Saturday 4 February 2017

Rishikonda Beach and Kailshgiri Hill,Visakhapatnam

         चलिये हमारे साथ एक देश जिसके कण कण में श्रद्धा और भक्ति रची बसी हुयी है। शायद अब तक सब समझ ही गये होंगे कि मैं कहाँ की बात कर रही हूँ। जी हाँ इस यात्रा में आप हमारे साथ चल रहे हैं पुराने उत्कल मतलब आज का उड़ीसा। ये यात्रा हमारे लिये थोड़ा आश्चर्यजनक रही क्योंकि हम अभी तक उत्तराखंड के बाहर किसी मंदिर या तीर्थ स्थल के दर्शन के लिये नहीं पहुंचे हैं,और ना ही कभी जाने का कार्यक्रम बनाया।  हमारे यात्रा भ्रमण में प्राकृतिक स्थलों और समुद्री किनारों की अधिकता रही है। इसलिये  शायद भगवान जग्गनाथ ने ही हमें स्वयं दर्शन देने के लिये बुलाने की इच्छा रखी होगी और हम भी हो आतुर हो गये उनके धाम जाने को।
            ये तो कुछ ऐसा लगता है जैसे, भगवान जगन्नाथ जी ने  बैंगलोर-विशाखापटनम की ठीक ठाक रेट में फ्लाइट भेज दी हमारे लिये और उनका आदेश समझ कर बिना कुछ सोचे समझे हमने  बुक करा दी। यूँ कहिये कि बस हाथ मार दिया और 2015 की शुरुआत में 2017 की टिकट बुक करा डाली, टिकट कराते समय तो ये भी नहीं सोचा कि इससे जायेंगे कहाँ। अब आप भी कहेंगे लो जी हो कैसे अजूबे मुसाफिर है टिकट करा डाला और ये भी ना पता कि इससे जाना कहाँ है,लेकिन हम ऐसे ही हैं क्या करें !! समय का पहिया बहुत तेज चलता है और इस बार भी चला और इतनी जल्दी चला कि पता ही नहीं लगा कब इतना लम्बा समय गुजर गया। पता भी कैसे चलता जब बीच बीच में इधर उधर के चक्कर लगते रहे। इसी दौरान हमारे इस ट्रिप पर कई संकट के बादल भी आये लेकिन जब स्वयं जगन्नाथ जी ने अपने दर्शन देने की ठान रखी थी तो दर्शन तो हो के रहने थे और बहुत अच्छे से हुये।
             बड़ी अजीब सी बात है ना, टिकट करवायी विशाखापटनम की और बात कर रहे हैं उड़ीसा जाने की, अजी ये पहेली हम बाद में सुलझाएंगे। पहले विशाखापटनम जिसे शार्ट में विजाग बोलते हैं  है उससे तो जान पहचान करा दें। वैसे तो ये एक आधुनिक शहर है, तो वो ही  गाड़ियों की भागमभाग और लोगों की रेलमपेल लगी रहती है लेकिन इन सबके साथ इसके पास समुद्री तट और पहाड़ है, अजी पहाड़ के हलके फुल्के पहाड़ हैं!! बाकि समुद्री छोर के तो हम दीवाने हैं ही और क्यों ना हो, "सागर किनारे दिल ये पुकारे" सुन कर तो किसी का भी दिल मचल उठने को बेताब हो ही जाये। तो चलिये जान पहचान के बाद चलते हैं और इस शहर से मुलाकात भी करा देते हैं। 
यात्रा दिनांक-17 जनवरी 2017
