Travel date-9th October 2016
आज के दिन का प्लान पहले सकलेशपुर लोकल घूमने का था लेकिन फ़ोन से पता लग गया था कि आज हमारे साथी बैंगलोर से आ रहे हैं तो हमने सोचा कि यहाँ की घुम्मकड़ी साथ में करेंगे। इसलिए आज के दिन में हमने श्रवणबेलगोला के बाकि बाकि साथी बेलूर और हलिबेडू के साथ चिकमगलूर घूमने का निर्णय लिया। आज भी हम होटल से आठ बजे ही निकल पाये अभी बेलूर जाने के लिए हमें छत्तीस किलोमीटर जाना है। जाते समय हम सकलेशपुर अरेहल्ली रोड से गए। सड़क थोड़ा संकरी होते हुए भी बुरी नहीं थी। हमने इस रास्ते का चुनाव इसके थोड़ा छोटा होने की वजह से किया ,अगर थोड़ा ज्यादा टाइम हाथ में हो तो बेलूर सोमवारपेट रोड का चुनाव भी किया जा सकता है, ये सड़क ज्यादा अच्छी है। रास्ते में हरियाली देखते हुए हम एक दो जगह रुके और एक घंटे में बेलूर पहुँच गए।
बेलूर को चेन्नाकेशव (विष्णु भगवान) के मंदिर के लिए जाना जाता है। बाहर से प्रवेश द्वार देखने से मुझे लगा शायद स्थापत्य कला के हिसाब से ठीक ठीक मंदिर है ,लेकिन अंदर जाने से ये भ्रम दूर हो गया। होयसाल काल में बना ये मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से बहुत बेहतरीन है। यहाँ पर मंदिर में बने खम्बों में बहुत ही महीन नक्काशी करी गयी है, इनकी बारीकी देखने से लग रहा था जैसे किसी ने लेत मशीन चलाई हो। यहाँ जितने भी छोटे बड़े मंदिर हैं वो सब जमीन से नहीं बना के एक ऊँचे से मंच पर बनाये गए हैं। मंच की दीवारों पर भी जबरदस्त नक्काशी करी हुयी थी। हर जगह पर छोटे छोटे अनगिनत हाथी बनाये गए थे। एक हाथी में ही बहुत मेहनत लगी होगी, ना जाने कैसे इतना कुछ बनाया गया होगा। इसकी अतिरिक्त अन्य आकृतियां भी थी जैसे भगवान की मूर्तियां, जेवरात, और भी ना जाने क्या क्या। मंदिर के अंदर एक सांप के आकार का आसन बना हुआ था जिसमे बैठकर लोग फ़ोटो खिंचवा रहे थे। थोडा बहुत फोटोग्राफी हमने भी करी और मंदिर परिसर से बाहर आ गए।
बाहर छोटा मोटा सामान बेचने वाले लोग घूम रहे थे बच्चा साथ में देख कर तो वो पीछे ही लग जाते हैं, हमने भी अस्सी रूपये का एक वॉयलिन लेकर अपनी जान छुड़ाई। इसके बाद अब तक भूख भी लग गयी थी तो आगे बढ़ कर कुछ खाने का जुगाड़ देखा तो डोसा कार्नर मिल गया और पेट पूजा हो गयी। खाने और चाय के बाद अगला लक्ष्य था हलिबेडु जाने का। बेलूर से हलिबेडु की दूरी तीस किलोमीटर की है और ये रास्ता उतना अच्छा नहीं है गाड़ी चलाने के लिए। खैर जब एक बार चल पडो तो मंजिल आ ही जाती है।हलिबेडु को बेलूर की जुड़वाँ सिटी के रूप में जाना जाता है । हलिबेडु का मतलब नष्ट शहर होता है। प्रारंभिक दिनों में इसे द्वारसमुद्र के नाम से भी जाना जाता था ।यहाँ पर भी छोटे बड़े तीन मंदिर है जिन्हें संरक्षित स्मारक के रूप में जाना जाता है। लास्ट वाला मंदिर शिव जी का है इसे केदारेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।