी थी और साथ में छोटा बच्चा होने के कारण हम उसमें जाने के योग्य नहीं थे।
अब सूर्य देव अस्तांचल की और अग्रसर हो रहे हैं और आसमान में अपनी जाते समय की किरणों से गजब लालिमा छिटका रहे हैं,ऐसे में एक फोटो तो बनता ही है। आसमान की लालिमा देख कर मुझे बॉर्डर पिक्चर का ये गाना "मैं खेतों पर बनी पगडंडियों पर तुम्हारा हाथ थामे चल रहा हूँ,है पिघला शाम के सूरज का सोना मगर मैं सिर्फ तुमको देखता हूँ"। अब ना तो खेत हैं और ना पगडंडियाँ है और तो और हाथ थामने वाले को भी इतनी फुर्सत है बस आसमान में सूरज ने अपना नारंगी सोना जरूर बिखेर रखा है। बॉर्डर मूवी की याद शायद इसलिये भी आई होगी क्योंकि अभी सबमरीन में जाना है और इसमें रहने वाले लोगों ने ऐसी कितनी ही शाम अकेले तन्हाई में गुजारी होंगी। कितनी बार शाम की रुमानियत देखकर उनका भी मन मचला होगा कि अपनी प्रेयसी का हाथ पकड़ कुछ कदम चल सके। सेना के इस त्याग के कारण आज हम सुरक्षित हो कर यहाँ घूम रहे हैं, एक सलाम तो बनता ही है अपने बहादुरों के लिये।
शाम की रुमानियत और सैनिकों के त्याग का अनुभव करने के बाद बारी है टिकट लेने की।पचास रुपया प्रति व्यक्ति और कैमरा का टिकट दे कर हम अंदर हो गये। फोटो खींचने के लिये अपना फ़ोन निकाला तो पता कि स्क्रीन महारानी क्रोधित हो चुकी हैं मतलब ना जाने किस बात पर इतना गुस्सा आ गया कि पूरा का पूरा चकनाचूर हो गयी। मेरा फ़ोन शहीद हो गया विशाखापट्नम आ के।
अब मन थोडा सा बुझ गया और बुझता भी क्यों नहीं बारह हजार का चूना जो लग गया है!! फिर भी आगे तो बढ़ना ही है। पनडुब्बी के अंदर जाने का रास्ता आ गया लेकिन पहले उजाले में बाहर नजर डाल देते हैं क्योंकि अभी सराज ढल गया तो अँधेरा जोर पकड़ जायेगा और फिर बाहर कुछ नहीं दिखने का। पनडुब्बी का सफर तो अंदर का है , थोड़े धुंधलके में भी हो जायेगा। पाँच दस मिनट इधर उधर करके वापस पनडुब्बी की और आने लगे तो गार्ड सीटी पे सीटी मारने लगा और बोला यहाँ से वापस नहीं आ सकते दूसरे रास्ते जाओ। अरे ये क्या!! अभी तो हम पनडुब्बी में गये ही नहीं और ये भगाने लगा। टिकट ले रखा है हम बिना देखे नहीं जायेंगे बोलते हुये हम पनडुब्बी के अंदर ले जाने वाली सीढ़ियों से होते हुये अंदर प्रवेश कर गये।
इस रामकहानी के बाद अब थोडा सा परिचय हो जाये इस पनडुब्बी का। कुरसुरा नाम के समुद्री वाहन का इस्तेमाल उन्नीस सौ इकहत्तर के भारत पाकिस्तान युद्द के समय किया गया था। पनडुब्बी के अंदर सैनिको के लिये खाने और सोने सब तरह की सुविधा होती है लेकिन छोटी छोटी जगह में इतने सारे लोगों का एडजस्टमेंट करना और बिना हवा के इतने लंबे लंबे समय तक रहना बहुत ही मुश्किल काम है। ये रेगुलर अंतराल पर समुद्री तक पर आ कर अपनी आवश्यकता के हिसाब से ऑक्ससीजन का संचय कर के फिर नीचे चली जाती हैं। ऑक्सीजन संचय में क्या कार्यप्रणाली इस्तेमाल होतो होगी ये तो मुझे भी ज्ञात नहीं है पर इसके अंदर रहना बहुत कठिन रहता होगा क्योंकि इसके अंदर काफी गर्मी रहती है ऐसा बता रहे हैं। इसका वो भाग जिसमे दुश्मन देश पर वार करने के लिये टॉरपीडो रखे जाते हैं अपेक्षाकृत ठंडा रहता होगा इस कारण से सैनिक कई बार वहाँ सोया करते होंगे। अभी भी इसमें कुछ टॉरपीडो मॉडल के रूप में रखे गये हैं। एक छोटी सी रसोई भी है इसके अंदर जिसमे प्रतीकात्मक रूप से एक शेफ खाना बनाता हुआ लग रहा है। इसके आगे सोने के लिये निर्धारित जगहें हैं जो कि ट्रेन की बर्थ के मुकाबले भी बहुत छोटी हैं और ये अपने पोस्ट ग्रेड के हिसाब से मिलती होंगी किसको थोडा बड़ी और किसी को थोडा छोटी। कितना स्ट्रगल करते हैं ये लोग हमारे लिये!! ऐसी जगहों पर जितना जाये जाये उतना कम है जितना करीब से इनके त्याग को समझा जाये उतना कम है!! कोटि कोटि धन्यवाद है इन सैनिको को मेरा जो, हमारी सुरक्षा के लिये देश की सीमाओं पर चौबीस घंटे ढाल बनकर खड़े हैं जिन्हें ना दिन रात की खबर है और ना ही मौसम के बदलने का फर्क, अगर है तो बस एक जज्बा और वो है देशभक्ति का।
अक्सर मं जरुरी बात करना भूलती हूँ और लास्ट में याद आता है, सोमवार के दिन को छोड़कर जगह सप्ताह के सभी दिन दोपहर दो बजे से शाम के साढ़े आठ बजे तक पर्यटकों के लिये रहता है। यहाँ से बाहर निकले तब तक बेटी को भूख लगने लगी और अब हम आर के बीच के अंतिम छोर पर चले गये क्योंकि खाने पीने की ठीक ठाक दुकाने वहीँ पर है।
