पिछले पोस्ट में आपने पढ़ा बैंगलोर से यरकोड की यात्रा के बारे में,तो इस श्रंखला की दूसरी एवं अंतिम कड़ी में आपको ले चलते हैं यहाँ के दर्शनीय स्थलों के यात्रा वृतांत पर। जैसा कि आप लोगों को विदित ही है हम लोग दोपहर बारह बजे ही पहुँच गए थे और यात्रा की थकान नहीं के बराबर ही थी,तो बस चाय पीने के बाद हम निकल पड़े यहाँ के प्राकृतिक नजारों के दर्शन के लिए। होटल से नीचे उतरते ही सामने दिखाई दी शांत सी झील।
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शांत सी यरकोड झील |
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ज्यादा विकास नहीं होने के कारण यहाँ पर मार्केट और शोपिंग काम्प्लेक्स कहीं दिखाई नहीं दिए ऐवम् सैलानियों की भीडभाड नहीं होना इसे अन्य जगहों से अलग कर देता है। यहाँ पर ना ही ऊटी के जैसी यात्रियों की भीड़भाड़ दिखी और ना ही नैनीताल जैसे कंक्रीट के जंगल, दिखी तो सिर्फ एक चीज बस मनमोहक प्राकतिक नज़ारे। अगर ऊटी की प्राकृतिकता देखनी का मन हो तो इन लिंक पर जायें-
ऊटी
झील के नज़ारे देखते-देखते ही बोट हाउस के पास के पार्किंग स्थल में गाड़ी खड़ी कर दी। इधर आस पास में तीन आकर्षण हैं पहला झील,दूसरा अन्ना पार्क और तीसरा डियर पार्क। सबसे पहले हम गए बोट हाउस क्यूंकि झील एक ऐसा आकर्षण है जिसे देखकर कोई भी अपनेआप को रोक नहीं सकता।पर एक बात थोडा अजीब सी लगी कि यहाँ पर बोटिंग के तो पैसे लगते ही हैं पर बोट हाउस में जाने के भी पैसे लगते हैं। बोटिंग के लिए यहाँ पर हर तरह की नावे मौजूद थी,और नावों की सवारी तो कई बार की है तो इस बार मन हुआ की पेडल वाली नाव की सवारी कर ले। मजा तो बहुत आया पर थोड़ी देर में ही हमारे छोटे पार्टनर का मन भर गया और जोर जोर से रोना शुरू हो गया। फिर क्या था वापस जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था, पर भी भी बोट की सवारी का अनुभव तो हो ही गया।
इसके बाद थोड़े आराम के जरुरत लगी और अन्ना पार्क जा कर वहाँ बैठ गये। ये पार्क दो आमने सामने दो हिस्सों में बटा हुआ है,एक सड़क की एक ओर तो दूसरा दूसरी ओर। ये जगह बहुत ज्यादा व्यवस्थित तो नहीं है पर फूलों की वजह से मनमोह लेता है। यहाँ पर एक शेर भी रखा है जो बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
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अन्ना पार्क के रँग बिरंगे फूल |
थोड़ी देर यहाँ बैठने के बाद हम दूसरी साइड के पार्क में गए। यहाँ पर टिकट के नाम पर बहुत बड़ी लूट है,इसलिए ये ध्यान देने योग्य बात है कि ये एक ही पार्क है तो केवल एक ही जगह टिकट दे,बस इसका नाम थोडा सा बदल दिया गया है, लेक व्यू पार्क।इन दोनों पार्कों का एक ही टिकट था। ये पार्क पहले पार्क से अच्छा बना हुआ है, और इसके ठीक सामने झील है जिससे यहाँ का आकर्षण बढ़ जाता है।
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पार्क से दिखती हुयी झील |
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पार्क में खिले फूल |
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पार्क से दिखती हुयी झील |
