Tuesday 12 July 2016

Amer Palace,Jaipur

                   जयगढ़ फोर्ट के वैभव को देखकर नीचे उतरे तो प्रवेश द्वार के पास ही हमारा चौपहिया वाहन खड़ा था, अब एक बार फिर इसमें सवार होकर वातानुकुलित माहौल का लाभ उठाने का समय आ गया था। इसमें बैठकर हम ड्राइवर से आमेर के किले में जाने के विषय में चर्चा करने लगे,इतने में  तो वो बोला यहाँ पर मिनी ताजमहल भी है उसे देखते हुए जाओ। हम दोनों ही इस बात में इंटरेस्टेड नहीं थे,क्यूंकि अगर ताज महल ही देखना हो तो असली का देखेंगे मिनी ताज क्यों। फिर भी वो मना करने के बाद भी काफी जोर डालने लगा कि पांच मिनट ही तो लगेगा देख लो और उसने हमें एक शॉप  बाहर ला कर छोड़ दिया। शॉप देखकर के समझ आया कि माजरा तो यहाँ कमीशन खोरी का था और उसी वक्त हम दुबारा से गाड़ी में बैठ गए और उसे बोला कि सीधे से आमेर पहुंचा दे हमको कहीं इधर उधर नहीं जाना।  इस प्रकरण में दस से पंद्रह मिनट बर्बाद हो गए,खैर उसने आमेर के किले तक हमको पहुंचा दिया। इस प्रकार की घटनाओं से बड़ी खीज हो जाती है जब एक बार मना कर दिया तो फिर बार बार वो ही बात क्या करने का क्या औचित्य हुआ। यहाँ पर हमारे पास डेढ़ घंटे का टाइम था आमेर का किला  घूमने के लिए।  जल्दी जल्दी में टिकट लिया और टिकट के साथ ही एक  गाइड से  भी बात कर ली कि हमें यहाँ की मुख्य मुख्य चीजें दिखवा दे।
माअोथा झील,आमेर पैलेस और जयगढ़ दुर्ग। 
                 अब गाइड तो गाइड ही होता है,उसने एक बार घुमाना शुरू किया तो फिर वापस गेट में छोड़ कर ही माना। यहाँ पर घुमाना शब्द का प्रयोग मैंने द्विअर्थी रूप में ही किया है। पहले अर्थ में तो उसने हमें मुख्य जगहें दिखा दी, परन्तु कुछ जगहों को स्किप भी करा दिया। हुआ ये कि दूर से किसी जगह के बारे में पूछो तो वो महाराज कह देते कि उस बुर्ज पर जाना तो संभव ही नहीं है। खैर हमारे पास भी इतना समय नहीं था कि हर जगह जा पाते। ये  तो हुई इधर उधर की बातें ,अब मुद्दे पर आते हैं और चलते हैं आमेर पैलेस की भव्यता  के दर्शन करने को। पहली बात तो ये रही कि इसके नाम में ही मुझे कन्फ्यूजियन लगा कोई इसे आमेर का किला कह रहा था तो कोई आमेर पैलेस। इसका आकार प्रकार देखने से तो ये एक महल का जैसा ही लग रहा था तो मेरे विचार में ये किला ना हो कर के एक महल हुआ , इसलिए आमेर पैलेस कहना ही उचित लगा। फिर गाइड से पूछा तो उसने शंका का समाधान ये कह कर किया कि वास्तविकता में ये एक महल है जिसका इस्तेमाल रहने के उद्देश्य के लिये किया जाता है और जयगढ़ का किला है जो कि बाद में सुरक्षा कारणों से बनाया गया था।
           आमेर पैलेस में टिकट लेने के बाद इधर उधर तांका झांकी करी तो सामने से कुछ खंडहर जैसी और पुरानी पुरानी इमारतें नजर आ रही थी। हमारे कैब ड्राईवर ने बताया की ये आमेर गांव है पुराने समय में जब इस महल का निर्माण नहीं हुआ था तो राजा लोग यहीं निवास करते थे। फिर धीरे धीरे जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होती गयी और उसके बाद इसे आम जनता के रहने के लिए छोड़ दिया एवं अपने रहने के लिए इस भव्य महल का निर्माण कराया। गांव के घरों को देखने के बाद रुख करते हैं आमेर के महल का। अब जब महल ही भव्य है तो प्रवेश द्वार तो विशालकाय होना स्वाभाविक ही है। एक बड़े से गेट को पार कर के हम महल के प्रांगढ में पहुँच गए। ये क्या यहाँ तो इस गर्मी के मौसम में भी पूरा का पूरा बाजार लगा हुआ था। सुन्दर  रंगों  से सजी छोटी छोटी छतरियों को लेकर यहाँ के लोकल लोग पर्यटकों को अपनी और आकर्षित कर रहे थे। छतरियों के बाद जिस पर मेरी नजर पड़ी वो थे छोटे  नक्काशीदार हाथी।  