शायद उसमे कम लोग ही जाते रहे होंगे। हमारे जाने पर ही मंदिर का दरवाजा खोला गया।अब तक गर्मी अपने चरम पर पहुँच गयी थी पैर चलने लगे थे नंगे पैर होने से। यहाँ से जल्दी जल्दी में वापस हुए और बीच वाला जैन मंदिर हमने स्किप कर दिया और इसके बाद पड़ा होयसलेश्वर का मंदिर। ये मंदिर भी स्थापत्य के लिहाज से बहुत उत्कृष्ट है और सबसे अधिक मेन्टेन कर के रखा हुआ है। यहाँ पर बच्चों के खेलने के लिए एक पार्क भी था जिसमे लोग आराम कर रहे थे। यहाँ से बाहर आ कर के हमने थोडा सेब और संतरे ख़रीदे और सवा बारह बजे बेलूर हलिबेडु को बाय बाय कर दिया।
मंदिरों के दृश्य-
इस यात्रा की समस्त कड़ियाँ -
Drive to Sakleshpur:Shravanbelgola
Belur-Helibedu
Chikmaglur: Land Of Coffee
Sakleshpur, The Green Land
आज के दिन का प्लान पहले सकलेशपुर लोकल घूमने का था लेकिन फ़ोन से पता लग गया था कि आज हमारे साथी बैंगलोर से आ रहे हैं तो हमने सोचा कि यहाँ की घुम्मकड़ी साथ में करेंगे। इसलिए आज के दिन में हमने श्रवणबेलगोला के बाकि बाकि साथी बेलूर और हलिबेडू के साथ चिकमगलूर घूमने का निर्णय लिया। आज भी हम होटल से आठ बजे ही निकल पाये अभी बेलूर जाने के लिए हमें छत्तीस किलोमीटर जाना है। जाते समय हम सकलेशपुर अरेहल्ली रोड से गए। सड़क थोड़ा संकरी होते हुए भी बुरी नहीं थी। हमने इस रास्ते का चुनाव इसके थोड़ा छोटा होने की वजह से किया ,अगर थोड़ा ज्यादा टाइम हाथ में हो तो बेलूर सोमवारपेट रोड का चुनाव भी किया जा सकता है, ये सड़क ज्यादा अच्छी है। रास्ते में हरियाली देखते हुए हम एक दो जगह रुके और एक घंटे में बेलूर पहुँच गए।
बेलूर को चेन्नाकेशव (विष्णु भगवान) के मंदिर के लिए जाना जाता है। बाहर से प्रवेश द्वार देखने से मुझे लगा शायद स्थापत्य कला के हिसाब से ठीक ठीक मंदिर है ,लेकिन अंदर जाने से ये भ्रम दूर हो गया। होयसाल काल में बना ये मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से बहुत बेहतरीन है। यहाँ पर मंदिर में बने खम्बों में बहुत ही महीन नक्काशी करी गयी है, इनकी बारीकी देखने से लग रहा था जैसे किसी ने लेत मशीन चलाई हो। यहाँ जितने भी छोटे बड़े मंदिर हैं वो सब जमीन से नहीं बना के एक ऊँचे से मंच पर बनाये गए हैं। मंच की दीवारों पर भी जबरदस्त नक्काशी करी हुयी थी। हर जगह पर छोटे छोटे अनगिनत हाथी बनाये गए थे। एक हाथी में ही बहुत मेहनत लगी होगी, ना जाने कैसे इतना कुछ बनाया गया होगा। इसकी अतिरिक्त अन्य आकृतियां भी थी जैसे भगवान की मूर्तियां, जेवरात, और भी ना जाने क्या क्या। मंदिर के अंदर एक सांप के आकार का आसन बना हुआ था जिसमे बैठकर लोग फ़ोटो खिंचवा रहे थे। थोडा बहुत फोटोग्राफी हमने भी करी और मंदिर परिसर से बाहर आ गए।