             जब हमने टिकट कराया तब जो फ्लाइट मिली वो अति सुबह सवेरे की थी, इसका मतलब ये हुआ घर से तीन बजे निकल पडो लेकिन जाने के दिन तक कोहरे की वजह से लेट हो कर सुबह 9 बजे की हो गयी तो हम भी घर से साढ़े पाँच बजे निकले। अब घर से एयरपोर्ट का सफर तो आपने कई बार कर ही रखा है तो जल्दी में इसे स्किप मारते हैं और सीधे सात बजे एयरपोर्ट पहुँचते हैं। टेक्सी से उतरे तो एयरपोर्ट में कुछ नजर ही ना आया जिधर देखो कोहरे का साम्राज्य मतलब विजिबिलिटी बिलकुल ज़ीरो। बाहर का बाहर छोड़ देते हैं हम अंदर चलते हैं। सुरक्षा जांच के बाद कुछ खा पी लिया और गेट पर पता किया तो मालूम हुआ आज फ्लाइट महारानी कोहरे का फायदा उठा कर अपने साथी इंडिगो का साथ निभाते हुये ही आयीं है और जाएँगी भी उनके साथ ही । मतलब फ्लाइट लेट हो कर 10:15 की हो  गयी।
             फाइनली एयरक्राफ्ट में बोर्डिंग हुयी और हम भी उसके सहारे ऊँचे आसमान में बादलों के पार पहुँच गये। बादलों से अठखेलियां करते करते ऐलान हुआ विमान उतरने वाला है, मन में लगा अरे ये क्या!! फिर याद आया विजाग जा रहे हैं उड़ान तो सवा घन्टे की ही है और इसने ठीक साढ़े ग्यारह में हमें एयरपोर्ट पहुंचा दिया। बाहर निकलते निकलते बारह के करीब हो गया और हम पहले से बुक कराये होटल चल पड़े। वहाँ मैनेजर बोला आपको दस मिनट इन्तजार करना होगा कमरा रेडी नहीं है तो इस समय का सदुपयोग हमने होटल के रेस्टॉरेंट में ही खाना खा कर लिया।
               दोपहर के दो बजे टेक्सी वाला आ गया और हम उसके साथ निकल गये विजाग की सड़कों पर, कुछ कुछ हैदराबाद का जैसा लग रहा है ये शहर। आखिर लगेगा क्यों नहीं भाई भाई जो हुये, मेरे कहने का आशय है पहले दोनों एक ही राज्य में हुआ करते थे। बड़े बड़े शो रुम, चमक दमक वाली दुकाने नजर आ रही हैं। इनकी चमक दमक देख कर तो किसी का भी मन मचल जाये। आधे घंटे में हम पहुँच ही गये अपने होटल से बारह किलोमीटर दूर इस जगह पर जहाँ से हम अपने सफर की शुरुआत कर रहे हैं, इस प्यारी सी जगह का नाम है ऋषिकोंडा बीच,मतलब समुद्री लहरें अपना दामन फैलाये हमारा इन्तजार कर रही हैं। बस बहुत हो गया ये रास्ते में जो लुक्का छिपी का खेल हो रहा था, अब आमना सामना हो ही जाये और हम चल पड़े इस समुद्री छोर से रूबरू होने।
                समुद्री लहरों की अठखेलियां मुझे हमेशा से अपनी तरफ आकर्षित करती रही हैं, आज भी कर रही हैं और शायद हमेशा करेंगी। इक जोर से आती हैं और उतने ही जोर से चली जाती हैं निरुद्देश्य, निष्काम। जैसे इनका काम ही आना और जाना हो लेकिन इसी पल  छोटे बच्चों को रेत  पर घरोंदे बनाते देख मुझबेवकूफ को ख्याल आया, अरे निरुद्देश्य तो हम है सब कुछ जानते हैं लेकिन फिर भी अंजान बने रहते हैं। अभी लहर आएगी और अपने साथ सब बहा ले जायेगी ये सब जानते हुये भी रेत घर बनाने की कोशिश करते हैं और अपने नाम लिखकर अमर होने की कोशिश करते हैं। कुछ देर को मन सोच में पड़ गया लेकिन सोच में डूबे रहने की आदत नहीं है अपनी। मन से उखाड़ फैंका ये विचार और एक बार फिर समुद्री लहरों के आकर्षण में खो गये। शहर के नजदीक का होने के कारण ये बीच उतना साफ़ सुथरा नहीं लगा लेकिन उतना बुरा भी नहीं है। हम एक किनारे पर बैठे रहे और कुछ फोटो ले कर इसी बीच के दूसरे किनारे को जाने लगे। रास्ते में