चलिये देखते हैं एक सैनिक का पनडुब्बी के अंदर का सफर फोटो के माध्यम से-
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पनडुब्बी में जाने का रास्ता। |
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ये शाम का आलम। |
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बड़ी बड़ी इमारतों के पीछे छुपते सूर्य देव। |
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कुरसुरा सबमरीन। |
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अंदर की जटिल संरचना। |
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प्रतीकात्मक नौ सैनिक। |
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इतने सारे स्टेयरिंग, सोचो कितना कुछ कण्ट्रोल करना होता होगा!! |
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ऊपर हरे रंग के टॉरपीडो रखे हैं। |
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छोटू सा वाश बेसिन भी है यहाँ तो!! |
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खाना खाने की जगह। |
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ये हैं कंट्रोलर साहब। |
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सब खाना खाने बैठे हैं। |
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ये सोने के लिए बिस्तर लगे हैं। |
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एक नौ सैनिक सोया है इतनी सी जगह में। |
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ना जाने कितने ऑपरेटिंग सिस्टम हैं यहाँ !! |
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कुछ काम चल रहा है। |
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ये ही गार्ड था जो हमें भगा रहा था ! |
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सागर किनारे कुरसुरा सबमरीन। |
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Nice blog
ReplyDeleteवाह , हर्षिता जी !
ReplyDeleteआपके माध्यम से हम भी पनडुब्बी में नौसैनिकों के कठिन जीवन को जान पाए । 2009 में मैं भी विशाखापत्तनम गया था, तब मैंने सिंहचालम मंदिर के दर्शन किये, वहां मिलने वाले प्रसाद 'फुलिहारा' का भी स्वाद लिया । आर के बीच शाम को गया था, तो अँधेरे में बहुत कुछ नही देख पाया था । हालाँकि मैंने अपने जीवन में पहली बार समुद्र दर्शन यही किये थे, इसलिए ये यादगार रहा ।
आपको आभार 'दिल से'
वाह , हर्षिता जी !
ReplyDeleteआपके माध्यम से हम भी पनडुब्बी में नौसैनिकों के कठिन जीवन को जान पाए । 2009 में मैं भी विशाखापत्तनम गया था, तब मैंने सिंहचालम मंदिर के दर्शन किये, वहां मिलने वाले प्रसाद 'फुलिहारा' का भी स्वाद लिया । आर के बीच शाम को गया था, तो अँधेरे में बहुत कुछ नही देख पाया था । हालाँकि मैंने अपने जीवन में पहली बार समुद्र दर्शन यही किये थे, इसलिए ये यादगार रहा ।
आपको आभार 'दिल से'
कुरसुरा नाम के समुद्री वाहन का इस्तेमाल उन्नीस सौ इकहत्तर के भारत पाकिस्तान युद्द के समय किया गया था। पनडुब्बी के अंदर सैनिको के लिये खाने और सोने सब तरह की सुविधा होती है लेकिन छोटी छोटी जगह में इतने सारे लोगों का एडजस्टमेंट करना और बिना हवा के इतने लंबे लंबे समय तक रहना बहुत ही मुश्किल काम है। बढ़िया जानकारी साझा की है आपने ! न्यूयॉर्क में मिस हुआ तो यहां मिल गया ! अच्छा लगा लेकिन नाम कुछ अजीब सा है
ReplyDeleteहर्षिता जी आपका बहुत आभार... आपके द्वारा हम भी जान सके की पनडुब्बी अन्दर से कैसी होती है व सैनिको द्वारा बहुत कार्य करने होते है।
ReplyDeleteक्या ये असली पनडुब्बी है । वाह 👌दिल से 👍
ReplyDeleteइस submarine के और इसके 1971 के युद्ध के समय एक फ़िल्म बानी है जो अभी एक महीने पहले ही रिलीज़ हुई the ग़ाज़ी अटैक...वैसे बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteइस submarine के और इसके 1971 के युद्ध के समय एक फ़िल्म बानी है जो अभी एक महीने पहले ही रिलीज़ हुई the ग़ाज़ी अटैक...वैसे बढ़िया जानकारी
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