इसके बाद हम चल पड़े खाने के लिए सर्वणा भवन की ओर, बहुत देर भटकने के बाद मिला तो सही पर खाना खाने के बाद अनुभव हुआ कि नाम बड़े और दर्शन छोटे। चलो कोई नहीं हम तो घूमने के लिए गए थे ना कि खाने के लिए। तब तक हमारा तीसरा पार्टनर थक के सो भी गया था तो होटल वापस जाने का मन बना लिया और कार पार्किंग की ओर पैदल ही चल पड़े। जब तक पार्किंग तक पहुंचे तो मैडम की नींद पूरी हो गयी और फिर से आगे के अट्रैक्शन को देखने का मन बन गया। आज देखने के लिए दो- तीन जगह ही बची थी जिनमे दो तो आसपास ही थी। लेडीज सीट और जेंट्स सीट, लेडीज सीट की बोट हाउस से दूरी मात्र तीन किलोमीटर की थी, तो ज्यादा समय नहीं लगा।
लेडीज सीट और जेंट्स सीट शेवारॉय हिल के दक्षिण पश्चिम पर स्थित है। ये सभी जगह बहुत ही दर्शनीय हैं यहाँ से एक ओर हरे भरे पहाड़ दिखते है तो दूसरी ओर सेलम घाटी के नज़ारे-
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पहाड़ों के बीच घुमावदार सड़कें |
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सेलम घाटी |
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हरी भरी पहाड़ियां |
अगला पड़ाव जेंट्स सीट यहाँ से पैदल रास्ते पर है,यहाँ जा के पता चला कि चिल्ड्रन सीट भी यहाँ मौजूद है,जिसमे बच्चों के खेलने का इंतजाम है।फिर से दिखे आकर्षक नज़ारे-
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जेंट्स सीट |
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जेंट्स सीट से दिखता नजारा |
अब अज के लिए सिर्फ एक जगह बची थी वो है पैगोडा पॉइंट,यहाँ के रस्ते में हमारा होटल भी पड़ता था तो वहां खाने का आर्डर देते हुए हम पैगोडा पॉइंट पहुंचे।एक बार फिर यहाँ से प्राकतिक नज़ारे दिखाई दिए और साथ में एक मंदिर भी था। पैगोडा पॉइंट को पकोड़ा पॉइंट के नाम से भी जाना जाता है। हम शायद कुछ देर से पहुंचे और पकोड़ा पॉइंट के पकोड़ों के स्वाद का जायका नहीं ले पाए। कोई नहीं मन को मना लिया कि ये कसर हम अगले ट्रिप में पूरी करने की कोशिश करेंगे।
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पैगोडा पॉइंट से दिखता हुआ गाँव |
यहाँ देखने को मिला आश्चर्यजनक रूप से ध्यानमग्न श्वान,जो कि अपने आस पास से बेखबर जाने किन विचारो में मग्न था।
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सोता हुआ कुत्ता |
इसके बाद होटल जा के खाना खाया,यहाँ की हॉस्पिटैलिटी अच्छी थी,और बोलने पर इन लोगों ने बच्चे के लिए अलग से दाल भी बना दी थी,तो किसी तरह की परेशानी नहीं हुयी।अगले दिन के लिए प्लान ये था कि किल्युर फाल्स होते हुए होगनेक्कल के रस्ते बैंगलोर वापस हो जायेंगे।अगले दिन उठ के देखा तो कमरे के बाहर खिडकियों पर ऒस की बूंदे बह रही थी।
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खिड़की पर ओस की बूंदे |
किल्युर की ओर रुख किया ही था कि लोगों ने कहा वहां पर पानी ही नहीं है तो देखने के लिए कुछ भी नहीं है,तो फिर मेटटूर डैम होते हुए बैंगलोर वापस हो गए,क्यूंकि लगा की होगनेक्कल जाना का कोई पॉइंट नहीं बच्चे के साथ में, ठीक से एन्जॉय नहीं हो पायेगा।तो उसे अगली बार के लिए छोड़ते हुए बैंगलोर को वापस हो लिए।इस ट्रिप में इतना ही था,अगले के साथ फिर मिलते हैं।