Thursday 20 October 2016

Lumbini park

                    2011 से 2016 तक हमारा निजामो के नगरी हैदराबाद आना जाना लगा ही रहा, या यूँ कहूँ वहाँ से संपर्क नहीं छूटा ही नहीं। एक बार 2014 में क्रिसमस की छुट्टियों के समय पर जाना हुआ तब हमने उन जगहों को देखा जो कि पहली बार में रह गए थे। इस बार हमारी यात्रा का प्रारम्भ लुम्बिनी पार्क में होने वाले लेज़र शो को देखने के साथ हुआ लेकिन रात का समय होने के कारण हम इस बार भी लुम्बिनी पार्क के अन्य आकर्षण नहीं देख पाये। इस पार्क ने हमें 2016 फरवरी में पुनः अपनी और आकर्षित किया और इस बार हम यहाँ पूरे दिन का समय ले कर गए। देखिये ऐसा क्या खास है इस पार्क ने जो इतनी बार मुझे वहां ले कर गया।

                  शहर के बीचों बीच स्थित इस पार्क का निर्माण सन 1994 में कराया गया था। इस पार्क में एक नहीं बहुत सारे आकर्षण हैं, यहाँ का सबसे प्रमुख आकर्षण है शाम को होने वाला लेज़र शो, उसके बाद दूसरा आकर्षण है हुसैन सागर और उसमे होने वाली वाटर एक्टिविटीज़, तीसरा आकर्षण है बच्चों के लिए लगे हुए छोटे बड़े झूले,चौथा एवं अंतिम आकर्षण है आरटीफिशल झरने के बीच रेन डांस। इस पोस्ट को यात्रा क्रम के हिसाब से ना लिख कर दिन के उजाले के हिसाब से लिखूंगी।
                २०१६ फरवरी में एक बार फिर हैदराबाद में थे।  इस बार हम लोग बस से आये थे और लोकल घूमने के लिए हमने MMTS  लोकल ट्रैन का चुनाव किया। ये हैदराबाद में घूमने के लिए सुगम और सस्ता साधन है। इस समय लुम्बीनी पार्क हम सालार गंज संग्रहालय से आये थे,वहाँ से यहाँ तक आने के लिए ऑटो ले लिया था और दस रूपये का  प्रवेश शुल्क दे कर हम पार्क के अंदर हो लिए।  पार्क में सामने से ही एक नोटिस बोर्ड लगा था जिसमे बताया हुआ था कि कौन सी चीज कहाँ पर है। इसे देखकर हम  पसंद की जगह पहले जा सकते हैं।
डायरेक्शन 
                   इस पार्क का मुख्य आकर्षण इसका हुसैन सागर झील से सटा हुआ होना और बच्चों के हिसाब से बहुत सारे झूलों का होना है। हम लोग सबसे पहले हुसैन सागर की तरफ जा रहे थे। इतने में मेरी बेटी ने झूले देख लिए फिर थोड़ी देर उसे झूले कराने के बाद हम हुसैन सागर के पास पहुंचे। यहां आ कर मुझे नैनीताल के फ्लैट्स की यादें ताजा हो गयी।  लोगों की भीड़, तरह -तरह की खाने की दुकाने, कहीं भुट्टे बेचने वाले थे, तो कोई बुढ़िया के बाल वाली पिंक कैंडी ले कर घूम रहा था। चाट- पकोड़े, चाय- कॉफी और डोसा वालों के ठाट तो पूछो मत। अरे हाँ आइस क्रीम तो ऐसी जगहों का मुख्य  आकर्षण होती है, उसे कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। इन सबके अतिरिक्त बच्चों के लिए रंग- बिरंगे गुब्बारे और छोटे- मोटे खिलौनों वाले भी घूम रहे थे। ये भी छोटे बच्चों के आसपास ही मंडराते रहते हैं  जब तक की थोड़ा बिक्री हो ना जाए। खैर वो भी क्या करें उनकी रोजी रोटी का साधन भी ये ही सब हुआ। इन सबके बीच हम उस जगह पहुँच गए, जहाँ से स्टीमर बोट का टिकेट मिल रहा था। पचपन रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से ये बोट हुसैन सागर में बने बुद्धा स्टेच्यु तक ले जा रही थी।  एक सौ दस रूपये टिकेट लेकर हम बोट के लिए अपना नंबर आने की प्रतीक्षा करने लगे। और हाँ पाँच साल से छोटे बच्चों का फ्री में हो जाता है।
             जब तक हमारा नम्बर आता तब तक हम हुसैन सागर की ख़ुबसूरती को निहार रहे थे। दिल के आकर में बनी इस विशाल झील का निर्माण हुसैन शाह वाली ने करवाया था। छह स्क्वायर किलोमीटर में फैली इस झील के विशाल आकार के कारण ही इसे हुसैन सागर कहा जाता है। इसकी विशालता का अनुमान लगाते लगते कब हमारा नंबर आ गया पता ही नहीं लगा। बोट वाले ने सबको बारी बारी से बिठाया और आगे बढ़ गया। यहाँ पर अब अन्य वाटर स्पोर्ट्स भी होने लगे हैं जैसे जेट-स्की, पैरासैलिंग। मेरा अपना अनुभव ये कहता है कि इन सारे खेलों का जो मजा समुद्री लहरों के साथ आता है वो ठहरे हुए पानी में क्या आएगा। हम ये सब गोवा में कर चुके थे इसलिए यहाँ करने का कोई औचित्य भी नहीं था।  इनको देखते देखते हम बुद्धा स्टेच्यू  पहुँच गए।