बाहर छोटा मोटा सामान बेचने वाले लोग घूम रहे थे बच्चा साथ में देख कर तो वो पीछे ही लग जाते हैं, हमने भी अस्सी रूपये का एक वॉयलिन लेकर अपनी जान छुड़ाई। इसके बाद अब तक भूख भी लग गयी थी तो आगे बढ़ कर कुछ खाने का जुगाड़ देखा तो डोसा कार्नर मिल गया और पेट पूजा हो गयी। खाने और चाय के बाद अगला लक्ष्य था हलिबेडु जाने का। बेलूर से हलिबेडु की दूरी तीस किलोमीटर की है और ये रास्ता उतना अच्छा नहीं है गाड़ी चलाने के लिए। खैर जब एक बार चल पडो तो मंजिल आ ही जाती है।हलिबेडु को बेलूर की जुड़वाँ सिटी के रूप में जाना जाता है । हलिबेडु का मतलब नष्ट शहर होता है। प्रारंभिक दिनों में इसे द्वारसमुद्र के नाम से भी जाना जाता था ।यहाँ पर भी छोटे बड़े तीन मंदिर है जिन्हें संरक्षित स्मारक के रूप में जाना जाता है। लास्ट वाला मंदिर शिव जी का है इसे केदारेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।शायद उसमे कम लोग ही जाते रहे होंगे। हमारे जाने पर ही मंदिर का दरवाजा खोला गया।अब तक गर्मी अपने चरम पर पहुँच गयी थी पैर चलने लगे थे नंगे पैर होने से। यहाँ से जल्दी जल्दी में वापस हुए और बीच वाला जैन मंदिर हमने स्किप कर दिया और इसके बाद पड़ा होयसलेश्वर का मंदिर। ये मंदिर भी स्थापत्य के लिहाज से बहुत उत्कृष्ट है और सबसे अधिक मेन्टेन कर के रखा हुआ है। यहाँ पर बच्चों के खेलने के लिए एक पार्क भी था जिसमे लोग आराम कर रहे थे। यहाँ से बाहर आ कर के हमने थोडा सेब और संतरे ख़रीदे और सवा बारह बजे बेलूर हलिबेडु को बाय बाय कर दिया।
मंदिरों के दृश्य-
कोहरे में डूबा सकलेशपुर |
ऑन दी वे तो बेलूर। |
जंगल |
यहाँ बहुत सारे जानवर चर रहे थे। |
बेलूर का प्रवेश द्वार। |
मंदिर की छत की नक्काशी। |
साँप। |
कलाकृतियां। |
एक अन्य मंदिर। |
खम्बो का शिल्प। |
खम्बा। |
गलियारा। |
तालाब। |
हलीबेडू मंदिर |
कलाकृतियां। |
एक अन्य प्रवेश द्वार। |
रास्ता। |
घास का मैदान। |
शिल्प निहारते लोग। |
Drive to Sakleshpur:Shravanbelgola
Belur-Helibedu
Chikmaglur: Land Of Coffee
Sakleshpur, The Green Land
दक्षिण भारत के मंदिरों की शिल्पकला सच में विचित्र और बहुत खूबसूरत होती है ! बढ़िया यात्रा करा दी आपने
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यात्रा। यह मंदिर कई साउथ इंडियन मूवी में देखा है, वाकई बहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteदक्षिण के मंदिरों की शिल्पकला और भव्यता देखने लायक ही होती हैं और बहुत अच्छा लिखती हैं आप
ReplyDeleteमेरी राय मानो तो एक DSLR कैमरा भी खरीद ही लो अब ..
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteपहली बार इस मंदिर के बारे जाना। बढ़िया यात्रा रही...
ReplyDeleteमुझे कर्नाटक और खास तौर से कर्नाटक के यह वाले हिस्से बहुत पसंद है...में 2004 में यहां जाकर आ चुका हूं....
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