एक नौका रखी हुयी है जिसकी अंदरूनी संरचना कुछ ऐसी है जैसे लकड़ी के पटलों को कुछ घुमाया गया हो , मतलब किनारों पर हल्का गोल किया गया है और उसके बाद नाइलोन और जूट की रस्सी से सिला गया है। इसके बाद हम आगे को गये तो बीच के किनारे किनारे रेतीली मिट्टी के साथ साथ पथरीला विस्तार भी दिखने लगा। लहरे आती हैं इन्हें अपने आगोश में लेती हैं और चल पड़ती है एक बार फिर आने का वादा करके। सच मेंवादा निभाना तो कोई समुद्री लहरों से सीखे, लगी रहती है अपने वचन का पालन करने में, उस अनन्त काल तक के लिये जो ना जाने कब तक चलेगा। बस आती रहती है और जाती रहती हैं और इसकी के साथ हम भी चल पड़ते हैं एक बार फिर आने के लिये।
            मंजिल का अगला पड़ाव है यहाँ से नौ किलोमीटर दूर कैलाशगिरि। नाम से समझ आ गया कि ये भोलेनाथ की पहाड़ियाँ हैके दर्शन जायेंगे। देखने से ऐसा लग रहा है कि विजाग को पार्क सिटी के रूप में बनाया गया है क्योंकि रास्ते में विभिन्न प्रकार के पार्क दिखाई पड़े। ये क्या है क्यों बनाये गये हैं सोचते सोचते ही हम कैलाशगिरि पहाड़ियों की तलहटी में पहुँच गये। यहाँ जाने के दो मार्ग है एक तो गाड़ी द्वारा और दूसरा उड़न खटोले से। हम तो उड़न खटोले में जायेंगे जी!! क्योंकि कई जगहों में हम खटोले का किराया देख कर ठिठक चुके हैं लेकिन यहाँ तो ये अस्सी रूपये प्रति व्यक्ति से हिसाब से लाना ले जाना दोनों कर रहा है और बच्चे का भी टिकट नहीं लग रहा, तो सोचना क्या है चल पड़ते हैं,टिकट खिड़की में सर घुसाया और ले लिया!! अब तो टिकट भी हाथ में आ गया तो चढ़ जाते हैं सीढियाँ ना जाने कितनी रही होंगी, तब गिनने का ध्यान नहीं आया मुझे। ऊंचाई को देखते हुये लग रहा है कि तीन मंजिले भवन की जितनी ऊंचाई पे रही होगी ये जगह जहाँ से रोप वे में बैठना है। फिर से इन्तजार करना है अपने नंबर का कयामत तक,ना जी इतनी देर रुकने की जरुरत ना पड़ी। देखो देखो वो आ रही है हमारी  पीली चिड़िया, बस अब आ ही गयी अपने साथ पाँच लोगों को और ले कर उड़ पड़ी। मुझे तो बड़ा अच्छा लगता है बिन पंखों के ऐसे उड़ना, पता उड़ती चिड़िया को कैसा लगता होगा। मैं ज्यादा इधर उधर नहीं देख पायी क्योंकि मैडम का कहना है मम्मा और बच्चे विंडो से बाहर नहीं देखते!! अब तो इनके हिसाब से चलना पड़ता है हमें।
                पहुँच गये पहाड़ी पर, पहाड़ी क्या है अभी तो मैदान जैसा ही लग रहा है। खूब सारी दुकाने दिख रही है एक कोल्ड ड्रिंक हम भी ले लेते हैं थोड़ा गला तर हो जायेगा। जनवरी के महीने में ये गर्मी है तो मई जून में तो भयावह ही हो जाता होगा। काफी विस्तार वाली जगह लग रही है समझ नहीं आ रहा कहाँ से देखना शुरू किया जाये। सबसे पहले शिव शंकर के दर्शन कर लेते हैं उसके बाद दूसरी जगह का रुख करेंगे। यहाँ पर शिव-पार्वती की सफ़ेद मूर्तियाँ बनी हैं जो दूर से ही दिखाई देती हैं। दर्शन तो जी हमने दूर से ही कर लिये