            बत्तीस फ़ीट गहरी इस झील के मध्य में अट्ठारह मीटर ऊँचा अकेली चट्टान से बना गौतम बुद्ध का स्टेचू है। यहां से हैदराबाद की जुड़वाँ नगरी सिकंदराबाद के दर्शन भी हो जाते हैं। पंद्रह मिनट के पूर्व निर्धारित समय में हम फोटो खिंच कर हम अपने स्टीमर बोट में बैठकर वापस लुम्बिनी पार्क आ गए। वापस आकर एक दुकान से चाय पकोड़ा लिया और पास में बने हरी मखमली चादर वाले मैदान में बैठकर खा लिए। अब अगला लक्ष्य था बच्चों का पार्क।  एक झूला था यहाँ पता नहीं क्या बोलते हैं उसे।  एक लंबा सा पोल लगा हुआ था, उसके चरों तरफ गोलाकार में बैठने के लिए जगह बनी थी और गोल गोल घूमता हुआ ये काफी ऊंचाई तक जा रहा था। बेटी ने इसमें जाने की जिद पकड़ ली, अब इसका भी टिकट लिया गया।  मुझे एग्जेक्ट कीमत याद नहीं है शायद चालीस रूपये का था। बैठते समय जितना ऊँचा नहीं लग रहा था , बैठ के पता लगा कि  काफी हाइट तक ले जा रहा है। हर चक्कर में लग रहा था कि शायद अब नीचे को उतरना शुरू हो जायेगा लेकिन वो कमबख्त ऊपर ही जाता जा रहा था। थोड़ा डरावना तो था ही खासकर मेरे जैसे डरपोक  लिए तो था ही। वैसे यहाँ से लुम्बीनी पाक का थ्री सिक्सटी डिग्री व्यू मस्त दिख रहा था लेकिन देखने में ध्यान किसका था। लेकिन कहते हैं ना सब्र का फल मीठा होता है और वो घडी भी आ ही गयी जब मेरे कदमो तले जमीन थी। इसके बाद उसने छोटे मोटे स्लिपरी स्लाइड जैसे झूले और किये।  थोड़ी देर में हम वाटर कास्केड के पास पहुँच गए, जिसके नीचे बच्चों के साथ-साथ बड़े भी नकली बारिश में भीगते हुए डांस कर रहे थे। कुछ समय इसके मजे लेने के बाद हम एक बार  फिर लोकल ट्रैन में बैठकर चन्दानगर वापस पहुँच गए।
              अब अंत में जिक्र करते हैं यहाँ के मुख्य आकर्षण का और वो है रात के समय हने वाला लेज़र शो। लेज़र शो देखने के लिए दो टिकेट लेने पड़ते हैं एक तो पार्क का और दूसरा शो का। शो का टिकेट पचास रूपये प्रति व्यक्ति रहता है।  इस शो में पानी की एक स्क्रीन बनायीं जाती है जिसमे हवा की दिशा के अनुसार हैदराबाद के इतिहास की जानकारी दी जाती है।  इसमें बताते हैं कुली क़ुतुब शाह और भाग्यमती की प्रेम कहानी को और एक नए शहर भाग्यनगर  कहानी को। उसके बाद जब शादी के बाद भाग्यमती का नाम हैदर महल हो गया तो शहर कस नाम भी हैदराबाद बन गया। हम लोग दिसम्बर २०१५ में इस शो को देखने आये थे और तब पुराने हैदराबाद में होटल लिया था। होटल से पार्क तक आने के लिए हमने ऑटो ले लिया था। टिकट ले कर हम लेज़र शो देखने जाने वालों की भीड़ में शामिल हो गए।  यहाँ पर शाम को सवा सात बजे से ये शो शुरू होता है और छुट्टी वाले दिन से दो शो होते हैं। वैसे तो जिस जगह पर शो होता है वहां करीब दो हजार लोगों के बैठने की जगह है। जिस दिन हम गए उन दिनों क्रिसमस के दिनों के कारण लेज़र शो के लिए जो खतरनाक भीड़ उमड़ी हुयी थी उसे देखकर अच्छे अच्छों की हिम्मत डोल जाये। खैर किसी तरह हम पहुँच गए भीड़ का रेला पार कर के। थोड़ी देर में जय हो गाने के साथ शो शुरू हुआ और फिर इसमें इतिहास की झलकियां दिखाई गयी।  शो देखने के बाद हम ने मिटटी के कुल्हड़ में चाय पी और पार्क से बाहर निकल आये। यहाँ से एक बार फिर ऑटो कर के होटल आ गए। इस जरुरी बात तो रह ही, गयी , अगर कोई ऑटो वाला काम पैसे में ले जाने को तैयार ह और बोले की पत्थर घट्टी हम के ले जाएगा तो कभी मत बैठना। इन लोगों के कमीशन बंधे रहते हैं और ये मोती बाजार में उतार देते हैं और वहां दुकानदार आपको सामान लेने पर मजबूर कर देते हैं। इसी के साथ ये पोस्ट समाप्त होती है।
पार्क के चित्र-       
बुद्धा स्टेच्यू ले जाने वाली बोट। 
बुद्धा स्टेच्यू 
बोट में बैठे लोग। 
एक जानकारी 
पास से। 
सफ़ेद गुलाबी फूल। 

स्टेच्यू के पास खड़े लोग। 
झूला 
झूले की ऊंचाई से हुसैन सागर।
वाटर कैसकेड। 

4 comments:

  1. बुद्धा स्टेचू का फोटो साफ़ नही आया लेकिन वहां तक जाना , इतनी पानी की मात्रा में ? मजेदार रहा होगा ! अच्छा , एक बात और , इस बार टाइपिंग की गलतियां बहुत ज्यादा हुई हैं उन्हें थोड़ा संभालिये

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  2. अच्छा पिकनिक स्पॉट है, हुसैन सागर काफी बड़ा लग रहा है!
    बहुत सुन्दर पोस्ट है!

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