किसी भी भारतीय के लिये अंडमान के नाम पर काला पानी की याद आना स्वाभाविक है!! स्वाधीनता का इतिहास पढने वाला बच्चा बच्चा भी अंडमान की सेलुलर जेल को जरूर जानता है इसलिए यहाँ जाने के बाद मन में देशभक्ति का सैलाब नहीं चाहते हुए भी उमड़ ही आता है। जब हम विमान में बैठकर के प्राकृतिक दृश्यों के मजे ले रहे थे तो मन में एक एहसास रह-रह कर आ रहा था कि मुख्य भूमि से इतनी दूर जहाँ हम घूमने के उद्देश्य से आ रहे हैं,जब वहां हमारे स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियो को पानी के जहाजों में भरकर यहां पटक दिया जाता होगा तो इस एकाकी जगह में उन्हें कैसे अनुभव होते होंगे। उनमे से कई सारे तो इतनी लम्बी समुद्री में होने वाली बैचैनी के कारण रास्ते में ही दम तोड़ देते होंगे और जो किसी तरह वहाँ पहुँच जाते होंगे तो वहां के एकाकीपन, मौसम की मार एवं अंग्रेज सरकार के अत्याचारों से इस कदर टूट जाते होंगे कि उन्हे जीवन मृत्यु से ज्यादा कष्टकारी लगता होगा। अंडमान या कहिये पोर्ट ब्लेयर में अपने सफर का प्रारम्भ सेलुलर जेल से करना हमारी तरफ से देश के सपूतों के लिए भावपूर्ण नमन था। थोड़ी देर सफर की थकान मिटाने के बाद पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आज के दिन का प्रारम्भ सेलुलर जेल से करने के साथ-साथ समापन भी यहाँ रात को होने वाले साउंड एंड लाइट शो के साथ किया एवं बचे हुए समय में समुद्रिका और सागरिका म्यूजियम के दर्शन के साथ पोर्ट ब्लेयर के सबसे निकटवर्ती समुद्री तट कोर्बिन्स कोव की समुद्री लहरों के मजे भी लिए।आइये यात्रा की शुरुआत करते हैं सेलुलर जेल में प्रतीकात्मक रूप से सजा पते एक सेनानी के चित्र के साथ -
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सेलुलर जेल के प्रांगढ़ में सजा पता एक कैदी |
करीब दो घंटा घूमने के बाद हमें बाहर निकलना था और बाकि जगह देखनी थी इस दौरान टेक्सी चालक ने हमारे लिए साढ़े पांच बजे से हिंदी में होने वाले लाइट एंड साउंड शो की टिकट ले रखी थी।जिसकी कीमत प्रति व्यक्ति पचास रुपया पड़ती है।यहाँ पर प्रति दिन पांच बजे से साढ़े छह बजे तक हिंदी में एवं छह पैतालीस से सात पैतालीस तक अंग्रेजी में ध्वनि एवं प्रकाश शो का आजोयन किया जाता है,जिसमे स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों की अमर गाथा सुनाई जाती है और सेलुलर का समय सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक। इस कारण यहाँ दो बार आना जरुरी हो जाता है!! जब इन लोगों ने हमारे लिए इतना कुछ किया है तो यहाँ दो बार तो क्या दस बार भी आना पड़े तो वो कम ही होगा। इस शो की शुरुआत बरसों से संरक्षित रखे गए पीपल के पेड़ से आने वाली आवाज के साथ किया जाता है। ये आवाज कुछ ऐसी थी "मैं वही पीपल का पेड़ हूँ ,मैंने देखा उन आजादी धुन में मतवालों को आते हुए जो इंकलाब जिंदाबाद, वन्दे मातरम की आवाज के साथ कभी वापस नहीं जाने के लिए आते थे।"इसके बाद तो जो जुल्मो सितम की दास्ताँ सुनाई उससे अच्छे अच्छों का मन पिघल जाये। बार-बार ये लग रहा था कि किस तरह से हमलोगों को आजादी दिलाई गयी और इतने कम समय में ही देश के महान नेताओं ने देश को किस हालत में ला दिया है!! पर अपने बस में सोचने के अतिरिक्त तो कुछ भी नहीं!! देश के इन शहीदों को नमन करते हुए केवल ये उम्मीद कर सकते हैं कि क्या पता समय फिर से बदल जाये और हमारा देश दुबारा से सोने की चिड़िया बन जाये। देखिये इस तीर्थों के महा तीर्थ काला पानी की कुछ झलकियाँ -
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मुख्य द्वार |
काला पानी या महातीर्थों का तीर्थ |
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देखिये किस तरह दोनों विंग में से एक का रोशनदान खुलता है तो दूसरे का मुख्य द्वार |
जेल का एक अन्य दृश्य |
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साउंड एंड लाइट शो के समय जगमगाती जेल की कोठरियां। |
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सावरकर कोठरी जो कि फांसी घर के ठीक सामने थी। |
सेलुलर जेल में बने म्यूजियम में करीब दो सौ से अधिक सेनानियों की तस्वीरें हैं |
कुछ तस्वीरें |
सेलुलर जेल की मॉडलनुमा तस्वीर |
जेल में प्रयुक्त ताले और चाबियाँ |
अखंड ज्योत |
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जेल की छत से दिखता हुआ समुद्र शायद यहीं कहीं वीर सावरकर ने छलांग लगाई हो। |
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सावरकर जी की तस्वीर |
अंडमान का सफर एक नजर में -