एक बहुत ही बडे आँगन या महल के पहले आँगन को पारकरने के कुछ सीढियाँ थी। इन पर चढ़ कर हम एक मंदिर पहुंचे। शीला देवी के इस मंदिर में राजपूत राजाओं के द्वारा पूजा अर्चना की जाती थी। गाइड ने नीचे वाले आँगन में लगे एक पेड़ की तरफ इशारा कर के बताया पहले राजाओं द्वारा देवी को प्रसन्न करने के लिए नरबलि दी जाती थी। सुनते ही मन आया कैसे रहे होंगे वो राजा महाराजा जो इंसान की ही बलि दे डालते थे।इस   मंदिर में  फोटो लेने की अनुमति नहीं थे। पंक्ति में लग कर दर्शन करने की रूचि हमारी नहीं थी, इसलिए कुछ सीढियाँ चढ़कर हमने ऊपर से ही दर्शन किये।पर यहाँ पर आके थोड़ी देर के लिए मन बहुत दुखी हुआ।
              कुछ और सीढियाँ चढ़ने के बाद हम महल के दूसरे आँगन में पहुंचे। यहाँ पर दो इमारते थी पहली दीवाने ऐ आम और दूसरी गणेश गेट। जैसा की नाम से ही प्रतीत हो रहा है ये जगह आम लोगों के लिए बनाई गयी थी। चालीस स्तम्भों से बनी इस ईमारत में राजा द्वारा प्रजा के मध्य में बैठ कर मुकदमों की सुनवाई जाती थी।
 गणेश पोल / गेट एक बड़ी ईमारत है जिसमे बहुत सी कलाकृतियां लगी हुई है। ऐसा माना जाता है कि ये सभी प्राकृतिक रंगों से बनाई गयी हैं। इस जगह को महल के तीसरे आँगन का प्रवेश द्वार भी कहा जा सकता है। इसे पार कर के हम ऐसे आँगन में पहुंचते हैं जिसमे दो सुन्दर सी इमारते एक दूसरे के आमने सामने बानी हुई हैं। इन दोनों को एक इस्लामिक पद्धति से बना हुआ बगीचा विभक्त करता है। ये दोनों ही भवन राजा के आवास थे। सर्दियों के दिनों में राजे महाराजे शीश महल में रहते थे। ये भवन भी चालीस स्तम्भों से बना हुआ है। परन्तु जैसा की नाम से ही द्रष्टिगोचर हो रहा है इस भवन में  विभिन्न प्रकार के शीशों की भरमार है। जहाँ नजर डालो वहां चमचमाते हुए शीशों की अद्भुत छटाएँ बिखरी हुई थी।ऐसा कहा जाता है अगर यहाँ पर दो दीपक जला दिए जाएँ तो पूरा शीशमहल रौशनी से जगमगा उठता है। पुराने समय में शायद इस भवन के अंदर जाने की अनुमति भी थी पर धिक्कार है  पर जो अपनी चोरी की प्रवित्ति से बाज नहीं आये और यहाँ से भी  ले गए।इस कारण अब अंदर तक जाना संभव नहीं रहा। गजब का माद्दा रखते हैं ये चोर,कैसी कैसी जगहों से चोरी कर लेते हैं। वैसे चोर तो चोर ही हुआ कुछ भी कर सकता है। महलों में घूमते हुए  जब जहाँ बिना दरवाजों के कमरे दिखाई देते हैं तो मुझे हमेशा लगता है कि क्या इन लोगों को कभी प्राइवेसी की जरुरत नहीं पड़ती होगी। थोड़ी  लिए मान लिया जाये कि परदे लगाते होंगे, बाहर सेवक सेविकाएं पहरा देते होंगे। आम मियां  पर्दा तो पर्दा ही हुआ एक हवा के झोखें से उड़ भी सकता है और रही बात सेवकों की तो, हैं तो वो भी दूसरे ही, क्या पता कब धोखा दे जाएँ। खैर छोडिए ,शीश महल वापस चलते हैं। यहाँ पर गाइड ने हमलोगों को एक जगह पर इस तरह से खड़ा किया कि दूसरे शीशे पर प्रतिबिम्ब बन गया और कुछ इस तरह  आया जैसे किसे फ्रेम के अंदर हों। चलो गाइड के पैसे भी वसूल हो गए।    
