Friday 27 January 2017

Pine Tree shooting Point and Paykara


              अभी आँखों से अपर भवानी झील की खुमारी उतरी भी नहीं है और आगे बढ़ने का समय भी आ गया । घबराइए मत कुछ नहीं हुआ मेरे कहने का मतलब है कि चंदा मामा छुप गए है और सूरज चाचू नया सवेरा ले कर सामने आ गये। उठो उठो!!,अपना सामन समेटो और आगे बढ़ो। अरे हाँ आज तो हमें बैंगलोर वापसी भी करनी है, तो बाहर निकलते हुये होटल को बाय-बाय करना होगा। ठीक है जी कर देते हैं ये काम भी, अपना बोरिया बिस्तरा ले कर हम चेक-आउट करके बाहर निकल गये।
                सोच रहे हैं आज ऊटी में ही पेट पूजा कर के निकलते हैं फिर रास्ते में बार बार रुकने का झंझट नहीं रहेगा। ठीक सवा आठ में हम एक शुद्ध शाकाहारी रेस्टॉरेंट में जम गये और जमकर खाने के बाद फाइनली नौ बजे ऊटी को अलविदा बोल ही दिया। इस बार हमारा मन लंबे रास्ते से होकर गुजरने का है।बहुत देख लिये हेयर पिन बैंड , अब कहीं और छापा मारते हैं। ठीक है जी तय हो गया इस बार हम शूटिंग पॉइंट में पिक्चर बनायेंगे और बैंगलोर जा के यूट्यूब में पिक्चर रिलीज करवायेंगे। सो रास्ते का मैप कुछ ऐसा बना कि ऊटी से शूटिंग पॉइंट और वहाँ से पयकारा झील में बोटिंग कर के आगे बढ़ेंगे। इस बार का ऊटी ट्रिप में झीलों का योगदान काफी ज्यादा हो रहा है। कोई ना कभी कभी होता है जल से जीवन है और झीलों से हम हैं।
शूटिंग पॉइंट का सरप्राइज।