उसके लिए नजदीक तक जाने की जरुरत नहीं पड़ी, लेकिन एक बार पास जा के प्रणाम कर लेते हैं। अब दूसरी तरफ के रास्ते से नीचे उतरते हैं और साथ के साथ रंग बिरंगे फूलों का सानिध्य कुछ देर के लिये मिल जायेगा। अभी उतर ही रहे हैं कि सान्वी को कुछ झूले दिखाई पड़ गये, अब तो वहाँ जाना अति आवश्यक हुआ!! चलो चल पड़ते हैं वहाँ भी। एक स्लाइड दूसरा स्लाइड और फिर फाइनली एलिगेटर का मुंह खोल के ही चलने को तैयार हो गयी मैडम जी। चलो अब चलते हैं यहाँ से और हम चल पड़े लेकिन ये क्या !!,ऊटी की कसर इधर निकाली जायेगी। एक हॉर्स वाले अंकल लोगों को घुमा रहे हैं तो ये भी बैठेंगी। वि कहते हैं ना "बकरे की अम्मा,कब तक खैर मनायेगी" वो ही किस्सा हुआ। जोक्स अपार्ट, कोई बड़ा इश्यू नहीं है, बैठा देते हैं अगर कोई घोड़े वाला आ जाये।
            वन,टू, थ्री काउंट कराते-कराते एक घोड़े वाला आ गया और उसके साथ साथ दिली इच्छा भी। अब बैठा तो दिया पर हमारी डरपोक उसमे बैठ के आगे जाने को तैयार नहीं!! बीस रुपये में एक दो फोटो करा के आगे बढे। हो गया जी बच्चे का शौक पूरा!! वैसे हर जगह बच्चों के नये शौक उपज जाते हैं। खैर अब तक हम उड़न खटोले वाली जगह आ गये। वैसे एक दो जगह से नीचे समन्दर के दृश्य नजर आ रहे हैं लेकिन क्या कहूँ कुछ कहते नहीं बन रहा क्योंकि व्यू उतना क्लियर नहीं लग रहा। समुद्र और आसमान  के बीच क्षितिज तो कहीं नजर ही नहीं आ रहा, राम जाने क्या कारण रहा होगा। कुल मिलाकर उतना अच्छा द्रश्य यहाँ से नहीं दिखायी दिया, जितना  दिखना चाहिये। हो सकता है किसी दिन विशेष पर या सुबह के समय नजर भी आ जाता हो। चलो चलो अबकी बारी हरी खटोली आयी है हमें लेने उसमे सवार हो कर नीचे उतर जाते हैं।
इस यात्रा के चलचित्र-
सागर किनारे
रेत की जगह पत्थर 
ये बेंच लगी हुयी हैं। 
नाव की सिलाई 



नाव रखी है। 

रोप वे तक जाने का रास्ता। 
पीली चिड़ियाँ 
एक द्रश्य है। 
शिव पार्वती की मूर्ति 
ऊपर से दिखता हुआ समुद्र। 
सफ़ेद हॉर्स। 
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8 comments:

  1. अरे वाह इतनी जल्दी लिख भी दी । बढ़िया पोस्ट ।

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  2. बढ़िया पोस्ट। सुन्दर तसवीरें

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  4. इतना विस्तृत और बढ़िया वृतांत तब फोटो में कंजूसी क्यों ? फोटो सुन्दर हैं , थोड़े बड़े कर दो हर्षिता जी !!

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  5. वाह री किस्मत पहाड़ से ऋषिकोंडा का व्यू...पर अच्छा लिखा है कहा बंगलोर कहा विशाखापत्तनम कहा ओरिसा और वो घुमक्कड़ ही क्या जो प्लान से घुमे...बढ़िया लेखन

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  6. लो मुझे आज पता चला इस पोस्ट का ,कैलाशगिरि सुंदर जगह दिख रही है

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