आज के दिन में हमारा चारमीनार घूमने,फिल्म देखने और एनटीआर गार्डन होते हुए लुम्बिनी पार्क के लेज़र शो को आन्नद लेने का प्लान था। जब पूरा दिन घूमना ही था तो हमने बस का पास के लिया और पहुँच गए चन्दा नगर से पुराने हैदराबाद में स्थित चार मीनार। मुसी नदी के मुहाने पर बनी इस ताजिया पद्धति की मीनार का निर्माण मुहम्मद क़ुतुब शाह अली ने सन उन्नीस सौ इक्यावन में गोलकोंडा से अपनी राजधानी हैदराबाद में शिफ्ट करने से पहले बनवाया। हैदराबाद के स्मारक के रूप से सबसे पहले इस मीनार का निर्माण हुआ और उसके बाद इसके चारों और शहर को बसाया गया। इतिहासकारो के अनुसार कहते हैं कि जब सन उन्नीस सौ इकावन में शहर में प्लेग की बीमारी फ़ैल गयी थी तो सुल्तान मुहम्मद क़ुतुब शाह अली ने इसका निर्माण रक्षा के उद्देश्य से कराया था। जैसा की इसके नाम से ही दृष्टिगोचर हो रहा है यहाँ पर चार कोनो में चार पिलर बने हुए हैं और उनको मिलाते हुए दीवारों के बने होने से ये चतुर्भुजाकार के रूप में बनी है और चारों मीनारों के टॉप में गुम्बद बने हैं। ऐसा माना जाता है कि इसमें खड़ी हुयी मीनारें सुल्तान और उसकी बेगम के उन चार हाथों के प्रतीक हैं जो कि प्लेग मुक्ति के लिए दुआ में करने को उठाये गए थे। रात के समय इसमें रौशनी करी जाती है जिससे ये पूरी तरह जगमगाने लगती है।
चार मीनार |
चारमीनार की उंचाई ५६ मीटर है और पांच रूपये मात्र के टिकट में यहाँ घुमा जा सकता है। इसमें चढ़ने के लिए बहुत ही ज्यादा संकरी सीढियाँ बनी हुयी है। ये इस हद तक सिकुड़ी हुयी हैं कि अगर यहाँ पैर फिसल गया तो बड़ी आफत आ जाये। । इसलिए अति सावधानी की जरुरत है इसमें चढ़ने के लिए। वर्ना हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे वाला हाल हो जायेगा। इस वक्त मेरे दिमाग में एक ही बात थी अगर चढ़ते हुए भूकम्प आ जाये तो भागने का रास्ता क्या होगा। खैर अगर ये सोचने बैठ गए तो फिर हो गया काम, इस लिए हम आगे बढ़ने लगे। बाहर खड़ा हुआ गार्ड निश्चित यात्रियों को एक समय पर अन्दर जाने देता है, जिससे मीनार के अंदर ज्यादा भीड़ ना हो पाये।पर्यटकों ने यहाँ अपने नाम अन्य इमारतों की तरह ही अमर कर रखे हैं। संकरी सीढियाँ चढ़ते हुए हम मीनार के प्रथम तल पर पहुँच गए और इसके ऊपर जाने की अनुमति तो हम सामान्य नागरिकों को प्राप्त नहीं है। इसलिए यहीं से मीनार के शिल्प को निहारा। कुछ देर अन्दर की कलाकृतियों को देखने के बाद हमने यहाँ से हैदराबाद शहर देखते हुए उन्हें अपने कैमरा में उतरा और नीचे उतर आये। यहाँ पर एक मस्जिद के अन्दर ही एक मंदिर का निर्माण भी कराया गया है, जिसे देख कर हैदराबाद के सामुदायिक सदभाव का भी ज्ञान हुआ। बाहर का बाजार चूडियों और मोतियों की दुकानो से पटा हुआ है । जिन्हें क्रमश लाड़ बाजार और पत्थर घट्टी के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर दस रूपये से लेकर हजारों की चूड़ियाँ मिल जाती हैं और दुकानों में इतनी चमक की देखने वाले की आँखें चुधियाँ जाये। पत्थर घट्टी को मोतियों का बाजार के नाम से जाना जाता है। मोती खरीदने के समय उसकी जाँच भी कर सकते हैं। उसे किसी खुरदुरी जगह पर रगड़ा जाये और उसके बाद पानी लगाने समय इन दुकानों में लगा और फिर फिल्म देखने का समय भी हो रहा था तो प्रस्थान में ही भलाई लगी।
इन दिनों यहाँ गणेशोत्सव अपने पूरे शबाब पे था, तो रास्ते में बहुत जगह भीड़ का सामना करना पड़ा और पूरे रास्ते गणेशजी की मूर्तियों के दर्शन होते रहे। खैरताबाद में तो हमें जबरन गणपति दर्शन के लिए लाइन में लगा दिया गया और हमारी पिक्चर छूटने के प्रबल आसार हो गए। खैर किसी तरह दौड़ते भागते हम पिक्चर शुरू होने के समय तक पहुँच पाए। थ्री डी मूवी का ये मेरा पहला अनुभव था। फिल्म देखने के बाद हम पहुंचे एनटीआर पार्क। एक तो गर्मी भी थी और जैसे उसके रिव्यु पढ़े थे वैसा वहां जा के लगा नहीं। सामने से हुसैन सागर लेक देखने के बाद हम घर को वापस हो गए और फिर रात को बैंगलोर को वापस हो गए गोलकोंडा फोर्ट और लुम्बिनी पार्क को अगली बार के लिए छोड़ते हुए। इस यात्रा में हैदराबाद की बस सेवा का बहुत बढ़िया अनुभव हुआ , किसी भी स्टॉप पर हमें पाँच मिनट से ज्यादा नहीं रुकना पड़ा। इस तरह से हमारी सितम्बर २०११ की हैदराबाद यात्रा का समापन हुआ।
सितंबर 2011 की पोस्ट अक्टूबर 2016 में ? ये भी इस पोस्ट के साथ एक विचित्र बात है ! चार मीनार को बाहर से कई बार देखा है फोटुओं में लेकिन अंदर से पहले बार ! ये मंदिर शायद लक्ष्मी जी का मंदिर है जो बड़े संघर्ष के बाद स्थापित हो सका ! बढ़िया यात्रा रही आपकी
ReplyDelete2011 की पोस्ट अब...दाद देनी पड़ेगी याददाश्त की। वैसे घुमक्कडी की यादें हमेशा दिलों में रहती हैं।
ReplyDeleteQuite informative post.Thanks for sharing.
ReplyDeleteचार मीनार की फोटो बहुत देखी है पर आज पहली बार अन्दर से भी देखने को मिला..
ReplyDeleteशुक्रिया हर्षिता जी ..
It's gorgeous, isn't it?
ReplyDeleteGreat tour of the Charminar
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