 ट्रेवल डेट-19 December 2016             
    अभी जुम्मा जुम्मा आठ किलोमीटर गाड़ी दौड़ाई और पहुँच गये पाइन  फ़ॉरस्ट । जी हाँ सही समझे चीड़ का जंगल, जब सुना तो मुझे भी अपने कानों पर विश्वाश ना हुआ, लेकिन वो किसी ने कहा है कि "प्रर्त्यक्षम किम प्रमाणम" जो बात सामने है उस पर यकीन  करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता। सो हमने देख भी लिया और मान भी लिया। वरना तो इससे पहले मुझे लगता था चीड़ के जंगलों पर उत्तराखंड का एक छत्र राज्य है। जंगल के बीच बीच में नीचे उतरने के लिये पेड़ की जड़ों का सहारा लिये हुये हलकी हलकी पगडण्डी बनी हुयी हैं। एक दो छोटी-छोटी दुकाने भी लगी हुयी हैं नीचे से वापस आ कर चाय के मजे लेंगे। यहाँ पर जाने के लिये टिकट काउन्टर से पाँच रुपया प्रति व्यक्ति और तीस रुपया कैमरा का टिकट देना होता हैं। सब सड़क से नीचे जंगल में उतर रहे हैं, उनके साथ साथ हम भी उतर गये। चीड़ के जंगल की अलग बात होती है कि वैसे तो लंबे खड़े सूखे पेड़ होंगे पर छाया कम ही होती है। तो इतने बाद जंगल में कहीं धूप, कहीं छाया वाला हाल है। वैसे यहाँ पर जंगल में पिरूल कहीं नहीं नजर आया, वो होता तो नीचे उतरने में थोड़ा मुश्किल आती या कहो एक ही बार में फिसल कर नीचे सरक जाते। शायद सफाई रखते होंगे। फोटोग्राफी करते हुये हम इस जंगल में  नीचे उतर आये। एक नजर ऊपर को मार कर देखा तो लगा अरे उतर तो आये अभी चढ़ना भी होगा। चलो अब जब उतर गये हैं तो चढ़ भी जायेंगे।
            अरे ये क्या!! ऐसी ही त्वरित प्रतिक्रिया आई जब सामने निगाहें पड़ी तो। जी हाँ चीड़ के जँगल से उतर कर हम एक ऐसी जगह पहुँच गये जिसकी तो कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। सामने से एक बड़ी ही सुन्दर झील है, वैसे मुझे अन्दाजा नहीं है इसकी व्यापकता को देखने से लगता है कि शायद से एक नदी है और इसके साथ साथ एक हरी घास का मैदान है। ये तो गजब की फोटोजेनिक जगह निकली, अच्छा हुआ हम जँगल में उतर आये वार्ना तो इतनी सुन्दर जगह को देखने से वंचित रह जाते। यहाँ पर करने के लिये बहुत कुछ है,सब लोग अपने अपने आनन्द की बातों में मगन हैं। कोई घुड़सवारी में व्यस्त है तो कोई अपने बच्चों के लिये बुढ़िया के बाल लेने मे और कोई झील के पल पल बदलने वाले नीले हरे रंग को देखने में ही लगे रहे। यहाँ बैठे बैठे कब एक घंटा गुजर गया पता ही नहीं लगा। खड़े हुये तो लगा दूसरी तरफ तो हम गये ही नहीं। अब जब मन मचल ही गया है वहाँ जाने को तो हम जा के रहेंगे। थोड़ा चहल कदमी कर के हम उधर भी जा पहुंचे। यहाँ पर हरियाली थोड़ा ज्यादा है मतलब एक दो बैठने के लिऐ बड़ा सा पाट लिये हुय मैदान है और उसी हरे रंग की छवि लिये नदी या झील का पानी भी गहरा हरा लग रहा है। नदी या झील इसलिये कह रही हूँ क्योंकि में अभी भी पक्का नहीं हूँ आखिर ये है क्या। ये जगह थोड़ा चौड़ी तो कम है लेकिन लंबाई बहुत ज्यादा लग रही है। इस हिसाब से तो मुझे ये झील कम नदी ज्यादा लग रही है। बहुत हो गयी ऐनालिसीस, अब चला जाये साढ़े ग्यारह से ऊपर हो गया है ऐसी कछुआ चाल से चलते रहे तो गाड़ी के पास पहुँचने में ही बारह बज जायेगा। आगे बच्चे का मन ललचाने के लिये घोड़े वाला खड़ा है, अब मैडम जिद पर आ गयी कि मैं तो बैठूंगी ही बैठूंगी। अब ये दिमाग लगाना ज्यादा जरुरी हो गया कि कैसे समझाया जाये अभी हम घोड़े के चक्कर में टाइम वेस्ट करने के मूड में नहीं हैं। जो भी करना है ऐसे करना है कि अपना काम भी बन जाये और रोना धोना भी ना हो। हाल फिलहाल उसे ये बोल के समझा दिया गया है कि घोड़े के बहुत पेन हो रहा है वो नहीं बैठा पायेगा, कोई दूसरा मिला तो उसे बैठा देंगे। हो गया जी अपना काम तो इतने से ही। अब जंगल पार कर के सड़क तक पहुंचना है। रास्ते में एक दो स्टोप फोटो के नाम पर लेते हुये आगे बढ़ रहे हैं जिससे एक ही बार में चढ़ने का भार नहीं पड़ा। लो जी पहुँच गये, अब थोड़ा चाय पानी कर लेते हैं। चार चाय और एक आमलेट ले लिया। चाय बढ़िया बनी है आमलेट का तो खाने वाली ही बता सकती है कि कैसा बना होगा। यहाँ पर हमको बहुत सारे साईकिल सवार मिले, जो दिन में सौ किलोमीटर चलने का लक्ष्य रखते हैं। ये लोग गोवा से आ रहे हैं और अभी ऊटी से कोडाई-कॉयम्बटूर होते हुये वापस जायेंगे। कम से कम बीस पच्चीस लड़के होंगे, पास में बढ़िया सी साइकिल लिये हुये, हेलमेट भी ऐसे जिनमे कैमरा और हैड लाइट लगी हुयी है। मैंने पहली बार देखा इस तरह का ग्रुप। खैर इन लोगों ने हमारा काम आसान कर दिया, सान्वी थोड़ा डर गयी और उसने जल्दी में खाना निपटा दिया।
             बारह बज गया है और अब आगे निकलते हैं क्योंकि मंजिल अभी दूर है और बीच में पयकारा पर रुकना भी है। अभी चौदह किलोमीटर जाना है इस जगह के लिये, यहाँ पर एक बड़ी सी झील और एक बढ़िया सा झरना है। रास्ते में साइकिल अंकल मिलते रहे, कभी वो आगे तो कभी हम आगे, बढ़िया साथ रहा। रास्ते में एक दो जगह और रुकने का मन हो रहा है लेकिन अब अगर कहीं रुक गये तो घर पहुँचने तक तो बहुत देर हो जायेगी। पहुँच गये हम  पयकारा भी, यहाँ पता चला झरने तक जाने का रास्ता बंद है तो बस झील तक ही जा सकते हैं। इतना आ गये हैं तो झील तक चले जाते हैं कम से कम बोटिंग ही हो जायेगी। एक बड़ी सी झील है और खूब मोटर बोट चलती हैं यहाँ। बोटिंग करके निपटे और घडी में नजर मारी तो पता लगा कि ढाई बज गया हैं अब तो भागना ही पड़ेगा क्योंकि छह बजे में पहले पहले बाँदीपुर का जंगल भी पार करना है। अब लंच के लिये रुकने का कोई स्कोप नही है कहीं भी, सीधे मैसूर पर ही रुकेंगे।
            अभी हमको गुडलूर यानिकि जंगल की शुरूआती जगह तक पहुँचने को भी तीस किलोमीटर जाना है और उसके बाद पचास किलामीटर का जंगल पार करना है, तब जा के गुंडूलपेट पहुंचेंगे। मतलब अब अस्सी किलोमीटर नॉन स्टॉप चलना है। लो जी साढ़े चार होते होते जंगल पार हो गया। इस बार भी रास्ते में वो ही हिरन दिखाई दिये बस।  अभी भी घर पहुँचने के लिये दो सौ बीस किलोमीटर का सफर तय करना है, छह बजे के आस पास मैसूर क्रॉस कर के कुछ खा लेते हैं। बढ़िया खा कर एक बार फिर से नॉन स्टॉप चलना शुरू किया और सुबह नौ बजे के चले रात के सवा नौ पर घर पहुँच ही गये।
आज की दृश्यावली-
आप ही बताओ ये नदी लग रही है या झील ?          
चारों तरफ लोगों का मेला है। 
समझ नहीं आ रहा झील ज्यादा सुन्दर है या जँगल, पेड़ों की बहुतायत की वजह से झील भी हरी लग रही है। 
ना जाने कितनी पिक्चरों की शूटिंग हुयी होगी इस जँगल में!