                  शीश महल के सामने के गलियारे से माओथा झील का सुन्दर नजारा दिखाई देता है। इस झील के बीच में मुग़ल गार्डन बना हुआ है, जिसमे जाना  संभव नहीं है। झील के मध्य में बना ये बगीचा बहुत ही आकर्षक दिखाई देता है। प्रसिद्ध चलचित्र जोधा अकबर के गीत कहने को जश्ने बहारा है का छायांकन इसी जगह पर किया गया है। आमेर का किला इस चलचित्र में कई जगह पर दिखाया गया है।
                   इस जगह को देखने के बाद हम शीश महल और सुख महल को अलग करने वाले इस्लामिक पद्धति से बने षटकोण के आकार वाले बगीचे पर नजर डालते हुए आगे बढे। इस बाग़ में जाने के चार रास्ते होने के कारण इसे चार बाग़ के नाम से भी जाना जाता है। कभी ये बाग़ कितने रौनको को अपने में समेटे हुए रहता होगा। कभी राजा तो कभी रानियां यहाँ विचरण करती होंगी।सोचती हूँ अगर ये जगहें बोलने वाली होती तो ना जाने कितनी कहानियाँ, कितनी घटनाएँ सुनाती। कितने सुखद और दुखद छणों की साक्षी रही होंगी ये जगहें। वक्त वक्त की बात है आज ये जगहें वीरान पड़ी हैं।
                   यहाँ से हम सुख महल जा पहुंचे,जो राजा के गर्मियों में रहने का स्थान था।इस जगह में बाहरी दीवारों पर संगमरमर की नालियाँ बनवाई गयी थी,जिनमे पानी का प्रवाह होने के कारण कमरे में ठंडक बनी रहती थी। गजब का दिमाग था इन लोगों के पास, और साथ के साथ इन राजे-रजवाड़ों के ठाठ भी बहुत थे जो मौसम के साथ अपने रहने का स्थान भी परिवर्तित कर लेते थे। यहाँ पर राजाओं की कुछ वस्तुएँ स्मृति चिन्ह के रूप में रखी गयी हैं। यहाँ पर एक पुराने समय की व्हील चेयर भी रखी हुयी थी। पूछने पर पता लगा इसमें बैठकर रानियां इधर उधर जाया करती थी। एक बार फिर शंका के समाधान के लिए गाइड की शरण  पड़ा, उसने बताया कि ये जो कपडे पहना करती थी उनका वजन इतना होता था कि चलना मुश्किल हो जाये। इसके लिए वो अपने घूमने के लिए इस गाड़ी का इस्तेमाल करती थी।
                 इसके बाद हम मान सिंह का महल देखते हुए जयसिंह के महल पहुंचे तो एक नयी बात पता लगी। राजा जयसिंह की बारह ऑफिसियल पत्नियां थी, इसके अलावा अनऑफिशल और भी रही होंगी। अब राजा ने इनको इनकी बुद्धि और सुंदरता के आधार पर एक कमरे, दो कमरे और तीन कमरों के घर प्रदान किये हुए थे, पर सभी  रानियों को एक दूसरे के कमरे में जाने का अधिकार नहीं था। इनके आपस में मिलने के लिए एक सार्वजनिक स्थल बना हुआ था,जिसमे ये अपने सुख दुःख बांटा करती होंगी। राजा के रहने का स्थल दुमंजिले में था और वहां से  रानी के कमरे में सीढियाँ उतरती थी। शुक्र है इन रानियों और राजा के कमरे में दरवाजा दिखाई दिया। इसके बाद हम महल से बाहर निकलने वाले रास्ते में आ गए। यहाँ पर वो गुप्त सुरंग भी दिखाई दी जो आमेर पैलेस को जयगढ़ के किले को जोड़ती है। पास के ही रास्ते बड़ी बड़ी कढ़ाई रखी हुयी हैं जिन्हे राजपरिवार का खाना बनाने के लिए उपयोग किया जाता था और इसीके साथ हम इस महल से बाहर निकल गए।          
आमेर गावँ 
प्रवेश द्वार 
इसी पेड़ के नीचे नरबलि दी जाती थी। 
दीवाने-ए -आम।
गणेश गेट। 
गणेश गेट नजदीक से। 
गणेश गेट में बनी कलाकृतियां।
शीश महल और सुख मंदिर को विभक्त करने वाला बगीचा। 