पयकारा बोट हाउस। 
मोटर बोट चली पम पम पम। 
कुछ टू सीटर भी खड़ी है इन्तजार में!
झील ही झील हैं यहाँ तो जब पहली बार आये थे तन तो पता भी ना था कि यहाँ चाय बागान के अलावा और भी कुछ है।
एक और द्र्श्य। 
किनारे पर बैठी लव बर्ड शायद झगड़ा हुआ है !
ये अकेली साथी की तलाश में।
इस यात्रा की समस्त कड़ियाँ -
Once Again in Ooty
Upper Bhavani Lake,Ooty
Pine Tree shooting Point and Paykara


11 comments:

  1. नरेश सहगल27 January 2017 at 01:31

    बढ़िया ,शानदार पोस्ट .फोटो काफी सुदर आयें है .ये पिरूल क्या है ??

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    1. पतझड़ के बाद जब चीड़ की पत्तियां गिर जाती हैं तो वो सूखकर भूरे रंग की हो जाती हैं और चीड़ के जंगलों में बहुतायत मात्रा में पड़ी रहती हैं। इन्ही सुखी पत्तियों को पिरूल कहा जाता है और कभी इनमे पैर पड़ जाये तो फिसलने से बचने का कोई उपाय नहीं हैं। पिरूल गर्मियों के समय पहाड़ो में लगने वाली आग का भी प्रमुख कारण होता है

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  2. चीड के जंगल मे कई फिल्मो की सुटिंग होती रहती है पर राज (पहले वाली) का पूरा सैट वही जंगल में बना था।
    बढिया पोस्ट

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  3. बढ़िया पोस्ट और फ़ोटोज तो बेहद शानदार और खूबसूरत आईं हैं। घोड़े को पेन है का बहाना भी क़माल था, हा हा

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  4. बहुत बढ़िया! मुझे तो सिर्फ ऊटी झील के बारे ही पता था अब तक!

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  5. सुन्दर नदी अरे वही झील रानी , सुन्दर फ़ोटू और लाजबाब लेखनी ,कुल मिलाकर दमादम मस्त कलन्दर..☺

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  6. पिरूल क्या होता है ? और बच्चे को बहकाना अच्छी बात नहीं ! इसे शूटिंग पॉइंट नाम सिर्फ फिल्मो की शूटिंग की वजह से भले दिया गया हो लेकिन लोगों को देखकर लग रहा है कि ये बहुत ही सुन्दर और प्रसिद्ध जगह है ! आजकल वृतांत बहुत बढ़िया यानि " रिधम " में चल रहा है ! बहुत बढ़िया

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  7. बहुत सुंदर photos
    लेखन भी रोचक हर्षा जी ।

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