शीश महल। 
छत पर लगे शीशे। 
शीश महल। 
सुख मंदिर 
पुराने समय के शौचालय, ऐसे  सौ बने हुए हैं। 
झील में बना बगीचा। 
जयसिंह का महल और रानियों का मिलन स्थल। 
अलग अलग रानी महल। 
राजा का निवास।  
रानी के कमरे का दरवाजा और राजा के कमरे से आने वाली सीधी, ऐसे  सीधी हर रानी के कमरे के पास बनी हुयी थी। 

3 BHK
आमेर और जयगढ़ जोड़ने वाला गुप्त रास्ता। 
शाही कढ़ाई।                    
इस यात्रा की अन्य कड़ियाँ -
Pink City, Jaipur
Jaigarh Fort,Jaipur
Amer Palace,Jaipur
Hava Maha and Jantar Mantar,Jaipur

7 comments:

  1. बहुत बढ़िया हर्षिता जी.....
    जयपुर तो हम गये है...आमेर के किले तक भी ...पर उस समय किले में अन्दर जाना प्रतिबंधित कर रखा था शायद उस समय कोई कारण हो....

    पर आपके लेख से अब इस किले और महल के शानदार दीदार हो गये वो भी पूरी जानकारी के साथ...
    फोटो और लेख दोनों प्रभावी रहे ...

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  2. सुंदर ब्लॉग. वहां किले में पानी का अच्छा इन्तेजाम किया हुआ था.

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  3. मुझे राजस्थान की स्थापत्य कला और चित्रकला बेजोड़ लगती है ! लोग कहते हैं कि यूरोप के स्थापत्य को देखकर मन अभिभूत हो जाता है लेकिन मैं कहूंगा कि ऐसा वो ही कहेगा जिसने राजस्थान को ढंग से नहीं देखा !! शानदार पोस्ट हर्षिता जी

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  4. शानदार पोस्ट। फ़ोटो बहुत अच्छे से खींची हैं हर्षा।

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  5. बचपन में स्कुल की ट्रिप में ये महल देखा था । आज तुमने याद दिला दिया। थोड़े समय में तुमने वो काम कर दिखाया जो हम 8 दिन में नहीं कर सके हर्षा वाह

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  6. Beautiful tour of fort and palace. This reminded me of my trip.

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  7. shandar post. shish mahal mei pics khicwane ka apna maza hai.

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